मोदी ने अश्वमेध का घोड़ा छोड़ दिया है । अच्छे अच्छों के दिमागों को परास्त कर अंगद का पांव गड़ा कर खड़े हैं । परम्परागत राजनीति के दिन हवा-हवाई हो गये हैं । उसे मूर्ख ही समझिए जो पुराने समय के उदाहरणों के हवाले से अपनी बात कहते हैं । जो अभी भी डिबेट्स में कभी इंदिरा की बात करते हैं , कभी नेहरू । कभी राजीव के 400 से ऊपर संसद की संख्या की । सारे उदाहरण बेमानी हो चले हैं । मोदी का दिमाग तो आरएसएस तक नहीं समझा , हमारे सेकेंड रेट के पत्रकारों की क्या बात ? ‘सत्य हिंदी’ के आशुतोष कहते हैं कि मोदी ने कुछ अच्छे काम किए । जैसे स्वच्छता अभियान, शौचालय आदि । भाई लोगों को यह पता नहीं कि इन्हीं सब से तो मोदी हैं । मोदी का लालकिले से पहला भाषण अचंभित कर देने वाला था । यह वह संकल्प था कि कैसे मैं राजनीति में कांग्रेस की बनी बनाई परिपाटी को बदल कर ‘मोदी युग’ की नयी शुरुआत कर सकूं । इसमें कोई खतरा नहीं था, पर अजूबापन था , जिसे दुनिया ने देखा और सराहा । गरीब से गरीब ने इंसान के दिलों को छूती ढेर सारी योजनाएं । जो शायद कभी पूरी न हों पर जो गरीब को अहसास करा दे कि हमारा नायक पैदा हो गया है । अंगद का पांव उसी दिन से जमना शुरू हो गया था । मोदी आरएसएस की पसंद नहीं थे । पर वे मोदी थे जिन्होंने ठान लिया था कि येन केन प्रकारेण अपनी जिद पूरी करनी है । एक तरफ गुजरात माडल की वाहवाही दूसरी ओर गोधरा दंगों का लांछन । उनकी छलांगें लगाती महत्वाकांक्षा ने तीन तरह के मतदाता तैयार किये । एक गरीब से गरीब जनता, दूसरे पढ़ें लिखे वे हिंदू जो गुजरात के हिंदू माडल से अभिभूत थे और तीसरे वे वामपंथी प्रबुद्ध जन थे जो उनसे घटाटोप नफरत करते थे । उसी अनुपात में मोदी ने भी इस तीसरे वर्ग को अपनी नफरत के केंद्र में रखा और यह मान कर चले कि यहां से मुझे तय है कि एक वोट भी न मिले । मोदी का यह सम्पूर्ण आकलन एकदम सटीक रहा । इस प्रकार ‘कहने भर को’ भारत देश के प्रधानमंत्री हुए ( गोकि यहां भी उन्होंने खेल जड़ा । खुद को प्रधानमंत्री के बदले प्रधानसेवक कहलवाना चाहा ) । तो इस तरह किसी के भगवान तो किसी के लिए शातिर शैतान । तय मानिए कि मोदी से बेइंतहा नफरत करने वाले भी मोदी के इस गहरे खेल (षड़यंत्र) की तह तक पहुंचने में नाकाम रहे । इसीलिए आज 2024 सबके लिए परेशानी का सबब बना पड़ा है । हर कोई बेबस है । मोदी ने खुद को ऐसा ‘गुलीवर’ बना कर पेश किया कि हर कोई उनके सामने बौना दिखता है । कांग्रेस के साथ उन्होंने क्या किया यह तो सबके सामने है । यह स्वीकार करने में किसी को कोई झिझक नहीं होनी चाहिए कि मोदी को उड़ती चिड़िया पकड़ना खूब आता है ।
यह बन रहे इतिहास का अनोखा पृष्ठ है । जिसे हमेशा अच्छे बुरे संदर्भों में याद किया जाएगा । और यह भी कि संपूर्ण देश एक आदमी के दिमाग को अंत तक न पढ़ पाया , न समझ ही सका ।
तो क्या मोदी को हराना एकदम नामुमकिन सा हो गया है । शायद ऐसा नहीं है। पर हां, अगर विपक्षी दलों के नेता फिर से एक हुए और उन्होंने मंच पर आकर एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर ऊपर उठा कर फोटो खिंचवाई तो समझ लीजिए वे गये फिर से गर्त में । मेरे विचार में करना यह चाहिए कि सारे दल एक समझौता करें कि हर दल से हजार दो हजार की फौज एक जगह इकठ्ठी होकर विभिन्न मुद्दों पर सतत आंदोलन के बिगुल फूंके । इनके नेता अंत