चंगेज़ ख़ान और तैमूर लंग के बारे में भारत के लोग अनजान नहीं होंगे ।इन दोनों हमलावरों ने भारत में न केवल जम कर लूटपाट ही की थी बल्कि हज़ारों की तादाद में लोगों को गुलाम बना कर अपने देश ले गये थे । इन दोनों का संबंध समरकंद से था ।1219 27 तक समरकंद चंगेज़ ख़ान की राजधानी थी । बाद में इस पर तैमूर लंग का कब्ज़ा हो गया ।अपने वक़्त के ये दोनों ही जालिम हमलावर रहे हैं ।कुछ लोग तो इन्हें लुटेरा भी कहते हैं । कहा जाता है कि एक बार लूटा हुआ ‘माल ‘ जब खत्म हो जाता था फिर वह हिंदुस्तान की ओर रुख किया करते थे। भारत उन्हें ‘सोने की चिड़िया’ लगा करती थी ।उनकी कामयाबी की वजह भारत के रजवाड़ों में आपसी फूट और एकता की कमी थी जिस के कारण इन हमलावरों के लिए भारत ‘मृगवन’ बनता जा रहा था ।
मुझे चंगेज़ खान और तैमूर लंग की राजधानी समरकंद जाने का मौका 1977 में मिला था । समरकंद के ऐतिहासिक महत्व की जानकारी मुझे सरदार हुकम सिंह ने दी थी जब मैं लोकसभा सचिवालय में काम करता था ।वह दो बार समरकंद गये थे-एक बार लोकसभा का उपाध्यक्ष होने के नाते और दूसरी बार अध्यक्ष होने के कारण ।वह संसदीय समिति के प्रतिनिधमंडल का नेतृत्व किया करते थे । यह बात 1965-66 की है ।वह बताते थे कि समरकंद जाकर आपको लगेगा भी नहीं कि आप विदेश में हैं ।समरकंद तो हमारे ही देश का कोई हिस्सा लगता है ।तब तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी मुझे भी समरकंद जाने का अवसर मिलेगा ।लेकिन तत्कालीन सोवियत संघ की अपनी यात्रा के दौरान मुझे समरकंद और ताशकंद दोनों जगह जाने का अवसर मिला। उन दिनों वहां कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार थी लेकिन समरकंद जाकर लगता ही नहीं था कि वहां के आम लोगों की आज़ादी में कहीं कोई कमी है या उनपर किसी तरह की बंदिशें हैं । लोग बेफ़िक्री से घूमते और हंसते खेलते देखे गये ।उन्हें देश की शासन प्रणाली से शायद ही कोई लेना देना हो ।मुझे लगता नहीं कि सोवियत संघ के बिखराव से बने उज्बेकिस्तान के इस दूसरे महत्वपूर्ण शहर की सामाजिक या राजनीतिक स्थिति पर कोई असर पड़ा होगा ।
समरकंद ऐतिहासिक नगर है ।वहां मुस्लिमबहुल आबादी है । यह मुसलमान अरब देशों से अपनी निकटता नहीं समझते बल्कि भारत,पाकिस्तान,अफगानिस्तान और ईरान से अपनी करीबी मानते हैं ।जब चंगेज़ खान और तैमूर लंग हिंदुस्तान पर हमला करने जाया करते थे तब पेशावर से लेकर कन्याकुमारी तक हिंदुस्तान एक ही मुल्क था ।फर्क सिर्फ इतना था कि वह सैकडों रियासतों में बंटा हुआ था जिससे दुश्मनों को उनमें आपसी एकता के अभाव में अपनी मनमानी करने का मौका मिल जाया करता था ।लंबा इतिहास है,इस पर कभी फिर । फिलहाल हम समरकंद पर ही अपना ध्यान केंद्रित करते हैं । ताशकंद से जब मैं समरकंद पहुंचा तो उन दिनों रमजान के रोज़े खत्म ही हुए थे ।