बिहार के सबसे बड़े मगध विश्वविद्यालय में पिछले तीन दशक से वित्तीय अनियमितता, फर्जी डिग्री घोटाले समेत अनेक तरह की गड़बड़ियों की जांच होती आ रही है. जांच कमेटियों के सदस्य जांच में सक्रियता भी दिखाते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद जांच कमेटी की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है या फिर जांच कमेटियां ही सुस्त हो जाती हैं. आखिर में नतीजा यह निकलता है कि मगध विश्वविद्यालय में गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती.
पुन: नए मामले आने पर इसी तरह की जांच शुरू होती है और कुछ दिनों के बाद फिर वही स्थिति आ जाती है और जांच बेमानी साबित होती है. जब तक जांच होती है, तब तक आरोपी सेवानिवृत्त हो जाते हैं या फिर अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद विश्वविद्यालय छोड़ देते हैं. बिहार सरकार के निगरानी विभाग द्वारा 120 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता एवं 2011 से अब तक की गई पीएचडी की डिग्री की जांच की जा रही है. पीएचडी की डिग्री के मामले में पता चला है कि कई विदेशियों को बिना भारत आए ही पीएचडी की डिग्री प्रदान कर दी गई है.
इस मामले को लेकर लोगों का कहना कि यह जांच भी आने वाले समय में बिना परिणाम के ही समाप्त हो जाए, तो कई आश्चर्य नहीं होगा. इससे पूर्व में भी मगध विश्वविद्यालय में अनेक बड़े भ्रष्टाचार के मामले आए और उसकी जांच भी शुरू हुई, लेकिन उसका परिणाम शून्य रहा. पूर्व आईएएस अभिमन्यु सिंह जब मगध विश्वविद्यालय के कुलपति थे, तब बौद्ध अध्यन विभाग के प्रधान डॉ. वाईके मिश्र के द्वारा एक सौ पीएचडी कराए जाने की जांच के लिए राजभवन से कमेटी गठित की गई थी.
उस समय यह मामला अखबारों की सुर्खियां बना था. लेकिन यह भी मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. मगध विश्वविद्यालय की स्थापना 1 मार्च 1962 को हुई थी. तब से दो दशक तक मगध विश्वविद्यालय एक आदर्श गुरुकुल के रूप में पूरे देश में चर्चित था. इसके प्रथम कुलपति डॉ. केके दत्ता मगध विश्वविद्यालय को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में शामिल कराना चाहते थे और उनका प्रयास भी सफल रहा. तब मगध विश्वविद्यालय के विभागों के प्रधान इस विषय के देश के जाने-माने विद्वान हुआ करते थे.
दो दशक तक मगध विश्वविद्यालय बिहार ही नहीं देश के अच्छे विश्वविद्यालयों में शामिल रहा. लेकिन कुछ समय बाद इस विश्वविद्यालय में अनेक तरह की गड़ब़डियों की शुरुआत होने लगी. मगध विश्वविद्यालय के स्थापना के समय ट्रेजरर का पद भी स्वीकृत था. इस पद पर शहर के जाने-माने अधिवक्ता रमाबल्लभ प्रसाद सिंह को पदस्थापित किया गया था. वह कड़क मिजाज और ईमानदार पदाधिकारी के रूप में जाने जाते थे. उनके कार्यकाल के दौरान कभी किसी तरह की वित्तीय अनियमितता नहीं हुई. वह मगध विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों और कर्मचारियों को कोई भी गलत काम नहीं करने देते थे.
उसी समय 1974 में एक आईएएस को मगध विश्वविद्यालय का कुलपति बनाकर भेजा गया. कुलपति के गलत कामों पर टेजरर रमाबल्लभ प्रसाद सिंह रोक लगा देते थे. तब आईएएस कुलपति ने बिहार सरकार को लिखित पत्र देकर विश्वविद्यालय से टेजरर का पद ही समाप्त करा दिया. उसके बाद कुलपति को मनमानी करने की छूट मिल गई. उसके बाद मगध विश्वविद्यालय में वित्तीय अनियमितता के मामले भी बढ़ने लगे, जबकि इससे पूर्व 1969-70 में गणित के एक प्राध्यापक राम शरण प्रसाद ने परीक्षा के पूर्व ही प्रश्न पत्र आउट कर दिया.
