आदिवासीयो के लिए हमारे संविधान में दिऐ गऐ विशेष प्रावधान पांचवें और छठवे अनुच्छेद को हटाने के लिए फादर स्टेन स्वामी को हटा दिया गया ! जिस भीमा कोरेगाव के केस मे उन्हें अक्तूबर 2020 को एन आई ए ने गिरफ्तार किया था ! उस भीमा कोरेगावमे फादर स्टेन स्वामी जींदगी में कभी भी गये नहीं थे ! और एल्गार परिषदसेभी उनके संबंध होने का कोई कारण ही नहीं है क्योंकि वह परिषद विशुद्ध रूप से भीमा कोरेगाव शौर्य दिन के 200 वा साल (1जनवरी 2018 के दिन) मनाने हेतु महाराष्ट्र के दो सौ से भी ज्यादा सामाजिक संगठनों ने मिलकर बनाई परिषद थी ! जिसमें राष्ट्र सेवा दल के तरफसे मै खुद एक सदस्य था ! और एक जनवरी 2018 के भीमा कोरेगाव शौर्य दिन मनाने के बाद उस परिषद का बाद में कोई भी अस्तित्व नहीं है !
और इस पुरी प्रक्रियाओं मे अभी जितने भी लोग एल्गार परिषद के नाम पर जेल मे है ,उनमें से एक दो छोडकर अन्य लोगों के संबंध नहीं है ! हालाँकि हमारे और उनके राजनीतिक मतभेद जरूर है ! क्योंकि हम राष्ट्र सेवा दल के लोग महात्मा गाँधी, जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया,डॉ बाबा साहब अंबेडकर के विचार से चलने वाले लोगों मे से हैं ! लेकिन मुझे लगता है कि इन मे से ज्यादातर लोग दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक समुदाय और महिलाओके सवालों पर बरसों से काम करने वाले जरूर है ! और इस देश के वर्तमान सांप्रदायिक राजनीति को देखते हुए हम लोग कुछ मुद्दों पर कभी-कभी मिलकर काम करते हैं ! और इसीलिए हमारे परिचित होने के कारण भीमा कोरेगाव के एक जनवरी 2018 को हुए दंगे की राष्ट्र सेवा दल के तरफसे आठ जनवरी यानी एक हप्ते के भीतर मेरी ही अध्यक्षता में जाँच की है और वह रिपोर्ट भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशधनंजय चंद्रचूड़ जीने अपने डिसेंट जज्मेंट मे भी पूरा रिपोर्ट कोट किया है !
उसी तरह मुंबई हाईकोर्ट में भी दंगे के असली दोषी मनोहर भीडे और एकबोटे के जमानत अर्जी के खिलाफ भी कोट किया है और वह रिपोर्ट सबसे पहले पुणे के कोर्ट में भीडे और एकबोटे के जमानत अर्जी के खिलाफ भी कोट किया है ! और वह रिपोर्ट महाराष्ट्र सरकार ने भीमा कोरेगाव जाँच आयोग पूर्व न्यायाधीश जे एन पटेलके नेतृत्व में नियुक्त किया गया आयोग के पुणे सिटिग मे मैने खुद जमा किया है ! और हमारे आठ जनवरी 2018 के दिन भीमा कोरेगाव, वढूबुद्रुक परिसर के लोगों से बातचीत और प्रत्यक्ष स्थिति को देखते हुए, पुलिस-प्रशासनतथा भीमा कोरेगाव ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों से बातचीत करने के बाद लिखी है ! और उस रिपोर्ट को भारत के चुनिंदा प्रतिष्ठित अंग्रेजी, हिंदी, मराठी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करने का काम किया है ! तो हमारे निजी अनुभवों के आधार पर हम इस नतीजेपर आए हैं कि ,भीमा कोरेगाव दंगे के पीछे मनोहर भीडे और एकबोटे के घोर जातीयता वादी विषैला प्रचार के कारण दो सौ साल मे पहली बार सोचि-समझीं साजिश करके दंगे की शक्ल दी गई है !
