उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपने सांप्रदायिक पक्ष को हाशिये पर रख दिया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी उसी में फंसी रह गई. नतीजा देश के सामने है कि समाजवादी पार्टी ने 11 में से आठ विधानसभा सीटें भाजपा से छीन लीं. मुलायम सिंह यादव द्वारा छोड़ी गई लोकसभा की मैनपुरी सीट तो सपा की झोली में आनी ही थी. वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश में अनाप-शनाप सांप्रदायिक लाइन लेने वाले वरिष्ष्ठ सपा नेता आजम खान को समाजवादी पार्टी ने इस चुनाव में बिल्कुल शांत-क्षेत्र में रख दिया था, लेकिन भाजपा ने ऐसे तत्वों के जरिये माहौल अशांत करने की अति-सक्रिय कोशिशें कीं. ऐसे में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने स्पष्ट लाइन पकड़ी और यह दिखाया कि सांप्रदायिक कार्ड खेलने और मोहरा बनने में उनकी कतई रुचि नहीं है.
विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत पर सपाई कहते हैं कि मुलायम सिंह के सुझाव एवं निर्देश, शिवपाल सिंह की पुख्ता रणनीति और अखिलेश की ठोस कार्रवाई (एक्जेक्यूशन) ने पार्टी की प्रतिष्ठा बचा ली, जो लोकसभा चुनाव में चली गई थी. वाकई, समाजवादी पार्टी की रणनीति ने भाजपा की डिजाइन को ध्वस्त कर दिया. लव जेहाद की नीति ने उल्टे भाजपा की बुनियाद हिलाकर रख दी. अब पार्टी को नए सिरे से अपनी रणनीतियों एवं तैयारियों पर विचार और संशोधन करना पड़ेगा. उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा की जिन 11 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें 10 भाजपा और एक उसके सहयोगी अपना दल विधायक के इस्ती़फे से खाली हुई थीं. इन 11 सीटों में से 8 सीटें सपा ने झटक लीं.
मैनपुरी लोकसभा सीट सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के इस्ती़फे से खाली हुई थी. सपा ने विधानसभा की 11 और लोकसभा की मैनपुरी सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. सपा नहीं चाहती थी कि भाजपा को उपचुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण का कोई मा़ैका मिले. इसलिए उसने अधिक मुस्लिम प्रत्याशी उतारने से परहेज रखा और केवल ठाकुरद्वारा से मुस्लिम प्रत्याशी उतारा. बिजनौर एवं सहारनपुर जैसी सीटों पर भी सपा ने हिंदू प्रत्याशी उतारे, जबकि वहां 30 से 40 फ़ीसद मुस्लिम मतदाता हैं और वहां पूर्व के हालात के मद्देनज़र सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी आसान था, लेकिन सपा ने इससे परहेज रखा. सपा ने पार्टी के वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री आजम खान को भी उपचुनाव में किसी भी ज़िम्मेदारी से अलग रखा. आजम खान लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी के स्टार प्रचारक रहे थे, लेकिन उपचुनाव में प्रचार के लिए 23 मंत्रियों की सूची में उनका नाम शामिल नहीं किया गया. लोकसभा चुनाव में आजम खान ने जमकर प्रचार किया था, लेकिन विवादास्पद बयान के चलते वह विवाद में रहे थे. सपा नेतृत्व का मानना था कि आजम खान के प्रचार में शामिल होने से भाजपा को ही फ़ायदा होगा.