तब विश्वविद्यालय प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई करते हुए उन्हें अपने पद से हटा दिया, लेकिन आज स्थिति बदल गई है. 1975-76 में तत्कालीन कुलपति डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद की कुलपति निवास में रहस्यमय मौत के पीछे भी कई मामले थे. मगध विश्वविद्यालय के प्राध्यापक नलिन के शास्त्री के खिलाफ एक सत्र में टीए के पांच लाख रुपये निकाले जाने के मामले में जांच कमेटी बैठी थी. यही कारण था कि कमीशन से मगध विश्वविद्यालय के रजिस्टार के लिए अधिसूचना के बाद भी वे रजिस्टार नहीं बने सके थे. तत्कालीन परीक्षा नियत्रंक रामदेव यादव और उप परीक्षा नियंत्रक एसएस वल्खी पर भी फर्जी डिग्री घोटाले का आरोप लगा था.
उसके बाद जांच कमेटी भी बनी, लेकिन यह नहीं पता चला कि जांच का क्या हुआ. मगध विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग के प्रधान डॉ. बीएन पांडेय जब सीसीडीसी थे, तब उन पर भी राशि गबन का आरोप लगा था. उनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हुई थी और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था, लेकिन सभी मामलों की तरह यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. डॉ. बलबीर सिंह भशीन जब मगध विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति थे, तब उन्होंने अपनी प्राध्यापक पत्नी का पूरा एरियर तमाम नियमों को ताख पर रखकर निकाल लिए थे. इस ममाले में भी जांच बैठी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ. शिखा गुप्ता फर्जी डिग्री घोटाला कांड मगध विश्वविद्यालय का चर्चित डिग्री घोटाला था.
शिखा गुप्ता गया के तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक अनुराग गुप्ता की पत्नी थीं. मगध विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से बिना परीक्षा दिए ही शिखा गुप्ता को डिग्री दे दी गई. तब यह मामला पूरे देश में चर्चित हुआ था. लेकिन मगध विश्वविद्यालय ने इस मामले की भी लीपापोती कर छोड़ दिया और आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. उसी प्रकार 2006 में डॉ. बीएन पांडेय मगध विश्वविद्यालय के कुलपति बने. दशकों से मगध विश्वविद्यालय में बिगड़ी व्यवस्था को रास्ते पर लाने का श्रेय उन्हें जाता है. लेकिन कार्यकाल पूरा करते ही बीएन पांडेय पर भी वित्तीय अनियमितता के आरोप में प्राथमिकी दर्ज हुई. लेकिन सभी की तरह उनके ऊपर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.
मगध विश्वविद्यालय में किसी तरह की गड़बड़ी की जांच तो शुरू होती है, लेकिन जांच को अपने अंजाम तक पहुंचने से पहले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. मगध विश्वविद्यालय में गड़बड़ी होने का मूल कारण यह है कि कुलपति या प्रति कुलपति के पद पर आने वाले लोग तीन साल के बाद चले जाते हैं, लेकिन गड़बड़ी करने वाले पदाधिकारी और कर्मचारी विश्वविद्यालय के ही होते हैं. यही कारण है कि हर नए आने वाले कुलपति को कई गुटों में बंटे मगध विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचारियों का समूह अपने हिसाब से सलाह देकर गुमराह करने का प्रयास करता है. यही वजह है कि मगध विश्वविद्यालय में वित्तीय गड़बड़ी और फर्जी डिग्री के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और जांच होने के बाद भी कोई परिणाम नहीं निकलता है.