प्रधानमंत्री कहते हैं कि 70 साल में कुछ नहीं हुआ. ये एक फर्जी बात है. 70 साल में अटल बिहारी वाजपेई का भी छह साल का राज शामिल है. तीन साल का मोरारजी भाई का राज भी शामिल है, जिसमें अटल बिहारी वाजपेई विदेश मंत्री थे. क्या भाजपा को अपने लोगों की भी परवाह नहीं है? इनको तो अपने लोगों की भी परवाह नहीं है. गुजरात इलेक्शन का मूल संदेश यह है कि लोगों ने कहा कि भाजपा हमें फॉर ग्रांटेड न ले. भाजपा दोबारा भी जीत सकती है, लेकिन काम के आधार पर. 56 ईंच की छाती और मुसलमानों को गाली देकर चुनाव नहीं जीत सकते. इधर, गुजरात चुनाव में जब से राहुल गांधी का व्यक्तित्व बढ़ा, भाजपा का रुख भी नरम हुआ है. गुजरात चुनाव में जो पत्रकार दो-दो महीने तक वहां रहे, उनका कहना है कि अगर प्रधानमंत्री 37 रैली नहीं करते और ये कह कर अपनी इज्जत दांव पर नहीं लगा देते कि मैं गुजराती हूं, यहां का हूं, तो शायद 55 सीटें भी नहीं मिलतीं. देश ने कभी भी प्रधानमंत्री को चुनावी फायदे के लिए इतने निचले दर्जे का भाषण देते नहीं देखा. लेकिन, पार्टी को जिताना है तो शिकायत नहीं कर सकते. 2019 में लोकसभा का चुनाव है और डेढ़ साल में कांग्रेस कोई चमत्कार कर दे, ऐसा नहीं लगता. मोदी चमत्कार करने की कोशिश करेंगे, तो फिर मुंह की खाएंगे. यह चमत्कारों का देश नहीं है. यह देश जिम्मेदार आदमियों का देश है. यह कृषि प्रधान देश है. किसान शेयर बाजार में रुपया नहीं लगाता है कि एक दिन ऊपर चला गया, एक दिन नीचे चला गया. आकाश देखता है कि इस साल नहीं तो अगले साल बारिश होगी. किसान बहुत सहनशील व्यक्तित्व का होता है. सरकार किसानों को दोगुनी आय की जगह 25 फीसदी आय कर दे, यही बहुत बड़ी बात होगी. इसके लिए सरकार को काम करना पड़ेगा. सिर्फवादे से काम नहीं होगा. भाजपा सिर्फवही वादे करे जो पूरे हो सकते हैं. जो वादे पूरे न हो, उसके लिए माफी मांग लेनी चाहिए.

अमित शाह ने एक बार कहा कि 15 लाख रुपए जुमला था. जुमले की भी एक सीमा होती है. ये ठीक है कि भारत के लोग अभी भी पूर्ण शिक्षित नहीं हैं, लेकिन सब समझते हैं. 1977 में इंदिरा गांधी ने इमर्जेंसी लागू की, तो कांग्रेसी यही यही कहते थे कि गांव वालों को क्या मालूम? गांव वालों ने इंदिरा सरकार को उठा कर बाहर फेंक दिया. ये 40 साल पहले की बात है. आज तो जनता ज्यादा सजग है और जागरूक भी. सरकार प्रेस को पैसे से खरीद सकती है. लेकिन जो आम लोग हैं, जो गरीब हैं, उसे कैसे मैनेज करेंगे? गरीब बोल नहीं रहा है, लेकिन वो समझ सब रहा है. गुजरात के गांवों में कांग्रेस को भाजपा से दोगुनी ज्यादा सीटें मिली हैं. शहरी लोगों से भाजपा डरती है. अब अगर किसान को उसकी लागत का रुपया मिले, तो इसके लिए अनाज का पैसा तो वही देगा न जो शहर में बैठा हुआ खरीद कर उसे खा रहा है.  एक अंतिम बात ये कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का कई देशों ने तब बहिष्कार कर दिया, जब ये मालूम पड़ा कि इसमें मैनिपुलेशन हो सकता है. एक आदमी बैलेट पेपर पर ठप्पा लगाता है, तो इसका मैनिपुलेशन तो नहीं हो सकता है. कभी भी इसे रिकाउंट कर सकते हैं. न्यू इंडिया छोड़िए, देश को उसका ओल्ड इंडिया वापस कर दीजिए. देश ओल्ड इंडिया से काफी खुश था. मोदी फिर जीतें, 15 साल प्रधानमंत्री रहें. इससे किसी को कोई समस्या नहीं है. हर पांच साल पर जनता सरकार चुनती है. लेकिन, अगर चुनाव आयोग पीएमओ की बात सुनकर अपनी विश्वसनीयता दांव पर लगाएगा, तो फिर यह खतरनाक है. तब भारत भी अफ्रीकी देश की तरह हो जाएगा. अब देश के लिए और सरकार के लिए भी जागने का समय आ गया है.

 

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