Srijan-Ghotalaचारा घोटाला के बाद अब सृजन घोटाले को लेकर बिहार फिर सुर्खियों में है. अधिकारी, कर्मचारी और नेतागण सबके दामन पर दाग दिख रहे हैं. ऐसे में सवाल यह है कि आखिर किसकी कमीज को हम बेदाग कहें?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सबसे पहले इस घोटाले का खुलासा किया था. आनन-फानन में बड़े अधिकारियों की एक फौज जांच के लिए भागलपुर भेज दी गई. परत दर परत खुली, तो यह घोटाला चारा से भी कहीं आगे निकल गया. फिर अधिकारियों और कर्मचारियों की गिरफ्‌तारी का सिलसिला शुरू हुआ. सृजन और बैंकों की मिलीभगत सामने आई. जैसे-जैसे जांच ने जोर पकड़ा, घोटाले पर राजनीतिक रंग भी गहराता गया. राजद इसे एक ढाल मानकर चल रहा है, वहीं नीतीश और सुशील मोदी को घेरने का एक मारक अस्त्र भी. जांच में पता चला कि यह मामला तो राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री काल से जुड़ा है, तब राजद के बयानों की धार कमजोर पड़ गई.

जानकारों का कहना है कि अगर चारा घोटाले से सबक लिया जाता तो आज यह नौबत ही नहीं आती. हालांकि इससे पूर्व अररिया जिले में पैक्स घोटाला भी चर्चा में रहा. इसमें विभिन्न सरकारी व जनकल्याणकारी योजनाओं की करोड़ों की राशि को अधिकारियों ने कमीशन लेकर महज एक पैक्स में जमा करवाया. इस राशि से रसूखदार लोगों ने खूब माल बनाया.

भागलपुर की सृजन संस्था ने भू-अर्जन सहित अन्य योजनाओं की तकरीबन 1000 करोड़ की राशि का फर्जीवाड़ा कर महाघोटाला किया. अगर सरकार सीमांचल क्षेत्र के अंतर्गत जिला अररिया के प्रखंड पलासी के पंचायत डेहटी प्राथमिक कृषि साख सहयोग समिति (पैक्स) में हुए घोटाले से सबक लेती, तो यह घोटाला सामने नहीं आता. आज सृजन की आग अंग से निकलकर कोसी प्रमंडल के सुपौल व सहरसा तक पहुंच गई है.

अररिया जिले के पलासी प्रखंड अंतर्गत डेहटी पंचायत के प्राथमिक कृषि साख सहयोग समिति (पैक्स) में तत्कालीन अध्यक्ष रूद्रानंद झा के नेतृत्व में डेढ़ दशक पूर्व करोड़ों की सरकारी योजनाओं को लेकर सवाल उठे. इस घोटाले को लेकर अररिया जिले के विभिन्न थानों में कुल 36 मामले दर्ज हैं. इन मामलों में कलक्टर, जनप्रतिनिधि व बिचौलिए समेत कई बैंककर्मी भी शामिल हैं. डेहटी के इन घोटालों में आधा दर्जन से अधिक तत्कालीन बीडीओ शामिल हैं. जोकीहाट के तत्कालीन बीडीओ फिरोज नईम, रमेश झा, परवेज उल्लाह, शमीम अख्तर, अशोक कुमार तिवारी, सुरेंद्र राय, गयानंद यादव, तत्कालीन डीएम अमरेंद्र कुमार सिंह, डीडीसी बाल्मिकी प्रसाद, अभियंता दीपक कुमार, कार्यपालक अभियंता रमाकांत शर्मा सहित अन्य अभियंता व बैंक कर्मी के नाम भी शामिल हैं.

डेहटी पैक्स घोटाले ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के करोड़ों रुपए निगल लिए. मार्च 2011 में पुलिस ने सहरसा जिले के सोनवर्षाराज प्रखंड स्थित पैक्स अध्यक्ष रूद्रानंद झा को उनके ससुराल से गिरफ्तार किया, जिसके बाद कई रसूखदार व अधिकारी भी आरोपों के घेरे में आ गए. पैक्स अध्यक्ष के बयान पर ही पुलिस ने 140 से अधिक अधिकारियों, कर्मचारियों व नेताओं को आरोपी बनाया. ज्ञात हो कि राज्य सरकार ने डेहटी पैक्स घोटाले में मुख्य आरोपी अध्यक्ष रूद्रानन्द झा व राम पुकार चौधरी की चल-अचल संपत्ति जब्त करने के निर्देश भी दिए थे.  इस प्रक्रिया के शुरू होने में विलंब के बाद दोनों की संपत्ति अचानक गायब होने लगी. अब सृजन की बात करते हैं.

