” जब वेदना -संवेदना की  उथल -पुथल शब्दों का रूप लेने लगती है तब हौले से यादों की किताब खुलती है और जीवन के रंग पन्नो पर बिखरने लगते है । इन्ही रंगों की सुंदरता ,नमी और शुष्कता को समेटे हुए है ये कविताएं “
कवि शिरीन भावसार के कविता संग्रह  ‘एकांत का इकतारा ‘ में शिरीन उपरोक्त पँक्तियों को अपनी भूमिका में लिखकर अपने लेखकीय के मनोभावों को प्रकट करती है ।
कविताएं  कहती जाती है पाठक आँखों के रास्ते उनके भाव गटकता जाता है । बेचैनी शब्द बन जाते है …।  *एकांत के इकतारे* के तार बजते जाते ।यादों की ,सम्वेदनाओं की खिड़की खुलती जाती है ।पाठक डूबता जाता है । कभी कोई आवाज़ दूर से आती सुनाई देती है तो कभी निकट ही कानों में नगाड़ों सी बजाती है ।
जीवन बिखरे पन्ने सा होता है ।बेतरतीब सा ।कुछ मुड़े तुड़े पन्ने ,कुछ धुँधलाये से ,कुछ नमी लिए ..उंन्हे समेटना , तरतीब देना ,पुनः गूँथना, नई जिल्द लगाना ही कविता लिखना है ।यही तो कहती है शिरीन अपनी पहली कविता ‘यादों की किताब’ में ।
हर कवि जीवन ही तो समेटता है अपनी कविताओ में । कुछ फिसल जाता है ,कुछ छूट जाता है ।
” यूँ तो फिसल जाती है
  हथेलियों पर रेत मगर
  मन कण रूपी लम्हों को
   यादों की डिबिया में
    वक़्त बनाकर सहेजता है ।”
शब्द कभी प्रेम बन जाते है कभी लड़ाई ।
लेखन और शब्द साथ होते हुए भी एक दूसरे से तारतम्य नही बिठा पाते । कविता इस बात को भी ईमानदारी से कह जाती है । मन की सच्ची बात को उकेरना भी सीखा है शिरीन ने ….तभी तो आसानी से कह जाती है –
  ” रोज़ ही लड़ती हूँ मैं साथ
     इन अल्फाजों के
    कभी मैं स्वयं इनमें नहीं समाती
    कभी ये मुझमें नही समाते ।”
जीवन सरलता से कब चल पाता है ? तूफान और झंझावात तो आते ही रहते है ।ये सच हर आदमी जानता है ।यही कठिनाइयां उजास देती है ,साहस देती है ,सफलता देती है .. पर इसे स्वीकार करना मुश्किल होता है । कविता ही इसे स्वीकार करके रास्ते की पहचान कराती है ।यही स्वीकारोक्ति मुस्कान के साथ मुश्किलों को भी स्वीकारती है ।
यही सीख देती है ये कविता की पंक्तियां –
” एक नए तूफान का
मचा दी कोहराम
देदे वक़्त को भी
अपनी कुछ निशानियां
वो वक़्त ही क्या
जिस पर
तेरी निशानियां न हो ।”
बेचेनिया कभी सवाल करती है कभी खुद ही जवाब भी तलाश लेती है । नई परिभाषाएं बनती है जीवन में ।पुराने सिद्धांत बदलते जाते है । कभी वक़्त के हाथों छोड़ना भी होता है । जीवन का ये लचीलापन ही सहज बनाता है ।ये सत्य मन को कभी तोड़ता है तो कभी जोड़ता है ।
“परिस्थियां गड़वाती रही
नई परिभाषाएं
सिद्धांत स्वयं ही बनाये कई “
‘एकांत का इकतारा ‘ संग्रह में कई नए, पुराने विषयों को समेटा है । जो जीवन की ही बात करते है । रुई , पोनी , अश्क ,बिंदु, चीत्कार ,बांध आदि कविताएं  प्रभावित करती है । माँ और पिता पर लिखी कविताएं परिवार का भरोसा हैं ।
पिता पर लिखी कविता की अंतिम पंक्ति –
“इस एक पंक्ति में
सिमट गया सब कुछ
‘पिता नहीं है मेरे पास ‘। “
कह कर सारे दुख ,तड़प  उंडेल देती है शिरीन ।
पिता के न होने के पीछे ही बहुत बड़ी कहानी छुपी होती है ।
प्रेम पर हर कवि ने अपने अनुभव लिखें है ।
कोई सुख तो कोई दुख की तरह लेता है ।
रीतिकाल से आज तक प्रेम सबका मुख्य और प्रिय विषय रहा है ।
प्रेम पर लिखना आसान नही क्योंकि  कितना भी लिखा हो अधूरा ही रहता है आधे चाँद की तरह।
शिरीन प्रेम को पीड़ा का परिचायक बताती है ।सुख से ही पीड़ा होती है और पीड़ा से ही सुख ।
किसी एक पर बात करना दौनो पर बात करना होता है —
“प्रेम एकांत का इकतारा है
जिसमे सदैव ही पीड़ा की तरंगें
ध्वनित होती होती रहती है ।”
कवि की सोच और शब्दों की पहुंच जीवन के साधारण व्यवहार से लेकर जीवन के जीवन – मरण तक पहुंचती है ।इस संसार के चक्र को कवि की निगाहें गहराई से देखती है । अपनी ‘मिथ्या ‘
कविता में शिरीन चिंतन करती है जीवन-मृत्यु के पलों का और अपनी उहापोह को व्यक्त करती है –
” ज़िंदगी और मौत
दौनो ही मुझे अचंभित करती है
सोचती थी
ज़िंदगी उत्सव है
किंतु
मौत !
