अजय बोकिल
यूं पापड़ तो राजनीति में भी कम नहीं बेलने पड़ते, लेकिन पापड़ को लेकर सियासत का शायद यह पहला उदाहरण है। राज्यसभा में, कोरोना प्रकोप की विकट स्थिति को लेकर महाराष्ट्र सरकार को घेरे जाने के बाद राज्य में सत्तारूढ़ शिवसेना के सांसद संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र के आलोचकों को समझना चाहिए कि बड़ी संख्या में वहां लोग ठीक भी हुए हैं। राउत ने प्रतिप्रश्न किया कि क्या राज्य में 30 हजार कोरोना संक्रमित ‘भाबीजी के पापड़’ खाकर ठीक हो गए? राउत ने कहा कि यह कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं बल्कि लोगों का जीवन बचाने की लड़ाई है। ध्यान रहे कि देश के सियासी परिदृश्य में पहली बार पापड़ तब नमूदार हुए थे, जब दो माह पहले केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने बीकानेर की एक निजी कंपनी के ब्रांड ‘भाबीजी के पापड़’ की लांचिंग इस दावे के साथ की थी कि इसे खाने से कोरोना ठीक हो सकता है। दावे का आधार यह था कि इस पापड़ में जो सामग्री व मसाले पड़े हैं, उनसे शरीर में एंटीबाॅडीज बनते हैं। यह बात अलग है कि इस ‘दवानुमा पापड़’ की लांचिंग के एक पखवाड़े बाद खुद अर्जुनराम ही कोरोना पाॅजिटिव हो गए। उन्हें इलाज के लिए एम्स में भर्ती कराना पड़ा। इलाज के दौरान मेघवाल ने कुछ ट्वीट किए, लेकिन उनमें पापड़ की इम्युनिटी क्षमता का कोई जिक्र नहीं था।
बहरहाल इस ‘पापड़ पाॅलिटिक्स’ ने संभवत: पहली बार पापड़ जैसे भारतीय खाने के एक अनिवार्य घटक को चर्चा के केन्द्र में ला दिया। पहला पापड़ किसने बेला, यह तो पता नहीं, लेकिन पापड़ इस देश में सदियों से बेले और खाए जाते रहे हैं। खाने की थाली में उनकी भूमिका पाचक और स्वादवर्द्धक सहायक के रूप में रही है। आकार में रोटी की माफिक गोल, वजन में हलके, खाने में कुरकुरे और स्वादिष्ट पापड़ मुख्य रूप से दाल, चावल और साबूदाने आदि से बनते हैं। मप्र के निमाड़ में तो आम की गुठली के भी स्वादिष्ट पापड़ बनते हैं। आलू के पापड़ भी मशहूर हैं। आजकल मशीन से भी पापड़ बनते हैं, लेकिन हाथ से बिले हुए पापड़ का स्वाद उनमें नहीं है। क्योंकि हाथ से बिले पापड़ में बेलने वाले का पसीना भी घुला होता है। पापड़ शाकाहारी थाली का एक अहम घटक है। सुदूर पूर्वोत्तर को छोड़ दें तो पापड़ देश के लगभग हर हिस्से में शौक से खाया जाता है। सिंधी संस्कृति में तो पापड़ अतिथि सत्कार का हिस्सा है। पापड़ की खूबी यह है कि यह भून कर भी खाया जा सकता है और तलकर भी। इसे साबुत भी खाया जा सकता है और टुकड़ों में भी। राजस्थान और मालवा में पापड़ की स्वादिष्ट सब्जी भी बनती है। पापड़ से भारतीय खाने को एक अलग पहचान और लज्जत मिलती है।
अब केन्द्रीय मंत्री मेघवाल ने ‘भाबीजी’ पापड़ लांच क्यों किया, इसकी असल वजह तो उन्हें ही मालूम होगी, लेकिन वो राजस्थान के बीकानेर से सांसद हैं और भाबीजी पापड़ भी वही के एक उद्योगपति का उत्पाद है, शायद इसीलिए उन्होंने उसकी लांचिंग की होगी। यह बात अलग है कि पापड़ की यह लांचिंग भी उस कोरोना काल में हुई, जिसमें खुद पापड़ उद्योग जिंदा रहने के लिए पापड़ बेल रहा था। ऐसे में मंत्रीजी की सिफारिशी पापड़ पसंद सुर्खियां बननी ही थी।