सृजन महिला विकास सहयोग समिति लि. सबौर भागलपुर बिहार की निबंधित कॉपरेटिव है न कि एनजीओ. सृजन की देवी मनोरमा भागलपुर के इस कॉपरेटिव के जरिए महिलाओं को अचार, पापड़, मसाला आदि बनाने का व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाती थीं. सृजन की संस्थापिका सह सचिव मनोरमा देवी का 14 फरवरी 2017 को निधन हो गया. मनोरमा देवी रांची के लाह अनुसंधान में वरीय वैज्ञानिक की पत्नी थीं. 1991 में पति के निधन के बाद मनोरमा देवी पर छह बच्चों के भरण-पोषण का बोझ आ गया. करीब ढाई-तीन साल बाद वर्ष 1993-94 में मनोरमा देवी ने दो महिलाओं के साथ सृजन संस्था की शुरुआत की. वर्ष 1996 में सहकारिता विभाग में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में संस्था निबंधित हुई. को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में सदस्य महिलाओं के पैसे भी यहां जमा किए जाते थे और जमा पैसों पर ब्याज भी दिया जाता था. इसी तरह यह संस्था बैंकिंग कार्यों को करने लगी और उससे जुड़ी महिलाओं को कर्ज के रूप में आर्थिक सहयोग भी देने लगी.

इस मामले की मास्टरमाइंड रही मनोरमा देवी के फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी काफी रोचक है. कई नामचीन लोग भी इसकी गिरफ्त में आने लगे. मनोरमा देवी पर सरकारी खजाने के करीब 11 सौ करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप है.

इसका खुलासा तब हुआ जब अन्य सरकारी खातों से सृजन के खाते में राशि ट्रांसफर होेने लगी. ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स भागलपुर ने 12.20 करोड़ रुपए का एक चेक जारी किया. इस चेक को मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के तहत पटेल बाबू रोड स्थित इंडियन बैंक में जमा किया जाना था, लेकिन बैंक ने इस चेक को सृजन के खाते में जमा करा दिया. इतना ही नहीं, चेक निर्गत होने के तीन दिन बाद सृजन एक को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में निबंधित हुआ था. वर्ष 2008 में इस राशि को थर्ड पार्टी डिपॉजिट के रूप में पेश किया गया, जिसे बाद में मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अवैध घोषित कर दिया.  वहीं दूसरे केस में भागलपुर प्रशासन के द्वारा 1 व 3 और 6 सितंबर 2016 को 5.5 करोड़ की राशि का चेक मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के तहत इंडियन बैंक में जमा करने के लिए दिया गया. उस समय यह फंड सही एकाउंट में जमा हुआ, लेकिन बाद में इसे सृजन के खाते में डीएम के फर्जी हस्ताक्षर से चेक के जरिए ट्रांसफर कर दिया गया. इसी प्रकार तीसरी घटना 10 नवम्बर 2016 की है. जब भागलपुर के चीफ मेडिकल ऑफिसर ने 43.52 लाख रुपए का तीन चेक घंटा घर स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा के नाम से जारी किया. ये चेक सरकारी खाते में जमा किए जाने थे, लेकिन यह चेक रिजेक्ट होकर 22 दिसंबर 2016 को वापस आ गया. पर उस चेक की राशि पहले ही सृजन के खाते में ट्रांसफर हो गई थी.

