बे मौसम बारिश और ओलावृष्टि से मर रहे किसानों को मुआवज़ा देने के मामले में खुद को फंसता देखकर उत्तर प्रदेश सरकार ने औपचारिक रूप से प्रदेश में आपदा घोषित कर दी है और सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द करते हुए उन्हें राहत के काम में लग जाने का निर्देश दिया है. प्राकृतिक आपदा के कारण फसलों को पहुंचे ऩुकसान से किसानों को जितना सदमा लगा है, उससे अधिक सदमा उन्हें सरकारी मुआवज़े का चेक देखकर लग रहा है. किसानों को 50 रुपये, 70 रुपये तो कहीं सौ रुपये के चेक मुआवज़े के बतौर दिए जा रहे हैं. किसान वर्ष में उत्तर प्रदेश सरकार के इस किसान प्रेम पर जब प्रदेश और देश स्तर पर प्रबल विरोध शुरू हुआ, तब राज्य सरकार ने अपनी साख बचाने का एहतियाती काम शुरू किया. अब सरकार कह रही है कि किसानों को सौ-पचास नहीं, बल्कि डेढ़ हज़ार रुपये देंगे. जानकार कहते हैं कि सरकार की इस पैंतरेबाजी में किसान प्रेम कहीं नहीं है, यह केवल सियासी पेशबंदी है.
चौथी दुनिया के पिछले अंकों में भी किसानों के प्रति राज्य सरकार की बेरुखी और नौकरशाही की बेजा हरकतों के बारे में ़खबरें छपी हैं. प्राकृतिक आपदा के शिकार किसानों को मुआवज़ा देने में किस तरह भेदभाव बरता जा रहा है और उनकी बर्बाद फसलों के एवज में प्रदेश सरकार किसानों को किस तरह भीख बांट रही है, इसे भी तथ्यों के साथ प्रकाशित किया गया है. इसके बावजूद समाजवादी सरकार की खाल पर कोई असर नहीं पड़ा और ऐसे तमाम नए-नए वाकये सामने आते ही जा रहे हैं. फैज़ाबाद में तो किसानों को 50 रुपये, 63 और 84 रुपये तक के चेक बांटे गए हैं. राहत के ये चेक उन किसानों को दिए गए हैं, जिनकी फसल बेमौसम बारिश की वजह से तबाह हो गई है और जो ख़ुद मौत की दहलीज पर खड़े हो गए हैं. इन चेकों के वितरण का समाजवादी प्रेम उजागर होते ही सरकार ने लेखपालों को निलंबित करने की छुटभैया कार्रवाई की और उन चेकों को वापस लेकर उन्हें फिर से जारी करने का ऐलान कर अपनी झेंप मिटाई. लेकिन, सरकार के ही एक अधिकारी ने कहा कि वापस लिया हुआ चेक कभी बड़ी धनराशि के साथ वापस नहीं आएगा. शासन और प्रशासन की अराजकता का हाल यह है कि राहत राशि बांटने में भी तंत्र के बंदरों का पूरा ध्यान लगा हुआ है. इस कोशिश में कब्रिस्तानों को भी खेत घोषित कर मुआवज़े की राशि खाई-पकाई जा रही है. राहत राशि की बंदरबांट के आरोपों की आधिकारिक पुष्टि हुई है, जिसमें कब्रिस्तान के नाम पर भी चेक बना दिए गए हैं.
फैज़ाबाद की रुदौली तहसील के वाजिदपुर गांव के किसान मोहम्मद साबिर प्रकृति की मार से तबाह हो चुके हैं. पांच बीघा से अधिक खेत में खड़ी फसल बर्बाद होने पर उन्हें मात्र 100 रुपये का मुआवज़ा दिया गया. उनके लिए राहत का यह चेक प्रकृति की मार से कहीं अधिक घातक साबित हो रहा है. रुदौली के ही एक अन्य किसान मोहम्मद शाहिद को उनकी तीन बीघा ज़मीन पर हुई बर्बादी के लिए 63 रुपये का चेक मिला है. मोहम्मद मुस्लिम को चार बीघा खेत पर हुई बर्बादी के लिए 84 रुपये का मुआवज़ा मिला है. ये नाम ख़ास तौर पर इसलिए भी दिए गए, क्योंकि इन मुस्लिम किसानों को दी गई राहत राशि समाजवादी पार्टी के मुस्लिम तुष्टिकरण की असलियत है. अन्य जाति-धर्म के किसानों की तो बात ही अलग है. वाजिदपुर में हुई तबाही का जायजा लेने के लिए कभी कोई प्रशासन का आदमी, नायब तहसीलदार या लेखपाल नहीं आया, अन्य की तो बात ही छोड़ दें. इसी गांव में प्रधान का कब्रिस्तान है, जिसमें खेती नहीं होती. इस ज़मीन को भी खेत दिखाकर आठ लोगों के नाम पर चेक बनाकर बांट दिए गए. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने गांव का दौरा करने के बाद यह जानकारी दी और पुष्टि भी की.