और वह दोनों आरोपियों पर तत्कालीन महाराष्ट्र की सरकार की विशेष कृपा रहने के कारण कोई भी कारवाही करने का काम पुलिस-प्रशासन ने नही करते हुए ! उल्टा जीन की जिंदगी दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिला ओके लिए काम करने मे जा रही है ऐसे लोगों को जानबूझकर फसाकर जेल मे बंद कर एक चौरासी साल के स्टेन स्वामी की मृत्यु के लिए जेल प्रशासन और हमारे देश के न्याय व्यवस्था की भी जिम्मेदारी है ! लगता है कि राँची के आदिवासी सवालों पर काम कर रहे , उसे उठाकर हमारे जाँच एजेंसियों ने बहुत ही गैरजिम्मेदार काम किया है और वह भी इस मृत्यु के लिए जिम्मेदार है ! लगता है कि सरकार ने आदिवासियों के लिए जो भी कुछ संविधानिक प्रावधान किया है ! तो वह हटाने का वर्तमान सरकार कृषि कानून, एन आर सी, और कश्मीर के 370 और 35 ऐ को खत्म करने की कृति श्यामाप्रसाद मुखर्जी के एक देश, एक संविधान और एक निशाण वाले नारे को तथा सावरकर-गोलवलकरके एकचालकानूवर्त भारत जिसमें दलित, आदिवासी, और अन्य भाषाओं, संस्कृति के लोगों को जोर जबरदस्ती से एक रंग में रंग कर तथाकथीत हिंदू राष्ट्र के लिए और सबसे संगीन बात हमारे देश के संविधान को बदलने की कवायद करने के मार्ग के रोडे हटानेका कार्यक्रम जारी है ! और फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु उसी कार्यक्रम का भाग है !
जर्मनी और इटली में सौ साल पहले यही प्रोग्राम किया गया है ! और संघ की संपूर्ण प्रेरणा हिटलर-मुसोलिनी के फासीवाद के नाम पर जर्मनी और इटली के प्रयोगोंका अध्ययन संघ के एक संस्थापक डॉ मुंजे जो फेब्रुवारी- मार्च 1931को लंडन से राउंड टेबल कान्फ्रेंस से लौटते हुए सवा महीने के लिए इटली में रहकर ,फासिस्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ फिज़िकल एज्युकेशन, फासिस्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ मिलिटरी स्कूल ,और सबसे अंतिम मे मुसोलिनी के साथ मुलाकात करके यह विवरण उनके अपने डायरी के तेरह पन्नोमे दर्ज है, और उन पन्नों की माइक्रो फिल्म दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु मेमोरियल में सुरक्षित रखी गई थी ! लेकिन मुझे संदेह है कि गत सात साल से संघ परिवार ने भारत के सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं मे अपने ही लोगों को नियुक्त करके, सबसे पहले इस तरह के दस्तावेजों को नष्ट करने का काम अवश्य ही किया होगा !
भारत के दस करोड़ आदिवासी पंद्रह करोड़ से भी ज्यादा दलित और दोनों समुदायों को मिला कर जितनी संख्या होती है उतनी ही संख्या में अल्पसंख्यकों की आबादी यही देश की आधी से भी ज्यादा आबादी हो रही है ! तो भारत के आजादी के पचहत्तरवी मनाने के समय होने आ रहा है ! और आधेसेभी ज्यादा संख्या के लोगों को असुरक्षित मानसिकता में डालने का काम भारतीय समाज स्वास्थ्य के लिए खतरा बढाने का काम संघ परिवार कर रहा है ! वह जिन प्राकृतिक संसाधनों के उपर निर्भर है ! वही सब विकास के नाम पर दखल करने के खिलाफ ही ,पाँचवी अनुसूची में शामिल प्रावधानों के अनुसार हमारे गाँव में हमारा राज के (मावा नाटे मावा राज डॉ बी डी शर्मा जीसे प्रेरणा लेकर) अनुसार ,इस इलाके के ग्राम सभा की जबतक इजाजत नहीं है, तबतक इस इलाके में प्रवेश करने की भी मनाई है ! और यही आंदोलन झारखंड में फादर स्टेन स्वामी और अन्य साथियों ने चलाया था !
कुछ साल पहले महाराष्ट्र में चंद्रपूर जीले मे डाॅ बी डी शर्मा जीसे प्रेरणा लेकर राष्ट्र संत तुकडोजी महाराज के शिष्य गिताचार्य तुकाराम दादा ने इसी तरह के गाँव के बाहर पाँच वी अनुसूची के तहत हमारे गाँव में हमारा राज के अनुसार इस इलाके के ग्राम सभा की जबतक इजाजत नहीं है तबतक इस इलाके में प्रवेश नहीं कर सकते ! जैसे बोर्ड लगाने का अभियान चलाया था ! और महाराष्ट्र पुलिस ने राष्ट्र-द्रोही के आरोप में शेकडो लोगों को गिरफ्तार कर लिया था ! और उस समय महाराष्ट्र की विधानसभा का अधिवेशन नागपुर में चल रहा था ! और तुकाराम दादा को लेकर मैं तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख जी से मुलाकात करने के बाद मामला सुलझाने में कामयाबी मिली थी !