महिलाओं को सशक्त बनाने व रोजगार प्रदान करने के लिए स्वयं सहायता समूह (एसएचएसवार्ई) के तहत जीविका का गठन हुआ, तब सृजन को बड़ी जिम्मेवारी मिली. संस्था को माइक्रो फाइनेंस से लेकर कई तरह के दायित्व सौंपे गए. सरकारी राशि लाभार्थी तक पहुंचाने के लिए सरकारी बैंकों में धड़ाधड़ खाते भी खुले. संस्था इस राशि को येन-केन प्रकारेण अपने नाम कराने में जुट गई. सरकारी अधिकारी, बैंक कर्मी व राजनेताओं की मिलीभगत से उसने 2003 से लेकर 2017 तक 1100 करोड़ का घोटाला कर दिया. भागलपुर के एसएसपी मनोज कुमार का कहना है कि यह संस्था दो तरह से एक स्वाइप मोड व दूसरा चेक मोड से सरकारी खजाने की राशि का अवैध निकासी करती थी. स्वाइप मोड के जरिए भारी रकम राज्य सरकार या केंद्र सरकार द्वारा भागलपुर जिले के सरकारी खातों में जमा किया जाता था, जबकि स्वाइप मोड में राज्य सरकार या केंद्र सरकार एक पत्र के माध्यम से बैंक को सूचित करती थी कि कितनी राशि बैंक में जमा करा दी गई है. इस गोरखधंधे में शामिल बैंक अधिकारी सरकारी खाते में पैसा जमा करने के बदले ‘सृजन’ के खाते में जमा कर दिया करते थे. चेक मोड से सरकारी खाते में जमा राशि को डीएम ऑफिस में काबिज पदाधिकारी डीएम के फर्जी हस्ताक्षर से अगले दिन वही राशि ‘सृजन’ के खाते में जमा करा दिया करते थे. इस घोटाले की आग कोसी प्रमंडल के सुपौल व सहरसा तक भी पहुंच गई. भागलपुर पुलिस ने सुपौल जिला सहकारिता पदाधिकारी पंकज   झा को हिरासत में लेकर भागलपुर ले गई. भागलपुर से सुपौल पहुंची पुलिस ने धर्मशाला रोड स्थित डीसीओ के आवास पर धावा बोला और घंटों जांच-पड़ताल की. सुपौल के सदर डीएसपी विद्यासागर ने बताया कि वर्ष 2008 से 2014 तक डीसीओ पंकज कुमार झा भागलपुर में सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक के बतौर एमडी  पदस्थापित थे. भागलपुर स्थित कोतवाली थाना में केस दर्ज कर पुलिस डीसीओ की खोजबीन में सुपौल पहुंची थी.

उन्होंने बताया कि को-ऑपरेटिव बैंक से संबंधित 40 से 48 करोड़ के घोटाले की बात सामने आई है. भागलपुर पुलिस ने डीसीओ के आवास से सृजन संबंधी कुछ दस्तावेज व नकदी भी बरामद किए हैं. वर्ष 2016 में बतौर डीसीओ के पद पर पंकज कुमार झा का पदस्थान सुपौल में हुआ था. सृजन की बाबत नगर थाना सहरसा में डीएम बिनोद सिंह गुंजियाल के पत्रांक के आलोक में 17 अगस्त 2017 को केस दर्ज किया गया. डीएम श्री गुंजियाल के आदेश पर बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा सहरसा में गठित टीम द्वारा विशेष भू-अर्जन कार्यालय व कोसी योजना सहरसा के खातों से निकासी की जांच की गई. पता चला कि बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा सहरसा में विशेष भू-अर्जन कार्यालय व कोसी योजना सहरसा के पदनाम से दो खाता सं. 35880800001324 दिनांक 27 फरवरी 2012 को खोला गया और 16 जुलाई 2013 को बंद कर दिया गया. जबकि दूसरा खाता सं. 35880200000068 दिनांक 24 सितम्बर 2012 को खोला गया और 8 मई 2017 को बंद कर दिया गया. इस खाते की 2 करोड़ 26 लाख 90 हजार 500 रुपए की राशि  सरकारी खाते में जमा कर दी गई. इसके अलावा बैंक ऑफ बड़ौदा भागलपुर शाखा में 14 फरवरी 2012 को एक अन्य खाता सं. 1001010002835 खोला गया, जो बचत खाता था. इस खाते से विभिन्न चेकों द्वारा सृजन महिला विकास समिति के खाते में राशि का हस्तान्तरण किया गया. इस प्रकार 28 मार्च 2012 से 29 जुलाई 2013 तक कुल 162 करोड़ 92 लाख 49 हजार 924 रुपए सृजन महिला विकास समिति भागलपुर के खाते में हस्तान्तरित हुए. यह राशि एक फरवरी 2013 से अलग-अलग तारीखों में बैंक ऑफ बड़ौदा के सहरसा स्थित खाता सं. 35880200000068 एवं खाता सं. 1001010002835 में वापस किए गए.