फैजाबाद की रुदौली तहसील के वाजिदपुर गांव के किसान मोहम्मद साबिर प्रकृति की मार से तबाह हो चुके हैं. पांच बीघा से अधिक खेत में खड़ी फसल बर्बाद होने पर उन्हें मात्र 100 रुपये का मुआवज़ा दिया गया. उनके लिए राहत का यह चेक प्रकृति की मार से कहीं अधिक घातक साबित हो रहा है. रुदौली के ही एक अन्य किसान मोहम्मद शाहिद को उनकी तीन बीघा ज़मीन पर हुई बर्बादी के लिए 63 रुपये का चेक मिला है. मोहम्मद मुस्लिम को चार बीघा खेत पर हुई बर्बादी के लिए 84 रुपये का मुआवज़ा मिला है.
विडंबना यह है कि फैजाबाद के ज़िलाधिकारी का कार्यभार देख रहे सीडीओ अरविंद मलप्पा बंगारी भी चेकों के ऐसे वीभत्स-वितरण को घनघोर लापरवाही का नतीजा मानते हैं, लेकिन इससे आगे वह भी कुछ नहीं कर सकते. किसानों के साथ हुए इस खिलवाड़ पर आला अधिकारी अपनी ग़लती मान रहे हैं. फैजाबाद के उप-ज़िलाधिकारी अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि फसलों के ऩुकसान के सर्वेक्षण के लिए लेखपालों की टीम लगाई गई थी, जिन्होंने ग़लती से कब्रिस्तान को भी खेत दिखा दिया और चेक काट दिए. सिंह ने कहा कि लेखपालों की बाकायदा हस्ताक्षर की हुई रिपोर्ट है. कब्रिस्तान की ज़मीन को खेती योग्य ज़मीन दिखाकर दिए गए चेकों की जांच कराई जा रही है. प्रशासनिक अराजकता का यह आलम है! उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय आपदा राहत कोष की गाइडलाइन्स का कहीं कोई अनुपालन नहीं हो रहा है. एक-दो लेखपालों को निलंबित करने से जनता को धोखे में रखा जा सकता है, लेकिन परिदृश्य नहीं बदल सकता. यही वजह है कि राहत के नाम पर उन किसानों को भी खोज-खोज कर उनके नाम के चेक काटे गए, जो अर्सा पहले मर चुके हैं. यह प्रदेश के किसानों के साथ एक भद्दा मज़ाक है. मरहम के बजाय मज़ाक के वितरण का मज़ाकिया पहलू यह है कि प्राकृतिक आपदा के शिकार सात लाख 40 हज़ार किसानों के बीच अब तक 257.77 करोड़ रुपये की धनराशि बांट भी दी गई. यह कैसा वितरण हुआ होगा, उसकी भयावह कल्पना आप खुद-ब-खुद कर रहे होंगे. यह राशि बांटने के बाद अब प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार से एक हज़ार करोड़ रुपये और मांगे हैं. जिस तरह सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं नेताओं-नौकरशाहों की लूट का रूटीन ज़रिया बनती रही हैं, उसी तरह इस बार की बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि भी मौजूदा सरकार के कई नेताओं और नौकरशाहों को समृद्ध बनाने वाली है. किसानों को 257.77 करोड़ रुपये की राहत राशि बांट दिए जाने की सूचना आधिकारिक है. इसी आधिकारिक सूचना का अगला हिस्सा यह है कि प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश के सात लाख 73 हज़ार किसानों अब तक 308 करोड़ रुपये की धनराशि वितरित कर दी है. ये दोनों सूचनाएं एक ही दिन 13 अप्रैल को जारी हुईं. अब किसानों के बीच वितरित राशि 257.77 करोड़ रुपये मानी जाए या 308 करोड़ रुपये? इसे समझने का काम हम प्रदेश में सत्ता संभालने वाले समाजवादी लाल-बुझक्कड़ों पर ही छोड़ दें, तो ज्यादा अच्छा है. लेकिन, राहत राशि पाने वाले किसानों की संख्या का यह भ्रम भी सरकार ने ही फैलाया, जो एक ही दिन अलग-अलग गिनती बता रही है. यह सूचना प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हवाले से जारी की गई है. प्रदेश का सूचना तंत्र भी समाजवादी चाल में चल रहा है.
