हाल के दिनों में सऊदी सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है. यह ऐसा परिवर्तन है, जिसकी अपेक्षा किसी को नहीं थी. शाह फैसल के बेटे सऊद फैसल, जो 40 वर्षों से विदेश मंत्री थे और दुनिया भर में उन्हें सऊदी अरब के लिए आईकॉन की तरह देखा जाता था, उन्हें हटाकर आदिल अलजबीर को यह पद दे दिया गया है. आदिल अलजबीर अमेरिका में सऊदी राजदूत के रूप में कार्यरत थे. दूसरा बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि अब्दुल अज़ीज़ के अंतिम बेटे और उत्तराधिकारी 70 वर्षीय मुकरिन बिन अब्दुल अज़ीज़ को उनके पद से हटा दिया गया है और उनकी जगह 55 वर्षीय मोहम्मद बिन नाइ़फ को उत्तराधिकारी और वर्तमान बादशाह सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ के 30 वर्षीय बेटे मोहम्मद बिन सलमान को उत्तराधिकारी बनाया गया है. यहां तक कि पेट्रोलियम मंत्री हशाम नज़र को हटाकर उनकी जगह अली बिन इब्राहिम अलनइमी को नया तेल मंत्री बनाया गया है. इसके अलावा भी कुछ परिवर्तन हुए हैं. उदाहरणस्वरूप अब्दुल्लाह के दो बेटों को उनके पद से हटा दिया गया है. इनमें से एक मक्का के गवर्नर शहज़ादा मशअल हैं और दूसरे रियाज़ के गवर्नर शहज़ादा तुर्की हैं.
जनवरी 2015 को सुल्तान की हैसियत से पद संभालने के बाद सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ ने सरकार में कई बड़े परिवर्तन किए हैं. सऊदी इतिहास में इससे पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर परिवर्तन नहीं हुए थे. सऊदी अरब की परंपरा रही है कि जब भी कोई नया सुल्तान बनता है तो अपने पहले सुल्तान की परंपरा से अलग नहीं हटते हैं, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि सलमान के आते ही केवल चार माह के अन्दर देश के महत्वपूर्ण पदों पर इतने बड़े स्तर पर परिवर्तन कर दिए गए. क्या इसका कारण देश की व्यवस्था को बेहतर करना, शाही परिवार में जारी विवाद को ख़त्म करना या कुछ और है?
संभव है कि इस परिवर्तन के पीछे सुल्तान का मक़सद देश की व्यवस्था को बेहतर करना हो या फिर यह मक़सद हो कि सभी महत्वपूर्ण विभागों पर अपना नियंत्रण मज़बूत करके आंतरिक व बाहरी फूट पर नियंत्रण पाया जाए. दरअसल, सऊदी अरब को इस समय कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना है. एक ओर पूरा मध्य पूर्व गृहयुद्ध की परिस्थितियों से दो-चार है. स्वयं सऊदी अरब यमन के साथ जंग में फंसा हुआ है और दूसरी ओर वैश्विक मंडी में तेल की घटती की़मत ने इसकी अर्थव्यवस्था को लड़खड़ा दिया है. इसके अलावा देश में पढ़े-लिखे नौजवानों की एक बड़ी खेप रोज़गार के इंतजार में है. इनके लिए रोज़गार के अवसर पैदा करना एक बड़ी समस्या है. ये सभी परिस्थतियां ऐसी हैं, जिसको नई नस्ल के टेक्नोक्रेट ही सही तरीक़े से अंजाम दे सकते हैं. यही वजह है कि शाह सलमान में बादशाहत के इस सिलसिले को अब्दुल अज़ीज़ के बेटों से, जो कि बूढ़े हो चुके हैं और सबसे छोटे बेटे मुक़रिन हैं, जिनकी उम्र लगभग 70 वर्ष है, उनके पोतों में यानी दूसरी नस्ल में हस्तांतरित करने का आग़ाज़ कर दिया है, लेकिन इस हस्तांतरण में जो ख़ास बात है, वह यह है कि शाह सलमान ने देश के सभी महत्वपूर्ण पदों पर अपने सगे रिश्तेदारों को नियुक्त करके अन्य शहज़ादों में निराशा पैदा कर दी है. यह स्थिति आने वाले दिनों में समस्याएं खड़ी कर सकती है.
