पाकिस्तान के चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाकर प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के इस्तीफे की मांग को लाकर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता इमरान खान और पाकिस्तान आवामी तहरीक (पीएटी) के रहनुमा और धर्म गुरु मौलान ताहिरुल कादरी का धरना प्रदर्शन शुरू हुए दो महीने से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन अभी तक इस का कोई नतीजा दिखता हुआ नज़र नहीं आ रहा है. दोनों पक्ष अपने-अपने पुराने रुख पर कायम हैं. जहां प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ इस गतिरोध से निपटने के लिए आला अधिकारीयों और सेना से संपर्क बनाए हुए हैं. अभी सेना, विपक्ष और सरकार के साथ-साथ पाकिस्तान की सत्ता में अपनी भूमिका तलाश कर रही न्यायपालिका ने भी नवाज़ शरीफ और अन्य लोगों पर हत्या, हत्या की कोशिश और आतंकवाद के इलज़ाम में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दे कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली. यह एफआईआर विगत सितंबर की घटना के क्रम में पीटीआई ने दर्ज कराई है, जिसमें पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झ़डप की वजह से तीन प्रदर्शनकारी मारे गए थे और काफी लोग ज़ख़्मी हुए थे. ज्ञात हो कि नवाज़ शरीफ पर पीएटी के लॉन्ग मार्च पर हुई फायरिंग, जिसमें पीएटी के कार्यकर्ता मारे गए थे, के सिलसिले में एक मुक़दमा चल रहा है.
बहरहाल, इमरान खान के तेवर को देख कर ऐसा लगता है कि जैसे वह अपनी राजनीतिक जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं. क्योंकि प्रदर्शन करते दो महीने बीत जाने के बाद भी वह अपनी सभी मांगो पर अड़े हुए हैं. इमरान चूंकि क्रिकेट से राजनीति में आए हैं इसलिए वह राजनीति का खेल भी क्रिकेट की तरह खेल रहे हैं. वह नवाज़ शरीफ पर बाउंसर पर बाउंसर फेंके जा रहे हैं जिसको नवाज़ ख़ामोशी के साथ डक करते (छोड़ते) जा रहे हैं. हालिया दिनों में इमरान खान ने एक नई रणनीति अपनाई है, वह खुद धरना प्रदर्शन तो कर ही रहे हैं साथ में विपक्षी दलों की रैलियों में अपने कार्यकर्ताओं को भेज कर नवाज़ विरोधी नारे लगवा रहे हैं. कराची में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की रैली का हवाला देते हुए कहा कि उनके कार्यकताओं ने इस रैली में गो नवाज़ गो का नारा लगाया. कई समीक्षकों का मानना है कि इमरान ऐसा इसलिए करवा रहे हैं ताकि प्रतिक्रिया में ये दल कोई हिंसात्मक करवाई करें जिसका वह भरपूर फायदा उठाते हुए ज्यादा से ज्यादा नौजवानों को अपने साथ जोड़ सकें. अभी हाल ही में उनकी मुल्तान रैली में मची भगदड़ में लोगों की मौत हो गई. इस घटना की ज़िम्मेदारी भी इमरान सरकार के सिर मढ़ रहे हैं.