एल्गार परिषद के नाम पर गिरफ्तार करना शत-प्रतिशत झूठ मामला है ! और इसीलिए आठ महीने से भी ज्यादा समय हो रहा है ! भारत के जाँच एजेंसी द्वारा फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी को और उनके उपर क्या आरोप है ? यह एन आई ए कोर्ट को बयाँ नहीं कर सकी !और भारत की जेलों में इसी तरह के हजारों की संख्या में लोग जेल मे बंद है ! एल्गार परिषद के नाम पर गिरफ्तार लोगों की चर्चा लगातार जारी है ,इसलिए यह बात काफी लोगों को मालूम है ! लेकिन अन्य लोगों के संबंध में जयप्रकाश नारायण के बनाये हुए जनतंत्र समाज की तरफ से मै मांग करता हूँ कि भारत के सभी जेल मे बंद कैदियों की सही जानकारी और कौन किस आरोप में बंद है ? यह जानकारी के लिए संयुक्त याचिका दायर करनी चाहिए !
मै फादर स्टेन स्वामी को तीस साल से भी ज्यादा समय से जानता था ! 1994 के बाद भारत के विभिन्न जन आंदोलन करने वाले लोगों के फोरम जन आंदोलनोका राष्ट्रीय समन्वय (एन ए पी एम) का मै संस्थापक संयोजक रहा हूँ ! और मेरे हिस्से में भारत के सभी पूर्वी प्रदेश जिसमें बिहार-झारखंड, बंगाल, ओरिसा, आसाम, और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों की जिम्मेदारी का वहन मैंने किया है ! उस दरमियांन मुझे झारखंड के कोयलकारो के आंदोलन के क्षेत्र लोहाजिमी तक जाने का अवसर मिला था ! और लोकल होस्ट फादर स्टेन स्वामी ही थे ! तमिलनाडु से 1965 में आया ,आदिवासी सवाल पर काम करने हेतु झारखंड का नागरिक बना ,और लगभग सभी आदिवासी बोलियों में सहजता के साथ बात करते थे ! लोहाजिमी मे एक बहुत विशाल महुआ के पेड़ के नीचे लोहाजिमी के लोगों की सभा रखी थी ! तो सभा से पहले अनौपचारिक बातचीत मे मैने एक बुजुर्ग आदिवासी महिला को पूछा कि काहे को कोयलकारो परियोजना का विरोध कर रहे हो ? यहाँ से दुसरी जगह पर आपको नया घर मिलेगा ,और शायद मुआवजे मे कुछ पैसे भी ! तो तपाकसे उस बुजुर्ग महिला ने कहा कि यह जो महुआ का पेड़ है उसे वह सिंगबोआ (भगवान) बोल कर पूछी कि नई जगह पर यह मिलेगा ? यहाँ हमारे कितने पीढी के लोगों की शादी और अन्य उत्सव हुए है ! यह हमारे सिंगबोआ को छोड़ कर हम कहाँ जायेंगे ? सचमुच वह महुआ के पेड़ जैसे विशाल महुआ के पेड़ को मैंने कभी नहीं देखा था !
और उसके इस जवाब के बाद, मुझे राही मासूम रज़ा की किताब गंगौली की कथा याद आ गई ! हालाँकि वह किताब बटवारे के समय गंगौली नाम के (उत्तर प्रदेश ) गाँव के बटवारे को लेकर एक मुस्लिम परिवार की पसोपेश की बात है ,कि हमारे गंगौली की नदी पाकिस्तान में मिलेगी ? यह इतना विशाल इमली का पेड़ भी पाकिस्तान में मिलेगा ? इस तरह के सवाल पुराने पीढी के लोग अपने युवा बेटोसे पुछ रहे हैं ! जिन युवाओं को लग रहा था कि पाकिस्तान में स्वर्ग मिलेगा ! लेकिन कल्पना से और बुजुर्गों को गंगौली की मट्टी और नदी, पेड़ मंदिर और अन्य प्रतीकों को छोड़ कर जाने का मन नहीं कर रहा ! अपनी जन्मभूमि छोड़कर चले जाने कि बात क्या होती है ? यह राही मासूम रजा साहब ने इस किताब मे बहुत ही बेहतरीन तरीके से लिखी है ! और लोहाजिमी की बुजुर्ग महिला कि बात और देश भर में विभिन्न परियोजनाओं के कारण विस्थापित होने वाले लोगों की जड कटे पेड़ जैसी स्थिति हो जाती है !