गांवों और शहरों के लोग अपनी बेहद खुबसूरत रस्मी लिबास में मस्जिदों में नमाज अदा करने के बाद आपस में इस तरह से गले मिलकर एक दूसरे को मुबारकबाद दे रहे थे जैसे हमारे यहां ईद के दिनों में देते हैं ।वैसा ही ठेठ हिंदुस्तानी रंग देखने को मिल रहा था ।कई कई बार एक दूसरे को गले लगाना और कभी कभी ज़्यादा भावुक होकर एक दूसरे के गाल भी चूम लेना तथा अलग होने के बाद एक दूसरे को अस्लामालैकुम और वालैकम अस्लाम कह कर जवाब देना बहुत ही खुबसूरत मंजर पैदा करता था ।कुछ लोग एक दूसरे को आदाब अर्ज़ करते हुए देखे और बिछुड़ने पर खुदा हाफिज़ भी । केवल तीज त्योहार ही नहीँ समरकंद की भाषा और संस्कृति भी भारत के बहुत करीब है ।यहां के लोग पुलाओ को ‘पिलाओ’ कहते हैं लेकिन गोश्त उनके लिए भी गोश्त है जैसे चाय उनकी जुबान में भी चाय है ।
इतिहासकार बताते हैं कि समरकंद पुराने बादशाहों की राजधानी हुआ करता था ।खुद चंगेज़ खान ने भी समरकंद को अपनी राजधानी बनाया था और दुनिया के दूसरे देशों से खजाना लूट कर यहीं जमा किया करता था । चंगेज़ खान के बाद जब तैमूर लंग ने समरकंद पर अधिकार किया तो वह भी चंगेज़ खान से कम महत्वाकांक्षी नहीं था । बहुत कोशिश करने पर भी चंगेज़ खान के छोड़े निशान तो नहीं मिले लेकिन तैमूर लंग से जुड़ी बहुत सी स्मृतियां आज भी वहां मौजूद हैं ।हालांकि वहां दो भूचालों ने समरकंद के कई ऐतिहासिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया था लेकिन आज भी बचे हुए स्थलों और खंडहरों का कम महत्व नहीं है । बेशक़ आज समरकंद में बहुत सी आधुनिक इमारतें बन गयी हैं लेकिन वहां जाने वाले सैलानी की दिलचस्पी उन खंडहरों में ज़्यादा रहती है जो कभी वहां के बादशाहों,उनकी बेगमों, राजकुमारों और शाही परिवार के महल और इबादतखाने हुआ करते थे । तैमूर लंग खुद तो निरक्षर था लेकिन उसका पौत्र उलग बेग वैज्ञानिक था और ज्योतिषशास्त्र का विद्वान भी ।उसने एक वेधशाला भी बनवायी थी जो कट्टरपन्थियों द्वारा नष्ट कर दी गयी थी । उस वेधशाला के कुछ निशां आज भी बाकी हैं ।
जैसे मैंने पहले उल्लेख किया था कि जब मैं समरकंद पहुंचा उस दिन रोज़े खत्म ही हुए थे और लोग बड़े ही आध्यात्मिक और धार्मिक सरूर में थे ।ये लोग ‘शाही ज़िंदा’ में अपनी अकीकत पेश करना चाहते थे ।शाही ज़िंदा का शाब्दिक अर्थ है ‘जीवित सम्राट’। ‘शाही ज़िंदा’ में है तो मकबरों का जमघट लेकिन जिस खास मकबरे के लिए ‘शाही ज़िंदा’ प्रसिध्द और चर्चित है वह है हुसैन-इब्न अब्बास का मकबरा जिसे वहां बहुत ही पाक माना जाता है ।इस मकबरे के बारे में यह मान्यता है कि 11वीं सदी में पैगंबर मोहम्मद का यह चचेरा भाई धर्म प्रचार के लिए यहां आया था । यहां के स्थानीय लोगों ने, जिन्हें पारसी संप्रदाय का माना जाता है, उनका बहुत विरोध किया ।