साथियों यह है, मेरे चालीस साल पुराने मित्र श्री. समर बागची आज सुबह सात बजकर पैंतालीस मिनट पर पेट के कॅन्सर की वजह से 91 साल की उम्र में कोलकाता में अपने घर में देहांत हो गया !
इस एजग्रुप के समरदा बंगाल के आखिरी आदमी थे ! जिन्होंने गत चालिस साल से भी अधिक समय से वर्तमान विकास की अवधारणा के खिलाफ, रविंद्रनाथ और महात्मा गाँधी जी के दृष्टिकोण के अनुसार लिखने, तथा एनपीएम जैसे मंच के माध्यम से सक्रिय हस्तक्षेप करने की कोशिश की है !


समरदा के राजनीतिक जीवन की शुरूआत कम्युनिस्ट पार्टी से शुरू हुई ! लेकिन उम्र के पचास के दौर में वह कम्युनिस्ट पार्टी के सोवियत रूस के तथाकथित विकास के मॉडल का अंधानुकरण के कारण हताश हो कर नर्मदा बचाव आंदोलन और उसी प्रक्रिया से निकला एन ए पी एम (जनांदोलनों का समन्वय) में शुरुआती दिनों से ही मुख्य रूप से बंगाल में तन मन धन से जुडे थे ! और आज भी बंगाल एन ए पी एम के सब से बडे आधार वहीं थे !
समरदा के जीवन की शुरूआत खदानों के वैज्ञानिक के रूप में शुरू हुई है ! लेकिन बहुत जल्द वह विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हो गए ! और जल्द ही कोलकाता के बिड़ला सायंस और औद्योगिक मुजिएम और उसके बाद पूर्व भारत में कुल पांच मुजिएम, गुवाहटी, पटना, भुवनेश्वर, रांची, और उत्तर पूर्व में एक सायन्स मुजिएम बनाने में अहम भूमिका निभाई है !
और उनके रुचि का सबसे अच्छा काम देशभर में बच्चों को विज्ञान के बारे में अत्यंत सरल भाषा और साहित्य के साथ प्रयोग करते हुए पढाना ! शायद आज सत्तर के उम्र के लोगों को याद होगा कि अस्सी वाले दशक में दूरदर्शन पर क्वेस्ट नामसे एक विज्ञान के उपर कार्यक्रम आता था वह समर बागची की देन है ! जिसके लिए वह अभी – अभी कुछ दिन पहले ही ! अपनी तबीयत खराब होने के बावजूद पूरुलिया के स्कूल में जाकर आए थे ! हालांकि यह पुरुलिया स्कूल उनके सपनों के स्कूलों में से एक था !
वैसे ही नागपुर के ‘अपूर्व विज्ञान मेला’ के पिछले पच्चीस साल से मार्गदर्शक रहे हैं ! और कई मेला के दौरान खुद हाजीर रहकर बच्चों के साथ अपने विज्ञान शिक्षा के द्वारा मार्गदर्शन किए हैं ! और वैसाही देशभर में हजारों की संख्या में अपने प्रयोगों के सामान वाले बक्से के साथ जगह – जगह जाकर प्रात्यक्षिक करने का काम किया है !
बहुत लोग अपने – अपने क्षेत्र में महारत हासिल कर के उसी में उलझ जाते हैं ! लेकिन समरदा साहित्य संगित कला तथा देश – दुनिया की स्थिति को लेकर उतने ही संवेदनशील थे ! और वर्तमान समय की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को लेकर बहुत ही दुखी थे !
भागलपुर दंगे के बाद ( 1989 ) मेरा आकलन है “कि संपूर्ण भारत की राजनीति आने वाले पचास वर्षों तक सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती नजर आने वाली है ! इस बात को गौरकिशोर घोष के बाद समर बागची दूसरे आदमी थे जो मेरी बात से सहमत थे ! अम्लान दत्त गुजरात दंगों के बाद कहने लगे ” कि सुरेश आपका आकलन सही है !” और समरदा तो नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनने को लेकर मुझे मिले हुए लोगों में सब से ज्यादा संवेदनशील थे ! और बहुत ही आक्रमक होकर मुझसे प्रत्यक्ष मुलाकात या फोन पर शेयर करते थे !
मेरे कलकत्ता में पंद्रह साल रहने की उपलब्धियों में, गौरकिशोर घोष, अम्लान दत्त, शिवनारायण राय, श्यामली खस्तगीर, विणा आलासे, मनिषा बॅनर्जी और समर बागची के साथ दोस्ती सबसे बडी उपलब्धि रही है ! और यह सिर्फ एकतरफा दोस्ती नहीं थी !