और सबसे ज्यादा आदिवासी समाज अपने घर और अगलबगल के परिवेश छोड़ कर जाने की कल्पना भी नहीं कर सकते ! और इस देश में विकास के नाम पर सबसे ज्यादा विस्थापित होने वाले लोगों मे आदिवासी आबादी साडेआठ नौ प्रतिशत है ! और विस्थापन होने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों का अनुपात पचहत्तर प्रतिशत है ! और तथाकथित परियोजना फिर वह बांध बनाने से लेकर फायरिंग रेंज, खदानों से खनिज संपदा निकालने के लिए समस्त जंगल के क्षेत्र में की कितनी बडी आबादी का विस्थापन हुआ है ? सरकार आकडे नहीं बता रही लेकिन 135 करोड़ आबादी वाले देश में विकास के नाम पर कम-से-कम दस करोड़ आबादी विस्थापन का शिकार बनी है ! और उसमें आदिवासी समुदाय के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है ! और इसीलिए सरकार वर्तमान हो या पहले कि गत पचास साल से भी ज्यादा समय हो रहा है ! भारत के सभी आदिवासी क्षेत्रों को रेड कॅरिडार (नक्सल प्रभावित) बता कर कश्मीर जैसे सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है ! ताकि जल, जंगल और जमीन को जोर जबरदस्ती से कब्जे में कर के ! और कार्पोरेट के हवाले करना लगातार जारी है ! और इसलिये एक चौथाई से भी ज्यादा क्षेत्र देश का तथाकथित कानून-व्यवस्था के नाम पर सभी तरह के सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है ! और इसीलिए आदिवासी समुदाय के सवालों को लेकर काम करने वाले लोगों को आप विकास विरोधी है से लेकर देशद्रोही, विदेशी दलाल जैसे आरोप कर के और झूठ केसेस में फसाकर जेल मे बंद कर ने काम बदस्तूर जारी है !
वर्धा के महात्मा गाँधी आंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय मे 2013 में आदिवासी अशांति, कारण, चुनौतीया एवं संभावनाएं इस विषयपर एक परिचर्चा आयोजित की थी ! और एक वक्ता के रूप में मुझे भी आमंत्रित किया गया था ! और उस परिचर्चा के लिए भारत के नक्सल समस्या के गृहमंत्रालय से प्रमुख श्री विजययन (जिन्होंने चंदन तस्कर विरप्पन को पकडा था !) उनके अलावा योजना आयोग के अफसर और वर्धा के जिला प्रशासन के अधिकारी भी मौजूद थे तो मैंने अपने व्यक्तव्य में कहा था कि अर्धशतक पूरा हो रहा है ! नक्सलवाद का नाम सुनते हुए , उत्तर बंगाल के एक छोटे से कस्बे नक्सलबारी नाम की जगह से सत्तर के दशक में निकल कर, एक चौथाई से भी ज्यादा आबादी को नक्सली प्रभावों वाला बोला जाता है ! लेकिन जहाँ तक हमारी समझमे आता है, उसमें नक्सल समस्या को सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या के नजरिये से देखा जाता है ! यही सबसे बड़ी गलती है ! मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, ऊस समय उन्होंने योजना आयोग की तरफ से डी बंदोपाध्याय नाम के वरिष्ठ आई ए एस की अध्यक्षता में एक कमिटी नक्सल समस्या को समझने और सुलझाने के लिए गठित किया था ! और उसमे डॉ बी डी शर्मा जैसे आदिवासी सवाल पर काम करने के लिए मशहूर पुराने आई ए एस और नक्सलैट डॉ विनियन से लेकर बालागोपाल जैसे नक्सल समर्थक पत्रकार को भी कमिटी के सदस्यों मे शामिल किया था ! और वह रिपोर्ट भारत सरकार को सौपी गई है ! सिर्फ उसपर भी अमल करेंगे तो भी काफी कुछ काम हो सकता है ! नक्सली समस्या सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है ! जबतक सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समस्याओं की नजरों से नहीं देखी जाती है, तब तक कितने भी सुरक्षा के प्रबंध कर लिजिये उसमें कुछ लोगों की जानें अवश्य जायेगी, लेकिन समस्या हल होने की बात तो बहुत दूर है ! उल्टा हमारे देश के एकता-अखंडता के लिए खतरा बढने की संभावना ज्यादा है !