अपने बचाव के लिए हुसैन-इब्न अब्बास ने एक सेना तैयार की ।लेकिन कट्टपन्थियों से वह हार गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया ।बावजूद इसके वह सरपट दौड़ा और एक कुएं में जा गिरा ।उसी कुएं पर बाद में तैमूर ने एक मकबरा बनवाया ।मुसलमानों के लिए यह पवित्र स्थल माना जाता है ।’शाही ज़िंदा’ के बारे में एक धारणा यह भी है कि मुसलमान अपने जीवनकाल में एक बार ज़रूर यहां के दीदार करने के लिए आता है ।एक मान्यता यह भी है कि अगर एक बार कोई व्यक्ति ‘शाही ज़िंदा’ के ऊपर जाने वाली सीढ़ियों को कोई गिने और उतरते वक़्त भी वह गिनती उतनी ही निकले तो उसे पापी नहीं माना जाता । ‘शाही ज़िंदा’ के मकबरे अपनी अनूठी और बेजोड़ वास्तुकला का नायाब नमूना पेश करते हैं लेकिन निगाहें सभी सैलानियों और खोजियों की हुसैन-इब्न अब्बास के मकबरे को ही तलाशती हैं ।
समरकंद की ऐतिहासिक समृद्धि की एक और उल्लेखनीय कड़ी । यह नगर तीन प्रमुख नदियों से घिरा हुआ है जिस की वजह से यहां की जलवायु, पर्यावरण और पूरा वातावरण सुकून भरा रहता है । इन नदियों में से जैरोफशान को ‘पाक दरिया’ माना जाता है।यहां इस नदी के बारे में एक लोकोक्ति यह सुनने को मिली कि अगर कोई व्यक्ति इस नदी का पानी एक बार पी लेता है तो दूसरी बार यहां ज़रूर आयेगा ।मेरा मार्गदर्शक समरकंद में मेरी दिलचस्पी को देखकर इतना मुतासिर हुआ कि उसने मुझे फिर आने के लिए प्रेरित करते हुए कई बार इस नदी का पानी पीने को कहा ।वैसे भी मुझे पानी पीने का बहुत शौक है, उसके उकसाने पर मैं कुछ ज़्यादा ही पानी पी गया । उस नदी का पानी मीठा था और उसकी तासीर भी कुछ अलग से लगी । मैं दूसरी बार ताशकंद तो आया लेकिन चाह कर भी समरकंद नहीं जा पाया, क्योंकि ताशकंद से मुझे साईबेरिया जाना था ।
समरकंद का बाज़ार शहर के बीचोंबीच स्थित है जिसे देखकर लगता है कि हम किसी किले में आ गये हों ।उसके चारों तरफ किले जैसी चहारदीवारी है । बाज़ार में खूब रौनक थी।यहां पर बड़े बड़े आकार के खरबूजे और तरबूज देखकर अनायास
ताशकंद की याद हो आयी ।वहां भी इतने बड़े खरबूज-तरबूज न सिर्फ देखे ही थे परंतु चखे भी थे ।बहुत ही रसदार,लज़ीज़
और मीठे ।यहां भी अपने मार्गदर्शक के इसरार को इंकार करते नहीं बन पाया और समरकंद के खरबूज-तरबूज का भी जायका लिया जो मुझे ताशकंद से भी बेहतर लगा ।इसके अलावा घर की ज़रूरत की हर चीज़ मौजूद थी ।कौन स्थानीय है और कौन सैलानी इसकी पहचान करनी मुश्किल नहीं थी । अपनी खास उज्बेगी वेशभूषा से स्थानीय लोग पहचाने जा सकते थे । पुरुष लंबा कोट पहनते हैं और सिर पर या तो पगड़ी बांधते हैं या नक्काशी से जड़ी टोपी ।उनकी पगड़ी कुल्लेदार होती है ।यहां की महिलाओं को चोटी दर चोटी बनाने का बेहद शौक है ।इन चोटियों की संख्या दो से लेकर पचास तक हो सकती है जो उनके भूरे और गेहूंआ रंग पर खूब फब्ती हैं ।इसी बाज़ार के साथ ही स्थित है जगप्रसिध्द बीबी खनम मस्जिद जिस के निर्माण को लेकर कई तरह के आख्यान हैं ।