उस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि राहत वितरण में लापरवाही या शिथिलता पाए जाने पर संबंधित अधिकारियों-कर्मचारियों के ़िखला़फ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. यह भी सरकार की उन्हीं घोषणाओं की तरह है, जो कभी अमल में नहीं लाई जातीं. अखिलेश ने आपदा घोषित करते हुए अधिकारियों-कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं, ताकि किसानों तक राहत पहुंचाने का काम किसी भी दशा में प्रभावित न हो. बर्बाद किसानों तक राहत पहुंचाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें कर रहे सत्ता के अलमबरदारों को किसानों की ज़मीनी हालत दिख नहीं रही और उसका आकलन करने की उनके पास कोई दृष्टि नहीं है. प्रकृति के साथ-साथ साहूकारों और बैंकों से लिए गए कर्ज उन्हें मौत का रास्ता दिखा रहे हैं. साहूकारों और बैंकों ने किसानों का जीना हराम कर रखा है. प्रदेश का क़रीब-क़रीब प्रत्येक किसान कर्ज के बोझ से दबा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक अकेले ज़िले बुलंदशहर के तीन लाख से ज़्यादा किसानों पर बैंकों का साढ़े चार हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का कर्ज है. अधिकतर किसानों ने बीज, खाद और कृषि उपकरणों की खरीद के लिए कर्ज लिया था, लेकिन फसलों की बर्बादी ने उस कर्ज को उनकी मौत का सामान बना दिया. अब किसान कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हैं. लाखों किसानों की ज़मीनें बैंकों में गिरवी रखी हुई हैं और ब्याज पर ब्याज लगते-लगते कर्ज की रकम दोगुनी-तिगुनी हो चुकी है. अकेले बुलंदशहर में पंजाब नेशनल बैंक, केनरा बैंक, स्टेट बैंक, इलाहाबाद बैंक, आंध्रा बैंक, यूनियन बैंक, सिंडिकेट बैंक समेत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का किसानों पर तीन हज़ार 780 करोड़ रुपये का कर्ज है. जबकि निजी बैंकों का किसानों पर 220 करोड़ और कोऑपरेटिव, भूमि विकास एवं ग्रामीण बैंकों का 515 करोड़ रुपये का कर्ज है. इस कर्ज की अदायगी भी उन्हें इसी सीजन में करनी थी. बैंक ऋण के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि बुलंदशहर के किसानों पर बैंकों का 40 अरब रुपये का कर्ज है, जबकि सहारनपुर एवं मेरठ मंडल के किसानों पर 178 अरब रुपये की देनदारी बकाया है. ऐसे में प्रदेश सरकार किसानों को 50 और 60 रुपये के चेक देकर अपना किसान प्रेम दर्शा रही है.
क़र्ज़ वसूली पर अड़े बैंक, आरबीआई का निर्देश ताक पर
किसानों की तबाही को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने उत्तर प्रदेश के सभी बैंकों को यह निर्देश दिया था कि प्रदेश के किसानों को पूर्व की वसूली लंबित रखकर नए ऋण दिए जाएं, लेकिन बैंकों ने आरबीआई के निर्देशों को ताक पर रख दिया और ऐसे आपदाकाल में भी वसूली के लिए वे किसानों पर दबाव बना रहे हैं. जबकि प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव आलोक रंजन ने भी प्रभावित किसानों के ऋण पुनर्निर्धारित करते हुए उन्हें नए ऋण उपलब्ध कराने के निर्देश बैंकों को दिए थे. प्रदेश भर के ज़िलाधिकारियों से भी कहा गया था कि वे यह सुनिश्चित करें कि वसूली को लेकर किसानों का उत्पीड़न न हो. उल्लेखनीय है कि अतिवृष्टि-ओलावृष्टि से प्रदेश के प्रभावित किसानों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने बीते 25 मार्च को प्रदेश सरकार को निर्देश जारी किया था.
एक अखिलेश और एक अरविंद
प्राकृतिक आपदा के शिकार उत्तर प्रदेश के किसानों को 50 और 60 रुपये के चेक देकर अखिलेश यादव के राज में राहत देने की विचित्र व्यवस्था हो रही है, वहीं दूसरी तऱफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के किसानों को प्रति एकड़ 50 हज़ार रुपये का मुआवज़ा देने का ऐलान करके लोगों को तुलना करने का मा़ैका दे दिया है. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आप सरकार किसानों के साथ डटकर खड़ी रहेगी. यह किसी राज्य सरकार द्वारा दिया जाने वाला अब तक का सबसे अधिक मुआवज़ा है. केजरीवाल ने अन्य मुख्यमंत्रियों के सामने यह कहते हुए चुनौती भी फेंकी है कि दूसरे राज्यों की सरकारें ऐसा क्यों नहीं कर सकतीं, जहां किसान खुदकुशी कर रहे हैं?