उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने जोर-आजमाइश करनी शुरू कर दी है. समाजवादी पार्टी ने भी उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से शुरू कर दी हैं. सपा की रणनीति पर सभी राजनीतिक दलों की निगाह है. माना जा रहा है कि उत्तराखंड में समाजवादी पार्टी कन्नौज से सांसद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बना सकती है. डिंपल यादव उत्तराखंड की हैं और सपा 2017 के विधानसभा चुनाव में इसका फायदा उठाना चाहती है. समाजवादी पार्टी की तैयारियों की उत्तराखंड की दो बड़ी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समीक्षा कर रही हैंं. भाजपा ने भी अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है. हाल ही में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तराखंड का दौरा किया और उन्होंने शंखनाद महारैली के साथ 2017 विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत की. उससे पहले अमित शाह ने भगवान बद्रीनाथ और केदारनाथ के दर्शन किए. उत्तराखंड को लेकर अमित शाह की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले वह दर्शन के लिए हेलिकॉप्टर से जाने वाले थे, पर बाद में उन्होंने यह प्लान बदल दिया और सड़क के रास्ते से गए. ऐसी मान्यता है कि बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जो भी हेलिकॉप्टर से गया उसे अपनी सत्ता गंवानी पड़ी. बद्रीनाथ के दर्शन के लिए हेलीकॉप्टर से जाने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पूर्व सीएम एनडी तिवारी, वीर बहादुर सिंह, डॉ रमेश पोखरियाल निशंक समेत कई ऐसे नेता शामिल हैं जिन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी.
पर्वत प्रदेश की राजनीति का समीकरण कांग्रेस के कद्दावर नेता विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, अमृता रावत समेत नौ बागी नेताओं के भाजपा में शामिल होने से गड्ड-मड्ड हो गया. लेकिन जद्दोजहद कर अपनी सत्ता बचा पाए मुख्यमंत्री हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस को मजबूत करने के प्रयास में जुटे हुए हैं. हालांकि अभी उत्तराखंड की सत्ता पर बरकरार कांग्रेस सरकार बसपा और निर्दलीय विधायकों के सहारे चल रही है, लेकिन धीरे-धीरे रावत अपनी जमीन पुख्ता करने में लगे हैं.
उधर, समाजवादी पार्टी उत्तराखंड में डिंपल यादव को चेहरा बनाकर सत्ता पर काबिज होना चाहती है. डिंपल उत्तराखंड में पौडी जिले के कोटद्वार में जन्मीं और पली-बढ़ी हैं. सपा को लगता है कि वह राज्य में अपनी राजनीतिक मौजूदगी दर्ज करा सकती है. वर्ष 2000 से पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का खासा प्रभाव था. अलग राज्य के लिए उत्तराखंड में बहुत बड़े पैमाने पर आंदोलन भी हुए और इस आंदोलन में कई लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ीं. सपा उत्तराखंड के विभाजन के खिलाफ थी और वह नहीं चाहती थी कि उत्तर प्रदेश का बंटवारा हो. इसके बाद से सपा को उत्तराखंड के लोग पृथक राज्य आंदोलन के विरोधी के तौर पर देखने लगे. उत्तराखंड की 23 सदस्यी अंतरिम विधानसभा में सपा के तीन विधायक थे उसके बाद सपा तमाम कोशिशों के बावजूद उत्तराखंड में हुए तीनों विधानसभा चुनावों में अपना खाता तक नहीं खोल सकी. सपा का कहना है कि राज्य में उनकी पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ने लगी है और कांग्रेस एवं भाजपा दोनों के कुशासन से त्रस्त जनता विकल्प के रूप में समाजवादी पार्टी को दोबारा अपनाना चाहती है. सपा का कहना है कि हम लोग यहां के लोगों को समझाने में कामयाब हो रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड में भी सपा की सरकार होने से हमें परिसंपत्तियों के बंटवारे सहित सभी मोर्चों पर लाभ होगा और इसका फायदा जनता को ही मिलेगा. अब बदलते परिदृश्य को देखते हुए सपा भी डिंपल यादव के जरिए उत्तराखंड के लोगों को अपने पाले में लाना चाहती है.
सपा ने उत्तराखंड की सत्ता के लिए पूरा जोर लगा दिया है. शिवपाल यादव कई बार उत्तराखंड का दौरा कर चुके हैं. सपा ने कैराना की घटना की जांच के लिए पांच संतों की टीम बनाई. टीम उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर ही बनाई गई थी. टीम में भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमोद कृष्णन, हिंदू महासभा के अध्यक्ष चक्रपाणि महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी देवेन्द्रानंद गिरि, स्वामी कल्याण देव व स्वामी चिन्मयानंद शामिल थे. इनमें कांग्रेस और भाजपा से लगाव रखने वाले संत शामिल थे. सपा की रणनीति है कि उत्तराखंड में साधु-संतों को सपा के पाले में लाया जाए. इसके मद्देनजर ही सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान के दर्शन के लिए जा रहे हैं. साथ ही राजेन्द्र यादव मठों में जाकर संतों से मुलाकात भी कर रहे हैं. राज्य में सपा सबको साधने में लगी है और संतों के जरिए भी भाजपा और कांग्रेस को चुनौती देना चाहती है.
सुगबुगा रहा अलग सिख-प्रदेश बनाने का आंदोलन
उत्तराखंड के निर्माण में सबसे अधिक अन्याय सिखों के साथ हुआ है. तराई इलाके में छाए सिख नागरिक नहीं चाहते थे कि उत्तराखंड का बंटवारा हो. सपा से भी सिखों को भरोसा था कि तराई क्षेत्र उत्तर प्रदेश के साथ ही रह जाएगा. हालांकि समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने हरिद्वार समेत तराई क्षेत्र के यूपी में बने रहने की आखिरी दम तक कोशिश की थी, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. तराई इलाके में सिखों की संख्या अधिक है और सिख समुदाय समाजवादी पार्टी के साथ जा सकता है, अगर सपा सिखों के पक्ष में कोई घोषणा कर दे. सिखों को यह भी खलता है कि उत्तराखंड के लोगों ने सिखों को कभी स्वीकार नहीं किया और उन्हें अब भी बाहरी समझते हैं. गुरु नानक मिशन इंटरनेशनल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार अमीर सिंह विर्क कहते हैं कि 1984 के सिख दंगों में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजे के रूप में किसी को पांच हजार, किसी को एक हजार और शर्म की बात तो यह है किसी को 70 रुपये के चेक मुआवजे के बतौर दिए गए. जबकि उत्तराखंड आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के पीड़ितों को दस-दस लाख रुपये का मुआवजा दिया गया. सिखों के साथ जो अन्याय हुआ उसकी वजह से सिखों में राजनीतिक दलों को लेकर नाराजगी है. तराई के सिख उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच अपना अलग राज्य चाहते हैं. तराई क्षेत्र के जुझारू सिख नेता अमीर सिंह विर्क कहते हैं कि लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, पीलीभीत, ऊधम सिंह नगर जैसे क्षेत्रों को मिला कर सिखों के लिए अलग राज्य बनाने की मुहिम अंदर ही अंदर परवान चढ़ रही है. विर्क का दावा है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मध्य सिखों का प्रदेश स्थापित होगा और इसके लिए जल्द मधेशियों की तरह का आंदोलन तराई क्षेत्र में शुरू किया जाएगा.