समरकंद में बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिनमें से अधिसंख्य खँडहरों में तब्दील हो चुकी हैं ।लेकिन ये खँडहर बताते हैं कि ये इमारतें कितनी भव्य और वैभवशाली हुआ करती थीं ।इन सभी स्मारकों में बीबी खनम मस्जिद को विशिष्ट और असाधारण माना जाता है ।इस को लेकर वहां कई तरह की कथाएं और आख्यान प्रचलित हैं ।तैमूर की बेगम अपने वक़्त की बहुत ही सुंदर और प्रतिभाशाली महिला थी । वह बीबी खनम के नाम से प्रसिद्ध थीं और इसीलिए यह मस्जिद उनके नाम से जानी जाती है । कुछ लोगों का यह मानना था कि इस मस्जिद को खुद तैमूर ने बनवाया था । हिन्दुस्तान पर अपने हमलों के दौरान इस मस्जिद की वास्तुकला और शिल्पकला वह वहां से लेकर आया था ।लेकिन आम लोगों का विश्वास है कि इस मस्जिद का निर्माण खुद बीबी खनम ने करवाया था ताकि हिंदुस्तान से फतेह करके जब तैमूर लौटें तो उन्हें उपहार के तौर पर एक खुबसूरत और
वैभवशाली मस्जिद भेंट करें ।बीबी खनम को यह जानकारी दी गयी थी कि तैमूर ने हिंदुस्तान के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया है और खूब घन-दौलत -हीरे -जेवरत इकट्ठा कर लिए हैं लेकिन कुछ और दौलत जमा करने के लिए तैमूर को वहां रुकना पड़ सकता है ।इस अतिरिक्त समय का इस्तेमाल बीबी खनम ने अपने शौहर को एक खूबसूरत मस्जिद के तौहफे के तौर पर देने का फैसला किया । एक दिव्य और बेहतरीन मस्जिद के निर्माण के लिए बीबी खनम ने कई वास्तुकारों से मॉडल मंगवाये । बहुत छानबीन के बाद उन्हें एक नक्शा पसंद आया ।उसके अनुसार मस्जिद का निर्माणकार्य शुरू हो गया जिस का निरीक्षण स्वयं बीबी खनम इसलिए किया करती थीं ताकि उसकी भव्यता और विशिष्टता में किसी तरह की कमीबेशी न रह जाये ।एक दिन बीबी खनम को खबर मिली कि तैमूर जल्दी लौट रहा है ।यह खबर सुनकर बीबी खनम के हाथपांव फूल गये । उन्होंने वास्तुकार को तलब किया और कहा कि मस्जिद का निर्माणकार्य जल्द से जल्द पूरा होना चाहिए । यह काम वक़्त से पहले पूरा होने पर उसे मुंह मंगा इनाम दिया जाएगा ।वास्तुकार शायद इसी मौके के इंतज़ार में था ।जब से उसने बीबी खनम को देखा था उनकी खूबसूरती पर वह लटटू हो गया था ।पहले तो उसने नानुकर की ।लेकिन जब बीबी खनम का दबाव बहुत ज़्यादा बढ़ा तो उसने हिम्मत करके दिल की बात जुबान पर लाते हुए कहा कि काम तो वक़्त पर खत्म हो जाएगा लेकिन इसके एवज़ में उन्हें मुझे एक चुंबन देना होगा वास्तुकार की इस गुस्ताखी के लिए पहले तो बीबी खनम बहुत लालपीली हुईं लेकिन उन्होंने वास्तुकार से कहा कि तुम शहर की किसी भी लड़की पर हाथ रख दो तुम्हे मिल जाएगी ।आखिरकार सभी औरतें होती तो एक जैसी ही हैं ।अपनी दलील को पुख्ता