क्योंकि हजारों सालों से रहने वाले लोगों को आप विकास के नाम पर उठा कर कहीं भी फेंक दिया तो ! वही बारूद बन कर समाज स्वास्थ्य के लिए खतरा बनने की संभावना है ! विश्व की हिंसा के लिए भी यही तत्व कारक है !
पाचसौ साल पहले अमेरिका बना ! लेकिन पहले ही साल दो करोड़ स्थानीय लोगों को (रेड इंडियन आदिवासी) मारकर बना है ! इसी संदर्भ में सिएटल चीप का अमरीकी राष्ट्रपति के नाम पर बहुत ही संवेदनशील पत्र मै कोट करने का मोह छोड़ नहीं सकता ! नैसर्गिक संसाधनो पर समाज के अधिकार के मुद्दे पर राज्यों और आदिवासीयो के बीच टकराव सदियोसे चला आ रहा है ! भारत में यह टकराव आजादी के बाद भी बढता रहा ! वैश्वीकरण के दौर में विदेशी कंपनी एवं विदेशी पूंजी आदिवासी इलाकों के संसाधनों पर (जल, जंगल, जमीन) कब्जा करने जा रही है ! ऐसे दौर में यह पत्र विचारणीय है !
प्रमुख के नाम यह पत्र कई साल पहले लिखा गया था ! लेकिन आज यह पत्र पहले से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो रहा है ! इसके लेखक सिएटल के रेड इंडियन आदिवासी कबीले के मुखिया थे ! रेड इंडियन उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी हैं ! करीब पाचसौ साल पहले गोरो ने हजारों की संख्या में यूरोप से अमेरिका की ओर आना शुरू— तलाश थी एक नए और खुशहाल जीवन की ! जैसे-जैसे उनकी संख्या बढी, वे जमीन हड़पने लगे ! इस मुद्दे को लेकर उन दोनों के बीच कई लड़ाईयां हुई ! प्रस्तुत रचना को रेड इंडियन की महासभा के सामने पढा गया था ! अमेरिका के राष्ट्रपति ने( 1854) आदिवासीयो की जमीन खरीदने की पेशकश की थी ! आदिवासी कबीले के मुखिया के जवाबी पत्र मे जो लिखा था, वे विचार आज भी उतने ही खरे है जितने तब थे ! हमारे पर्यावरण से जुड़ी हुई कई बातें-जिनका उन्हें अंदेशा था-आज हमारी आखें के सामने घट रही है ! आप भी इस पत्र को पढे और सोचे !
अमेरिकाके राष्ट्रपति के नाम ! आदिवासी कबीले के मुखिया का पत्र !
चीफ सिएटल
गोरे राज्य प्रमुख ने कहलवाया है – कि वे हमारी जमीन खरीदना चाहते हैं ! उनके सरदार ने दोस्ती और भाईचारे का संदेश भी भिजवाया है ! यह उनका बडप्पन है ! हम जानते हैं कि उन्हें हमारे दोस्ती की जरूरत नहीं ,
लेकिन उनके प्रस्ताव पर हम विचार करेंगे, क्योंकि, हम जानते हैं कि यदि जमीन नहीं बेची तो तोपो सहित आ सकते हैं ये गोरे लोग ! यह पत्र इस लेख के आकार का है इसलिए सिर्फ एक पैराग्राफ़ ही दे रहा हूँ और इसीलिए विश्व के किसी भी देश की तुलना मे अमेरिकी सोसायटी ज्यादा हिंसक प्रवृति की है ! और स्कूलों के छोटे-छोटे बच्चे तक बंदूक-पिस्तौल अपने स्कूल बैग में कोर्स की किताबों जैसे कॅरि करते हैं ! और मन हुआ तो ऊनका इस्तेमाल भी करते हैं ! और अमेरिका के स्टेट का क्या कहना ! वह तो आज संपूर्ण विश्व का दादा जो बन बैठा है ! विएतनाम, कोरिया, जापान, अफगानिस्तान, इराक, इराण, सिरिया और सबसे हैरानीकी बात इस्राइल की यहूदियों को नब्बे साल पहले फासिस्ट हिटलर-मुसोलिनी के अत्याचारोंका खुद भुक्त भोगियों में समावेश होने के बावजूद आज आये दिन फिलीस्तीनियोंके साथ गाझा, वेस्ट बैंक और जेरूसलम के दक्षिणी हिस्से में जो हरकतें करते जा रहे हैं वह हिटलर-मुसोलिनी