दुख से कहना पड़ रहा है कि अयोध्या की चली लीला, रामलीला नहीं है

आप तो कोरोनाकल में भी अवसर ढूंढने वाली जमात से हैं

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 वीरेंद्र सेंगर

 

आज अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन हो रहा है।लंबे समय से विवादित मामले का अंत तो नहीं ,इसे राहत भरा खूबसूरत मोड़ कह सकते हैं।

बशर्ते अब काशी, मथुरा जैसे विवादों को फिर से हवा न दी जाए!राम मंदिर आंदोलन से जुड़े कुछ विघ्नसंतोषी किस्म के दंबग फिर से धर्म युद्ध शुरू करने की बात कर रहे हैं। इनमें एक नाम विनय कटियार का लिया जा सकता है। उन्होंने काशी, मथुरा मुक्त कराने की बात शुरु की है। बजरिए,सुप्रीम कोर्ट अयोध्या का मामला निपटाया गया है। मंदिर निर्माण शुरू हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी जी के.हाथों से। तमाम किंतु परंतु हैं। फिर भी राम काज हो रहा है।

सही मायने में भगवान राम की मर्यादा मंत्र का अनुकरण करना है,तो राष्ट्रीय अस्मिता के अनुरूप ही आचरण होना चाहिए।मैं भी हिंदू हूं,भगवान राम में मेरी आस्था उन हड़बोंगों से ज्यादा पवित्र है ,जिन्होंने अपनी सत्ता लोलुपता के लिए राम जी को भी नहीं बख्शा! संपूर्ण सत्ता भी मिली है। अब राम राज लाओ न? केवल झांसों भर से कुछ नहीं होगा। तुम्हें राम जी की शपथ है,राम राज की तरफ ईमानदारी से कदम तो आगे बढ़ाओ यारो! वो रामराज ,जिसकी परिकल्पना गांधीजी जी ने की थी। दुख से कहना पड़ रहा है कि अयोध्या की चली लीला, रामलीला नहीं है। ये हम बहुत पहले ही जान चुके हैं।कहते हैं, अंत भला तो सब भला।

ये अवसर आपके पास आज भी है।आप तो कोरोनाकल में भी अवसर ढूंढने वाली जमात से हैं।आज शपथ ले लीजिये कि धर्म के नाम पर सियासत का गंदा खेल फिर से कोई न खेलेगा। मान भी लीजिए ,अब हमारे पुरुषोत्तम राम जी भी इस सियासी तिजारत से से आजिज आ गये होंगे। सो उन्हें चैन से बनने वाले मंदिर में बिराजने दीजिये।

कहते हैं राम जी के राज में इंसान क्या? पशु पक्षी भी सुखी थे। निर्भय थे,आजाद थे। राम जी नाम पर आप खूब फूले फले।आम जनता को क्या मिला, बाबा जी का ठुल्लू!ये बात मैं किसी पर तंज में नहीं कर रहा।ये शब्द मर्मांतक पीड़ा से निकल रहे हैं।पूरे देश में कोरोना का हाहाकार है।हजारों मर खप गये,करोड़ों देशवासी मौत के साये से डरे हुए हैं। सहमें हुए हैं हुजूर! ऐसे में आज हर घर में दिया जलाने का आग्रह है।ये निवेदन कब,हुक्मनामा में बदल जाए?हम नहीं जानते।देश दुनिया और ठेठ पड़ोस के हालात बहुत बदतर हो चले हैं,सो मुझसे तो बेमौसमी दीपक उत्सव न हो पाएगा राम जी!बेमन से क्यों मनाऊं उत्सव?आप तो सहिष्णु हो,बुरा नहीं मानोगे, आशीर्वाद ही दोगे कि आपका यह बंदा संवेदनशील है।द्रवित होता है, असहिष्णुता से।आपकी तरफ से सब चंगा सी है।प्रभु जी!आप से नहीं, डर तो इन अंध भक्तों से लगता है जो आपके नाम पर किसी पर टूट पड़ते हैं।और राम नाम ही बदनाम कर डालते हैं।ये सब देखा नहीं जा रहा।सो,राम जी,आओ और भटके हुए इन बंदों को सही राज धर्म भी बता दो और मानवता का भी सच्चा धर्म भी।

जय सिया राम जी!

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