upendra-kushwahaपहले शौचालय-फिर देवालय, लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ऐलान और सपने को बिहार में ग्रहण लग सकता है. वर्ष 2022 तक हर घर में शौचालय का लक्ष्य देश के सामने रखा तो गया है, पर बिहार में इसके क्रियान्वयन की जो रफ्तार है, उसे देखकर लगता है कि कहीं यह सपना ही न रह जाए. दुर्भाग्य यह है कि ऐसा तब हो रहा है, जब केंद्र में इसकी ज़िम्मेदारी बिहार के ही उपेंद्र कुशवाहा के कंधों पर है, लेकिन बिहार सरकार इसका पूरा लाभ नहीं उठा पा रही है. कुशवाहा लगभग अपने सभी दौरों में बार-बार यह सवाल खड़े कर रहे हैं कि दूसरे राज्य आगे निकल रहे हैं, पर बिहार अपना हक़ नहीं ले पा रहा है. यह उनके लिए भी दु:ख और चिंता की बात है. कुशवाहा कहते हैं कि पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए केंद्र से मिले धन का उपयोग करने में बिहार विफल रहा है. वह चाहकर भी बिहार की मदद नहीं कर पा रहे हैं. राज्य सरकार पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष से वर्ष 2007 से लेकर 2014 तक 4588.51 करोड़ रुपये पाने की हक़दार थी. उसे दो किस्तों में 3546.74 करोड़ रुपये मिले, लेकिन खर्च केवल 3328.76 करोड़ रुपये हो पाए. चालू वित्तीय वर्ष में राज्य के 38 ज़िलों को 759 करोड़ रुपये मिलने हैं, लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि 33 ज़िलों से प्रस्ताव ही नहीं आए. स़िर्फ 5 ज़िलों यानी बेगूसराय, गोपालगंज, लखीसराय, मधुबनी और पूर्णियां के लिए 77.30 करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले हैं.
उन्होंने कहा कि समय से प्रस्ताव और पिछला हिसाब-किताब न भेजने के कारण बिहार को नुक़सान हो रहा है. जबकि वह चाहते हैं कि बिहार को केंद्र से विभिन्न योजनाओं के लिए अधिक से अधिक धन मिले, लेकिन यह तभी संभव होगा, जब इसके लिए राज्य सरकार स्वयं तत्पर होगी. बीआरजीएफ के पिछले ही वर्ष के 218 करोड़ रुपये खर्च के लिए बचे हैं. पिछले साल दरभंगा, पटना और पूर्णियां को अनुदान नहीं मिला. चालू वित्तीय वर्ष के लिए स़िर्फ 13 ज़िलों से प्रस्ताव मिले. कुशवाहा के अनुसार, राज्य सरकार ने पहली किस्त के रूप में बतौर अग्रिम 85 प्रतिशत धनराशि ज़िलों को देने का निर्णय किया है. पंचायतों को पांच लाख रुपये तक की योजना की प्रशासनिक स्वीकृति का अधिकार देने का प्रस्ताव है. इसके साथ ही पंचायत अभियंत्रण कैडर बनाने का भी प्रस्ताव है. राज्य सरकार ने भरोसा दिलाया है कि अपेक्षानुरूप प्रस्ताव बनाकर और पिछले वर्षों का हिसाब-किताब शीघ्र भेजा जाएगा. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि राज्य सरकार शौचालय निर्माण और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में फिसड्डी साबित हो रही है. शौचालय निर्माण के लिए 2013-14 में मिले 246.75 करोड़ रुपये खर्च नहीं हो पाए हैं. पेयजल के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों में भी खर्च करने की प्रगति दयनीय है. दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा का यह दर्द यूं ही नहीं है. नरेंद्र मोदी बार-बार स्वच्छ भारत, हर घर में शौचालय और हरेक को मकान की बात कर रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा चाहते हैं कि बिहार इस मुकाम को पानेे में अव्वल रहे. इसलिए बिहार में वह हरेक बैठक में सरकारी अधिकारियों से अपने काम में तेजी लाने की बात कह रहे हैं.

