ब्रिटिश राज की समाप्ति के बाद कांग्रेस राज ने सत्ता पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया. शासन व्यवस्था में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं आया, केवल सत्ता पर विराजमान लोगों की चमड़ी का रंग बदल गया. अंत में उनके समर्पित शिष्यों ने उनका साथ छोड़ दिया और विभाजन स्वीकार कर लिया. बाद में उन शिष्यों ने जिन्ना और ब्रिटेन पर विभाजन की सारी ज़िम्मेदारी डालकर खुद को दोषमुक्त कर लिया. 

Mahatma-Gandhiआज से सौ साल पहले एक जनवरी को मोहनदास करमचंद गांधी इंग्लैंड से भारत वापस आए थे. 19 वर्ष की आयु में बैरिस्टरी की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने पहली बार अपना वतन छोड़ा था और बैरिस्टर बनने के बाद वह वहां एक दिन भी नहीं रुके थे. वह खुद को इंग्लिश बैरिस्टर कहा करते थे और पढ़ाई पूरी करने के बाद वह घर वापस नहीं आए. इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में बिताई गई कुल 26 वर्षों की अवधि ने पोरबंदर के एक अनुभवहीन नौजवान को महात्मा बना दिया. आधुनिक इतिहास में महात्मा गांधी उन गिने-चुने लोगों में से हैं, जिन्हें वास्तव में वैश्‍विक व्यक्ति कहा जा सकता है. जब वह लंदन होते हुए हमेशा के लिए भारत आ रहे थे, तो लंदन में उन्होंने उस समय छिड़ी लड़ाई में भाग लेने के लिए एंबुलेंस कॉर्प में जवानों की भर्ती की. उस समय उनकी उम्र 45 वर्ष थी. प्रमुख व्यक्तियों की जीवनी में दिलचस्पी रखने वाले लोगों ने उसी समय से उन पर लिखना शुरू कर दिया था. अपने जीवन के अगले 33 वर्षों के दौरान उन्होंने दुनिया को कभी भी भूलने नहीं दिया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा था.
हिंदुओं और मुसलमानों को मिलाकर ख़िलाफ़त आंदोलन शुरू करना 1200 साल पुरानी ख़िलाफ़त के ख़ात्मे के बाद के गंभीर नतीजों से निपटने का उनका अपना खास तरीका था. यह आंदोलन असफल हो गया था. ख़िलाफ़त की कमी को पूरा करने का प्रयास आज तक जारी है, आईएसआईएस इसकी एक मिसाल है. गांधी ने ख़िलाफ़त के बदले जो हासिल किया, वह था ब्रिटिश साम्राज्य की शांतिपूर्ण समाप्ति. अगर आज राष्ट्रमंडल देश हैं और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड एवं कनाडा में भारतीयों का एक संपन्न डायस्पोरा है, तो वह इसलिए है, क्योंकि अपने समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य को क्रांतिकारी अहिंसक तरीके से झुकने पर मजबूर किया गया था. गांधी ने अपने लोगों के जीवन में सुधार के लिए हरसंभव प्रयास किया. वह एक कठिन टास्क मास्टर थे, विशेष रूप से अपने नज़दीकी लोगों के लिए, जैसा कि उनके बेटे हीरालाल के संबंध में था. उन्होंने लोगों में स्वच्छता और श्रम की गरिमा की भावना पैदा करने के साथ-साथ उनमें सरल जीवन के गुण और वंचितों के कल्याण के लिए समर्पण की भावना को भी उजागर किया. उन्होंने अपने धर्म से रीति-रिवाज ख़त्म करके उसे आसान बनाने की कोशिश की और बड़े

हिंदुओं और मुसलमानों को मिलाकर ख़िलाफ़त आंदोलन शुरू करना 1200 साल पुरानी ख़िलाफ़त के ख़ात्मे के बाद के गंभीर नतीजों से निपटने का उनका अपना खास तरीका था. यह आंदोलन असफल हो गया था. ख़िलाफ़त की कमी को पूरा करने का प्रयास आज तक जारी है, आईएसआईएस इसकी एक मिसाल है. गांधी ने ख़िलाफ़त के बदले जो हासिल किया, वह था ब्रिटिश साम्राज्य की शांतिपूर्ण समाप्ति.

मंदिरों में जाने की बजाय सभी धर्मों को एक साथ लाने की कोशिश की. उन्होंने इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में अपने ईसाई और यहूदी मित्रों से उनके धर्म की अच्छी बातें अपनाईं. उन्होंने जैन दर्शन के अच्छे विचार अपना कर अपने धर्म की समझ का विस्तार किया, इस्लाम की भावना शामिल करके दो समुदायों के बीच की दूरी मिटाने की कोशिश की. उन्होंने अपने सनातन धर्म का धर्मांतरण के लिए प्रचार नहीं किया. वह मानते थे कि उनका जीवन ही उनके धर्म के संदेश को फैलाने के लिए काफी है. साम्राज्यवाद पर उनकी विजय लगातार अहिंसक लड़ाई की वजह से संभव हो पाई थी. अपनी बड़ी-बड़ी जनसभाओं में मौजूद सुरक्षाकर्मियों से वह कहा करते थे कि उनकी लड़ाई उनसे नहीं, बल्कि साम्राज्य से है. उन्होंने लंकाशायर के कपड़ा मज़दूरों को यह विश्‍वास दिलाया कि विदेशी कपड़ों का उनका बहिष्कार उनकी वजह से नहीं है, बल्कि उस व्यवस्था की वजह से है, जो उनके देशवासियों का दमन करती है और खुद अपने लोगों का भी.
इसके बावजूद वह अपने ही लोगों में असफल रहे. वह सोचते थे कि छुआछूत शांतिपूर्ण तरीके से ख़त्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वर्ण व्यवस्था समाप्त नहीं हुई. केवल मुट्ठी भर लोगों ने ही उनके साधारण जीवन का विचार अपनाया. उन्होंने 30 वर्षों तक जिस पार्टी का नेतृत्व किया, उसी ने उनके अहिंसा के सिद्धांत पर ज़ुबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नहीं किया. उनका यह आग्रह भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया, जिसमें वह आज़ादी के बाद कांग्रेस को एक राजनीतिक दल की बजाय एक समाज सुधार आंदोलन में तब्दील करना चाहते थे. दरअसल, ब्रिटिश राज की समाप्ति के बाद कांग्रेस राज ने सत्ता पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया. शासन व्यवस्था में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं आया, केवल सत्ता पर विराजमान लोगों की चमड़ी का रंग बदल गया. अंत में उनके समर्पित शिष्यों ने उनका साथ छोड़ दिया और विभाजन स्वीकार कर लिया. बाद में उन शिष्यों ने जिन्ना और ब्रिटेन पर विभाजन की सारी ज़िम्मेदारी डालकर खुद को दोषमुक्त कर लिया. दरअसल, उन्होंने गांधी को भरोसे में लिए बिना ही विभाजन को अपनी स्वीकृति दे दी थी. उसके बाद गांधी ने वही किया, जिसमें वह दक्ष थे. उन्होंने विभाजन की नाइंसाफियां सुधारने के क्रम में अपने प्राणों की आहुति दे दी. पाकिस्तान के हक़ की लड़ाई लड़ने की वजह से आज तक उन्हीं के लोगों ने उन्हें माफ़ नहीं किया है. इसी वजह से उनकी हत्या हुई और इसी वजह से उनके हत्यारे की पूजा होती है.

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