भारत में अपने रूलिंग क्लास के लिए सामंती सोच है. गवर्नर जनरल या वायसराय को शीर्ष पद पर बैठाने का विचार ब्रिटिश औपनिवेशिक देशों में ब्रिटिश सत्ता को बैठाए रखने का ही विचार था. प्रत्येक प्रेसिडेंसी में एक गवर्नर हुआ करता था, जो यह भ्रम बरकरार रखता था कि इस क्षेत्र में अभी भी ब्रिटिश राजतंत्र है. आज़ाद भारत ने इसे ज्यों का त्यों अपने संविधान के हिस्से के रूप में बरकरार रखा. इस तरह सामंती व्यवस्था अंग्रेजों के जाने के बाद भी बरकरार रही.
पूराने समय में हाउस ऑफ लॉर्ड्स में जिन सीटों पर सदस्य बैठा करते थे, उनमें कुछ दूरी होती थी, जो लगभग दो तलवारों की लंबाई के बराबर हुआ करती थी. ऐसा इसलिए किया जाता था, जिससे सदस्य आपस में लड़-झगड़ न बैठें और एक-दूसरे को शारीरिक नुक़सान न पहुंचा दें. शायद इसी वजह से काफी दिनों तक झगड़े की कोई घटना भी नहीं हुई. यहां तक कि हाउस ऑफ कॉमन्स में भी कार्रवाई में बाधा की ख़बरें नहीं सुनी गईं. भारत की संसद के दोनों सदनों में अशासकीय व्यवहार की लगातार हरकतें एक बार फिर से होने लगी हैं, जिसकी वजह से सदन की कार्रवाई रोकनी भी पड़ती है. संसद के बाहर पूर्व सांसद अपने आवंटित मकान खाली करने से मना कर रहे हैं. हाल में यह ख़बर आई कि गुजरात के राज्यपाल ने अपना कार्यकाल पूरा होने बाद भी 500 दिनों से अधिक समय आवंटित आवास में गुजारा. इसी समयावधि के दौरान उन्होंने 277 घंटे अलग-अलग हवाई यात्राओं के दौरान भी गुजारे. और वह एकमात्र गवर्नर नहीं हैं, जो इस तरह जनता का पैसा बर्बाद कर रही हैं.
भारत अपने लोेकतंत्र पर गर्व करता है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यहां चुनाव बहुत ही गाजे-बाजे के साथ होते हैं. एक बार जब सांसद चुन लिए जाते हैं, तो उनके काम की गुणवत्ता अपेक्षा से काफी कम रहती है. विशेष रूप से जो सत्तारूढ़ दल में होते हैं, उनका व्यवहार तो और भी ज़्यादा खराब होता है. जबकि उन्हें दी जाने वाली सुविधाओं में जनता का काफी पैसा लगता है. सिविल सोसायटी के लिए समय आ गया है कि वह इन लोगों से कुछ कठोर सवाल पूछे. आख़िर ऐसा क्यों है कि भारत ब्रिटेन की खराब बातों का अनुसरण करता है, बजाय अच्छी बातों के. क्या सही समय नहीं आ गया, जब टैक्स अदा करने वालों को इन सांसदों के व्यवहार का हिसाब मांगना चाहिए? भारत की तरह ब्रिटेन में सांसदों को मुफ्त आवास की सुविधा नहीं दी जाती और न ज़्यादातर सांसदों को यात्रा एवं इलाज का पैसा दिया जाता है. आख़िर एक सांसद को उसके वेतन, भत्तों और लुटियन जोन में रहने का कितना खर्च आता है? अगर अनुमान लगाया जाए, तो यह लगभग भारत की प्रति व्यक्ति आय से हज़ार गुना ज़्यादा पड़ेगा. क्या इस बात का कोई ऑडिट करता है कि सदन की कार्रवाई के दौरान झगड़ने वाले इन सांसदों पर कितना खर्च आता है?
भारत में अपने रूलिंग क्लास के लिए सामंती सोच है. गवर्नर जनरल या वायसराय को शीर्ष पद पर बैठाने का विचार ब्रिटिश औपनिवेशिक देशों में ब्रिटिश सत्ता को बैठाए रखने का ही विचार था. प्रत्येक प्रेसिडेंसी में एक गवर्नर हुआ करता था, जो यह भ्रम बरकरार रखता था कि इस क्षेत्र में अभी भी ब्रिटिश राजतंत्र है. आज़ाद भारत ने इसे ज्यों का त्यों अपने संविधान के हिस्से के रूप में बरकरार रखा. इस तरह सामंती व्यवस्था अंग्रेजों के जाने के बाद भी बरकरार रही. भारत में राष्ट्रपति की भूमिका इंग्लैंड की महारानी जैसी है. ब्रिटेन में जब भी नई संसद की शुरुआत होती है, तो महारानी का औपचारिक भाषण होता है. लेकिन, मैंने ब्रिटेन में भी यह प्रस्ताव दिया था कि इस तरह के औपचारिक भाषण का कोई औचित्य नहीं रह गया है. आख़िर क्यों महारानी को एक ऐसा भाषण पढ़ना चाहिए, जिसे प्रधानमंत्री ने लिखा हो? उन्हें प्रधानमंत्री का भाषण पढ़ने का समन नहीं देना चाहिए.
अगर ब्रिटेन में ऐसा होता है, तो भारत इसे कॉपी क्यों करता है? राष्ट्रपति को सदन की शुरुआती बैठक का अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए और प्रधानमंत्री को अपनी आगामी नीति के बारे में बताने देना चाहिए.
ब्रिटिश प्रणाली से अलग, लेकिन अमेरिका की तरह भारत में भी एक उप-राष्ट्रपति होता है, जो राज्यसभा का अध्यक्ष होता है. लेकिन, राज्यपालों की क्या ज़रूरत है, सिवाय नई सरकार को शपथ दिलाने, साल में एक बार मुख्यमंत्री द्वारा लिखा भाषण विधानसभा की शुरुआत होने पर पढ़ने के अलावा? इसके अलावा आख़िर राज्यपाल ऐसा क्या करते हैं, जिसके लिए उन्हें भव्य ट्रीटमेंट दिया जाता है? क्या आप जानते हैं कि राज्यपालों के इस पूरे सेटअप पर कितना खर्च आता है? क्या उनके काम से उन पर होने वाला खर्च न्यायसंगत लगता है? क्या समय नहीं आ गया है, जबकि यह औपनिवेशिक व्यवस्था समाप्त कर देनी चाहिए. अब जबकि हम सुधारों के बारे में विचार कर रहे हैं, हमें संसद और उसके आकार के बारे में भी सोचना चाहिए. क्या लगभग 80 करोड़ से ज़्यादा वोटरों के लिए स़िर्फ 545 सांसद काफी हैं? क्या हमारे पास प्रत्येक दस लाख की जनसंख्या पर एक सांसद नहीं होना चाहिए? लंबे समय से महिला आरक्षण को लेकर चल रहा बवाल ख़त्म हो जाएगा, अगर 300 महिला सीटें बढ़ा दी जाएं और बढ़ी हुई संसद के लिए लुटियन जोन में ही मकान हो, ऐसा ज़रूरी नहीं है. सांसदों को किराए के मकानों में रहने दीजिए. लुटियन बंगलों की बिक्री से संसद की नई बिल्डिंग की क़ीमत भी बड़ी आसानी से आ जाएगी.
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