यू लगा जैसे महोत्सव हो “
इसी कविता की अंतिम पंक्ति तक पहुंचते
उदास हो जाती है शिरीन और कह देती है -.
” तब
यह पूरा जीवन
बेहद मिथ्या लगता है ।”
संग्रह की कविताओ में कुछ नए प्रयोग भी है ।
कुछ कविताओ में  गद्य के साथ भी अपनी बात कही है रचनाकार ने । ये उनके मन की
कुलबुलाहट और चिंतन का परिणाम है ।
मानव मन की परतों को उघाड़ने का एक सफल प्रयास भी है ।
कविताओ में कहीं कहीं सूत्र की तरह पंक्तियां है जो अपने आप मे पूर्ण है ।इन्हें न विस्तार की जरूरत है  न  खोलने की । याने सूत्र कविता भी लिखी जा सकती थी । ऐसे कई उदाहरण है पर दो प्रस्तुत हैं  –
‘ अस्तित्व
स्वयं का होता है
और
खालीपन साझा ‘
* * * * *
‘ कुछ सीमाएं हमें
तर्क वितर्क से परे ले जाती है
तब सिर्फ स्वीकारोक्ति शेष
रह जाती है ।’
कविताएं अपने समय की सशक्त हस्ताक्षर है ।
भाषा सहज और सरल है । पाठक के पास पहुंचती है और सहमत करवाती है । ज्यादा विम्बो का सहारा लिया न प्रतीकों का ।बात की तरह बात कह दी निर्मल मन की तरह।कवयित्री के जीवन अनुभव और चिंतन उनकी कविताओं को खास बनाता है ।
बस.…… कहीं कहीं उपदेशात्मक होने से प्रभाव को खत्म करती है । कहा भी गया है कवि को उपदेश और आत्म प्रशंसा से बचना चाहिए और ना ही अपने ज्ञान का इतना प्रदर्शन हो कि पाठक को संकोच होने लगे ।
मित्र की तरह होनी चाहिए कविताएं ।
पेज नम्बर 103 पर लिखी कविता है–
” पलट कर न पढ़ी जा सकने वाली
उम्र की डायरी
न जाने कब
राख हो धुएं में तब्दील हो जाती है “
इसमे यही कहना है कि राख होने के बाद धुंआ नही होता । इस पर दोबारा सोच लें ।
कवितओं को पढ़कर शीर्षक की सार्थकता समझ आती है । सचमुच कविताएं ‘एकांत का इकतारा’ है जो बजता ही रहता है हर सांस के साथ ।
अज्ञेय ने भी कहा है – “कविता ,अर्थवान मूक क्षणों की वह श्रंखला है जो शब्दों की कड़ियों से जोड़ दी गई हैं ।’
संग्रह की भूमिका लिखते हुए डॉ दिनेश चारण
ने कहा – ” कवयित्री हम सभी के एकांत को इकतारे की धुन सुना रही है ।”
डॉ के. बी . एल पांडेय ने अपने आशीर्वचन देते हुए कहा है – ” शिरीन भावसार की ये कविताएं हमारे विविध सरोकारों के जीवंत भाषा में कहे गए अपने ही हालचाल है ।”
बोधि प्रकाशन से  प्रकाशित  इस पुस्तक की छपाई सुंदर और स्पष्ट है ।वर्तनी की गलतियां देखने को नही मिली । उत्तम कागज़ का चयन किया गया है ।प्रकाशन टीम का सुगठित और सधा  हुआ काम
पुस्तक को सुंदर और सार्थक बनाता है ।
संग्रह का प्रकाशन कविताओं  का घर बनाना है ।
दुआ है  …और भी घर बने ।मन से मन की बात हो ।’एकांत के इकतारे’ के सुर बजते रहें और पाठक को सहमत और सम्मोहित करते रहें  ।
और लिखें .. और बेहतर लिखे शिरीन ।
शुभकामनाएँ।
                पाठकीय टिप्पणी
              – मधु सक्सेना
                 साहित्यकार एवं समीक्षक
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