IMG_0595मध्य प्रदेश में नगर निकाय चुनावों का बिगुल बज चुका है. राज्य में नगर निगम और नगरीय निकायों में 28 नवंबर व 02 दिसंबर को चुनाव होंगे. 4 व 6 दिसंबर को परिणाम आ जाएंगे. तब यह सिद्ध हो जाएगा कि 9 साल से मुख्यमंत्री के पद पर काबिज शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता अभी भी बरकरार है या उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है. पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को जबर्दस्त सफलता मिली थी और शिवराज तीसरी बार मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हुए थे. 2009 के मुकाबले 2013 में भाजपा को विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें मिली हैं. इसका सीधा सा मतलब है कि शिवराज के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में भाजपा का जनाधार बढ़ा. इसके पांच महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में भी मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा को 27 में से 25 सीटों पर जीत हासिल हुई. कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ही अपनी सीट बचाने में कामयाब हो सके थे. हाल ही में तीन विधानसभा सीटों के लिए हुए उप-चुनाव में भाजपा को एक सीट पर हार का सामना करना पड़ा.
नगरीय चुनाव के प्रथम चरण में 11 नगर निगम और 280 नगर निकायों के चुनाव होंगे. इंदौर, ग्वालियर, सागर, रीवा, सतना, कटनी, खंडवा, देवास, बुरहानपुर, सिंगरौली और रतलाम में महापौर और पार्षदों के चुनाव होेंगे. नगरीय निकाय चुनाव के दूसरे चरण के अंतर्गत दिसंबर में 4 नगर निगम में महापौर और पार्षद चुने जाएंगे. इनमें भोपाल, जबलपुर, छिंदवाड़ा और मुरैना जिले शामिल हैं. दिसंबर में ही 2 नगर पालिका परिषद विदिशा, मैहर और 1 नगर परिषद बनखेड़ी में मतदान होगा. जबलपुर, छिंदवाड़ा और भोपाल के परिसीमन प्रस्ताव पर यदि राज्यपाल मुहर लगा देते हैं, तो इन जिलों में भी दिसंबर में ही चुनाव संपन्न हो सकेंगे अन्यथा यहां मतदान की तारीखें बदली जा सकती हैं.
व्यापम घोटाला शिवराज सरकार के लिए गले की फांस बना हुआ है, रह-रह कर इसमें नए खुलासे हो रहे हैं. हालांकि हाईकोर्ट की निगरानी में एसआईटी इसकी जांच कर रही है. कांग्रेस लगातार इस घोटाले की जांच सीबीआई से करने की मांग कर रही है. शिवराज सिंह चौहान की जांच एसआईटी से कराने के निर्णय पर अडिग हैं उन्हें विश्वास है कि एसआईटी मामले की तह तक पहुंच कर दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी. मुख्यमंत्री विधानसभा में यह मान चुके हैं कि एक हजार भर्तियां फर्जी हैं. भले ही वे आंकड़ा कम बता रहे हों, लेकिन यह तो मान रहे हैं कि फर्जी भर्तियां हुई हैं. सच्चाई से पर्दा उठाने के लिए इतना ही काफी है. यह सच है कि व्यवसायिक परीक्षा मण्डल (व्यापम) घोटाले और पीएमटी फर्जीवाड़े के कारण शिवराज सरकार की प्रतिष्ठा गिरी है.
व्यापम घोटाले के बाद अब शिवराज सरकार मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (पीएससी) में हुई धांधलियों के आरोप में घिरती नजर आई. मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग में हुई गड़बड़ियां भी अब उजागर होने लगी हैं. आरटीआई से खुलासा हुआ है कि वर्ष 2006 में लोक सेवा आयोग के तत्कालीन चेयरमैन प्रदीप जोशी की नियुक्ति आरएसएस के प्रचारक विनोद जी के लिखित आदेश पर की गई थी जो कि असंवैधानिक है. गौरतलब है कि इंटेलिजेंस ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ कहा था कि प्रदीप जोशी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी के रिश्तेदार हैं और उनकी नियुक्ति इस पद पर नहीं की जा सकती है. बावजूद इसके उनकी नियुक्ति की गई.
हालांकि स्थानीय निकाय के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं. इस पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार की नीतियों का ज्यादा असर नहीं पड़ता है. हालांकि देश में अभी भी मोदी लहर बरकरार है यह बात हरियाणा और महाराष्ट्र में पार्टी को मिली सफलता से जाहिर हो जाती है. स्थानीय-वार्ड चुनाव में गली, मोहल्ले, बाजारों, शहर से जुड़ी समस्याएं और विकास कार्य ही प्रभावित करते हैं. राज्य में नगरीय निकाय चुनाव हों, उपचुनाव हो या मंडी-पंचायत चुनाव हों सत्तारूढ़ दल को आशाजनक परिणाम नहीं मिलते हैं तो उसके मुख्यमंत्री की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़े होंगे और साथ ही उनकी लोकप्रियता पर भी आंच आएगी. इसलिए शिवराज इन चुनावों में जीत हासिल करने के लिए पूरा दम लगाएंगे. कांगेस पार्टी इसे लंबे समय से मुद्दा बनाए हुए है और लगातार शिवराज सिंह से इस्तीफा देने की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस इस मुद्दे को भुना नहीं पा रही है. ऐसे भी यह चुनाव शहरों के आधारभूत विकास का है. यहां यह मुद्दा प्रभावी भी नहीं हो सकता. लेकिन कांग्रेस के पास और कुछ ऐसा नहीं है जिसे लेकर वह चुनाव में उतर सके. व्यापम घोटाला भी उनके लिए संजीवनी साबित नहीं होता दिख रहा है. पिछली बार कांग्रेस केवल दो नगर निगमों पर ही महापौर का चुनाव जीत सकी थी. यदि वह अपनी उन्हीं सीटों को बचाने में सफल हो जाती है तो यह उसके लिए बड़ी उपलब्धि होगी.
पिछले बार हुए हुए निकाय चुनावों में भाजपा भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर जैसे मुख्य शहरों में महापौर के पद पर कब्जा किया था. पलड़ा इस बार भी भाजपा का ही भारी दिख रहा है. बड़ी संख्या में दूसरी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं. इसका सीधा असर कांग्रेस और दूसरे दलों की के भविष्य पर पड़ेगा. भले ही भाजपा को जीत हासिल हो जाए लेकिन उसे व्यापम और लोक सेवा आयोग में हुई धांधलियों का सच जनता के सामने लाना ही होगा और दोषियों को सजा देनी होगी नहीं तो प्रदेश भाजपा और शिवराज सिंह के लिए अच्छे दिन नहीं रह जाएंगे.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here