इस प्रकार कुल 162 करोड़ 26 हजार 617 रुपए सरकारी खाते में वापस हुए. जांच के दौरान पता चला कि कार्यालय में बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा भागलपुर का एकमात्र चेकबुक संधारित है, जिसका चेक सं. 555001 व 555055 है. लेकिन भागलपुर स्थित यह खाता चेक बुक के अनुसार दिनांक 20 जून 2013 को चेक काटकर बंद कर दिया गया. कार्यालय में उपलब्ध अभिलेख के अनुसार 26 जून 2013 के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा भागलपुर का कोई चेक निर्गत नहीं हुआ है. सृजन महिला विकास समिति भागलपुर के खाते में जिन चेकों के माध्यम से राशि का हस्तान्तरण हुआ है, उसका नम्बर चेक का चेकबुक कार्यालय में संधारित नहीं है. उल्लेखनीय है कि कार्यालय में संधारित रोकड़ बही के अनुसार एक जुलाई 2017 को 221 करोड़ 45 हजार 904.53 रुपए थे, जो भारतीय स्टेट बैंक सहरसा,  एक्सिस बैंक सहरसा, उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक शाखा बलुआहा सहरसा में जमा है. जांच दल के अनुसार, यह विस्तृत जांच का विषय है कि 28 मार्च 2012 से 29 जुलाई 2013 की अवधि में निकासी की गई 162 करोड़ की राशि किस आदेश से और किसके हस्ताक्षर से सृजन महिला विकास समिति भागलपुर के खाते में भेजी गई और इसमें सृजन महिला विकास समिति भागलपुर, बैंक ऑफ बड़ौदा सहरसा, बैंक ऑफ बड़ौदा भागलपुर तथा विशेष भू-अर्जन कार्यालय सहरसा की भूमिका है. इतना ही नहीं, सृजन के बैंक खाते में राशि हस्तान्तरण से लेकर राशि वापसी की तिथि तक के सूद तथा बैंकों द्वारा बचत खातों में दिए गए ब्याज की राशि का आखिर क्या हुआ? जांच दल के अनुसार, सृजन महिला विकास समिति भागलपुर की संचालिका मनोरमा देवी, बैंक ऑफ बड़ौदा भागलपुर व सहरसा के तत्कालीन शाखा प्रबंधक व अन्य सहयोगियों के अलावा विशेष भू-अर्जन कार्यालय सहरसा के तत्कालीन पदाधिकारी, जिनके हस्ताक्षर से राशि सृजन महिला विकास समिति के खाते में हस्तान्तरित की गई तथा तत्कालीन रोकड़पाल व प्रधान सहायक को दोषी पाया गया है. इस आधार पर इस फर्जीवाड़े व आपराधिक षड्‌यंत्र में संलिप्त लोगों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता एवं अन्य सुसंगत धाराओं के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की गई.

सृजन महाघोटाले के लपेटे में बड़े-बड़े अधिकारी, बैंक अधिकारी व राजनेताओं के आने की भी संभावना है. पुलिस सृजन की संस्थापिका मनोरमा देवी के पुत्र अमित कुमार व बहू प्रिया कुमार की खोज में है. सृजन की वर्तमान सचिव प्रिया कुमार व उसके पति अमित कुमार को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस की विशेष टीम 18 अगस्त को रांची व बेंगलुरू रवाना हो गई. पूर्व भू-अर्जन पदाधिकारी राजीव रंजन सिंह की गिरफ्तारी के लिए भी एक अन्य टीम ने पटना में छापेमारी की.

नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कहते हैं कि सब कुछ आईने की तरफ साफ है. नीतीश कुमार और सुशील मोदी को इस्तीफा देना चाहिए ताकि जांच में कोई अड़चन न आए. घोटाला होता रहा और नीतीश कुमार देखते रहे. भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या यही उनका जीरो टोलरेंस है. वे कहते हैं कि राजद गांव-गांव तक इस मामले को लेकर जाएगा. भाजपा के वरिष्ठ नेता और मंत्री विनादानंद झा कहते हैं कि राजद के लोग खासकर लालू परिवार को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का अधिकार नहीं है. नीतीश सरकार पूरी गंभीरता से इस मामले की जांच करवा रही है और जो लोग भी इसमें दोषी होंगे उन्हें कठोर से कठोर सजा दी जाएगी. इस घोटाले ने बिहावासियों की उम्मीद फिर तोड़ दी है, जिन्हें लग रहा था कि चारा के बाद अब इतना बड़ा कोई घोटाला प्रदेश में नहीं होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इससे सबक लेगी और आगे कोई चारा या सृजन घोटाला नहीं होगा.

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