भोपाल। कुदरती हुस्न के साथ 750 गाँव वाली गिन्नौर रियासत का 3696 लंबा 874 चौड़ा अपनी 20 चौड़ी दीवारों 82 ऊँची दीवारों के साथ सर उठाये खड़ा था। जिस तरह टोकरियों में भरकर अनाज उड़ाया जाता है, इसी तरह उनका खज़ाना हर साल टोकरियों से उड़ाया जाता था, जितना रह जाता था वो अच्छा और खरा समझा जाता था और जितना रूपया इधर उधर लुड़क जाता, वो सब खोटा माना जाता था। चौधरी कृपारामचंदन की बेटी कमलापति इसी रियासत के राजा निज़ाम शाह की रानी थीं। परी जैसी ख़ूबसूरत, फूल जैसी नाजुक, चांदनी रातों में राजा भोज के बड़े तालाब में अपनी सहेलियों के साथ तैरती फिरती थी। राजा को भतीजे चैन शाह, ने ही मार डाला, रानी को चारों तरफ तबाही और बर्बादी दिखी थी, उसे लगा उसके बच्चे को तलवार की घाट उतार कर कब्ज़ा कर लिया जाएगा।
हुस्मे इत्तेफाक से सरदार दोस्त मोहम्मद खां बड़े तालाब में मछलियाँ पकड़ने आते थे, वो जगदीशपुर राजवाड़ा जीत कर इस्लामनगर कैपिटल बना चुके थे। चारों तरफ अपनी बहादुरी के जौहर दिखा रहे थे, कमलापति उनके बहादुराना कारनामों का हाल सुना करती थीं। तालाब रानी का था और यहाँ मछली का शिकार माना था, लोगों की शिकायत पर उन्होंने सरदार को बुलाया, सरदार बिना डरे रानी के दरबार में आ गए, रानी ने दोस्त की हिम्मत देखकर असल शिकायत भूलकर अपना मुद्दा बयान किया, राखी बाँधी, पति की मौत का बदला लेने का कहा।
सरदार सफल हुए, राजा चैनशाह का सर काट कर रानी को पेश किया, बाड़ी इलाका जप्त कर लिया और पूरे इलाके से बागियों को साफ़ कर दिया और ऐसा बंदोबस्त किया कि रानी के खिलाफ सिर उठाने की ज़रात न हो, रानी ने तय रकम से 50,000 नगद दिए और 50,000 के बदले भोपाल गाँव दे दिया। रानी के बाद उसका बेटा नवल शाह मालिक हुआ, उसके मरने के बाद उसकी कोई औलाद न होने पर उसका इलाका भी भोपाल मे मिल गया। पात्रा नदी और बंदगंगा नदी के किनारे पुराने गोंड किलों पर रानी कमलापति महल की 5 मंज़िलों में से छोटे खां द्वारा छोटा तालाब बनाने से दो मंज़िले पानी में डूब गई। हुस्नो-जमाल की मलिका कमलापति की सूझ बूझ, दूर अंदेशी, और अंकलमंदी की वजह से पूरे देश में मशहूर हो गई।