समाजवादी पार्टी में दो स्पष्ट विभाजक रेखा दिखने लगी है. अमर सिंह के इस्तीफे की धमकी के बाद अब यह केवल समाजवादी-गृह-कलह नहीं रहा, अब यह दो परस्पर विरोधी राजनीतिक धाराओं की तरफ बढ़ता दिख रहा है. इस राजनीतिक-पारिवारिक द्विधारा में एक तरफ मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और अमर सिंह तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव और राजेंद्र चौधरी खड़े दिख रहे हैं. स्थितियों की गहराई से समीक्षा करने वाले राजनीतिक प्रेक्षकों का भी मानना है कि मुलायम की धारा की तरफ समाजवादी और मुस्लिमवादी समर्थक जमात खड़ी है तो अखिलेश की धारा की तरफ अखिलेश समर्थक नव-सियासी उत्पाद और सत्ता-प्रभावित जमात खड़ी है. इन दो धाराओं को गहरा करने में सूत्रधार के बतौर भाजपा का चेहरा छुपाए नहीं छुप रहा. रामगोपाल यादव इसे अच्छी तरह समझते हैं. आपको याद ही है कि पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव ने मैनपुरी की एक सार्वजनिक सभा में कहा कि पार्टी में उनका अपमान हो रहा है, नौकरशाही उनकी बात नहीं मानती, सपा के नेता, मंत्री और नौकरशाह भ्रष्टाचार में लगे हैं, जमीनें कब्जा कर रहे हैं और जनता का भयावह उत्पीड़न कर रहे हैं. इसकी शिकायत करने पर मुख्यमंत्री कोई कार्रवाई नहीं करते. लिहाजा, वे इस्तीफा दे देंगे और विधानसभा का चुनाव भी नहीं लड़ेंगे, केवल पार्टी के लिए काम करेंगे. शिवपाल की इन बातों पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पार्टी मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश की मौजूदगी में प्रदेश सरकार पर करारा प्रहार किया. मुलायम ने अखिलेश सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार और नेताओं के असामाजिक कार्य-कलापों की आधिकारिक पुष्टि कर दी और कहा कि शिवपाल का अपमान नहीं रुका तो पार्टी टूट जाएगी. मुलायम का यह दुख भी सार्वजनिक तौर पर उभरा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की बात नहीं मानते.
इस घटना के बाद कुछ दिन का युद्ध-विराम दिखा. लेकिन मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय की चर्चाओं को गरम रख कर मुस्लिम-प्रेम की अभिव्यक्ति जारी रही. दोनों धाराएं अपनी-अपनी जगह मजबूती से टिकी रहीं. इसी बीच अचानक अमर सिंह ने राज्यसभा से इस्तीफे की चेतावनी उछाली और कहा कि समाजवादी पार्टी में उनका और जया प्रदा का अपमान हो रहा है. अमर सिंह की बातें शिवपाल की बातों से मिलती-जुलती हैं. फिर विधानसभा सत्र के दौरान ही कौमी एकता दल के नेता मुख्तार अंसारी की शिवपाल के साथ घंटे भर की गोपनीय मुलाकात ने दो-धारा को ध्यान से देख रहे लोगों का ध्यान अपनी ओर खीचा, खास तौर पर इस मुलाकात को मुस्लिमवादी-सेकुलरिस्टों ने खूब सराहा. धार्मिक कट्टरता के पुरोधा मुख्तार अंसारी ने भी खुद को सेकुलर बताते हुए विधानसभा लॉबी में मौजूद पत्रकारों से कहा कि ऐसे सेकुलर दलों से गठबंधन की कोशिशें बिना किसी व्यवधान के जारी हैं. मुख्तार की इन बातों के निहितार्थ समझे जा सकते हैं.
