ध्यान देने योग्य बात यह है कि अन्ना हजारे का ममता बनर्जी को समर्थन देना राजनीतिक ब़डी राजनीतिक घटना थी लेकिन किसी भी ब़डे दल की तरफ से इसे लेकर कोई विशेष प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है. यहां तक कहा जा सकता है कि इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में एक तरह का सन्नाटा भी पसरा हुआ है. इसे लेकर हमने कुछ राजनीतिक हस्तियों से प्रतिक्रियाएं लीं. मार्क्सवादी पार्टी के वरिष्ठ गुरुदास दास गुप्ता ने इस मामले में किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया.
IMG_0074लोकपाल बिल के लिए निर्णायक ल़डाई ल़डने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा आगामी लोकसभा चुनाव में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को समर्थन किए जाने के मामले पर अन्य दलों ने एकतरह की चुप्पी साध रखी है. अन्ना हजारे ने ममता बनर्जी का यह कहते हुए समर्थन किया कि मैं दीदी को एक व्यक्ति या नेता के रूप में समर्थन नहीं दे रहा हूं, बल्कि समाज और देश के प्रति उनके जो विचार हैं, उसको मेरा समर्थन है. मैंने अगर पहली बार देश और समाज के बारे में सोचने वाला व्यक्ति देखा तो वह दीदी हैं. इसलिए मैं उन्हें सपोर्ट करता हूं. वहीं ममता ने भी अन्ना की शान में कीसदे ग़ढे.
अन्ना हजारे एक समाजसेवी हैं और देश के प्रति उनकी आस्था को लेकर शायद ही किसी को संदेह हो. ममता बनर्जी के साथ दिल्ली मेंे हुई प्रेस कांफ्रेंस के दौरान अन्ना हजारे ने बताया कि उन्होंने देश के बेहतर भविष्य के लिए एक सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम सभी पार्टियों के पास भेजा था लेकिन उसका जवाब सिर्फ ममता की तृणमूल कांगे्रस ने ही दिया. ममता ने अन्ना को इस बात का विश्‍वास दिया कि वे उनके इस सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करेंगी. अन्ना ने इस अवसर अपनी बात दोहराई कि वे अभी भी किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं कर रहे हैं बल्कि वे उन सत्रह सूत्रीय कार्यक्रम का समर्थन कर रहे हैं जिन्हें लागू करने की बात ममता बनर्जी ने कही है.
ध्यान देने योग्य बात यह है कि अन्ना हजारे का ममता बनर्जी को समर्थन देना एक ब़डी राजनीतिक घटना थी लेकिन किसी भी ब़डे दल की तरफ से इसे लेकर कोई विशेष प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है. यहां तक कहा जा सकता है कि इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में एक तरह का सन्नाटा भी पसरा हुआ है. इसे लेकर हमने कुछ राजनीतिक हस्तियों से प्रतिक्रियाएं लीं. मार्क्सवादी पार्टी के वरिष्ठ गुरुदास दास गुप्ता ने इस मामले में किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया.
बार-बार पूछे जाने पर भी कोई उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया. जब हमने इसपर कांग्रेस के नेता मोहन प्रकाश से संपर्क साधा तो उन्होंने भी कोई सीधा जवाब न देते हुए यह कहा कि इस संबंध में कोई भी टिप्पणी पार्टी के प्रवक्ता ही करेंगे. भाजपा की तरफ से हमें थो़डी बेहतर प्रतिक्रिया मिली. अन्ना के ममता बनर्जी को सपोर्ट करने के मामले पर वरिष्ठ भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि यह लोकतंत्र के लिए बेहतर है. अगर अन्ना हजारे ऐसा मानते हैं कि ममता बनर्जी उनकी नजर में सबसे बेहतरीन नेता हैं तो यह लोकतांत्रिक तरीका है और लोकतंत्र में सबके अपने विचार हैं. अन्ना हजारे ब़डे समाजसेवी हैं और किसी भी राजनीतिक नेता का समर्थन करने के लिए स्वतंत्र हैं.
