हमारे मागोवा ग्रुप के प्रमुख साथियों में से एक श्री. सुधीर बेडेकर का आज सुबह पुणे में देहांत हो गया ! भावपूर्ण श्रद्धांजली !
आज की तुलना में सत्तर के दशक की इतनी अधिक खराब स्थिति नहीं होने के बावजूद ! भारत के सभी महत्वपूर्ण शिक्षा संस्थानों में आई आई टी, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कालेज तथा बंगाल, दिल्ली, मद्रास, त्रिवेंद, हैदराबाद, पुणे, कलकत्ता, लखनौ, पटना, चंडिगढ, जयपुर, अहमदाबाद, बडौदा, गुवाहाटी ऐसे कुछ केंद्रों में हमारे देश तथा दुनिया के सवालों पर ! सिलसिलेवार चर्चा हुआ करती थी !
अलग – अलग गुटों (समाजवादी, कम्युनिस्ट, अतिकम्यूनिस्ट, सर्वोदयी, गांधीवादी इत्यादी) की विधिवत स्थापना हुई थी ! और देश – दुनिया को लेकर धमासान बहस – मुहांबसों के अलावा पढ़ाई भी होती थी ! क्योंकि कुछ समय पहले फ्रांस में विद्यार्थियों का आंदोलन, क्यूबा और चिली की क्रांति ! के नेतृत्व देने वाले फिडेल कॅस्ट्रो और चे गुवेरा हमारे दिलों – दिमागों पर राज करने लगे थे ! और मैंने तो अपने होस्टल के कमरे कि दिवारों पर लोहिया गांधी के साथ इन दोनों क्रांतिकारियों की फोटो लगा रखि थी ! और आलम यह था कि कोई सिनेमा नाटक को देखने के बाद देश – दुनिया के बदलाव के लिए ! उसे लेकर चर्चा रात – रातभर जागकर बाल कि खाल निकालने का काम किया करते थे ! एक तरह से चार्ज माहौल में चले गए थे ! और आज पचास साल के बाद भी वह नोस्टालजिआ याद करते हुए ! मन और युवा बन जाता है ! सुधिर, प्रफुल्ल हमारे मार्गदर्शक जो थे !
और सबसे चर्चित अमेरिकी सेना के द्वारा वियतनाम पर चल रहा युद्ध ! यह हमारे चर्चा में होने के अलावा ! भारत में बढ रही बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार के मुद्दों पर चर्चा होती थी ! तभी तो गुजरात के एक मोरवी नाम के गांव के ! सरदार पटेल इंजीनियरिंग कालेज के ! मेस के खाने की थाली का चार आने की बढोतरी से ! गुजरात आंदोलन 1972-73 ! और उसके बाद ही बिहार के आंदोलन की ! जेपी के नेतृत्व में शुरू हुआ बिहार आंदोलन ! और बंगाल में, नक्सलबाड़ी, प्रेसीडेंसीकालेज , जादवपुर, कोलकाता, सिलीगुड़ी के जगह पर चल रहे, जमीन के अधिग्रहण के आंदोलन में, विश्वविद्यालय संस्थाओं में जारी नक्सलियों के आंदोलन से लगभग संपूर्ण भारत में !
आजादी के पच्चीस साल के पहले से ही इतना कुछ हो रहा था ! जिस समय मै अठारह साल से बीस साल के दौर में अचरज से देख रहा था ! और इस लिऐ मेरे अंदर की बौद्धिक भुख बढते जा रही थी ! और ऐसे समय में सुधिर बेडेकर, प्रफुल्ल बिडवाई, किशोर देशपांडे जैसे दोस्तो ने हमारे बौद्धिक भुख को कम करने के लिए काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है !
मैने मेरे बीस साल की उम्र के पहले से ही लगभग 1968-69 सेही, अमरावती मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करने के तुरंत बाद ! राष्ट्र सेवा दलके आभ्यास मंडल की शुरुआत की थी ! और हमारे आभ्यास मंडल हर तरह की वैचारिक सांप्रदायिकताके उपर उठकर सभी चर्चा करते थे !
इसमें मार्क्सवादी मागोवा गुट के प्रफुल्ल बीडवाई, जितेंद्र शाह, सुधीर बेडेकर, सुभाष काणे तथा दिनानाथ मनोहर भी आते थे ! सुधीर का आज सुबह पुणे में देहांत हो गया ! इस बहाने सोने के समय अचानक ही यह सब यादों के कारण निंद से उठकर यह सब लिखना शुरू किया है !
