modiगठबंधन की राजनीतिक धमाचौकड़ी के बीच साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जिला भाजपा संगठन को पूरी उम्मीद थी कि सीतामढ़ी में भाजपा प्रत्याशी चुनाव मैदान में होगा. परंतु गठबंधन की राजनीति ने पार्टी संगठन के उत्साह को ठंडा कर दिया. जब गठबंधन के तहत सीतामढ़ी सीट से रालोसपा के राम कुमार शर्मा को बतौर प्रत्याशी चुनावी समर में उतारने की घोषणा की गई, तब से जिला भाजपा संगठन के कार्यकर्ता निराश हैं. इसके बावजूद सभी ने अपनी जुबान बंद रखी थी.

लेकिन इसके बाद से ही पार्टी के अंदर जातीय राजनीति सुलगने लगी. वैश्य बनाम कुशवाहा की राजनीतिक चिंगारी चुनावी फिजा में उड़ने लगी थी. मगर तत्कालीन प्रदेश नेतृत्व ने भनक लगते ही जिला संगठन को बेपटरी होने से रोक दिया था. नतीजतन तकरीबन डेढ़ लाख मतों से कुशवाहा बिरादरी के राम कुमार शर्मा सांसद निर्वाचित हुए. इसके साथ ही चुनाव जीतकर सदन पहुंचने वाले पहले कुशवाहा नेता के रूप में इनका नाम सीतामढ़ी में दर्ज हो गया. चुनाव के बाद केंद्र में भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी. प्रधानमंत्री की पहल पर स्वच्छता अभियान, गांव को गोद लेने, उज्ज्वला योजना समेत अन्य कल्याणकारी

योजनाओं का शुभारंभ किया गया. केंद्र सरकार के तीन साल पूरे होने पर साल 2017 में सबका साथ-सबका विकास कार्यक्रम के माध्यम से सरकार की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य शुरू किया गया. जून 2017 के अंतिम सप्ताह में सीतामढ़ी जिला मुख्यालय डुमरा में आयोजित कार्यक्रम ने एनडीए के अंदरूनी विरोध को सामने ला दिया. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सह पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन की मौजूदगी में कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचे रालोसपा सांसद को लेकर जिला भाजपा संगठन के पदाधिकारियों ने सांकेतिक विरोध शुरू कर दिया.

इसके साथ ही जिला एनडीए का अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गया. कार्यक्रम के महज एक सप्ताह बाद ही खबर फैली कि पार्टी के शिवहर जिला प्रभारी सह सीतामढ़ी कार्यक्रम प्रभारी मिथिलेश प्रसाद को बर्खास्त कर दिया गया है. दो-चार दिन बाद ही भाजपा जिलाध्यक्ष सुबोध कुमार सिंह ने उक्त खबर को निराधार बताते हुए एक प्रेसवार्ता में सांसद को हद में रहने की नसीहत दे डाली. इसके बाद रालोसपा के प्रदेश उपाध्यक्ष मोहन कुमार सिंह ने भी बयान दे दिया कि भाजपा जिला संगठन की करतूत से प्रदेश नेतृत्व को अवगत कराया जाएगा. रालोसपा इस मामले में चुप नहीं रहेगी. दोनों ही दलों का अगला कदम क्या होगा, इसके बारे में फिलहाल कयास ही लगाया जा सकता है. मगर इतना साफ है कि एनडीए में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है.

अब एक नजर भाजपा के संभावित प्रत्याशियों पर डाल लेते हैं. जिले की राजनीति में चल रही चर्चाओं पर यकीन करें तो संभावित प्रत्याशियों ने अपने-अपने तरीके से चुनावी जंग की तैयारी शुरू कर दी है. सांसद के विरोध के पीछे कद्दावर भाजपा नेताओं के हाथ होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. उनका मकसद वर्तमान सांसद को नकारा साबित कर खुद को बेहतर रूप में पार्टी संगठन के सामने लाना हो सकता है. वैसे अभी चुनाव में वक्त है. गठबंधन की राजनीति पटरी पर रहती है अथवा बेपटरी होती है, के बारे में कुछ कहना मुश्किल है.

परंतु इतना तो साफ है कि समय रहते अगर भाजपा का शीर्ष व प्रदेश नेतृत्व मामलेे को गंभीरता से नहीं लेती है तो यह एनडीए के लिए एक बड़ी भूल साबित होगी. खबर है कि सीतामढ़ी जिला भाजपा संगठन से गुपचुप कई लोगों का नाम चर्चा में शामिल है. परंतु फिलहाल कोई नाम खुलकर सामने नहीं आया है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो संभावित प्रत्याशियों में वर्तमान से पूर्व तक के कई कद्दावर नेता चुनावी तैयारी में जुटे हैं. मगर चुनाव का समय नजदीक आने पर कुछ नए चेहरे भी मैदान में ताल ठोक सकते हैं. कयास यह भी लगाया जा रहा है कि बिहार की राजनीति में उठे भूचाल के शांत होने के बाद ही एक स्पष्ट तस्वीर सामने आएगी. बस थोड़ा और इंतजार कीजिए.

सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र से भाजपा को भी चुनाव में भाग्य आजमाने का मौका मिला था. साल 1996 में भाजपा के टिकट पर चुनावी समर में उतरे उमाशंकर गुप्ता महज डेढ़ लाख वोट ही ला सके थे. जबकि 1998 में भाजपा प्रत्याशी अवनीश कुमार सिंह को सवा 2 लाख वोट लाकर भी चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था. इन दोनों से पूर्व दो और मौका जिला भाजपा को मिला था. तब दोनों में से किसी भी चुनाव में 50 हजार वोट बटोर पाने में प्रत्याशी नाकाम रहे थे. सच्चाई यह भी है कि भाजपा संगठन उन दिनों इतनी मजबूत स्थिति में नहीं था. 1998 के बाद से लेकर अब तक भाजपा के टिकट पर सीतामढ़ी संसदीय सीट से किसी भी प्रत्याशी को चुनावी समर में मौका नहीं दिया गया है. हालांकि इस दिशा में जिला भाजपा संगठन हमेशा प्रयासरत रहा है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here