तक एक मंच पर एकत्र न हों । इससे होगा क्या कि मोदी के सामने एक संभ्रम की स्थिति रहेगी । दुश्मन सामने हो तो वार करना आसान होता है । लेकिन दुश्मन सामने न हो पर उसकी मिली जुली सेना हो तो सारा गणित बिगड़ जाता है। पर क्या ऐसी अक्ल विपक्ष में आएगी , मुझे शक है । इतना तो है जैसे जैसे निजीकरण का मुद्दा आगे बढ़ेगा वैसे वैसे प्रभावित लोगों के आंदोलन भी होंगे । इसी के साथ विपक्ष के आंदोलन भी सतत चलते रहने चाहिए । दूसरे अर्थों में अब से लेकर 2024 के चुनावों तक सड़कें आंदोलनों से भरी रहें । ऐसी कि सरकार की नाक में दम हो जाए । ध्यान रखिए मोदी भी इंसान हैं और इसलिए वे हर चुनाव से यह पहले डरे होते हैं पर उनका गणित सटीक बैठता है । अफसोस यही है कि विपक्ष ने हमेशा अपनी रणनीति लंडूरेपन के साथ परम्परागत तरीकों से बनायी है और हारा है । अखिलेश यादव चार साल तक इस डर से घर से नहीं निकले कि बाहर निकले तो पकड़े जाएंगे । देश का प्रबुद्धजन आज भी भ्रमित सा जान पड़ता है । किस किस की कहें । योगेन्द्र यादव तो हमेशा एक ही बात कहते थे कि यह सरकार यदि चुनाव की भाषा समझती है तो यही सही । पर क्या हुआ सबके सामने है । यकीनन यह सरकार चुनाव की भाषा ही समझती है पर अपनी जादूगरी से । समय अब भी है , कोई समझ सके तो ।

सोशल मीडिया पर मेरे लिखे का असर यह होता है कि कई जगहों से बड़ी मजेदार मजेदार टिप्पणियां आती हैं । मित्र लोग फोन पर ठहाके लगाते हैं सो अलग । कार्यक्रमों को किनारे रखें और व्यक्तियों पर बात करें तो अंबरीष कुमार, आशुतोष पर लोग विशेष रूप से बात करते हैं । अंबरीष कुमार को उबाऊ तो आशुतोष को बिगड़ैल ज्ञानी कहते हैं । उनकी बातों में मैं भी तड़का लगाता हूं । आशुतोष की तारीफ भी खूब करते हैं लोग । पर डिबेट में वे भागते से दिखते हैं यह लोगों को पसंद नहीं आता । सांस तक नहीं लेते । आलोक जोशी हमेशा सबके प्रिय पात्र रहे हैं। उबाऊ में वाजपेई भी आने लगे हैं लेकिन वहीं संतोष भारतीय को बहुत ध्यान से सुनते हैं लोग । मजा आता है जब फोन पर लोगों की अजब गजब टिप्पणियां सुनने को मिलती हैं । रवीश कुमार कई दिन से नहीं आ रहे । लोग न जाने कहां कहां से फोन करके पूछते हैं । मेरा लेख रवीश के व्हाट्सएप पर भी जाता है और वे पढ़ते हैं तो लोग समझते हैं कि मुझे उनके बारे में जानकारी है । अब इसी बार मैंने सबको कह दिया कि वे अब तक होली के रंग छुड़ा रहे हैं । मैं स्वयं की कहूं तो मुझे मुकेश कुमार ने अपनी प्रतिभा से हैरान किया है । आशुतोष ने बताया था कि हम हर किसी को उसके प्रोग्राम की आजादी देते हैं । यदि ऐसा है तो मुकेश कुमार की दाद देनी पड़ेगी । उनके कार्यक्रम उसी तरह की जगह ले रहे हैं जैसे रवीश कुमार के प्राइम टाइम । बल्कि संयोग देखिए कि दोनों का समय एक ही है । मुकेश कुमार के विषय एकदम हट कर और सुनने के लिए विवश कर देने वाले होते हैं । संचालन भी उम्दा होता है । उनका ‘ताना बाना’ कार्यक्रम उनके व्यक्तित्व के दूसरे रंग का परिचायक है । कल का एपीसोड कुछ विशेष लगा । कुमार अंबुज की कविताएं वाकई कमाल हैं । पर उनके कार्यक्रमों में लोगों के इंटरनेट क्यों नहीं काम करते हैं यह चिंता का विषय है । एक कार्यक्रम तो कई लोगों के बजाय अकेले रविकांत के साथ करना है पड़ा और आधे में ही बंद कर दिया गया । यह दुखद है । मुकेश भाई इस पर गौर करें । कल ताना-बाना में भी विजय बहादुर सिंह के साथ यही हुआ ।
