भोपाल। धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक मानी जाने वाली दाढ़ी को काटने वाले अब पुलिस कार्यवाही से आजाद हो गए हैं। अदालत ने इन दोषियों को 20 हजार रुपए की जमानत पर रिहा कर दिया है। पूरे कांड में न तो अस्पताल प्रबंधन झुका और न ही जिसकी जमीन पर अस्पताल संचालित हो रहा है, उस वक्फ बोर्ड ने ही कोई कार्यवाही की है। पुलिस की लचर कार्यवाही से आरोपियों को जमानत मिल जाना भी लोगों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है।
करीब एक सप्ताह तक शहर में हलचल मचाए रखने वाले शिफा अस्पताल के दाढ़ी काटे जाने के मामले पर उस समय अचानक चुप्पी छा गई, जब मंगलवार को अदालत ने इस मामले के दोषी मोहसिन और उसके साथियों को जमानत दे दी। हालांकि फरियादी हाफिज अतीक की तरफ से उनके वकील ने जमानत याचिका स्वीकार करने का आवेदन पेश किया था, लेकिन अदालत ने उसे नामंजूर कर दिया।

प्रबंधन की हठधर्मिता
शिफा अस्पताल प्रबंधन इस पूरे मामले में चुप्पी साधे बैठा हुआ है। उसने मोहसिन और उसके साथियों को अपनी कमेटी से बाहर का करार देकर किसी कार्यवाही से इंकार कर दिया। जबकि अगर मोहसिन कमेटी का मेंबर नहीं है तो प्रबंधन को उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाना थी कि उसने उनके परिसर में घुसकर उनके कर्मचारी के साथ मारपीट और दाढ़ी काट देने जैसा जघन्य अपराध कैसे कर दिया। सूत्रों का कहना है कि शिफा अस्पताल प्रबंधन कमेटी में मोहसिन के तीन समर्थक बड़ी पोस्ट पर मौजूद हैं। लेकिन इनके बाहर किए जाने को लेकर भी प्रबंधन ने कोई कार्रवाई नहीं की है।

खामोश वक्फ बोर्ड
मप्र वक्फ बोर्ड अपनी जायदाद पर होने वाले गैर इस्लामी और गैर कानूनी कामों को लेकर खामोश है। लगातार चली बैठकों में इस बात का प्रस्ताव रखा गया था कि बोर्ड शिफा अस्पताल की किरायादारी को खत्म कर दे। लेकिन आरोपी मोहसिन को जमानत मिल जाने के बाद उसने अपनी कार्यवाही का दायरा समेट लिया है। किसी भी वक्फ जायदाद पर होने वाली किसी विवादास्पद गतिविधि पर तत्काल नोटिस जारी करने और कमेटी को बाहर का रास्ता दिखाने वाले बोर्ड की इस मामले में सहजता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। शहर में चल रही चर्चाओं में इस बात को भी शामिल किया जा रहा है कि अस्पताल संचालन में बोर्ड के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों की भी सहभागिता है, जिसके चलते इतना बड़ा कांड हो जाने के बाद भी मोहसिन को बचाए जाने के रास्ते खोजे जा रहे हैं।

कमजोर धाराओं ने दिलाई आजादी
थाना हनुमानगंज ने मामले में शुरू से गंभीरता नहीं दिखाई। बताया जा रहा है पुलिस ने इस मामले को महज एक मारपीट की घटना की तरह संचालित किया। जबकि कानून के जानकारों का कहना है कि इस मामले में धार्मिक भावनाओं को आहत करने और अपहरण करने की धाराएं शामिल की जाना चाहिए थीं। पुलिस ने हाफिज अतीक के घर में घुसकर उनकी पिटाई करने की धारा को मुख्य बताया है। जिसके आधार पर मोहसिन और उसके साथियों को आसान जमानत हासिल हो गई। जबकि मामला हाफिज अतीक को घर से उठाकर ले जाने और अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में पिटाई करने तथा उनकी दाढ़ी काट दिए जाने का है।

अब फरियादी खुद परेशान
मोहसिन को जमानत मिलने के बाद अब आजाद होकर शहर में घूमने लगा है। इसके विपरीत मामले के पीड़ित हाफिज अतीक को थाना हनुमानगंज द्वारा बयान दर्ज करवाने के नाम पर चक्कर लगवाए जा रहे हैं। मंगलवार रात जब वे बयान देने के लिए पहुंचे तो उन्हें ये कहकर लौटा दिया गया कि मामला देख रहे पुलिस अधिकारी अभी मौजूद नहीं हैं, आप बाद में आइए। इधर हाफिज अतीक इस मामले को अब हाई कोर्ट में ले जाने की तैयारी में हैं। साथ ही उन्होंने अपनी चेतावनी को दोहराया है कि अगर उन्हें इंसाफ और गुनहगारों को सजा नहीं मिली तो वे आत्मदाह कर लेंगे। मप्र वक्फ बोर्ड में कार्यवाही की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपने वाले संगठनों ने भी इस पर जवाब लेने के लिए बोर्ड दफ्तर में धावा बोलने की तैयारी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि कानून और अदालत की कार्यवाही अपनी गति से चलती रहेगी, लेकिन बोर्ड को प्राथमिकता से खुद संज्ञान लेकर शिफा अस्पताल की किरायादारी खत्म करना चाहिए।

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