फैले हुए हाथ आपको अंदर तक टटोल लेते हैं, आप के क़दम रुक जाते हैं, हाथ झोली में टटोलने को मजबूर हो जाते हैं. इन दर्दमंदों की अदा, इनकी बेजुबान निगाहों की फरियाद किसके  जज्बात नहीं जगाती. इनका दर्द कौन बयां करे. हर चौक चौराहे पर हाथ फैलाये, गाड़ियों के शीशे खोलने की मिन्नतें करता दिख जाता है. छोटे-छोटे बच्चे हाथ फैलाए अपने मां बाप के  लिये भीख मांगते दिख ही जाते हैं. इनके  क़दम दौड़ते ही रहते हैं.

जिंदा जज्बातों के  लोग इनके हाथ पर कुछ न कुछ रख देते हैं और जो मुर्दा हैं वे इन्हें गालियां देते हैं और अपने रास्ते चलते बनते हैं. झिड़की और मार इनके साथ कपड़ों की तरह चिपके रहते हैं. जी हां हम भिखारियों की ही बात कर रहे हैं.

सरकार ने बेगर्स एक्ट के  तहत इन संवासियो की हालत सुधारने की ठानी. सन 1976 में इस एक्ट के  तहत भिक्षुक गृह खोला गया. इन बेघरों को प्रशिक्षण देकर उनको रोजगार के  लायक बनाने की बात कही गई. इलाहाबाद के शिवकुटी में भी एक भिक्षुक गृह खोला गया. इस गृह में संवासियों को लाकर उन्हें रोजगार संबंधी प्रशिक्षण दिया जाना था. प्रशिक्षण के अर्तगत संवासियों को बेंत के  सामान बनाने और सिलाई तथा होजरी और लकड़ी के काम का प्रशिक्षण देना था. इस के लिए चार ट्रेड निर्धारित किये गये थे. प्रशिक्षकों की नियुक्ति भी कर ली गई. यहां पर 200 संवासियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है. लेकिन हाल यह है कि ये संस्था तमाम योजनाओं और निर्णयों में कोसों दूर चली गई है. संवासियों के  नाम पर अब यहां केवल धंधा है. यहां अब एक भी संवासी नहीं है. अधिकारियों का कहना है कि 2001 में पीडब्ल्यूडी विभाग ने इस भवन को जर्जर बताकर अनुपयोगी घोषित कर दिया था. जिसके बाद से यहां संवासियों का आना बंद कर दिया गया. अब यहां तैनात अधिकांश कर्मचारियों को समाज कल्याण विभाग के दूसरे कामों में लगा दिया गया हैं. संवासियों के प्रशिक्षण का सामान नष्ट हो चुका है. भवन का अधिकांश हिस्सा गिर चुका है. संस्था का कार्यालय बरामदे में चल रहा है. 200 संवासियों की प्रशिक्षण क्षमता वाला यह संस्थान अब खुद असहाय पडा है. संवासियों के  नाम पर अब यहां केवल फाइलें भरी जाती हैं. इस संस्था की सुध लेने वाला कोई अधिकारी नहीं हैं. निष्प्रयोज्य घोषित किये जाने के  साल बाद भी समाज कल्याण विभाग भिक्षुक गृह के  लिये दूसरा भवन नहीं खोज पाया. इस संबंध में समाज कल्याण अधिकारी का कहना हैं कि इस मामले में शासन स्तर से निर्णय लिया जाना है. शासन को रिपोर्ट भेजी जा चुकी है. कार्रवाई की प्रतीक्षा है. ज़िला समाज कल्याण विभाग अधिकारी अशोक दीक्षित का कहना है कि इस संबंध में निर्णय शासन को ही करना है. भिक्षुक गृह की अधीक्षिका स्पष्ट कहती हैं कि इस जर्जर भवन में हम संवासियों को कैसे रख सकते हैं, हमारी जान का खुद भरोसा नहीं.

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