kaberकबीरपंथ के प्रमुख एवं कबीरचौरा मठ के महंत आचार्य पीठाधीश्‍वर संत विवेकदास आचार्य ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखकर संत कबीर की ऐतिहासिक जन्मस्थली के इर्द-गिर्द फैली गंदगी और बदहाली को लेकर गहरी चिंता जाहिर की है. बसपा नेता के दबाव में आकर वाराणसी प्रशासन द्वारा उक्त स्थल पर तोड़-फोड़ किए जाने को तत्काल रोकने की मांग की गई है. उन्होंने मुख्यमंत्री को संबोधित पत्र में लिखा है कि कबीर जन्मस्थली के पास दस-बीस घरों की एक बस्ती है, जिसे बसपा का वोटबैंक बता कर संरक्षण दिया जा रहा है. स्थानीय बसपा नेता के दबाव में आकर वाराणसी प्रशासन संत कबीर की ऐतिहासिक जन्मस्थली में तोड़-फोड़ कर बस्ती के लिए इस स्थान पर शौचालय बनाने का कुचक्र रच रहा है. जबकि जन्मस्थली में पहले से ही 20 सुलभ शौचालय बने हुए हैं जिसकी कोई मरम्मत नहीं कराई जाती है.
संत विवेकदास आचार्य ने मुख्यमंत्री को बताया है कि कबीर जन्मस्थली के मुख्य द्वार पर कृषि विभाग और विधानसभा (रकबा-255) के नाम से कुछ जमीन है. कुछ वर्ष पूर्व दलितों को आगे कर प्रशासन की मदद से कुछ लोगों ने इस भूमि पर कब्जा कर लिया था. जब यह बात वाराणसी के तत्कालीन आयुक्त को पता चली तो अवैध कब्जा हटाकर आयुक्त ने अपने फंड से इसकी चारदीवारी बनवाई और इसमें एक कबीर स्तंभ का निर्माण भी कराया. अब इसी चारदीवारी और स्तंभ को प्रशासन तोड़ना चाहता है. उक्त चारदीवारी को तोड़ने से रोकने लिए महंत विवेक दास ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से अनुरोध किया है.
वाराणसी के लहरतारा में स्थित कबीर की जन्मस्थली की देखरेख और उसका संचालन कबीरचौरा मठ मूलगादी करता आ रहा है. कुछ वर्ष पहले सरकार की मदद से वाराणसी विकास प्राधिकरण ने कबीर की जन्म स्थली पर एक विशाल कबीर सभा भवन का निर्माण कराया था. साथ ही वाराणसी विकास प्राधिकरण ने पुरातत्व विभाग से इस स्थल और वहां पर सरोवर विकसित करने के लिए गोद भी ले रखा है. यहां आने वाले पर्यटकों के लिए परिसर को लाइट और पेड़ पौधों से सुसज्जित किया गया है. सरोवर को स्वच्छ रखने के लिए सुलभ शौचालय भी बनाए गए थे, लेकिन इन शौचालयों का रख-रखाव करने वाला कोई नहीं है. लहरतारा सरोवर ही वह जगह है, जहां कबीर नवजात शिशु के रूप में नीरू-नीमा नामक दम्पत्ति को मिले थे. पहले लहरतारा सरोवर 17 एकड़ में फैला था और आज भी कागज पर सरोवर इतने ही एकड़ में दर्ज है. लेकिन पुरातत्व विभाग के पास केवल पांच एकड़ सरोवर शेष बचा हुआ है. संत विवेकदास आचार्य के अनुसार भूमाफिया ने सरोवर को पाटकर उसके ऊपर अवैध भवन निर्माण कर लिए हैं. कुछ वर्ष पूर्व वाराणसी प्रशासन ने सरोवर की अवैध बंदोबस्ती को निरस्त कर दिया था. साथ ही लहरतारा सरोवर से अवैध निर्माण हटाने का निर्देश जारी किया गया था. लेकिन इसके बाद अवैध कब्जेदारों ने हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और अभी भी लोग वहां जमे हुए हैं.
संत विवेकदास आचार्य ने पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानंद द्वारा कबीर के प्राकट्य स्थल के निर्माण के प्रस्ताव का भी जिक्र किया है. वे लिखते हैं कि वर्ष 1954 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानंद ने कबीरचौरामठ के तत्कालीन महंत जी से कबीर प्राकट्य स्थल के निर्माण के लिए सरकारी मदद की बात कही थी, लेकिन महंत जी ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. उन्होंने कहा था कि हम शासन की मदद से कबीर स्थल का निर्माण नहीं कराना चाहते. महंत जी की उस समय जो भी दृष्टि रही हो, लेकिन कबीर जन्मस्थली आज भी वीरान और उपेक्षित है. यह बिलकुल सही है कि इसके बाद कितने मुख्यमंत्री आए, लेकिन किसी ने भी कबीर जन्मस्थली के पुनर्निर्माण पर ध्यान नहीं दिया. वर्ष 2006 में इस स्थल पर एक भव्य और अनोखे स्मारक की योजना तैयार की गई थी, जिसकी आधारशिला तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने रखी थी. लेकिन उसका निर्माण कार्य आज तक शुरू नहीं हो पाया. वाराणसी से सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झील के सौंदर्यीकरण और इसके विकास के लिए सात करोड़ रुपये दिए हैं. उन्होंने आगे भी इसके विकास के लिए धनराशि देने की बात कही है. संत विवेकदास आचार्य ने पत्र में लिखा है कि मुख्यमंत्री जी जिस काम को उत्तर प्रदेश सरकार को करना चाहिए था, उस काम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथ ले लिया है, क्योंकि उनको मालूम है कि संत कबीर का पूरे देश में सर्वाधिक प्रभाव है.
गौरतलब है कि प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती हों या तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सभी ने कबीर की जन्मस्थली की उपेक्षा की. इतना ही नहीं अब सपा सरकार में इस ऐतिहासिक स्थल के साथ छेड़छाड़ भी शुरू हो गई है. संत विवेकदास आचार्य ने अपने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया है कि प्रशासन के चारदीवारी तोड़ने के निर्णय के खिलाफ स्थानीय लोगों, कबीर भक्तों और साधु-संतों में काफी गुस्सा है. उन्होंने चेतावी देते हुए लिखा है कि प्रशासन ने अगर इसे तोड़ने की कोशिश की, तो उसको इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा. आचार्य ने लिखा है कि अगर मुख्यमंत्री ने समय रहते प्रशासन को इसे तोड़ने से नहीं रोका तो वाराणसी में किसी अप्रिय घटना से इंकार नहीं किया
जा सकता है.

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