दरअसल, शहज़ादों की ओर से लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि देश की व्यवस्था अब अब्दुल अज़ीज़ के बेटों के बजाए पोतों में हस्तांतरित होना चाहिए. इसी मांग को लेकर मार्च 2014 में इन शहज़ादों पर आधारित एक कमेटी बेअत कॉन्सिल गठित की गई थी, लेकिन सभी शहज़ादों के बीच किसी एक नाम पर सहमति न होने की वजह से नतीजा सामने नहीं आ सका. सर्वसम्मति न होने का कारण यह रहा कि शाही परिवार के शहज़ादे दो समूहों में बंटे हुए थे. एक अब्दुल्लाह समूह और दूसरा सुदैरी गु्रप. अब्दुल्लाह समूह 61 वर्षीय मतअब अब्दुल्लाह के समर्थन में था, तो दूसरे समूह का समर्थन 55 वर्षीय मोहम्मद बिन नाईफ को प्राप्त था. इनमें बिन नाई़फ का वॉशिंगटन से गहरा संबंध है, जबकि मतअब को सऊदी अरब के महत्वपूर्ण और संवेदनशील पदों पर काम करने का अनुभव है.
वर्तमान सुल्तान सलमान इस बात को महसूस कर रहे थे कि जब सऊदी की सत्ता दूसरी नस्ल में हस्तांतरित होगी तो इन दोनों समूहों में कड़े मतभेद उत्पन्न होंगे और इससे देश को नुक़सान पहुंचेगा. इस मतभेद को ख़त्म करने का बेहतर तरीक़ा यही है कि वह स्वयं ही देश का भविष्य किसी एक समूह के हवाले करने का निर्णय करें. चूंकि मौजूदा सुल्तान का संबंध भी सुदैरी समूह से है. लिहाज़ा, उनका झुकाव इसी समूह की ओर था और इसी झुकाव के कारण उन्होंने दूसरे समूह का ज़ोर कम करने के लिए पूर्व सुल्तान अब्दुल्लाह के दो बेटों को रियाज़ और मक्का की गवर्नरी से हटा दिया. इसके बाद उन्होंने अपने सगे बड़े भाई नाई़फ के बेटे को देश का अगला बादशाह और उनका उप सुल्तान अपने 30 वर्षीय बेटे मोहम्मद बिन सलमान को नियुक्त करके देश की बागडोर को सुदैरी परिवार के लिए सुरक्षित कर दिया.
सुल्तान सलमान के इस नये परिवर्तन से खुले रूप से ऐसा लगता है कि सुल्तान सलमान ने देश की बागडोर अपने भतीजे और बेटे को देकर भविष्य का शासक सुदैरी समूह को सौंप दिया है, लेकिन थोड़ी और गहराई में जाएं तो अनुमान होगा कि हालिया सुल्तान ने अपने इस अमल से सऊदी अरब सरकार को सुदैरी समूह नहीं, बल्कि अपनी औलाद में हस्तांतरित करने का रास्ता सा़फ किया है. वह इस प्रकार कि सऊदी परंपरा के अनुसार, उनके बाद मोहम्मद बिन नाई़फ बादशाह होंगे. नवनियुक्त सुल्तान मोहम्मद बिन नाई़फ को कोई पुत्र नहीं है, उनकी केवल दो बेटियां हैं और आले सऊद जैसे बेहद रूढ़ीवादी कल्चर में ज़ाहिर है इस बात की कोई संभावना नहीं है कि निकट भविष्य में कोई महिला सऊदी अरब की बागडोर संभालेगी. अर्थात् इसी बुनियाद पर सऊदी के सुल्तान संतुष्ट होंगे कि नाई़फ के बाद उनके बेटे मोहम्मद बिन सुलेमान, जिसको उप सुल्तान नियुक्त किया गया है, के रास्ते में मोहम्मद बिन नाई़फ कोई रुकावट खड़ी नहीं करेंगे और इस प्रकार से सऊदी अरब की सरकार शाह सलमान की संतानों में सीमित हो जाएगी.
