संडे का इंतजार रहता है। शनिवार का इंतजार रहता है। संडे को लाउड इंडिया टीवी पर अभय दुबे शो आता है। शनिवार को विजय त्रिवेदी शो आता है और शाम को सत्य का सवाल जवाब आता है। ये इंतजार अच्छे हैं। क्योंकि रोज रोज की चिल्लपों के बजाय ताजगी देते हैं।
संतोष भारतीय की अभय दुबे के साथ बातचीत बड़ी रोचक और मस्त रहती है। समय बढ़ाया जाना चाहिए। संतोष जी इस ओर ध्यान दें। पैंतालिस मिनट या एक घंटा। पहले मैदान केवल अभय जी के लिए होता था अब संतोष जी ने भी उसके कुछ हिस्से को घेर लिया है। अच्छा लगता है उनकी दी हुई जानकारियां भी दिलचस्प होती हैं। यह अच्छा है कि अभय जी गोदी मीडिया से किनारा कर रहे हैं। तो यहीं एक घंटा दें। उन्हें सुनने वाले बहुत हैं। यह भी कम नहीं है कि गोदी मीडिया ने ही उन्हें प्रसिद्ध किया है। लोग तुरंत पहचान लेते हैं। अभय जी ने एक बात तो बड़ी मार्के की कही कि मीडिया ने तो अपना काम बंद कर ही दिया है बल्कि जो बिका हुआ मीडिया नहीं है वह भी राष्ट्रवाद आदि के दबाव में आ जाता है। संतोष जी ने कहा श्रोता और दर्शक आपकी तारीफ ज्यादा करते हैं आलोचना कोई नहीं करता तो भैया हम आलोचना तो नहीं उस सरीखी बात ही कहें कि अभय जी अब तीन ‘C’ और तीन ‘B’ को न दोहराइएगा। कई बार हो चुका। यह मोदी जी के लिए ही छोड़ दीजिए। यह सब उन्होंने ही शुरू किया है तीन एम तीन टी तीन बी पांच एस और न जाने क्या क्या। ये फेसबुकिया लोगों की पसंद की चीजे हैं। प्रियंका पर उनका विश्लेषण मस्त रहा। अब दो मुद्दे हैं जो इस हफ्ते छिड़े हैं पैगासस और प्रशांत किशोर का बीजेपी को लेकर बयान। दिलचस्प है।
कई लोगों ने मुझे टोका है कि आप आशुतोष पर बहुत फायर रहते हैं। मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं दोस्तों की व्हाट्सएप और फोन पर दी गयी राय और चर्चाओं के आधार पर ही अपनी बात लिखता हूं। हां, आशुतोष पर मेरी पैनी नजर जरूर रहती है। जैसे एक कथाकार जीवन के पात्रों के हाव भावों को पकड़ता है। पर इसमें क्या दो राय हैं कि आशुतोष ने ‘सत्य हिंदी’ को ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। जबरदस्त ज्ञान हासिल किया है। दोस्तों का दायरा बढ़ा है। पहचान बढ़ी है। और आलोक जोशी के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी है। पुराने दोस्त हैं पर सत्य हिंदी पर जोड़ी ही कहेंगे। विजय त्रिवेदी ने अपना अलग ही औरा बनाया है। अपने विशिष्ट तरह के तर्कों से। वहां तीन लोगों को सुनना भाता है विजय, आलोक और शीतल जी को।
रोजाना की आदत में पुण्य प्रसून वाजपेयी भी शामिल हैं। उनको सुनने का समय राठ आठ का है उसके बाद रवीश भाई का शो। उस पर कोई ‘कम्प्रोमाइज़’ नहीं। हालांकि आजकल रवीश ने समय की कटौती की है। मुझे तो ऐसा लगने लगा है वे बस ‘औपचारिक’ (सा) शो कर रहे हैं। कुछ मित्र कहते हैं वे थक गये हैं। जो भी हो ताड़ने वाले ताड़ ही लेते हैं। प्रस्तुति चाहे पंद्रह मिनट की ही हो, जान लगा देते हैं। इसीलिए जरूरी हैं। पर यह भी सच है उनकी तमाम आलोचनाओं के बावजूद गोदी मीडिया फल फूल रहा है। इसलिए ‘Frustration’ भी हो सकता है। पर वे और एनडीटीवी दोनों जरूरी हैं।