करने के लिए कुछ गिलासो में पानी भर कर उसके सामने रखा और कहा चाहे किसी गिलास का पानी पी कर देख लो,स्वाद
एक जैसा ही होगा । इसके उत्तर में वास्तुकार ने दो गिलास लिये-एक में पानी भरा और दूसरे में वोदका ।वास्तुकार का तर्क था कि देखने में दोनों गिलासो के भीतर के द्रव्य का रंग एक समान है लेकिन एक के पीने से कोई असर नहीं होता जबकि दूसरे गिलास का द्रव्य मदहोश कर जाता है ।अब बीबी खनम के पास कोई चारा नहीं था ।उन्हें मजबूरन वास्तुकार के तर्क के सामने हथियार टेकने पड़े ।वादे के अनुसार वास्तुकार ने समय से पहले ही एक भव्य और आकर्षक मस्जिद का निर्माण कर दिया । शर्त के मुताबिक जब वास्तुकार बीबी खनम के पास गया तो पहले तो उन्होंने ऐसा न करने की बहुत मिन्नतें कीं लेकिन वास्तुकार जब टस से मस नहीं हुआ तो बीबी खनम ने आत्मसमर्पण कर दिया।वास्तुकार ने जब बीबी खनम की गाल की तरफ मुंह किया तो उन्होंने घबराहट में अपनी गालों पर हाथ रख लिया ।लेकिन वास्तुकार का चुंबन इतना कामुक और वासनायुक्त था कि वह बीबी खनम के हाथ की उंगलियों को भेदता हुआ उनकी गाल पर एक अमिट छाप छोड़ गया।अपनी इस जीत पर वास्तुकार इतना प्रसन्न और संतुष्ट था कि उसने रातोंरात मस्जिद का बचा हुआ काम पूरा कर दिया ।
तैमूर की वापसी पर बीबी खनम ने वह खूबसूरत और आलीशान मस्जिद अपने खाविंद को तोहफे के तौर पर दी । इस बेमिसाल और लाजवाब मस्जिद को देखकर तैमूर भी आत्मविभोर हो गया ।बीबी खनम ने अपनी गाल पर पड़े छाप को छिपाने के भरसक प्रयास किये ।जब वह अपने शौहर के पास जाती तो सिर और गाल को ढक कर जाती।उन्होंने अपनी दासियों को भी हुक्म दे दिया था कि जब भी वह अपने शौहर के सामने जायें तो वे सब अपने चेहरे को एक मोटे परदे से ढक कर रखें । बेगम के इस हुक्म से दासियाँ कुढ़ गयीं लेकिन बीबी खनम की हुक्मउदूली करने की किसी में हिम्मत नहीं थी ।इतनी तमाम सावधानियों के बावजूद तैमूर की नज़र बीबी खनम की गाल पर पड़े निशान पर पड़ ही गयी । उन्होंने बीबी खनम से पूरी कैफ़ियत मांगी ।तथ्यों की जानकारी के बाद वास्तुकार को तलब किया गया । तैमूर ने उसे मस्जिद के उस गुंबद से नीचे फेंकने की सज़ा सुनायी जो चुंबन के बाद पूरा किया गया था । राजा की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए वास्तुकार ने अल्लाह हुजूर की खिदमत में नमाज पढ़ने का वक़्त मांगा । अपनी नमाज में वास्तुकार ने उनसे बचा लेने की दरखवास्त की । कहते हैं कि बहुत कम समय में इतनी सुंदर मस्जिद बनाने से प्रभावित होकर खुदा ने वास्तुकार को आसमान की तरफ खींच लिया और तैमूर के जल्लाद यह मंजर देखकर हक्केबक्के रह गये और बादशाह भी वास्तुकार को आसमान की तरफ जाता हुआ देखता रहा ।