को भी मात देने की हरकतें ,झिऑनिझम यानी यहूदी एडिशन ऑफ फासिजम लगातार जारी है ! और मई 1948 का इस्राइल और आज लगभग संपूर्ण फिलीस्तीनियों को खदेड़ कर अपनी आक्युपाई वाली थेअरी चलाये जा रहे हैं ! और अमेरिका की पूरी शह पर ! खुद अमेरिका पाचसौ साल पहले इसी तरह के । हथकंडे अपनाकर मुल निवासियोका सफाया करने के बाद ही आजका अमेरिका दीख रहा है ! वह यहूदी एडिशन ऑफ फासिजम को रोकने के बजाय उसे मदद करता है ! और यू नो मे सतत इस्राइल के तरफसे वेटो का इस्तेमाल कर के और इस्राइल की मदद करने की कोशिश कर रहा है ! और यही संपूर्ण विश्व की शांति के लिए बहुत ही बडा खतरा मोल ले रहा है !
मुख्य विषय फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी एल्गार परिषद के नाम पर जरूर की लेकिन वह पचास साल से भी ज्यादा समय से झारखंड के आदिवासी सवालों पर काम कर रहे थे ! और हालही में पत्थलगढी नाम पर आंदोलन हुआ था जिसमें हमारे देश के संविधान की पाँच वी अनुसूची के तहत हमारे गाँव में हमारे गाँव के इजाजत के बगैर कोई भी गाँव में प्रवेश नहीं कर सकते जैसे पत्थलगढी यह मुंडा शब्द है ! इस आंदोलन मे फादर स्टेन स्वामी के साथ और भी लोग थे जिन्होंने इस आंदोलन मे हिस्सेदारी की है और उन सभी को तत्कालीन झारखंड की बीजेपी की सरकार ने नक्सली बोलकर शेकडो लोगों को गिरफ्तार कर लिया था ! जो अभी चुनकर आई नई सरकार ने (हेमंत सोरेन की) सभी केसेस वापस लेकर सभी को तत्काल प्रभाव से जेल से रिहा कर दिया था ! और 83 साल के फादर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी एल्गार परिषद के नाम पर अन्य लोगों के साथ जिसमें हमारे देश के बुद्धिजीवियों से लेकर वकील, पत्रकार, प्रोफेसर और तेलगु भाषी कवि वरवरा राव भी अस्सी साल के जन्म से ही अपंग प्रोफेसर साईबाबा जैसे लोगों को एल्गार परिषद के नाम पर और सबसे हैरानीकी बात हमारे देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश यह आरोप करने की बीजेपी की पुरानी आदत है !
जब वर्तमान प्रधानमंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी एक दर्जन से भी ज्यादा लोगों को उनकी हत्या के षडयंत्र मे कुछ लोगों को एन्काऊटर मे मार दिया है जिसमें बीस-बाईस साल की इशरत जहाँ जैसी बच्ची का भी समावेश है ! और कुछ लोगों को जेल मे बंद कर के रखा है ! और एक भी आरोप अभितक सिद्ध कर ने की बात मुझे तो मालूम नहीं है !
उल्टा भारत के संसद में सदस्य बनें सदस्य मालेगाँव विस्फोट, मक्का मस्जिद विस्फोट, समझौता एक्सप्रेस,और अन्य आतंकवादी आरोपियों को हमारे देश के कानून बनाने वाली संसद में सदस्य बनवाकर भारत के संविधान की ऐसी की तैसी कर रहे हैं ! और अन्य लोगों के उपर देशद्रोह के नाम पर गिरफ्तार करना शत-प्रतिशत झूठ मामला है ! और इसीलिए फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु के बाद उन्हें सही श्रधान्जली वही हो सकती है कि दलितों, आदिवासी, अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को असुरक्षित मानसिकता से मुक्ति दिलाने के लिए सभी ने एकजुट होकर वर्तमान सरकार के खिलाफ मोर्चा बनाने की जरूरत है !
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