यह सरकार जिस तरी़के से काम कर रही है, वह एक मिश्रित संकेत दे रहा है. कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं दिख रही है. यह पता नहीं चल पा रहा है कि आख़िर वे करने क्या जा रहे हैं. यह भी नहीं पता चल रहा है कि उनकी रणनीति बनाने वाले मुख्य लोग हैं कौन? अभी प्रधानमंत्री ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए ब्राजील गए थे. समाचार-पत्रों में आई ख़बरों के मुताबिक़, उन्होंने भारत का पक्ष वहां अच्छी तरह से रखा. लेेकिन, नकारात्मक पक्ष यह कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने फिलिस्तीन मसले पर राज्यसभा में बहस के लिए मना कर दिया है. यह समझ से परे है कि उन्होंने ऐसा निर्णय क्यों लिया?
वह कहती हैं कि दोनों मुल्क हमारे मित्र हैं और इस मुद्दे पर हमें यहां कोई बहस नहीं करनी है. वह सही कह रही हैं कि हमें किसी का पक्ष नहीं लेना है, लेकिन बहस कराने में दिक्कत क्या है? यह प्रजातंत्र है और इसमें कुछ लोग इजरायल का पक्ष लेंगे, तो कुछ लोग फिलिस्तीन का. हाउस का एक अंतिम प्रस्ताव इस पर आएगा, जो संतुलित होगा. विदेश मंत्री ने जो कहा है, वह भारत की विदेश नीति को दिखाता है. इसी तरह संसद भी इतनी परिपक्व है कि वह इस पर अपनी एक राय बना सकती है, रख सकती है. लेकिन, बहस न कराना मेरी समझ से परे है. यह विचित्र बात है कि बहस कराने से सरकार की स्थिति इस मुद्दे पर ग़लत साबित हो जाएगी. मुझे लगता है कि सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. अगर सरकार ऐसा नहीं करती है, तो उसकी नैतिक ताकत कमज़ोर होगी.
बात बजट की करें, तो लोगों ने इस बजट से बहुत सारी ग़लत अपेक्षाएं पाल रखी थीं, जो टूट गईं. यह एक बहुत चालाकी भरा और साधारण बजट था. हालांकि, भाजपा के समर्थक, ख़ासकर व्यापारी वर्ग को निश्चित तौर पर इस बजट से निराशा हाथ लगी है. वे ऐसे प्रावधानों की उम्मीद कर रहे थे, जिनसे उनकी ज़िंदगी आसान हो जाती. बड़े व्यापारिक घराने तो अपने मामले देखने के लिए बड़े वकीलों की सेवाएं ले सकते हैं, लेकिन आम व्यापारियों का क्या होगा? उन व्यापारियों का क्या होगा, जिनका व्यवसाय अधिकतम 2 से 5 करोड़ रुपये का है? वे आयकर विभाग द्वारा मांगी गई रिश्वत की भारी-भरकम रकम नहीं दे सकते. उन्हें हमेशा सज़ा का भय दिखाया जाता है और इस धमकी का सीधा मतलब होता है भारी रिश्वत वसूलना. यह धमकी कार्रवाई के लिए नहीं होती है, बल्कि पैसा उगाहने के लिए होती है.
मैंने किसी बिजनेसमैन को जेल जाते नहीं देखा. इसलिए आयकर के मामले में जेल भेजने की धमकी वाले प्रावधान को बिल्कुल ख़त्म कर देना चाहिए या कोई अन्य उपाय करना चाहिए, जिससे आम व्यापारियों की ज़िंदगी आसान हो सके. भाजपा के पहले बजट से लोगों को यही उम्मीदें थीं. अगर यह यूपीए-तीन का बजट होता, तो लोग इसे कबूल कर लेते. चिदंबरम अगर वित्त मंत्री होते, तो ऐसा ही बजट पेश करते. कुछ बदलाव हैं, जैसे 38,000 करोड़ रुपये का हाईवे प्लान. अगर इस महत्वाकांक्षी परियोजना को छोड़ दिया जाए, तो यह बजट बहुत ज़्यादा उत्साहजनक नहीं कहा जाएगा. हमें अभी यह देखना है कि सरकार अगले कुछ महीनों में क्या करने जा रही है, लेकिन मिश्रित संकेत देखने को मिल रहे हैं.
एक पत्रकार पाकिस्तान गए और एक आतंकी से मिले, टीवी न्यूज ने स़िर्फ यही दिखाया. क्या वह सरकार से अंदरूनी अनुमति लेकर गए थे? अगर ऐसा है, तो उन्हें सच्चाई बतानी चाहिए. आख़िरकार जिस आदमी से वह मिले, वह कोई साधारण आदमी नहीं है. वह भारत में एक वांछित व्यक्ति है. भाजपा का एक धड़ा उन पत्रकार का पासपोर्ट निरस्त करने और उनके ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा चलाने की मांग कर रहा है. सब कुछ बिखरा और मुद्दों से भटका हुआ नज़र आ रहा है. जब प्रधानमंत्री ब्राजील गए, तो उन्होंने किसी को नंबर दो के पद के लिए नामित नहीं किया. भाजपा के संसदीय दल की बैठक की अध्यक्षता न तो राजनाथ सिंह कर सके और न अरुण जेटली, जबकि ये दोनों लोग सदनों में पार्टी के उपनेता हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है. यह एक ऐसे सत्ताधारी दल के लिए ठीक नहीं है, जिसके पास स्पष्ट बहुमत हो. उसे अपनी कार्य प्रणाली को लेकर और अधिक स्पष्ट होना होगा. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले कुछ हफ्तों में चीजें सुधरेंगी.
सरकार की कार्य प्रणाली अस्पष्ट है
Adv from Sponsors