भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए ही ! भारतीय जनता पार्टी जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक ईकाई हैं ! आने वाले दो साल के पस्चात ! 1925 को संघ की स्थापना के सौ साल होने जा रहे हैं ! संघ की स्थापना नागपुर के मोहीते वाडा में स्थापना करने वाले ! डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार, अपनी मेडिकल कॉलेज की पढाई करने के लिए 1910 को कलकत्ता मेडिकल कॉलेज गए थे ! और छ साल पस्चात वहां से 1917 को वापस लौटने के पहले, वह बंकिम चंद्र चॅटर्जी के आनंद मठ उपन्यास से बहुत प्रभावित हुए थे ! उसी तरह विनायक दामोदर सावरकर के ‘हिंदूत्व’ की संकल्पना ! और मराठी संत समर्थ रामदास, यह सभी डॉ. हेडगेवार के हिंदुत्ववादी बनने के लिये काफी महत्वपूर्ण माना जाता है ! हालांकि लोकमान्य टिळक के जीवन काल में, उन्हें कांग्रेस ही अपने हिंदुराष्ट्र के लिए उपयुक्त लग रही थी ! लेकिन 1 अगस्त 1920 को तिलक की मृत्यु और 1920 के दिसंबर में नागपुर कांग्रेस के अधिवेशन में ! अस्पृश्यता के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की कृती ! और महात्मा गाँधी जी के कांग्रेस में बढते हुए प्रभाव को देखते हुए ! हेडगेवार और उनके सहयोगियों को लगने लगा कि ! “अब कांग्रेस में रहकर हिंदूत्ववादी राजनीतिक कार्य करना कठीन है !” क्योंकि गांधी जी के आगमन के कारण ! पहले कुछ चंद पढे – लिखे और उंची जातियों के लोगों की कांग्रेस में चलती थी ! लेकिन गांधी जी के आने के बाद, अब बहुजन समाज से लेकर दलित महिला और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भी शामिल करने की कृती को देखते हुए ! उन्हें लगने लगा कि हमारी और कांग्रेस की यात्रा आगे चलना संभव नहीं है ! तो 1925 के दशहरे के दिन 27 सितंबर को नागपुर में विधिवत रूप से ‘हिंदूओं का हिंदू राष्ट्र के लिए’ संघ की स्थापना की गई है !
बंगाल में नवजागरण की कोशिश के कारण ! टागौर परिवार के सभी सदस्यों का मानवतावादी होने के कारण ! बचपन से ही रविंद्रनाथ टागौर भी ब्रम्हो समाज तथा निराकार इश्वर की कल्पना से प्रभावित रहे ! इसलिए उन्होंने कभी भी किसी भी प्रकार की मूर्ति पूजा नही की ! और 1863 में देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने, 20 एकर जमीन रायपूर के जमींदार भुवन मोहन सिन्हा से ! साल के पांच रुपये के किराये पर लेकर ! पहले एक गेस्टहाउस बनाया ! और उसका नाम रखा गया था शांतिनिकेतन !
रविंद्रनाथ टागौर पहली बार, शांतिनिकेतन 27 जनवरी 1878 में अपने 17 साल की उम्र में गए ! और देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने 1888 मे संपूर्ण संपत्ती के साथ ब्रम्हविद्दालय की स्थापना के लिए एक न्यास बनाया ! जिसमें बादमें 1901 में रविंद्रनाथ टागौर ने उसी जगह पर ब्रम्हचर्याश्रम के नाम से शुरुआत की ! जो बाद में 1925 से पाठाभवन के नाम से जाना जाता है ! रविंद्रनाथ टागौर को 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया ! उसके आठ साल के बाद 23 दिसंबर को 1921 में रविंद्रनाथ टागौर ने विश्वभारती के नाम से शुरुआत की है ! और 1951 में विश्वभारती को प्रथम बार केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया ! और उसके प्रथम व्हाइस चांसलर रविंद्रनाथ टागौर के बेटे रथिंद्रनाथ को बनाया गया था !