विजय त्रिवेदी ने न्यूज़ इंडिया चैनल पर आरिफ मोहम्मद खान का बढ़िया इंटरव्यू लिया । आरिफ कई बार सिर पर चढ़ जाते हैं । जैसे एक बार आरफा खानम शेरवानी के साथ हुआ था । लेकिन यह इंटरव्यू बड़ा अच्छा और संतुलित रहा । संतोष भारतीय के लाउड इंडिया टीवी में अभय दुबे शो इस बार कांग्रेस के शोकगीत पर था । यह कार्यक्रम एक तरह से अभय जी के व्याख्यान जैसा होता है । इस बार एक चीज अच्छी लगी और हंसी भी आयी । अभय जी के सतत प्रवाह को रोकने के लिए संतोष जी को बड़ी मेहनत करनी पड़ती है । इस बार संतोष जी ने उंगली ही उठा दी । क्या किया जाए । अभय जी को वहां तुरंत रुक जाना चाहिए जहां संतोष जी कुछ पूछना चाहते हैं पर उनका प्रवाह तेज नदी की भांति होता है । अब तो यह उंगली उठाना ही ज्यादा ठीक है । अभय जी ने कांग्रेस के बारे में सब कुछ बताया लेकिन यह स्पष्ट नहीं बताया कि आलाकमान यानी मां ,बेटा,बेटी तीनों ही नौसीखिया हैं । कतई अनुभवहीन । मैं तो मां को भी समझता हूं । मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाना कोई समझदारी नहीं, मजबूरी थी ।यह संतोष जी ने अपनी किताब में स्पष्ट लिखा है कि सोनिया के दोनों बच्चे घबराये हुए थे । वे नहीं चाहते थे कि मां प्रधानमंत्री बनें । कोई भी गांधी जी की आत्मा को सूचित करे कि आपकी कांग्रेस में ऐसे ऐसे लोग आ गये हैं जो एक जोकर (सिद्धू) को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बना रहे हैं । आप कल्पना कीजिए यह कांग्रेस के दिवालियापन का आलम है । अभय दुबे ने स्पष्ट कहा कि 2023 कांग्रेस के जीवन मरण की डेडलाइन है । यह कार्यक्रम अच्छा और रोचक होता है । आजकल संतोष जी अभय जी की तारीफ एक झटके भर में करते हैं । अच्छा ही है । वरना अपनी इस कदर तारीफ सुनते अभय जी का शर्मीला चेहरा हमसे भी है नहीं देखा जाता था । वैसे संतोष जी हर किसी की तारीफ करते हैं अपने दूसरे कार्यक्रमों में भी । यह अच्छी बात है । राहुल गांधी पर एक बात और कहनी चाहिए थी कि जो व्यक्ति संसद में आंख मारे और कैमरा उसे कैद कर लें , उस आदमी की गम्भीरता क्या होगी । क्या वह सच में इतनी बड़ी पार्टी का अध्यक्ष बनने लायक है ।यह सवाल है । आशुतोष की पाकिस्तान पर एस .डी .मुनि से बातचीत और मुकेश कुमार का उमर खालिद की रद्द हुई जमानत पर कार्यक्रम अच्छा लगा । इसी विषय पर अपूर्वानंद ने भी ‘वायर’ में बढ़िया लेख लिखा है । उसे पढ़ें । आरफा खानम शेरवानी आजकल कहां हैं । उनकी कमी गलती है । भाषा सिंह तो उसी मुस्तैदी से लगी हुई हैं । ‘सत्य हिंदी’ को चाहिए यूपी और योगी से अब बाहर आयें । यूपी के ही लोगों ने बताया कि अब ऐसे कार्यक्रमों से ऊब होने लगी है । पर आशुतोष और जोशी जी का एक ‘लखनउव्वा’ गैंग (क्षमा करें) है । पुराने यार दोस्त हैं और सब । शरत प्रधान को तो आशुतोष ने देश के प्रसिद्ध पत्रकार बात दिया। देश के ? … गजब है भाई । सबकी अपनी अपनी डफ़ली अपना अपना राग है। यूपी चुनाव के परिणामों से तो निराशा ही जन्म ले चुकी है । जैसे उर्मिलेश जी । पहले क्या बोले, फिर क्या बोले, फिर आशुतोष से क्या बोले , फिर अपने कार्यक्रम में क्या बोले । लेकिन सब महान हैं ।किसी पर उंगली मत उठाओ ।बस मौजूदा वातावरण को झेलते जाओ ।

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