परस्परपूरक (Reciprocale) रही है ! कलकत्ता के रहने के समय में, अक्सर सुबह पांच बजे के आसपास समरदा का फोन आता था ! और वह रात में सोने के पहले क्या पढें या लिखा ? या किस हिंदुस्थानी शास्त्रीय संगीत के कलाकार की कौनसी चीज सुनें ! यह विस्तार से बताने का प्रयास करते थे ! और उससे भी समाधान नही हुआ तो सिधा अपनी कार लेकर खुद चलाकर और साथ में रास्ते में किसी दुकान से गरमा – गर्म जिलेबी और समोसे साथ मे लेकर हमारे घर पहुंच जाते थे ! हमारे बच्चों के और मॅडम खैरनार के भी बहुत प्रिय लोगों में से एक थे ! अभी सुबह चाय के समय जब मैंने यह खबर बताई तो बेटा और मॅडम खैरनार को काफी धक्का लगा ! और समरदा की स्मृति में उलझ गए थे !
समरदा और मेरे बीच इक्कीस साल का फासला था ! मतलब बाप-बेटे जैसे उम्र के होने के बावजूद ! मुझसे मेरे हमउम्र मित्रो के जैसा ही व्यवहार किया करते थे ! सिर्फ बीच – बीच में हम तुमसे पहले ही इस दुनिया से चले जाएंगे यह बोलते रहते थे ! और हुआ भी वही ! पिछले 19 तारीख को उनके ही उम्र के नागपुर के दिवाकर मोहनी चले गए ! और अभी हप्ताह भर पहले इंदौर के पूर्व सांसद कल्याण जैन लगभग इसी उम्र के थे चलें गए ! आज एक महिना एक दिन बाद समर बागची ! हम सभी विवेकवादी लोग जन्म – मृत्यु स्वाभाविक प्रक्रिया मानते हैं ! लेकिन कोई इतने दिनों का साथी जब चला जाता है तब लगता है कि अपने ही शरिर का एक हिस्सा कम हो गया है ! कोलकाता में अब हमारे पुराने मित्र लगभग सभी चले गए ! एकदम खाली – खाली लगता है ! नए मित्र भी है ! लेकिन उनके साथ एक फासला बना रहता है !
गौरकिशोर घोष के जाने के बाद समरदा के ही घर में कोलकाता जाने के बाद ठहरने का आग्रह समरदा किया करते थे ! यहां तक कि घर के एक कमरे को मेरा कमरा बोलते थे !
समरदा अपना जीवन बहुत ही सुरुचिपूर्ण तरीके से जिएं है ! मुझे रह – रहकर दुःख हो रहा है कि अब श्रीमती बागची बिल्कुल अकेली हो गई है ! हालांकि उन्हें एक बेटी और बेटी के पति बेटे जैसे ही उनकी देखभाल करते हैं ! लेकिन साठ साल से भी अधिक समय से सहजीवन जिनेवाली साथीन ने अपना ज्योडिदार खोया है ! मै उनके दुःख में शामिल हूँ ! और समरदा के स्मृति को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ !
डॉ. सुरेश खैरनार, नागपुर 20 जुलै, 2023.

Adv from Sponsors