और आज इस विश्वविद्यालय में 473 शिक्षक, तथा 7,967 विद्यार्थी जिसमें 3, 591 ग्रॅज्युएशन के और अन्य पोस्ट ग्रॅज्युएट है ! रथिंद्रनाथ टागौर 14 – 5-1951 से 22 – 8-1953 तक विश्वभारती के व्हाईस चांसलर के पद पर कार्यरत थे ! और रथिंद्रनाथ पाठाभवन के पहले विद्यार्थियों में से एक थे ! और वह केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद ! पहले व्हाइस चांसलर लगभग एक साल और तीन महीने रहे ! और उनके बाद अगर व्हाईस चांसलरोकी लिस्ट देखने से पता चलेगा कि ! कौन – कौन लोग उस पदपर थे ! जिसमें क्षितिमोहन सेन, अमात्य सेन के नानाजी से लेकर ! सत्येंद्रनाथ बोस से लेकर अम्लान दत्त ! सव्यसाची भट्टाचार्य और स्थापना के बाद अब तक के विद्युत चक्रवर्ती पच्चीस वे नंबर के है ! और 1951 से आज 2023 तक 72 सालों में ! अक्तूबर 2018 से पांच साल के अपने कार्यकाल में पहली बार कोई व्हाइस चांसलर इतना विवादास्पद रहा है ! यह महाशय विश्वभारती विश्वविद्यालय के व्हाइस चांसलर बनने के पहले ! दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के अध्यापक थे ! और अक्तूबर 2018 को उन्हें वर्तमान समय की केंद्र सरकारने शांतिनिकेतन में ! विश्वभारती के व्हाइस चांसलर बनाने के बाद से ! वर्तमान सरकार हिंदूत्ववादी विचारोकी है ! यह देखकर, विद्युत चक्रवर्ती ने पदभार संभालने के तुरंत बाद ! रविंद्रनाथ टागौर ने शुरू किया पौष मेला, जिसमें शांतिनिकेतन के अगल – बगल के गांव के लोगों की मुखतः संथाली और बाऊल संप्रदाय के लोग ! अपने बने बनाएं वस्तुओं तथा लोककला के प्रदर्शन करते थे ! जो इन्होंने बंद कर दिया ! उसी प्रकार जनसंघ के संस्थापक श्री. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का विश्वभारती विश्वविद्यालय के साथ किसी भी प्रकार का संबंध न रहते हुए ! उनके फोटो शांतिनिकेतन के हर लॅम्पपोस्ट के उपर लगाने का औचित्य ! सिर्फ वर्तमान सत्ताधारी दल को खुश करने के सिवाय और कोई कारण नहीं दिखाई देता है !
उसी तरह प्रोफेसर अमात्य सेन के पुस्तैनी मकान को लेकर अजिबोगरीब विवाद पैदा करने की कृती को क्या कहेंगे ? अभी हप्ताह भर पहले ही पता चला है ! “कि बिरभूम जिला प्रशासन ने अमात्य सेन के पूर्वजों के मृत्युपत्र के अनुसार अमात्य सेन के शांतिनिकेतन के पुश्तैनी मकान का नामांकन उनके नाम पर किया गया है !” लेकिन विद्युत चक्रवर्ती ने देखा कि वर्तमान सरकार की गलत नीतियों के अमात्य सेन आलोचक है ! तो उन्हें परेशान कर के ! वर्तमान सरकार को खुश करने के सस्ते हथकंडे के रूप में ! अमात्य सेन के पुश्तैनी मकान, जो उनके नानाजी क्षितिमोहन सेन ने अपने खुद के पैसों से बनाया घर, और उसके चारों ओर की जमीन को लेकर, काफी विवाद निर्माण करने की टुच्ची हरकत करने का काम किया था !
उसी तरह विद्यार्थियों की किसी समस्या को लेकर कोई विवाद था ! और उसे लेकर विद्यार्थियों का धरना प्रदर्शन पर खुद विद्युत चक्रवर्ती ने पत्थर फेकने के मिडिया में फोटो और न्यूज छपी है ! शायद भारत के शैक्षणिक इतिहास में कोई व्हाइस चांसलर खुद अपने हाथ में कानून लेकर विद्यार्थियों के उपर हमला करने की कृती पहली ही होगी !
और सबसे हैरानी की बात, अमित शाह या राजनाथ सिंह जो ! नही शिक्षा मंत्री है ! और नही उनका विश्वभारती के साथ कोई संबंध है ! उन्हें बुलाकर मां तारा की फोटो देना ! सांस्कृतिक दारिद्रता का प्रदर्शन करने की कृती मानी जायेगी !
महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने 1863 में यानी ढेढ सौ साल पहले शुरूआत किया गया निर्गुण निराकार परमेश्वर की आराधना के लिए ! विशेष रूप से रायपुर के जमिंदार भुवनेश्वर सिन्हा से जमीन को लेकर ! प्रार्थनाघर बनाने से ही विश्वभारती विश्वविद्यालय की निंव डाली गई है ! यह टागौर परिवार के सांस्कृतिक परंपरा का घोर अपमान है ! सबसे मुख्य बात इस तरह के राजनेताओं को जिनका पूर्व चरित्रों को देखते हुए ! उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय के प्रांगण में आमंत्रित करने की कृती ही गलत है ! लेकिन आर एस एस के हिंदुत्ववादी अजेंडे के अनुसार ! विश्वभारती के संस्थापकांपको के मुल उद्येश्य को खत्म करने की साजिश के तहत ही ! इस तरह के धार्मिक आडंबर के कार्यक्रम करना जारी है ! विद्युत चक्रवर्ती की गलतफहमी है ! कि जीवन भर के लिए भारतीय जनता पार्टी का राज रहेगा ! इसलिए वह उन्हें खुश करने के लिए यह सब आडंबर कर रहे हैं ! लेकिन वह भी अपने कार्यकाल के बाद ! उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय से एक न एक दिन जाना ही होगा ! लेकिन पांच सालों से विश्वभारती विश्वविद्यालय की इज्जत को मट्टीपलित करने के लिए ! वह विशेष रूप से याद किए जायेंगे !
डॉ सुरेश खैरनार 26, फरवरी 2023, नागपुर