दूसरी तरफ नवाज़ शरीफ अपने बचाव की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं, जिसमें विलंब की रणनीति अपनाना अहम है. इसी निति पर काम करते हुए हए उन्होंने पुलिस को हुक्म दिया था कि प्रदर्शनकारियों पर किसी तरह का बल प्रयोग न किया जाये. नवाज़ फूंक-फूंक कर अपने क़दम उठा रहे हैं. वह सेना और प्रशासन से लगातार संबन्ध बनाये हुए हैं. हालिया दिनों में नवाज़ ने वायु सेना प्रमुख से मिल कर देश के कबायली इलाकों में तालिबान के खिलाफ चल रही सैन्य कार्रवाई में पाकिस्तानी वायु सेना की भूमिका की सराहना कर चुके हैं, और सेना के अधिकारीयों से मिल कर मौजूदा गतिरोध को ख़त्म करने के उपायों पर बात चीत कर चुके हैं. इमरान खान और तहिरुल कादरी के धरना प्रदर्शन के शुरुआत में सेना एक मध्यस्थ की भूमिका में नज़र आ रही थी. सेना प्रमुख जेनरल राहिल शरीफ ने सरकार को भरोसा दिलाया था कि वह सरकार के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे. लेकिन पाकिस्तान में मौजूद राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाते हुए सेना मध्यस्थ की भूमिका छा़ेडकर कब सक्रीय राजनीतक भूमिका में उतर आएगी कुछ कहा नहीं जा सकता है. पाकिस्तानी अख़बारों में सितंबर में छपी एक रिपोर्ट मुताबिक सेना प्रमुख ने इमरान खान को उनकी पांच मांगें पूरी कराने का भरोसा दिलाया था, हालांकि इसमें प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग शामिल नहीं थी. इसके बावजूद राजनीतिक अस्थिरता बरक़रार रहना, उस आरोप को मजबूती देता है कि इमरान खान सेना के हाथ की कठपुतली मात्र हैं.
वहीं पिछले दिनों पाकिस्तान की राजनीति से निर्वासित और अपने राजनीतक अस्तित्व की आखिरी लड़ाई लड़ रहे पूर्व मिलिटरी डिक्टेटर जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने भारत के खिलाफ एक नया शिगूफा छोड़ा है. वह कहते हैं कि पाकिस्तान को कश्मीर में भारत के खिलाफ लड़ रहे लोगों को और भड़काना चाहिए. देशद्रोह और हत्या जैसे गंभीर मामलों में जमानत पर बाहर आए मुशर्रफ ने ये भी कहा कि पाकिस्तान के लाखों लोग कश्मीर के लिए लड़ने को तैयार हैं. दरअसल पाकिस्तान के मौजूदा राजनीतिक संकट से जनरल मुशर्रफ की भूमिका सेना की भूमिका पर भी सवाल खड़ा करती है. पिछले दिनों मुशर्रफ की पार्टी आल पाकिस्तान मुस्लिम लीग ने एक बयान में कहा था कि पाकिस्तान में चल रहा गतिरोध जनरल मुशर्रफ पर चल रहे देशद्रोह के मुक़दमे की वजह से है.
नवाज़ शरीफ पूर्व में भी एक बार सेना के हाथों तख्ता पलट का कड़वा स्वाद चख चुके हैं. जहां तक पाकिस्तानी ़ङ्गौज और सत्ता के संबंध का सवाल है तो यहां इतिहास खुद को बहुत
जल्दी-जल्दी दोहराता है. वर्ष 1999 में जब परवेज़ मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ का तख्ता पलटा था तो वहां कामोबेश आज के जैसे ही हालात थे. सत्ताधारी दल के विरुद्ध लोगों में गुस्सा था. राजनेताओं के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे. ़ङ्गौज ने सरकार को विश्वास में लिए बिना भारत के साथ अपने अघोषित युद्ध के क्रम में कारगिल युद्ध का दुस्साहस किया था. कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद ़ङ्गौज ने नवाज़ का तख्ता पलट दिया था. अगर हाल के घटनाक्रम पर नज़र डाली जाये तो पाकिस्तान की ओर से सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन किया गया. भारत ने सख्त रुख अपनाते हुए जवाबी करवाई की जिसकी वजह से पाकितान को झुकना पड़ा. इस मामले के ऊपर प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की ख़ामोशी पर पाकिस्तान में उनकी आलोचना हो रही है. वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री की तुलना में उन्हें कम तवज्जो मिली जिसकी वजह से पाकिस्तान में उनकी लीडरशिप पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि नवाज़ शरीफ को किसी साजिश का शिकार तो नहीं बनाया जा रहा है? और क्या नवाज़ शरीफ की इस सरकार का भी वही हश्र होगा जो 1999 में हुआ था?
Adv from Sponsors