यहां सवाल यह भी उठता है कि आखिर एक केन्द्रीय मंत्री को पापड़ प्रमोशन करने की क्या गरज आन पड़ी? वजह यह है कि अर्जुन मेघवाल उस बीकानेर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो दुनिया भर में भुजिया, पापड़ और नमकीन के लिए मशहूर है। बीकानेर में पापड़ बनाने की करीब 3 सौ इकाइयां हैं। इसमें हजारों लोग काम करते हैं। यूं पापड़ मप्र सहित देश के कई राज्यों में बनते हैं, लेकिन बीकानेरी पापड़ की अपनी पहचान है। इसकी वजह पापड़ में मिलाया जाने वाला सज्जीखार है। सज्जी एक विशिष्ट पौधा है, जो राजस्थान और सिंध की बंजर जमीन पर उगता है। लेकिन इसका चूरा पापड़ में डालने से उसकी पौष्टिकता और स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। हालांकि बीकानेरी पापड़ उद्योग के मुश्किल में आने की एक वजह मोदी सरकार द्वारा सज्जी के आयात पर 2 सौ प्रतिशत आयात कर और पापड़ पर 18 फीसदी जीएसटी लगाना भी है। सज्जी पहले पाकिस्तान से आयात होता था, अब यह अफगानिस्तान के रास्ते से भारत आता है।
इन सबके बावजूद देश में पापड़ उद्योग एक तेजी से बढ़ता उद्योग है। भारत में इसका आकार 1 हजार करोड़ रू. का बताया जाता है। पापड़ मूलत: एक कुटीर उद्योग है। देश में कई मशहूर पापड़ ब्रांड हैं, जिनमें लिज्जत गृह उद्योग सबसे बड़ा संगठित पापड़ उद्योग है। पापड़ बाजार में इसकी हिस्सेदारी 5 फीसदी बताई जाती है। यह महिलाअों द्वारा संचालित सबसे बड़ा गृह उद्योग है। चूंकि पापड़ बनाने या बेलने में आज भी महिलाअोंकी अहम भूमिका है, शायद इसीलिए मंत्रीजी द्वारा लांच किए पापड़ को ‘भाबीजी के पापड़’ नाम दिया गया है। कहना मुश्किल है कि इसका नाम अगर ‘सासूजी के पापड़’ होता तो कितना पापुलर होता और कितना कोरोना से लड़ पाता।
फिर भी इतना तो माना ही जा सकता है कि पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक भारतीय थाली का एक लोकप्रिय और काॅमन फैक्टर पापड़ है। हर बात के ‘केन्द्रीकरण’ के इस दौर में पापड़ की इस खूबी की अोर शायद किसी का ध्यान नहीं गया है। वरना ‘एक भारत, एक पापड़’ जैसा कोई स्लोगन अभी तक टीवी चैनलों के प्राइम टाइम का मुददा बन चुका होता और पापड़ के माध्यम से राष्ट्र के सशक्तिकरण के किसी फंडे से हम नए सिरे से वाकिफ हो चुके होते।
लेकिन पापड़ में राजनीतिक मसाला भी है, यह अब जाकर साफ हुआ। उद्धव ठाकरे के ‘हनुमान’ माने जाने वाले संजय राउत ने संसद में पापड़ और उसके खास ब्रांड का जिक्र कर उसकी मार्केट वैल्यू को कई गुना बढ़ा दिया है। यही काम पहले अर्जुन मेघवाल भी कर चुके थे। आश्चर्य नहीं कि स्वास्थ्यवर्द्धक ‘पापड़ की बात’ किसी राष्ट्रीय संबोधन का मुख्य मुददा बन जाए। अलबत्ता यह अभी तय होना है कि इसमें किसका पापड़ ‘कच्चा’ और किसका पापड़ राजनीतिक दृष्टि से ‘पक्का’ साबित होता है। बावजूद इसके देश का संपूर्ण पापड़ उद्योग और खाने के साथ, खाने के पहले और खाने के बाद पापड़ खाने के शौकीन राउत और मेघवाल के इस बात के लिए ऋणी रहेंगे कि उन्होंने पापड़ को नई राजनीतिक हैसियत बख्शी। वरना इस देश के आम नागरिक पापड़ को अभी तक महज एक पापड़ की तरह ही ट्रीट करते आए थे। मंत्री मेघवाल ने यह समझाने की कोशिश की कि ‘भाबीजी के पापड़’ खाने से कोरोना वाॅरियर बना जा सकता है तो सांसद संजय राउत ने यह सिद्ध करने की कोशिश की िक पापड़ के भरोसे महामारियां ठीक नहीं होतीं। इस विवाद में अच्छी बात यह है कि खुद पापड़ अपने आप में राजनीति निरपेक्ष है। इसीलिए शाम की बैठकों में छलकते जामों के साथ भी स्नेक्स के रूप में पापड़ उतना ही जरूरी है, िजतना नेताअोंके लिए चमचे, सत्ता और गाड़ी। अब ये पापड़ ‘भाबीजी’ के हों या ‘420’, इससे खास फर्क नहीं पड़ता !
वरिेष्ठ संपादक
‘राइट क्लिक’
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 18 सितंबर 2020 को प्रकाशित)