शह पर मात हो गए शाह : लोकसभा चुनाव में जोरदार जीत दर्ज करने वाली भाजपा ठीक चार माह बाद देश के 10 राज्यों में 33 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों में अपना आधार खोती दिखी. उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों में से समाजवादी पार्टी ने आठ पर जीत दर्ज की. खास तौर पर उत्तर प्रदेश की हार को अमित शाह के लिए करारा झटका बताया जा रहा है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में हुई जीत का सारा श्रेय अमित शाह अकेले झटक ले गए थे, लेकिन इतनी जल्दी सपाई शह पर शाह मात हो जाएंगे, किसी ने सोचा भी नहीं था. उधर, गुजरात में कांग्रेस ने भाजपा को कांटे की टक्कर दी. राजस्थान में भाजपा बुरी तरह पिछड़ गई. उपचुनाव के परिणाम को मई में सत्ता संभालने के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार की लोकप्रियता के परीक्षण के तौर पर देखा जा रहा है. भाजपा के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि अगले महीने हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रिक्त सीट वड़ोदरा (गुजरात), सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की सीट मेंडक (तेलंगाना) पर अप्रत्याशित नतीजे नहीं आए. वड़ोदरा में भाजपा जीती, मैनपुरी में सपा और मेंडक में टीआरएस ने अपना दबदबा बरकरार रखा. हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी की रोहनिया विधानसभा सीट से सपा प्रत्याशी का जीतना ज़रूर हैरत पैदा करता है.
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा भी कि आजम खान के पास अपने इमोशनल भाषणों से मुस्लिम मतदाताओं को अपनी तरफ़ खींचने की क्षमता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में उनके भाषणों के चलते हिंदू वोटों का सपा के ख़िलाफ़ ध्रुवीकरण हो गया था. पार्टी नेतृत्व का मानना था कि उपचुनाव में आजम की मौजूदगी भाजपा को धर्म के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण का मा़ैका देगी. इसी सोच के तहत मुलायम सिंह यादव ने उपचुनाव में पार्टी की रणनीति पर विचार करने के लिए मंत्रियों की जो बैठक बुलाई थी, उसमें आजम खान को आमंत्रित नहीं किया गया था. सहारनपुर, बिजनौर एवं ठाकुरद्वारा सीटों की रणनीति बनाने के लिए भी आजम को नहीं बुलाया गया. उपचुनाव को लेकर पार्टी के अंदर जो रणनीति बन रही थी, उसकी तरफ़ इशारा करते हुए सपा के एक नेता ने कहा था कि पार्टी इस उपचुनाव में आजम को सक्रिय भूमिका में बिल्कुल नहीं रखना चाहती. उत्तर प्रदेश में माहौल ऐसा हो गया था कि यदि मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में पोलिंग बूथ पर आते, तो हिंदू मतदाता भी ज़्यादा संख्या में आकर वोट करते. लिहाजा, समाजवादी पार्टी नेतृत्व ने इस बार सेफ गेम खेलना अधिक मुफीद समझा और उसे इसका फ़ायदा भी मिला.
पार्टी आलाकमान का निर्देश या इशारा समझते हुए आजम खान ने भी अपनी गतिविधियों और मुंह पर पाबंदी रखी. लेकिन, इसके बरक्स भाजपा ध्रुवीकरण की लाइन पर और अधिक सक्रियता से काम करती रही. भाजपा यहीं गच्चा खा गई. उसने सपा की परिपक्व रणनीति की तरफ़ ध्यान नहीं दिया. उसने सपा के मुस्लिम प्रत्याशियों की नामौजूदगी के पीछे की इंजीनियरिंग नहीं समझी. वह आजम खान की रहस्यमय चुप्पी के दूरंदेशी नतीजों का आकलन नहीं कर पाई और धराशाई हो गई. भाजपा ने गरमपंथी सांसद योगी आदित्य नाथ और स्वामी हरि साक्षी को आगे कर दिया, जबकि सपा ने अपने नरमपंथी नेताओं को लोकतांत्रिक युद्ध में अग्रिम पंक्ति में रखा. सपा ने हिंदू वोटों का बंटवारा न हो, इसका ध्यान रखा और भाजपा ने बंटवारा हो जाए, इस पर ध्यान केंद्रित किया. भाजपा ने इस उपचुनाव को हल्के में लिया, जबकि सपा ने इसे अपने अस्तित्व से जोड़ा और उसके अनुरूप गंभीर रणनीति बनाई. उत्तर प्रदेश में बहुमत की सरकार होने के बावजूद लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार का सपा बदला लेना चाहती थी.