हमारे उस आभ्यास मंडल में अमरावती के पहले से ही चल रहे, तरूण शांति सेना के साथीयो में से किशोर देशपांडे तथा अमरावती के, नागरिक,प्रो. मधुकर केचे डॉ विनियन के बड़े भाई प्रोफेसर शर्मा, पुरूषोत्तम नागपुरे,प्रभाकर सिरास कवी सुरेश भट लेखक-पत्रकार, श्री वसंत आबाजी डहाके तथा प्रभा गणोरकर, प्रो. मनू नातू,प्रोफेसर दि वाय देशपांडे, सुशीला पाटील, ब्रीजमोहन हेडा, बापूसाहेब कारंजकर, शेख वजीर पटेल, मदन भट के अलावा ब्रीज सिन्हा, दलित पैंथर के लतिफ खाटिक, नामदेव ढसाळ तथा शांताराम दिवेकर, शिवाजीराव पटवर्धन, दुर्गाताई जोग तथा, राष्ट्र सेवा दल के विदर्भ संघटक विकास देशपांडे तथा, कभी – कभार यदुनाथ थत्ते, हामिद दलवाई, हुसेन दलवाई, प्रोफेसर ठाकुरदास बंग, दादा धर्माधिकारी, प्रोफेसर मधु दंडवते, जाॅर्ज फर्नाडिस, मृणाल गोरे, एस एम जोशी, नानासाहेब गोरे, प्रोफेसर सदानंद वर्दे, डॉ बाबा आढाव तथा डॉ बापू काळदाते, शेतकरी कामगार दलके प्रोफेसर एन डी पाटील, नाना पुरोहित तथा प्रोफेसर ग प्र प्रधान मास्तर जैसे जुझारू और बौद्धिक तैयारी से सराबोर ! तत्कालीन विरोधी दल के नेता भी शामिल होते थे !
लेकिन विशिष्ट आभ्यासक्रम को लेकर प्रफुल्ल बीडवाई, जितेंद्र शाह और सुधीर बेडेकर और किशोर देशपांडे इन लोगों की हमारे आभ्यास मंडल में सब से ज्यादा उपयोगी, और हमारे साथ मित्रों के जैसा मिलजुलकर शामिल होकर कम्यून जैसे हप्ते दस दिनों तक चलता रहता था !
सुधीर बेडेकर तो मार्क्सवादी होने के बावजूद हमारे सर्वोदयी किशोर देशपांडेके पुणे की एडिशन लगते थे ! बहुत ही सुंदर और शांति से समझाया करते थे !
सुधीर की और मेरी आखिरी मुलाकात नब्बे के दशक में भारत थेयटर के हाल में पुणे में ! सांप्रदायिकताको लेकर एक अखिल भारतीय स्तर के सेमिनार में ! (जिसमें प्रोफेसर जी पी देशपांडे से लेकर प्रोफेसर सुधीर चंद्र, और विदेशी डोनर एजेंसियों के पदाधिकारियों की भरमार थी !) और मै अकेला अॅक्टिव्हिस्ट, ताजा – ताजा भागलपुर दंगे की विदारक चित्र (24 अक्तूबर 1989 के दिन हुआ था ! बीजेपी के शिलापुजा के रथयात्रा के समय! हूए दंगे की विदारक स्थिति ! रखने की कोशिश कर रहा था !) लेकिन आयोजको से लेकर आए हुए दिग्गजों पर कुछ भी असर नहीं पड़ा !
लेकिन उस भीडके अंदर प्रेक्षकों में से अचानक ! सुरेश मै सुधीर बेडेकर और यह दुसरा भी सुधीर ! लेकिन सोनाळकर बोलते हुए हम लोग गले मिलने के बाद ! उन्होंने कहा कि ऐ सब प्रोफेशनल सोशल वर्क कल्चर (एनजीओ) के लोग हैं ! इनके लिए फंड मुख्य लक्ष्य है ! तुम्हारे भागलपुर को लेकर चल रहे चिंता से इन्हें रत्तीभर की रूचि नहीं है ! इसलिए तुम्हें हम अपने जगह पर लेने जाने के लिए आए हैं ! और तुम्हारे साथ लंबी वार्ता करने की इच्छा है ! तो तुम हमारे साथ यहां से निकलो ! और मैंने भी भारत सभागार में लगातार मेरे बातें को अनदेखा करने की बात से नाराज था !
मै भागलपुर दंगे के बाद के” आगे आने वाले पचास साल की राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकताही रहेगा” इस बात का सज्ञान सुधीर बेडेकर और सुधीर सोनाळकर ने लिया था ! और वह दोनों ने मिलकर संयुक्त रूप से मुझे भारत थेयटर से उठा कर पुणे में कही और अलग चर्चा का आयोजन किया था !
सुधीर बेडेकर बौद्धिक रूप से बहुत सशक्त व्यक्ति थे ! उन्होंने बहुत ही कम समय लिखने, बोलने का काम किया है ! उन्होंने अपने आपको सार्वजनिक क्षेत्र से बहुत पहले ही अलग – थलग कर लिया था ! उन्होंने अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग किया होता तो ! महाराष्ट्र के वामपंथी आंदोलन के लिये बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा होता !
थे तो सेकंड जनरेशन के मार्क्सवादी ! (उनके पिता प्रोफेसर दि के बेडेकर भी साठ के दशक से ही महाराष्ट्र के सब से उदार मार्क्सवादी बौद्धिक हस्ताक्षर थे !) लेकिन उनके व्यक्तित्व में अध्यात्म की भाषा में एक अवलिया जैसे ! अपने आप को एलिनेट कर लेने की अजिबोगरिब आदत थी ! एकदम डिटॅच हो जाते थे ! मागोवा जैसे पत्रिका का संपादन करने वाले संपादक की साहित्य संपदा बहुत ही कम है ! और उन्होंने अपने जीवन के आधे सफर में ही ! अपना लेखन-बोलना बंद कर दिया था ! जिसमें उन्होंने अपने उपर भी और समाज के उपर भी अन्याय किया है ! यह टिस मुझे रह रहकर महसुस हो रही है !
मेरे इस अवलिया दोस्त को मेरी भावभीनी श्रद्धांजली !
डॉ सुरेश खैरनार 25 मार्च, नागपुर 2022