इसके अलावा एक और विवरण सुनने को मिला ।तैमूर ने इस गुनाह के लिए बीबी खनम और वास्तुकार दोनों को आखिरी गुंबद से नीचे फैंकने का हुक्म दिया ।जहां वास्तुकार की नीचे गिरते ही मौत हो गयी वहीं बीबी खनम को खरोंच तक नहीं आयी और उनकी खुबसूरती पहले से भी ज़्यादा निखर आयीं और उनकी गाल पर पड़ा चुंबन का दाग भी जाता रहा।तैमूर को बीबी खनम की मजबूरी तथा बेगुनाही पर यकीन हो गया और अब अपनी बेगम को पहले से भी प्रेम करने लगा ।उन्हें बीबी खनम मस्जिद एक खुदाई चमत्कार लगी । अब कौन सा आख्यान सही है इसपर कोई भी यकीन के साथ नहीं कह सकता ।लेकिन मैंने इस मस्जिद के जो खंडहर देखे उसके निर्माण में इस्तेमाल नीले और सुनहरी रंग की कुछ दीवारें और गुंबद आज भी आकर्षक पाये ।बेशक़ दो भूकंपों ने बीबी खनम मस्जिद को करीब करीब ज़मींदोज़ कर दिया था बावजूद इसके उस मस्जिद की खूबसूरती बनाये रखने के प्रयास लगातार होते रहते हैं,क्योंकि यह बेशकीमती धरोहर है । बीबी खनम मस्जिद के कांड का खमियाजा वहां की औरतों को भुगतना पड़ा ।तैमूर ने यह ऐलान कर दिया कि आज से सभी स्त्रियां अपने चेहरे को ढक कर रखेंगी ।उसी दिन से यहां बुरके की रवायत शुरू हुई ।
इन महत्वपूर्ण इमारतों के अलावा भी समरकंद में पुरानी सभ्यता और संस्कृति के दीदार होते हैं । गुरे मीर मकबरा शासकों के अंत का प्रतीक माना जाता है ।तैमूर ने यह मकबरा अपने पोते मौहम्मद सुल्तान की याद में 1404 में बनवाना शूरू किया लेकिन 1405 में तैमूर के देहांत के बाद उसका निर्माण कार्य पूरा हुआ । इस मकबरे पर संगमरमर का एक चबूतरा बनवाया गया है जहां तैमूर लंग बैठा करता था । इस चबूतरे के साथ बड़े बड़े कटोरदान बने हुए हैं ।शुरू शुरू में इन्हें शराब से भर दिया जाता था और तैमूर के मुजाहिद इनमें से शराब ले ले कर पिया करते थे ।बीबी खनम मस्जिद के हादसे के बाद इन कटोरदानों की भूमिका बदल दी गयी ।तैमूर पहले से ज़्यादा संजीदा रहने लगे ।गुरे मीर मकबरे में तैमूर के अलावा उनके दोनों पोतों मौहम्मद सुल्तान और उलग बेग के भी मकबरे हैं । यह स्थान बहुत ही खूबसूरत है ।सफेद संगमरमर के फर्श और सुनहरी मीनारें इस खूबसूरती को चारचांद लगाती हैं । मकबरे के नीचे तहखाने भी हैं जो तैमूर लंग की वास्तुकला और शिल्पकला के प्रति समर्पण का प्रतीक माने जाते हैं । बताया जाता है कि इन कलाओं के प्रति उसका आकर्षण हिंदुस्तान पर हमलों के दौरान वहां की स्थापत्य कला को देख कर हुआ था । बेशक भारतीय पर्यटकों को समरकंद में अपने देश की इन महान कलाओं की उपस्थिति अपनी ओर खींचती है ।