ऐसे डायलॉग से हुआ भाजपा को ऩुकसान
- उपचुनाव में दस सीटें मिलीं, तो यूपी में 2015 में ही होंगे चुनाव: योगी आदित्य नाथ
- पुलिस सपा कार्यकर्ता जैसा बर्ताव बंद कर उगते सूरज (भाजपा) को प्रणाम करने की आदत डाल ले, अन्यथा कड़ा सबक सीखना पड़ेगा: डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी
- मदरसों में आतंकवाद और लव जिहाद की शिक्षा दी जाती है. मदरसों में राष्ट्रीयता की शिक्षा नहीं दी जाती है और गणतंत्र दिवस एवं स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया जाता है: हरि साक्षी महाराज
लोकसभा चुनाव में धूमिल हुई साख वापस पाने में सपा कामयाब हो गई. उपचुनाव के नतीजों पर बोलते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का रणनीतिक आत्मविश्वास साफ़-साफ़ दिख रहा था. उन्होंने कहा कि जनता ने वोट की ताकत से फिरकापरस्त ताकतों के मंसूबे नाकाम कर दिए हैं.
उपचुनाव के नतीजे यह जाहिर और साबित करते हैं कि जनता ने सांप्रदायिक ताकतों के ख़िलाफ़ वोट दिया और उन्हें खारिज कर दिया है. लोग अमन और भाईचारा चाहते हैं. उपचुनाव में सांप्रदायिक शक्तियों ने नफरत फैलाकर लाभ लेने की कोशिश की, लेकिन जनता ने उन्हें वोट की ताकत के जरिये पीछे धकेल दिया. सपा स़िर्फ विकास के लिए काम करती है. अखिलेश यह भी वादा दोहराना नहीं भूले कि उपचुनाव के बाद सपा सरकार और भी ज़्यादा ज़िम्मेदारी से विकास कार्य करेगी. सपा के वरिष्ठ नेता, रणनीतिकार एवं प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि जनता ने विकास के लिए वोट दिया है. सांप्रदायिक ताकतों ने लोकसभा चुनाव में जनता को बरगला कर सत्ता हासिल कर ली, लेकिन अवाम अब उनकी असलियत समझ चुकी है.
शिवपाल ने कहा कि अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी प्रदेश और देश की दशा-दिशा बदलेगी, जिसका उत्तर प्रदेश को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा. सपा का लक्ष्य प्रदेश एवं देश को विश्व स्तर पर उभारना है. प्रदेश में विकास एवं खुशहाली का माहौल बनाने के लिए पार्टी प्रतिबद्ध है. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद हैं और इसी तरह कार्यकर्ताओं के साथ कार्य करते हुए हम आगामी विधानसभा चुनाव में भी पुन: बहुमत हासिल कर सरकार बनाएंगे. शिवपाल ने कहा कि प्रदेश के उपचुनाव के नतीजों से साफ़ संकेत मिला है कि जनता ने सांप्रदायिकता, लव जिहाद जैसे मुद्दे नकार कर विकास और सामाजिक सद्भाव को तरजीह दी. जनता समाजवादी सरकार की उपलब्धियों से प्रभावित है. केवल चार महीने में ही किसी सरकार के प्रति जनता की निराशा एवं आक्रोश की यह पहली राजनीतिक घटना है. जो नेता महंगाई और भ्रष्टाचार पर रोक का वादा करके सत्ता में आए थे, जनता ने उन्हें उनकी वादाख़िलाफ़ी पर सबक सिखा दिया. उपचुनाव में जनता ने अच्छे दिनों का सपना दिखाने वालों को बुरे दिन दिखाकर लोकतंत्र की ताकत बता दी है. शिवपाल ने दावा किया कि समाजवादी पार्टी को दलितों सहित सभी वर्गों का वोट मिला. समाजवादी सरकार अपनी जनहित की योजनाएं लागू करने का कार्य जारी रखेगी. शिवपाल ने केंद्र सरकार पर प्रहार करते हुए उसे कमजोर बताया और कहा कि उसकी विदेश नीति विफल है. चीन लगातार भारतीय भूमि पर कब्जा करता जा रहा है और उसका सशक्त विरोध नहीं हो रहा है.
