2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक गुणा – भाग शुरू हो गया है. तकरीबन सभी दलों से संभावित प्रत्याशियों के नामों की चर्चा होने लगी है. चुनावी चौपालों पर दलगत व जातिगत समीकरणों के हिसाब से उम्मीदवारों पर विचार हो रहा है. चर्चा का अहम हिस्सा यह है कि अगले लोकसभा चुनाव में महागठबंधन से मजबूत प्रत्याशी के रूप में कौन प्रबल दावेदार हो सकता है. वैसे एनडीए समेत अन्य दल भी चुनावी चर्चाओं का महत्वपूर्ण भाग हैं, परंतु राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की सजा ने महागठबंधन को विशेष तौर पर चर्चा का केंद्र बना दिया है. वैसे चुनाव में अभी एक साल का समय शेष है. इस बीच राजनीतिक समीकरणों में फेर बदल की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है. सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर 2014 के चुनाव में भाजपा समर्थित रालोसपा प्रत्याशी राम कुमार शर्मा को बतौर सांसद निर्वाचित होने का मौका मिला.
मोदी लहर में चुनावी वैतरणी पार कर चुके सांसद आगामी चुनाव में सीट पर कब्जा रख पाते हैं अथवा नहीं, फिलहाल कहना मुश्किल है. कारण कि गठबंधन की राजनीति कब किस करवट लेगी, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है. दूसरा यह कि पूर्व से सीतामढ़ी सीट पर कांग्रेस, राजद व जदयू का कब्जा रहा है. नतीजतन अपने पुराने सीट पर कब्जे को लेकर इन दलों की जमीनी तैयारी भी जोरों पर है. वर्तमान में बिहार की राजनीति के हिसाब से गठबंधन दो भाग में बंटा है. एक ओर एनडीए तो दूसरी ओर महागठबंधन चुनावी समर में दो-दो हाथ करने को तैयार है. जहां तक सीतामढ़ी जिले में महागठबंधन का सवाल है तो इस सीट को एनडीए के कब्जे से मुक्त कराने को लेकर महागठबंधन कोई कसर नहीं छा़ेडना चाह रहा है.
1952 के बाद 1962 से लेकर 1972 तक लगातार तीन टर्म कांग्रेस के टिकट पर नागेंद्र प्रसाद यादव बतौर सांसद निर्वाचित होते रहे. 1980 में बलिराम भगत तो 1984 में कांग्रेस के टिकट पर रामश्रेष्ठ खिरहर बतौर सांसद प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वहीं 1998 और 2004 के लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट पर सीताराम यादव को क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला था. जहां तक 2019 के लोकसभा चुनाव की बात है, तो इसके लिए महागठबंधन के तहत राजद व कांग्रेस के कई प्रत्याशियों के नामों की चर्चा शुरू है. दल के शीर्ष नेतृत्व का निर्णय किसे चुनावी समर में उतारेगा, यह तो बाद की बात है.
मगर फिलहाल चल रही चर्चाओं में महागठबंधन से राजद के टिकट के प्रबल दावेदारों में पूर्व सांसद सीताराम यादव, स्थानीय निकाय के विधान पार्षद दिलीप राय व कांग्रेस से सीतामढ़ी जिला कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष विमल शुक्ला चर्चा के केंद्र में हैं. इस बीच राजद खेमा में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि अगर शरद गुट समर्थक पूर्व सांसद डॉ अर्जुन राय महागठबंधन से राजनीतिक गठबंधन के तहत दावेदार होते हैं, तो ऐसी स्थिति में राजद के कद्दावर नेताओं के अरमान पर पानी फिर सकता है.
चर्चाओं पर गौर करें तो अगर शरद यादव महागठबंधन के साथ चुनाव मैदान में आते हैं, तो संभव है कि सीतामढ़ी सीट पर पूर्व सांसद डॉ. अर्जुन राय की दावेदारी हो सकती है. कारण कि 2009 के लोकसभा चुनाव में बतौर सांसद निर्वाचित हो चुके पूर्व सांसद 2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद भी सीतामढ़ी से लगातार संपर्क में रहे हैं. वैसे चुनाव में अभी वक्त है. ऐसे में फिलहाल किसी एक की दावेदारी पर मुहर नहीं लगाई जा सकती है. राजद से कई और कद्दावर नेता जिले में फिलवक्त मौन साध कर राजनीतिक तापमान मापने में लगे हैं. संभव है कि समय करीब आने पर वे भी अपनी दावेदारी को लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की चौखट पर दस्तक दें.
चुनावी चर्चाओं में यह बात भी जोरों पर है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को अदालत से सजा सुनाये जाने के बाद इनके परिवार के राजनीतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए महागठबंधन के पक्ष में मतदाताओं को गोलबंद करने का अभियान चलाया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर इस बात को लेकर संदेह भी व्यक्त किया जाने लगा है कि टिकट के दावेदारों के राजनीतिक वर्चस्व में कही पार्टी व गठबंधन को नुकसान न उठाना पड़ जाए. अगर दल व गठबंधन का शीर्ष नेतृत्व इस बात को गंभीरता से लेते हुए निर्णय लेता है तो बहुत हद तक महागठबंधन को फायदा हो सकता है.
नेता मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने के प्रयास में अभी से जुटे हैं, परंतु आम जनता अभी मौन है.