सावित्री यूनानी मूल के फ्रांसीसी नागरिक मैक्सिम पोर्तास और अंग्रेज महिला जूलिया पोर्तास की पुत्री थीं. सावित्री देवी ने बहुत कम उम्र में ही अपना एक राजनीतिक रुझान निश्चित कर लिया था. उनका शुरुआती राजनीतिक रुझान यूनानी राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ था. साबित्री ने फिलॉसफी और कमेस्ट्री में परास्नातक किया था.
सावित्री देवी एक ऐसी जासूस थीं जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिटलर की नाजी सेना और धुरी राष्ट्रों के लिए मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध जासूसी की थी. उनका वास्तविक नाम मैक्सिमियानी पोर्तास था. उनका जन्म 30 सितंबर 1905 को हुआ था. वे जानवरों के अधिकारों के लिए भी काम किया करती थीं. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध बीत जाने के बाद नाजीवाद के पक्ष में मूवमेंट चलाने और उसे आगे बढ़ाने को लेकर काफी काम किया था.
वे जर्मनी के नेशनल समाजवाद की प्रशंसक थीं. इसके अलवा वे एक ईसाई होने के बावजूद हिंदू धर्म की समर्थक थीं. उनका हिटलर में इतना विश्वास था कि वे उसे भगवान विष्णु का अवतार मानती थीं. वो ऐसा मानती थीं कि जर्मनी का तानाशाह हिटलर मानवता के लिए बलिदान कर रहा था और उसके प्रयासों से कलियुग का अंत होगा. वे यहूदियों को शैतानी ताकत मानती थीं और उनके विरोध में किसी भी हद तक जाने को तैयार थीं. उनके लेखों की वजह से नवनाजीवाद काफी प्रभावित था.
सावित्री यूनानी मूल के फ्रांसीसी नागरिक मैक्सिम पोर्तास और अंग्रेज महिला जूलिया पोर्तास की पुत्री थीं. सावित्री देवी ने बहुत कम उम्र में ही अपना एक राजनीतिक झुकाव निश्चित कर लिया था. उनका शुरुआती राजनीतिक रुझान यूनानी राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ था. सावित्री ने फिलॉसफी और कमेस्ट्री में परास्नातक किया था. उन्होंने फ्रांस के नियोल विश्वविद्यालय से फिलॉसफी विषय में अपने डॉक्टरेट पूरी की थी. इसके बाद से यूनान चली गईं जहां उन्होंने पुरातात्विक इमारतों के बारे में अध्ययन किया और स्वास्तिक के बारे में अध्ययन किया. उनका यह निष्कर्ष था कि प्राचीन समय के यूनानी लोग वास्तविकता आर्य थे.
साल 1928 के आस-पास उन्होंने फ्रेंच नागरिकता छोड़ दी और यूनान की नागरिकता ले ली. साल 1932 में वे आर्यन थ्योरी की तलाश में भारत आईं और हिंदू नाम ग्रहण किया था. वे हिंदू संस्कृति से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने भारत में यहूदी और ईसाईयों के खिलाफ एक मिशनरी के तौर पर भी काम करना शुरू कर दिया. इस दौरान धुरी राष्ट्रोंके लिए भारत में माहौल बनाने का काम भी किया करती थीं.उन्होंने इस काम को करने के लिए धुरी राष्ट्रों की तरफ से सहयोग भी मिलता था. भारत के भी कई वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उनसे संपर्क में रहा करते थे. वे सुभाष चंद्र बोस के भी संपर्क में आईं और अपने संपर्क सूत्रों के जरिये सुभाष चंद्र बोस को जापान के महाराजा से मिलवाने में मदद की.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सावित्री देवी ने धुरी राष्ट्रों के पक्ष में काम करना शुरू किया. लेकिन उनके इस निर्णय से उनकी मां काफी क्रोधित थीं क्योंकि वे खुद मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर काम कर रही थीं. उनकी मां का मानना था कि धुरी राष्ट्रों ने दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध में ढकेलने का काम किया है. 1940 में उन्होंने एक नेशनल सोशलिस्ट असित कृष्ण मुखर्जी से शादी की. असित जर्मनी समर्थक समाचार पत्र न्यू मर्करी के संपादक थे.
सावित्री और असित दोनों ही मित्र राष्ट्रों के अधिकारियों के संपर्क में रहते थे. वे मित्र राष्ट्रों के अधिकारियों से ज्यादा संख्या में परिचय बनाने का प्रयास भी किया करते थे जिससे उनके गोपनीय जानकारियां उगलवाकर वे धुरी राष्ट्रों के देशों तक पहुंचा सकें. वे इन गोपनीय जानकारियों को साधारणतया जापान तक पहुंचाया करते थे और इन्हीं जानकारियों के आधार पर धुरी देश मित्र देशों के एयर और मिलिट्री बेस पर हमले किया करते थे.
जब द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति हो गई तो सावित्री यूरोप की यात्रा पर गईं. इसके बाद कई देशों की यात्रा कर वे जर्मनी पहुंची जहां पर उन्होंने गोपनीय तरीके से कई हजार पैम्फलेट लिखे और लोगों तक पहुंचाए. उनका मानना था कि नाजी विचारधारा के नेशनल सोशलिजम को देश के लोगों को अपनाना चाहिए और उसका समर्थन करना चाहिए.
उनकी इन सब गतिविधियों की वजह से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल की सजा सुनाई गई. जेल में रहने के दौरान उन्होंने नाजी कैदियों के साथ मित्रता बना ली थी. जेल से निकलने के बाद उन्हें जर्मनी से निष्काषित कर दिया गया था. इसके कुछ साल बाद वे एक बार फिर किसी तरह से जर्मनी चली गईं और वहां पर आर्यन और हिटलर की नाजी पार्टी को मिलाकर एक किताब लिखी जिसका नाम था पिलग्रिमेज.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नाजी विचारधारा को कहीं भी पसंद नहीं किया जा रहा था लेकिन सावित्री उसके प्रचार प्रसार को लेकर गोपनीय रूप से लगातार सक्रिय रहीं. उन्होंने पूरी कोशिश की कि लोग एक बार फिर नाजियों के साथ जुड़ें लेकिन उनकी मुहिम काम न आ सकी. 1970 के दशक के आखिरी में उनकी आंखें कमजोर हो गईं थी. उनकी तबियत लगातार खराब रहने लगी. वे भारत छोड़ कर 1981 में फ्रांस चली गईं जहां अपने आखिरी दिन उन्होंने गुजारे. साल 1982 में उनकी मौत
हो गई.
दरअसल सावित्री देवी सिर्फ एक जासूस नहीं थीं बल्कि वह कई क्षेत्रों में काम किया करती थीं. आर्यन थ्योरी को लेकर उन्होंने हिटलर के नाजीवाद का भी समर्थन किया.