अंतर्कलह-असंतोष ने भाजपा को डुबोया
भारतीय जनता पार्टी को अंदरूनी कलह और स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं के भारी असंतोष ने डुबो दिया. अगर शीर्ष नेतृत्व नहीं चेता, तो 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का बंटाधार तय मानिए. भाजपा के स्थानीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में सबसे अधिक गुस्सा लोकसभा चुनाव में जीत का सारा श्रेय अमित शाह को दिए जाने को लेकर है. उनका मानना है कि लोकसभा में जीत मोदी की लहर और स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं की जद्दोजहद से मिली, लेकिन जीत का श्रेय अमित शाह लूट ले गए. उसी का बदला स्थानीय नेताओं ने इस उपचुनाव में चुकता कर लिया. भाजपा की प्रदेश इकाई के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी अंदरूनी कलह से बुरी तरह आक्रांत है. भाजपा नेतृत्व को इतनी भी राजनीतिक समझ नहीं है कि जिन विधायकों ने अपनी सीट से इस्तीफ़ा देकर लोकसभा का चुनाव लड़ा, उनकी पसंद के प्रत्याशी को उपचुनाव में मौक़ा दिया जाए. लोकसभा चुनाव में जीत से दंभाए पार्टी नेतृत्व ने संसद पहुंचे नेताओं के विरोधियों को ही उनकी विधानसभा सीटों का प्रत्याशी बना दिया. इसका नतीजा भी पार्टी ने भुगत लिया. कलह का हाल यह था कि उपचुनाव में टिकट बंटवारे में धांधली एवं निरंकुशता के ख़िलाफ़
खुलेआम विद्रोह और मारपीट की घटना तक घटी. बिजनौर विधानसभा क्षेत्र में तो पर्चा दाखिल करने पहुंचे भाजपा कार्यकर्ताओं के आपस में भिड़ जाने की ख़बरें सुर्खियों में रहीं. नोएडा में नामांकन जुलूस में शामिल होने के लिए भाजपा नेताओं के लाले पड़ गए और गिनती के भाजपाई एकत्र हो सके. सबसे अधिक तनावपूर्ण माहौल ठाकुरद्वारा एवं निघासन में नज़र आया. वहां सांसदों की ग़ैर-हाजिरी उनके प्रति असंतोष जाहिर करने के लिए काफी रही.
सहारनपुर में महानगर संगठन का विरोध सतह पर रहा, तो लखनऊ पूर्वी विधानसभा सीट के लिए कार्यकर्ताओं को बाहर से जुटाना पड़ा. वह भी इसलिए, क्योंकि वहां वरिष्ठ नेता लाल जी टंडन के पुत्र चुनाव लड़ रहे थे. बिजनौर में सांसद कुंवर भारतेंदु और टिकट न पाने वाले राजेंद्र सिंह के समर्थक आपस में भिड़ गए. तभी यह लग गया था कि बिजनौर सीट बचाए रखना इस बार आसान नहीं होगा.
निघासन में भाजपा सांसद अजय टेनी का रामकुमार वर्मा को पर्चा भरवाने के लिए मौजूद न रहना भी विद्रोह की सनद दे रहा था. मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में प्रेम सिंह शाक्य को भी नामांकन पत्र भरते समय अपनों का विरोध झेलना पड़ा. हमीरपुर में ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने का फैसला पिछड़ों एवं अति पिछड़ों को हजम नहीं हो सका. आख़िरकार वही हुआ, जिसका डर था. ब्राह्मणों के टिकट कोटे में कमी करना भी भाजपा को भारी पड़ गया. आंतरिक असंतोष जाहिर न होने देने के लिए उम्मीदवारों की सूची काफी विलंब से जारी करने का फॉर्मूला भी चौपट करने वाला साबित हुआ. समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के फौरन बाद ही रिक्त हुई विधानसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए थे, लेकिन भाजपा हड्डी नोचने में ही लगी रही. पार्टी के अंदर कलह और असंतोष देखते हुए भाजपा का कोई भी केंद्रीय मंत्री या वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार के लिए नहीं आया. यहां तक कि केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री सौ दिनों की उपलब्धियां भी जनता के समक्ष रखने की जहमत नहीं उठा पाए. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश की सभी 17 आरक्षित सीटें जीतीं, लेकिन दुर्भाग्य यह कि उपचुनाव में किसी भी दलित नेता को कोई ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी गई.