यह भी हो सकता है कि इन महत्वपूर्ण पदों में फेरबदल सुरक्षा की दृष्टि से की गई हो. मुकरिन बिन अब्दुल अज़ीज़ देश के संवेदनशील पदों पर बैठे थे. संयोग से मुकरिन की माता बराका का संबंध यमन से है और मुक़रिन की परवरिश यमनी माहौल में हुई है. इस समय सऊदी अरब और यमन के बीच जंग जारी है. ऐसी स्थिति में मुक़रिन यमन के प्रति नरम रवैया रख सकते थे. ज़ाहिर है युद्ध परिस्थितियों में यह बात ठीक नहीं है. शाह सलमान कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने उनको पद से हटाकर उनकी जगह बिन नाई़फ को उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया है. जहां तक सऊद फैसल की बात है, तो उनको पदच्यूत करने का कारण भी यही हो सकता है कि जब यमन के ख़िला़फ युद्ध शुरू करने की बात कही जा रही तो इस समय सैन्य कार्रवाई का विरोध करने वाले अन्य शहज़ादों में सऊद फैसल भी शामिल थे. अब जबकि सऊदी अरब यमन में हवाई हमले कर रहा है तो वह किसी भी ऐसे व्यक्ति को महत्वपूर्ण पदों पर बनाए रखना नहीं चाहते हैं, जो इस हमले के ख़िला़फ रहा है.
बहरहाल, इस परिवर्तन ने सऊदी अरब की आंतरिक राजनीति को अधिक उलझाकर रख दिया है. एक ओर शाह सलमान के अपने सगे भाई अहमद बिन अब्दुल अज़ीज़ नाराज़ हैं. मुक़रिन के पद से हटाये जाने के बाद उन्हें विश्वास हो चुका है कि उन्हें तख़्त की ओर जाने वाले रास्ते से हटाकर किनारे कर दिया गया है. दूसरी ओर शाह अब्दुल्लाह के बेटे मोतअब शाही परिवार की सुरक्षा करने वाली सेना नैशनल गार्ड्स के मुखिया नाराज़ हैं, क्योंकि उन्हें उत्तराधिकारी नहीं बनाया गया है. उनके साथ अब्दुल्लाह समूह के शहज़ादों की बड़ी संख्या है. यह आंतरिक रूप से इस पर नियुक्ति के विरोधी हैं और इसकी वजह से शाही परिवार में मतभेद की जो चिंगारी दबी हुई है, वह कभी भी भड़क सकती है. शाही परिवार के अन्य बुज़ुर्गों ने भी नाक-भौं चढ़ा रखी है कि अचानक शहज़ादों की दूसरी नस्ल को तख़्त की सीढ़ी पर क्यों चढ़ाना शुरू कर दिया गया है. सुदैरी समूह कभी सात सगे भाइयों का एक संयुक्त समूह होता था और अब इस समूह में भी आंतरिक मतभेद पैदा हो चुका है. क्यों मोहम्मद को उप सुल्तान बनाए जाने के बाद सुदैरी के अन्य शहज़ादों को भी विश्वास हो गया है कि अब देश की सत्ता कभी भी वह या उनकी संतानों के हिस्से में नहीं आएगी. इन बातों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सऊदी अरब न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि आंतरिक स्तर पर भी युद्ध स्थिति से दो-चार है और नये परिवर्तन ने इस समस्या को और भी उलझाकर रख दिया है.