वाजपेयी अपने तमाम ‘अनूठे सचों’ के बावजूद जमे हुए हैं। वाजपेयी की अपनी अलग हेकड़ी है। उनके अंदाज में सब नजर आता है। जानकारियों के लिहाज से वाजपेयी को सुनना अच्छा लगता है। कभी कभी बोर भी। पर उनके द्वारा प्रस्तुत आंकड़े (यदि बोर न करें) तो जरूरी होते हैं मतलब, महत्वपूर्ण होते हैं।
भाषा सिंह अपनी पूरी लगन के साथ नियमित रहती है। प्रबीर पुर कायस्थ के साथ उनका शो बढ़िया होता है और ‘खोज खबर’ कार्यक्रम भी। ‘वायर’ के कार्यक्रमों पर कुछ ‘डेंट’ लगा है क्या। वह बात जो थी कुछ कम हुई दिखती है। अब तो वायर मतलब आरफा खानम शेरवानी सा ही रह गया है। बहुत दिनों बाद पैगासस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर वायर के दोनों संस्थापक आरफा के साथ नजर आये। आरफा ने भी यूपी में शरद प्रधान और सिद्धार्थ कलहंस को पकड़ लिया है। घिस चुके हैं ये लोग। ‘सत्य हिंदी’ पर आशुतोष की बहसों में पैनल पर आये दिन इन लोगों को देख लीजिए। अशोक वानखेड़े और शरद प्रधान तो ‘नान सीरियस’ ज्यादा लगते हैं। बहस के बीच ही ठहाके लगाते हुए। हालांकि अशोक के तर्क कभी कभी ध्यान खींचते हैं। पैनल मुकेश कुमार का बढ़िया होता है अक्सर। उर्मिलेश जी का कब आया कब निकल गया पता ही नहीं चलता है। पहले वे नियमित रूप से मुझे अपने वीडियो भेजते थे। अब फैजान मुस्तफा, अपूर्वानंद, भाषा सिंह, विजय त्रिवेदी और कभी कभी वी एन राय, शीतल जी आदि के व्हाट्सएप पर आते रहते हैं।
लाउड इंडिया टीवी के नियमित आते हैं। इन सब से होता यह है कि ये व्हाट्सएप पर सुरक्षित रहते हैं और मर्जी नुसार हम देख सकते हैं। सबसे ज्यादा आजकल परेशान करने वाली बात विपक्षी दलों की है। अभय दुबे ने इस ओर इशारा किया। एक दिलचस्प बात संतोष जी ने कही जो विपक्ष को उठानी चाहिए थी कि वैक्सीन के सौ करोड़ आंकड़े की सच्चाई तो कुछ और है। दोनों वैक्सीन सौ करोड़ कहां लगीं। अभय जी ने कहा कि संतोष जी ये जो बात आप बता रहे हैं दरअसल इस बात को उठाना तो विपक्षी दलों का काम था। सही में प्रशांत किशोर ने चाहे जिन (छिपे अनछिपे) कारणों से राहुल गांधी के बारे में गोवा में जो टिप्पणी की है वह शत प्रतिशत सही है।
राहुल बाबा जाने किस मुगालते में है। वही जो विनोद दुआ कहा करते थे कि सत्ता थाली में सज कर आएगी। सारा सत्यानाश कांग्रेस की तरफ से हो रहा है। प्रियंका के ‘इवेंट’ पर अभय जी की राय गौर करने वाली है। अच्छा है अभय दुबे गोदी मीडिया को तिलांजलि देकर लाउड इंडिया में दो शो दें। एक संतोष जी के साथ संडे को और दूसरा वैसे ही जैसे एन के सिंह का आता है। वे वायर के लिए भी नियमित शो कर सकते हैं। अपूर्वानंद जी का एक शो आता था जो अब बंद हो गया है।
अनौपचारिक चर्चाओं (पांच छ लोगों के साथ) का शो भी अभय जी अच्छा ‘कंडक्ट’ कर सकते हैं।
लेकिन इन बुद्धिजीवियों को किसी प्रकार की राजनीतिक पहल भी करनी चाहिए। वक्त का तकाजा है। वरना बीजेपी को मात देना स्वप्न सरीखा हो जाएगा। मोदी जी इवेंट दर इवेंट करते हुए अतीत को भुलाते, हवा में उड़ाते जाएंगे तो जनता ताली थाली बजाती जाएगी। यही शाश्वत हो जाएगा। इसे तोड़ना जरूरी है।