भाजपा का आपसी मनमुटाव इतना है कि प्रदेश में जमे विनय कटियार या ओम प्रकाश सिंह जैसे नेता चुनाव में निकले ही नहीं या उन्हें कोई ज़िम्मेदारी नहीं दी गई. प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी एवं योगी आदित्य नाथ ही दौरे करते रहे और लुटिया डुबोते रहे. लोकसभा में मिली जीत से राष्ट्रीय नेता इतने दंभ में थे कि उपचुनाव में भी वैसी जीत के प्रति अति-आश्वस्त थे. दंभ इतना था कि मथुरा में हुई प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में पहुंचने की फुर्सत न मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह निकाल पाए और न पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह. जाहिर है, इस उपेक्षा का कैसा संदेश कार्यकर्ताओं में गया होगा.
ग़ैर-हाजिरी की बसपाई रणनीति का मुगालता
उपचुनाव से बसपा ग़ैर-हाजिर रही. बसपा प्रमुख मायावती ने निर्दलीय प्रत्याशियों को समर्थन देने का ऐलान किया था, लेकिन चुनाव परिणामों से यह साफ़ हो गया कि मायावती की घोषणा भी बसपाई वोट बैंक को ट्रांसफर नहीं करा सकी. बसपा के वोट बैंक का कोई फ़ायदा किसी भी निर्दलीय प्रत्याशी को नहीं मिला. साफ़ है कि बसपा का दलित वोट बैंक मायावती की बात मानने से भी इंकार कर रहा है. उसने भी नेतृत्व के बेहतर विकल्प की छटपटाहट इस उपचुनाव में अभिव्यक्त कर दी है या फिर अंदर-अंदर कुछ और ही चल रहा है. पहले तो आकलन किया गया था कि बसपा के चुनाव न लड़ने का फ़ायदा भाजपा को मिलेगा, लेकिन यह आकलन बेमानी साबित हुआ. उपचुनाव के परिणाम बताते हैं कि यदि बसपा चुनाव लड़ती, तो भाजपा को फ़ायदा मिलता. बसपा के चुनाव न लड़ने का फ़ायदा समाजवादी पार्टी को मिला. सपा नेता शिवपाल के इस बयान में दम है कि इस बार उपचुनाव में सपा को दलितों का खूब समर्थन मिला. यह साफ संकेत है कि दलितों का वोट सपा की तरफ़ शिफ्ट कर रहा है. बसपा के ही एक नेता ने कहा कि इस उपचुनाव में पार्टी का पारंपरिक और एक जाति विशेष का वोट भी समाजवादी पार्टी को मिला है. बसपा के चुनाव में शामिल न होने से मुस्लिम वोट भी नहीं बंटा और उसका एकमुश्त फ़ायदा सपा को मिला.
हराऊ मंत्रियों का क्या होगा : लोकसभा चुनाव में मिली पराजय का हिसाब बराबर करने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सूबे की एक लोकसभा और 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के लिए अखिलेश सरकार के मंत्रियों की फौज उतार दी थी. उन्हें साफ़ बता दिया गया था कि जो मंत्री अपने प्रभार क्षेत्र के पार्टी प्रत्याशी को जिता पाने में नाकाम रहेगा, उसका मंत्रिपद जाएगा. इस निर्देश के आलोक में लखनऊ पूर्वी, सहारनपुर एवं नोएडा विधानसभा सीटों के लिए जिन मंत्रियों को ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी, उन पर संकट है. लेकिन, पार्टी सूत्रों का कहना है कि आठ सीटों पर धमाकेदार जीत की खुशी में तीन सीटों के प्रति नेतृत्व आंख मूंद भी सकता है. मैनपुरी संसदीय क्षेत्र के लिए शिवपाल सिंह यादव, धर्मेंद्र यादव एवं अरविंद सिंह को दायित्व सौंपा गया था. लखनऊ पूर्वी विधानसभा क्षेत्र के लिए अंबिका चौधरी, अहमद हसन, अरविंद सिंह गोप एवं अभिषेक मिश्र को ज़िम्मेदारी दी गई थी, लेकिन यहां समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी जूही सिंह हार गईं. बिजनौर विधानसभा सीट की ज़िम्मेदारी भगवत शरण गंगवार को दी गई थी. सहारनपुर विधानसभा सीट की ज़िम्मेदारी शाहिद मंजूर एवं बलराम यादव और नोएडा विधानसभा सीट की ज़िम्मेदारी नारद राय एवं असीम यादव को दी गई थी, लेकिन ये दोनों सीटें समाजवादी पार्टी हार गई. ठाकुरद्वारा विधानसभा सीट के लिए कमाल अख्तर एवं राजकिशोर सिंह, हमीरपुर के लिए गायत्री प्रजापति एवं नरेंद्र वर्मा, चरखारी के लिए राम गोविंद चौधरी एवं राम सुंदर निषाद, बलहा के लिए शिवप्रकाश यादव एवं पंडित सिंह, रोहनिया के लिए दुर्गा प्रसाद यादव एवं राम दुलार राजभर, निघासन के लिए राममूर्ति वर्मा, रामकरण आर्य एवं रामपाल और सिराथू के लिए पारस नाथ यादव एवं शंखलाल मांझी को ज़िम्मेदारी दी गई थी.
कौन कहां से जीता : उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए. चरखारी विधानसभा सीट पर सपा के कप्तान सिंह ने कांग्रेस के राम जीवन को 50,805 वोटों, सिराथू विधानसभा सीट पर सपा के वाचस्पति ने भाजपा के संतोष सिंह पटेल को 24,522 वोटों और बलहा विधानसभा सीट पर सपा के बंशीधर बौद्ध ने भाजपा के अक्षयबर लाल को 25,181 मतों से हराया. ठाकुरद्वारा विधानसभा सीट पर सपा के नवाब जान ने भाजपा के राजपाल चौहान को 27,743 वोटों, सहारनपुर नगर विधानसभा सीट पर भाजपा के राजीव गुंबर ने सपा के संजय गर्ग को क़रीब 26,667 वोटों और हमीरपुर विधानसभा सीट पर सपा के शिवचरण प्रजापति ने भाजपा के जगदीश प्रसाद को 68,556 वोटों से हराया. रोहनिया विधानसभा सीट पर सपा के महेंद्र सिंह पटेल ने अपना दल के कृष्णा पटेल को 14,449 वोटों, निघासन विधानसभा सीट पर सपा के कृष्ण गोपाल पटेल ने भाजपा के रामकुमार वर्मा को 45,976 वोटों और बिजनौर विधानसभा सीट पर सपा की रुचिवीरा ने भाजपा के हेमेंद्र पाल को 11,567 वोटों से हराया. लखनऊ पूर्वी विधानसभा सीट पर भाजपा के आशुतोष टंडन ने सपा की जूही सिंह को 26,459 वोटों और नोएडा विधानसभा सीट पर भाजपा की विमला बाथम ने सपा की काजल शर्मा को 58,952 वोटों से हराया. मैनपुरी लोकसभा सीट पर सपा प्रत्याशी तेज प्रताप सिंह ने भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य से 3,21,149 अधिक वोट पाकर जीत हासिल की. सहारनपुर नगर, बिजनौर, ठाकुरद्वारा, नोएडा, निघासन, लखनऊ पूर्वी, हमीरपुर, चरखारी, सिराथू, बलहा (आरक्षित) और रोहनिया विधानसभा सीटें लोकसभा चुनाव के बाद खाली हो गई थीं. इन सीटों से चुने गए विधायक डॉ. महेश शर्मा, कलराज मिश्र, अजय मिश्र, सावित्री बाई फूले, साध्वी निरंजन ज्योति, उमा भारती, कुंवर भारतेंदु, कुंवर सर्वेश कुमार सिंह, राघव लखनपाल, केशव प्रसाद और अनुप्रिया पटेल चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए थे. आजमगढ़ और मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट से इस्तीफ़ा दे दिया था.
