नई दिल्ली : विद्यार्थी तो विद्यार्थी होता है। एक शिक्षक के लिए हर छात्र-छात्रा एक समान होता है। हां, कुछ शारीरिक अथवा मानसिक दिक्कतें हो सकती हैं, जिसे सुधारने और संवारने की जिम्मेदारी हम शिक्षकों पर होता है। जानकी देवी मेमोरियल काॅलेज की प्रिंसिपल डाॅ स्वाति पाल इसी सोच के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने बताया कि काॅलेज परिसर में दिव्यांगों के लिए विशेष प्रकार के कमरे, टायलेट और काॅरिडोर में स्पेशल टेक टाइल्स लगाया गया है।
सौ से अधिक छात्राओं के लिए हमने हाॅस्टल बनवाया है, उसमें भूतल पर दिव्यांगों के लिए विशेष कमरा है। उनकी पढाई के लिए लाइब्रेरी में भी आधुनिकतम व्यवस्थाओं को किया गया है। हम नहीं चाहते कि आज के दौर में जो दिव्यांग हमारे काॅलेज में दाखिला करवाते हैं, वे किसी सामान्य छात्र से पीछे रह जाए।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि शुरू शुरू में कई दिव्यांगों में थोडी बहुत आत्मविश्वास की कमी दिखती है।
लेकिन हमारे काॅलेज का ऐसा सौहार्द्रपूर्ण माहौल होता है कि वे जल्द ही अन्य छात्रों से घुलमिल जाती हैं। कैंटीन में ऐसे छात्रों के लिए अलग से व्यवस्था है। हाॅस्टल में अमूमन दिव्यांग भूतल पर ही रहेंगे, लेकिन यदि उन्हें अपने किसी सहकर्मी से मिलने के लिए उपरी मंजिल पर जाने का मन हो, तो उसके लिए एस्केलेटर भी लगा दिया गया है।
उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि दिव्यांग स्वयं को सामान्य छदात्रा समझें। इसलिए काॅलेज का माहौल परस्पर सहयोग और साहचर्य का बनाया गया है। इसके लिए हर शिक्षक प्रयासरत रहते हैं। डाॅ स्वाति पाल ने बताया कि बतौर प्रिंसिपल अपने पौने दो साल के कार्यकाल में उन्हांेने काॅलेज के आधारभूत संरचना में हर संभव बदलाव कराया है। जो भी सकारात्मक सुझाव किसी से सहकर्मी प्रोफेसर अथवा अन्य किसी से मिलती है, उस पर सामूहिक निर्णय लेकर काम करते हैं। यही कारण है कि हमारे काॅलेज को दिल्ली सरकार से कई पुरस्कार मिले हैं।
गौरतलब है कि जानकी देवी मेमोरियल काॅलेज दिल्ली विश्वविद्यालय का ही काॅलेज है। यहां केवल लडकियां ही नामांकन करवा सकती है। इसके लिए सुरक्षा व्यवस्था भी काफी चुस्त-दुरूस्त है। प्रिंसिपल डाॅ स्वाति पाल ने बताया कि स्थानीय पुलिस और तमाम शैक्षणिक और गैर-शिक्षण कार्य से जुडे सहकर्मी हमारा सहयोग करते हैं। इतिहास विभाग की डाॅ स्मिता ने बताया कि बीते पौन दो साल में जो विकास कार्य हुए हैं और कई नए-नए कार्य हो रहे हैं, वह प्रिंसिपल की कर्मठता का ही परिणाम है। वे काॅलेज को दिल्ली विश्वविद्यालय के तमाम अग्रणी काॅलेज की श्रेणी में ले जाना चाहती हैं।
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