इस संबंध में रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के नेता रहे अबनि रॉय का कहना है कि अन्ना हजारे महाराष्ट्र के रहने वाले हैं उनके आंदालनों का केंद्र भी दिल्ली और महाराष्ट्र ही रहे हैं, ऐसे में बंगाल में उनका असर प़डेगा, इस बात की कम ही संभावना है. यह पूछे जाने पर कि अन्ना हजारे की लोकप्रियता देश भर में है और ऐसी अवस्था में क्या ममता बनर्जी की पार्टी को राज्य में उससे बाहर कोई फायदा हो सकता है, उन्होंने कहा कि थो़डा-बहुत-असर प़ड सकता है लेकिन अन्ना का यह कहना कि ममता प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार हैं, गलत है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह थो़डी सी प्रैक्टिकल बात नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री का पद पाने के लिए किसी भी पार्टी को 272 सीटों की आवश्यकता होती है, ऐसे में ममता बनर्जी के लिए इस बात की घोषणा करना कि वे देश की अगली प्रधानमंत्री बन सकती हैं, थो़डा इम्प्रैक्टिकल लगता है. इसे लेकर कोलकाता में मुस्लिम एकता परिषद संस्था के अब्दुल अजीज रशीद का कहना है कि अभी चुनावों में लगभग दो महीने का समय बाकी है, और मतदाताओं का रुख अन्ना के समर्थन की वजह से ममता की तरफ और भी खिंच सकता है और इसके विपरीत अवस्था भी हो सकती है. हमें इसके लिए इंतजार करना होगा और देखना होगा कि जनता अन्ना के समर्थन का कितना समर्थन करेगी.
कुछ भी कहा जाए लेकिन एक बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अन्ना के ममता बनर्जी को इस तरह से समर्थन देने और उन्हें पीएम पद का सबसे योग्य प्रत्याशी बताने की वजह से दूसरे दलों में बेचैनी साफ देखी जा सकती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्ना ने पहले भी यह घोषणा की है कि वे लोकसभा चुनाव में पाक-साफ छवि वाले प्रत्याशियों का समर्थन करेंगे. ऐसे में इस बात के आसार काफी प्रबल हो जाते हैं कि राज्य के बाहर भी तृणमूल कांग्रेस की सीटों में इजाफा हो सकता है. उसे अन्ना के समर्थन का काफी लाभ मिल सकता है. दूसरे दलों की बात की जाए तो बंगाल में तृणमूल की मुख्य प्रतिद्वंद्वी मार्क्सवादी पार्टी की तरफ से अन्ना के इस नए कदम के बाद कोई टिप्पणी नहीं आई. पार्टी के किसी भी वरिष्ठ नेता ने इसे लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं जाहिर की. ऐसे मामले तभी देखे जाते हैं पार्टियों में किसी बात को लेकर हलचल हो. वाम दलों का इस पर कोई प्रतिक्रिया न देना या उससे बचना भी यही दर्शाता है कि वे इसे गंभीर रूप से ले तो रहे हैं लेकिन यह जताने का प्रयास कर रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
अब चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर अन्ना के समर्थन से तृणमूल को कितनी सीटों का मुनाफा होगा. वैसे पिछले लोकसभा चुनावों में भी 19 सीटों के साथ तृणमूल ने राज्य फतेह किया था. उस समय कांग्रेस और तृणमूल साथ-साथ थे. इस बार की तस्वीर पहले से बेहतर हो सकती है क्योंकि यूपीए के दो शासनकालों की वजह से कांगे्रस की अवस्था तो काफी खराब चल रही है. ऐसे में कांग्रेस से अलग होकर चुनाव ल़डना तृणमूल के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. साथ ही अब उसे अन्ना हजारे का समर्थन भी प्राप्त है जो उसे लाभ ही देगा.

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