महा-गठबंधन पर शुरू हुआ मंथन : उपचुनाव के परिणाम आने के बाद बिहार फॉर्मूले पर महा-गठबंधन की संभावनाओं पर फिर से मंथन शुरू हो गया है. खास तौर पर बसपा के पारंपरिक एवं जाति विशेष के मतदाताओं का रुझान समाजवादी पार्टी की तरफ़ होने की दुर्लभ घटना ने यह भी संकेत दिया है कि कहीं यह अंदरूनी समझदारी का ही परिणाम तो नहीं था. बिहार में जदयू, राजद एवं कांग्रेस के महा-गठबंधन की सफलता के बाद जब लालू ने मुलायम को भी मायावती से हाथ मिलाने की सलाह दी थी, तब मायावती जोर से चिहुंकी थीं. लेकिन, इस उपचुनाव में जाति विशेष का वोट सपा को मिलना मायावती की सहमति के बिना नहीं हो सकता, क्योंकि बसपा के पारंपरिक मतदाताओं का एकबारगी बगावत कर देने का भी कोई दृश्य नहीं है. लोकसभा चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा को चुनौती एक साथ मिलकर दी जा सकती है या फिर चुनाव न लड़कर प्रतिद्वंद्वी दल को वॉकओवर देकर. एक खेमा तो कांग्रेस को भी महा-गठबंधन में शरीक करने को लेकर सक्रिय है. मायावती की तरह राहुल भी उत्तर प्रदेश में महा-गठबंधन की पहल से इंकार कर चुके हैं, लेकिन बिहार में ऐसा देख चुकी कांग्रेस उत्तर प्रदेश में कितने दिनों तक परहेज करती है, यह देखना है. कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने कुछ ही दिनों पहले राहुल को बिहार के महा-गठबंधन की तर्ज पर उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में सपा के साथ गठबंधन की सलाह दी थी. उन्होंने राहुल से यहां तक कहा था कि उनकी सपा के शीर्ष नेतृत्व से बात हो गई है और वहां से सकारात्मक संकेत मिले हैं, इसलिए बात आगे बढ़ाई जा सकती है, लेकिन राहुल ने इंकार कर दिया था. अब उपचुनाव का परिणाम आने के बाद नेताओं के मूड और समीकरण बदलेंगे, इसका अनुमान राजनीतिक प्रेक्षक लगा रहे हैं.
सपा के गढ़ में भाजपा की पकड़ : मैनपुरी संसदीय सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है, लेकिन वहां एक विधानसभा सीट सपा नेताओं को बहुत चुभती है. पिछले लोकसभा चुनाव में भी इस विधानसभा क्षेत्र ने मुलायम को अपने यहां हराया था और इस बार भी सपा प्रत्याशी को इस विधानसभा क्षेत्र में करारी हार मिली. यह अलग बात है कि अन्य विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर सपा प्रत्याशी की जीत हुई. मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में सपा प्रत्याशी मुलायम सिंह के पोते तेज प्रताप के नामांकन के बाद ही लगभग तय था कि तेजू जीतेंगे, लेकिन बख्तरबंद तैयारियां भी भोगांव विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं को समाजवादी पार्टी की तरफ़ नहीं मोड़ सकीं. मैनपुरी संसदीय क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों पर सपा प्रत्याशी भाजपा से आगे रहे, लेकिन भोगांव विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी ने सपा प्रत्याशी को 6,170 वोटों से पटखनी दी. पूर्व के लोकसभा चुनाव में भी यहां सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को भाजपा प्रत्याशी ने 1140 मतों से हराया था. भोगांव विधानसभा सीट सपा नेतृत्व के लिए गहरी चिंता का विषय बनी हुई है. भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य, ज़िलाध्यक्ष शिवदत्त भदौरिया, आलोक गुप्ता एवं अन्य नेताओं ने चुनाव प्रेक्षक से मुलाकात कर साढ़े तीन लाख फर्जी वोट डाले जाने का आरोप लगाया और कहा कि ज़िला प्रशासन ने प्रदेश सरकार के दबाव में चुनाव में जमकर धांधली कराई है. मतगणना के दिन भी भाजपा प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ दोपहर एक बजे ही मतगणना स्थल से बाहर चले गए थे.