लोगों के मन में अब भी आरटीआई को लेकर कई सवाल और कई तरह की भ्रांतियां मौजूद हैं. उन सवालों के समाधान और आरटीआई से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के लिए हम यहां सवाल जवाब की शक्ल में कुछ बातें आपको बता रहे हैं, जो निश्चित ही आपके लिए फायदेमंद साबित होंगी…
क्या मुझे सूचना मांगने की वजह बतानी होगी?
बिल्कुल नहीं. आपको अपना नाम, पता एवं फोन नंबर के अलावा कोई भी अतिरिक्त जानकारी देने की जरूरत नहीं है. क़ानून में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख है कि आवेदक से संपर्क के लिए ज़रूरी जानकारी के अलावा और कोई भी जानकारी नहीं मांगी जानी चाहिए.
देश में बहुत से ऐसे क़ानून हैं, जिनका लाभ आम जनता को नहीं मिल पाता. क्या ये क़ानून काम करेगा?
ये क़ानून काम कर रहा है. स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा क़ानून बना है, जो अधिकारियों की लापरवाही पर तुरंत उनकी सीधी जवाबदेही तय कर देता है. यदि संबंधित अधिकारी आपको तय समय सीमा में सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, तो उसके बाद सूचना आयुक्त 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से उस पर जुर्माना लगा सकता है. यदि उपलब्ध कराई गई सूचना ग़लत है, तो अधिकतम 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है. आपके आवेदन को फालतू बताकर जमा करने और अधूरी सूचना उपलब्ध कराने के लिए भी जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माने की राशि अधिकारी के वेतन से काटी जाती है.
यदि सूचना नहीं मिलती तो मुझे क्या करना चाहिए?
यदि आपको सूचना नहीं मिली या आप सूचना से असंतुष्ट हैं, तो आप प्रथम अपील अधिकारी के पास प्रथम अपील डाल सकते हैं.
प्रथम अपील अधिकारी कौन होता है?
हर सरकारी विभाग में लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ पद के एक अधिकारी को प्रथम अपील अधिकारी बनाया गया है. सूचना न मिलने या ग़लत सूचना मिलने पर पहली अपील इसी अधिकारी के पास की जाती है.
क्या प्रथम अपील के लिए कोई फॉर्म है?
नहीं, प्रथम अपील के लिए कोई फार्म नहीं है. (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने फॉर्म निर्धारित किए हैं). प्रथम अपील अधिकारी के पते पर आप सादे काग़ज़ पर आवेदन कर सकते हैं. इसमें आप अपने पूर्व आवेदन की एक प्रति और यदि लोक सूचना अधिकारी की ओर से आपको कोई जवाब मिला है, तो उसकी भी एक प्रति अवश्य संलग्न करें.
क्या प्रथम अपील के लिए कोई शुल्क अदा करना पड़ता है?
नहीं, प्रथम अपील के लिए आपको कोई शुल्क अदा नहीं करना होता है, हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किया है.
मैं कितने दिनों में प्रथम अपील दाख़िल कर सकता हूं?
अधूरी या गलत सूचना पाने के 30 दिनों के भीतर अथवा यदि कोई सूचना नहीं प्राप्त हुई है, तो सूचना के अधिकार का आवेदन जमा करने के 60 दिनों के भीतर आप प्रथम अपील दाख़िल कर सकते हैं.
यदि प्रथम अपील दाख़िल करने के बाद भी संतोषजनक सूचना न मिले तो?
यदि प्रथम अपील दाख़िल करने के बाद भी आपको सूचना न मिले या संतोषजनक सूचना न मिले, तो आप मामले को आगे बढ़ाते हुए दूसरी अपील दाखिल कर सकते हैं.
दूसरी अपील क्या है?
सूचना के अधिकार क़ानून के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए दूसरी अपील दाखिल करना अंतिम विकल्प है. दूसरी अपील आप सूचना आयोग में कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभाग के ख़िला़फ अपील दाख़िल करने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग है. सभी राज्य सरकारों के विभागों के लिए राज्यों में ही सूचना आयोग है.
दूसरी अपील के लिए क्या कोई फॉर्म सुनिश्चित है?
नहीं, दूसरी अपील दाख़िल करने के लिए कोई फॉर्म सुनिश्चित नहीं है (लेकिन दूसरी अपील के लिए कुछ राज्य सरकारों के अपने निर्धारित फार्म हैं) अपील के लिए आप केंद्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग के पते पर साधारण काग़ज़ पर आवेदन कर सकते हैं. दूसरी अपील दाख़िल करने से पूर्व अपील के नियमों को सावधानीपूर्वक पढ़ें. यदि अपील नियमों के अनुरूप नहीं होगी, तो वो ख़ारिज़ की जा सकती है. राज्य सूचना आयोग में अपील करने के पूर्व वहां के नियमों को ध्यान से पढ़ें.
दूसरी अपील के लिए मुझे कोई शुल्क अदा करना पड़ेगा?
नहीं, आपको कोई शुल्क नहीं देना है (हालांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए शुल्क निर्धारित किया है).
मैं कितने दिनों में दूसरी अपील दाख़िल कर सकता हूं?
पहली अपील दाखिल करने के 90 दिनों के अंदर अथवा पहली अपील का निर्णय आने की तारीख़ से 90 दिनों के अंदर आप दूसरी अपील दाख़िल कर सकते हैं.
सूचना के अधिकारों के दायरे में कौन-कौन से विभाग आते हैं?
सूचना का अधिकार अधिनियम जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है. ऐसे सभी निकाय, जिनका गठन संविधान के तहत या उसके अधीन किसी नियम के तहत या सरकार की किसी अधिसूचना के तहत हुआ हो, इसके दायरे में आते हैं. साथ ही वे सभी इकाइयां, जो सरकार के स्वामित्व में हों, सरकार द्वारा नियंत्रित हों अथवा सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित हों, आरटीआई के दायरे में आती हैं.
क्या सरकारी गोपनीयता क़ानून, 1923 सूचना के अधिकार के आड़े नहीं आता?
नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 22 के अंतर्गत सूचना का अधिकार अधिनियम सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 सहित किसी भी अधिनियम के ऊपर है. सूचना का अधिकार क़ानून बनने के बाद स़िर्फ वही सूचना गोपनीय रखी जा सकती है, जिसकी व्यवस्था इस अधिनियम की धारा 8 में की गई है. इसके अलावा किसी सूचना को किसी कानून के तहत गोपनीय नहीं कहा जा सकता.
क्या फाइल नोटिंग की प्राप्ति निषेध है?
नहीं, फाइल नोटिंग सरकारी फाइलों का एक अहम भाग है और सूचना के अधिकार कानून में इसे उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा 31 जनवरी, 2006 के एक आदेश में भी इसे स्पष्ट किया गया है.