बहरहाल, अपने अपमान का जिक्र करते हुए अमर सिंह ने अपने साथ न केवल शिवपाल को जोड़ा बल्कि बलराम यादव को भी जोड़ा. अमर बोले, बलराम यादव, शिवपाल यादव और मुझे अपमानित किया जा रहा है. शिवपाल की तो इतनी भी औकात नहीं रहने दी गई है कि वे इटावा में एसएसपी भी बदलवा सकें. यूपी के सारे कार्यकर्ताओं का दबाव सबसे ज्यादा शिवपाल यादव झेलते हैं. मगर, वे अपने गृह जनपद इटावा में एक एसएसपी भी नहीं बदलवा सकते. यहां तक वे अपने घर जसवंतनगर का भी छोटा सा सरकारी काम नहीं करा सकते. मुझे तो लगता है कि राज्यसभा सीट के बदले में अपमानित किया जा रहा है. मैं इस सिलसिले में नेताजी मुलायम सिंह यादव से बात करने के बाद तय करूंगा कि आगे क्या करना है. मैं अपना इस्तीफा पार्टी के नेता को नहीं बल्कि हामिद अंसारी को दूंगा. इस मामले में मैं नवजोत सिंह सिद्धू को आदर्श मानता हूं. यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव फोन पर आते ही नहीं हैं. जब भी उनसे फोन पर बात करने की कोशिश की जाती है तो उनके सचिव कहते हैं कि आपका नाम लिस्ट में डाल दिया गया है, आपको बता दिया जाएगा. आप से बात करवा दी जाएगी. ठीक है, मैं छोटा आदमी हूं तो मैं अपने छुटपन में ही ठीक हूं. दूसरी तरफ मुझे राज्यसभा में मूक बधिर बना कर रख दिया गया है. मैं राज्यसभा में रेवती रमण सिंह और बेनी प्रसाद वर्मा जैसे पार्टी नेताओं के साथ पीछे की कतार में बैठता हूं, जबकि नरेश अग्रवाल जैसे नेता पूरी चर्चाएं बटोर लेते हैं. जब व्यक्तिगत पसंद प्रतिभा पर हावी हो जाए तो राजनीति का नुकसान होता है. मुलायम सिंह नेता हैं या नहीं यह तो तय करना ही होगा. मैं मुलायमवादी हूं. मुलायम सिंह की वजह से आया था, मुलायम सिंह की इज्जत करता हूं. सब चीजें मुलायम सिंह से बात करने के बाद ही तय की जाएंगी. मैं मुलायमवादी हूं, लेकिन मुलायमवादी होना समाजवादी पार्टी में एक तरह का अपराध हो गया है. जयाप्रदा के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है. उनको भी अपमानित किया जा रहा है. मेरे लिए राजनीति से ज्यादा व्यक्तिगत रिश्ते मायने रखते हैं. अखिलेश सरकार में वही लोग ऐश कर रहे हैं जो मायावती के राज में ऐश कर रहे थे. इस प्रसंग में अमर ने अखिलेश के आसपास रहने वाले नेताओं संजय लाठर, आनंद भदौरिया, सुनील साजन जैसे कई नव-नेताओं के नाम भी गिनाए.
अमर सिंह ने कहा कि वे समाजवादी पार्टी में दोबारा मुलायम सिंह यादव की वजह से ही आए, लिहाजा आगे के फैसले के बारे में वे मुलायम से बात करने के बाद ही तय करेंगे. अमर सिंह की ये बातें भविष्य की राजनीति का संकेत दे रही हैं. अमर सिंह और जया प्रदा को फरवरी 2010 में समाजवादी पार्टी से निष्कासित किया गया था.इसी वर्ष मई महीने में अमर सिंह की सपा में वापसी हुई और उनका राज्यसभा में जाना भी पक्का कर दिया गया.