कुशवाहा ने पहल करते हुए राज्य सरकार के साथ बैठक करके अपनी भावनाओं से प्रदेश सरकार और अधिकारियोंे को अवगत करा दिया है. अब गेंद बिहार सरकार के पाले में है. शौचालय निर्माण में सुस्ती की बात लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री डॉ. महाचंद्र प्रसाद सिंह भी स्वीकार करते हैं, पर वह राजनीतिक मजबूरी के चलते अलग भाषा बोल रहे हैं.

कुशवाहा ने पहल करते हुए राज्य सरकार के साथ बैठक करके अपनी भावनाओं से प्रदेश सरकार और अधिकारियोंे को अवगत करा दिया है. अब गेंद बिहार सरकार के पाले में है. शौचालय निर्माण में सुस्ती की बात लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री डॉ. महाचंद्र प्रसाद सिंह भी स्वीकार करते हैं, पर वह राजनीतिक मजबूरी के चलते अलग भाषा बोल रहे हैं. सिंह कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा गलत बयानबाजी कर रहे हैं. ज़िलों से कहा गया है कि वे शीघ्र उपयोगिता प्रमाण-पत्र उपलब्ध कराएं. उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार ने जो धनराशि दी है, वह वित्तीय वर्ष के अंत में राज्य सरकार के पास पहुंची. कई योजनाओं की गाइड लाइन अभी तक नहीं मिली है. महाचंद्र प्रसाद सिंह ने केंद्र सरकार से प्राकृतिक आपदा में कोसी क्षेत्र में ध्वस्त शौचालयों के निर्माण के लिए धनराशि देने की मांग की. उन्होंने बिहार में शौचालय निर्माण की धीमी गति को स्वीकार किया और कहा कि गांव के ग़रीब लोग बिना अग्रिम भुगतान के शौचालय का निर्माण नहीं करा रहे हैं, जबकि शौचालय निर्माण के लिए तभी पैसे देने का प्रावधान है, जब वह बन जाता है. सिंह कहते हैं कि बिहार सरकार पीछे नहीं रहेगी और इसके लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं.
दरअसल, यह हाल केवल शौचालय निर्माण और घर का नहीं है. नरेंद्र मोदी की केसरिया क्रांति के सपने को भी बिहार में ग्रहण लग रहा है. इसका खुलासा हाल में हुई कृषि रोडमैप संबंधी बैठक में हुआ. बिहार में कृषि को समृद्ध और उन्नत बनाने के लिए कृषि रोडमैप तैयार किया गया है. इसमें शामिल 12 विभागों में से पांच का प्रदर्शन बेहद खराब पाया गया है. मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह की अध्यक्षता में हुई कृषि रोडमैप पर समीक्षा बैठक में बहुत-सी बातों का खुलासा हुआ. इसमें सभी 12 विभागों के संबंधित अधिकारी शामिल हुए. इस दौरान यह बात सामने आई कि पांच विभागों यानी खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण, उद्योग, सहकारिता, पशु एवं मत्स्य संसाधन और गन्ना उद्योग विभाग का प्रदर्शन काफी खराब है. इन विभागों ने इस मद में आवंटित धनराशि का पांच फ़ीसद भी अभी तक खर्च नहीं किया है.
मुख्य सचिव ने इन विभागों को अपना प्रदर्शन जल्द से जल्द सुधारने की सख्त हिदायत दी. इन विभागों से कृषि कैबिनेट के लक्ष्य हासिल करने के लिए पुरजोर प्रयास करने को कहा गया. ग्रामीण कार्य विभाग, ऊर्जा, लघु जल संसाधन विभाग, वन एवं पर्यावरण विभाग और राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग का प्रदर्शन अच्छा पाया गया है. इन विभागों ने अब तक अपनी आवंटित धनराशि का औसतन 35 फ़ीसद हिस्सा खर्च कर दिया है. ग़ौरतलब है कि पिछले महीने की 29 तारीख को मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की अध्यक्षता में कृषि कैबिनेट की खास बैठक हुई थी. आंकड़े बताते हैं कि नरेंद्र मोदी जिस रफ्तार से देश का विकास चाहते हैं, लगता है कि बिहार उस रफ्तार से नहीं दौड़ पा रहा है. अगर यह गति नहीं बदली, तो फिर नरेंद्र मोदी के सपनों को ग्रहण लगना तय है.

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