अब आजम से भी मिल लिए मुख्तार
अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी मुख्तार अंसारी की पार्टी के विलय को लेकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से ही पंगा लिए बैठी है जबकि मुलायमवादी नेता मुख्तार से मुलाकात कर रहे हैं और रणनीति साझा कर रहे हैं. मुख्तार की घंटे भर शिवपाल से हुई मंत्रणा के बाद अगले दिन मुख्तार अंसारी की मुलाकात वरिष्ठ सपा नेता और मंत्री आजम खान से हुई. सार्वजनिक तौर पर तो यही बताया गया कि क्षेत्र के विकास के लिए मुख्तार नगर विकास मंत्री आजम खान से मिलने गए थे. लेकिन जानने वाले जानते हैं कि मुख्तार की रुचि विकास में कितनी है और राजनीति में कितनी. कौमी एकता दल को सपा में शामिल कर मुलायम पूर्वांचल में प्रभावशाली मुस्लिम चेहरा सामने लाना चाहते थे. सपा प्रमुख की रणनीति आजम खान की तरह एक और मुस्लिमवादी नेता को खड़ा करने की थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बदली हुई स्थितियों में अब तो बसपा ने भी मुख्तार को अपने प्रभाव में लेने के प्रयास शुरू कर दिए हैं. कौमी एकता दल के सपा में विलय की कोशिशों में मु
मुलायम से बड़े मुख्तार साबित हो रहे अखिलेश
कुख्यात माफिया सरगना विधायक मुख्तार अंसारी ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में विलय की बात से कन्नी काट ली, लेकिन सपा से गठबंधन की बात जोर देकर कही. विधानसभा के मॉनसून सत्र में शामिल होने के लिए जेल से सदन में हाजिर हुए मुख्तार ने कहा, ’हम सेकुलर दलों से गठबंधन का प्रयास कर रहे हैं, बाकी बातें उनके बड़े भाई अफजाल अंसारी तय करेंगे.’ आपको मालूम ही है कि पिछले दिनों मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया था. लखनऊ में समाजवादी पार्टी मुख्यालय में सपा नेता शिवपाल यादव ने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस विलय का ऐलान किया था. शिवपाल ने यह भी कहा कि यह घोषणा सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का आदेश लेकर ही की जा रही है. विलय का फैसला हो जाने के बाद अखिलेश यादव अड़ गए और उनके भारी विरोध के कारण लखनऊ में पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई और उसमें विलय रद्द करने का फैसला हुआ. विलय रद्द होने पर मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने कहा, ’मुझे घर बुलाकर खातिर की फिर मुझे सोते वक्त हलाल कर दिया गया.’ अखिलेश के इस रवैये को मुख्तार अंसारी ने भी अपमान के बतौर लिया. पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, देवरिया, मऊ, वाराणसी जैसे कई जिलों की करीब 20 विधानसभा सीटों पर मुसलमानों में मुख्तार अंसारी का खासा प्रभाव है. दरअसल, मुलायम ने काफी सोच-समझ कर कौमी एकता दल का सपा में विलय कराने का फैसला किया था. इस फैसलेे को मुस्लिम समुदाय में सराहा गया था. लेकिन अखिलेश यादव ने मुलायम की रणनीति पर पानी फेर दिया.
अपमान सह कर सत्ता से सटा नहीं रह सकताः अमर
अमर सिंह को इस बात पर भी नाराजगी है कि मशहूर फिल्म अभिनेत्री और उनकी सखा जया प्रदा को उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया गया. अखिलेश सरकार ने महाकवि गोपाल दास नीरज को फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष व जया प्रदा को उपाध्यक्ष बनाने का फैसला किया. फिल्मों में ऐतिहासिक गीत लिखने वाले नीरज फिल्म जगत में भी उतने ही मशहूर हैं जितने साहित्य-जगत में. सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए नीरज को तीन-तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिल चुका है.अखिलेश सरकार के इस फैसलेे से अमर सिंह अत्यंत क्षुब्ध हैं. इतने कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि जया प्रदा का अपमान देख कर वे सत्ता से सटे नहीं रह सकते. अमर सिंह ने कहा कि जया प्रदा को उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष बनाने की बात हुई थी. लेकिन ऐन वक्त पर अखिलेश यादव ने उनका नाम काट कर नीरज को अध्यक्ष और उन्हें उपाध्यक्ष बनाने का निर्णय कर लिया. अमर सिंह इस बात पर भी नाराज हैं कि जया प्रदा को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत नहीं किया गया, जबकि वादा किया गया था. अमर कहते हैं, भला सोचिए, 16 साल से जो महिला पार्टी से जुड़ी रही, सांसद रही, उसके सम्मान के साथ ऐसा कुठाराघात क्या शोभा देता है?