व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010 में सरकारी धन के दुरुपयोग और सरकारी संस्थाओं में हो रहे घोटालों की जानकारी देने वाले व्यक्ति को व्हिसिल ब्लोअर माना गया है. यानी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाला. इस बिल में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को अतिरिक्त अधिकार दिए गए. सीवीसी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियां भी देने की बात कही गई. सीवीसी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाने वालों के ख़िला़फ अनुशासनात्मक कार्रवाई रोक सकता है. भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले की पहचान गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी सीवीसी की है. अगर पहचान उजागर होती है, तो ऐसे अधिकारियों के ख़िला़फ शिक़ायत भी की जा सकेगी. इस विधेयक के दायरे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं.
साल 2005 में जब आरटीआई क़ानून लागू हुआ था, तब से आज तक सैकड़ों आरटीआई कार्यकर्ता अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं. कुल मिलाकर यह कि जो भी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाएगा, उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी. बहरहाल, साल 2010 में यूपीए-2 सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सुरक्षा देने के उद्देश्य से एक बिल लेकर आई, जिसे पब्लिक इंटरेस्ट डिसक्लोज़र ऐंड प्रोटेक्शन फॉर पर्सन्स मेकिंग डिसक्लोज़र बिल 2010 नाम दिया गया… संक्षेप में कहें, तो व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010.
व्हिसिल ब्लोअर बिल 2010 में सरकारी धन के दुरुपयोग और सरकारी संस्थाओं में हो रहे घोटालों की जानकारी देने वाले व्यक्ति को व्हिसल ब्लोअर माना गया है. यानी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाला. इस बिल में केंद्रीय सतर्कता आयोग(सीवीसी) को अतिरिक्तअधिकार दिए गए. सीवीसी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियां भी देने की बात कही गई.
सीवीसी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाने वालों के ख़िला़फ अनुशासनात्मक कार्रवाई रोक सकता है. भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले की पहचान गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी सीवीसी की है. अगर पहचान उजागर होती है, तो ऐसे अधिकारियों के ख़िला़फ शिक़ायत भी की जा सकेगी. इस विधेयक के दायरे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं. बहरहाल, इस विधेयक में सीवीसी को जितनी ज़िम्मेदारी सौंपी गई, सीवीसी उसे पूरा कर पाने में सफल होगा या नहीं, यह एक सवाल था. जैसे, क्या सीवीसी की सांगठनिक संरचना इतनी बड़ी है, जिससे वह भारत जैसे बड़े देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या से लड़ पाए? राज्यों, ज़िलों और पंचायतों में फैले भ्रष्ट्राचार से कैसे निबटेगा सीवीसी? यह विधेयक 2011 में ही लोकसभा से पारित हो गया था, लेकिन उच्च सदन से पारित होने में इसे लंबा समय लगा. खैर, यूपीए-2 ने अंतिम समय में जब इस विधेयक को पारित कराने के लिए राज्यसभा में पेश किया, तो भाजपा ने कुछ संशोधन पेश किए थे. यूपीए-2 सरकार ने इन संशोधनों को ज़रूरी बताते हुए स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन उच्च सदन में बहस के दौरान यूपीए ने भाजपा से इस बिल को दोबारा निचले सदन में भेजने का दबाव न बनाने का आग्रह भी किया था. संसद ने इस विधेयक को पारित कर दिया था, जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी. राष्ट्रपति द्वारा विधेयक पर 9 मई, 2014 को हस्ताक्षर किए जाने के बावजूद सरकार ने अब तक इसे क़ानून के तौर पर लागू नहीं किया है.
हालांकि सत्ता में आने के एक साल बाद मोदी सरकार इस कानून को लागू करने के बजाय इसमें संशोधन करना चाहती है. कांग्रेस सरकार को भ्रष्टाचारी सरकार बताने वाली भाजपा ने एक साल होने के बाद भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सुरक्षा देने के मामले में गंभीर नहीं दिखाई दे रही है. सालों से मांग उठ रही थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों का नाम गुप्त रखने और उन्हें सुरक्षा देने के लिए कानून लाया जाए, लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार इसमें संशोधन कर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को व्हिसिल ब्लोअर्स प्रोटेक्टशन एक्ट के दायरे से बाहर रखने जा रही है.
एक तरफ केंद्र सरकार व्हिसिल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट को ठंडे बस्ते में डाल कर बैठी है, वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में सुशासन का दावा करने वाली शिवराज सरकार लगातार व्यापमं घोटाले के जाल में उलझती जा रही है. अपने को बचाने की कोशिश में जुटी शिवराज सरकार इसमें मामले को उजागर करने वाले प्रमुख व्हिसिल ब्लोअर्स को पुख्ता सुरक्षा भी मुहैया नहीं करवा पा रही है. इन सभी ने सरकार की नाक में दम कर रखा है. आए दिन इन्हें जान से मारने की धमकियां मिलती रहती हैं. गार्ड की उपस्थिति में इन पर हमले हो जाते हैं, लेकिन सरकार में उनकी सुरक्षा को लेकर कोई आवाज नहीं उठती है. जून के पहले सप्ताह में मध्य प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे ने भी व्यापमं मामले के व्हिसिल ब्लोअर्स को पुख्ता सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है. व्यापमं घोटाला अपने आप में एक अनोखा घोटाला बन गया है. साल 2012 से लेकर अब तक इस घोटाले से जुड़े 40 से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी हैं. इस मामले में तीन प्रमुख व्हिस्ल ब्लोअर हैं आशीष चतुर्वेदी, डॉ. आनंद राय और प्रशांत पांडेय. तीनों को कोर्ट के आदेश पर सुरक्षा दी गई है, लेकिन तीनों में से कोई भी मिल रही सुरक्षा से संतुष्ट नहीं है. इंदौर में रहने वाले व्हिसिल ब्लोअर डॉ आंनद राय का कहना है कि सरकार ने जो बिल बनाया है, वह सड़ा हुआ है. एक तो मुद्दतों बाद यह बिल पास भी हो गया, उसे राष्ट्रपति की सहमति भी मिल गई, लेकिन एक सड़े हुए कानून को भी सरकार लागू करने में हिचकिचा रही है. कानून व्यवस्था राज्य के हाथों में होती है. इस कानून के लागू होने के बाद नियम तो राज्य सरकारों को बनाने हैं. ऐसे भी जो प्रावधान अभी हैं, उस हिसाब से सीवीसी अथॉरिटी होगा. राज्यों में व्हिसिल ब्लोअर्स को इस एक्ट से कुछ फायदा नहीं होने वाला है. पहचान छुपाने के प्रावधान का भी हम जैसे लोगों को कोई फायदा नहीं है. हम जैसे लोग सीना ठोंककर कहते हैं कि हमने इतने बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया है, लेकिन इस क़ानून के भरोसे व्हिसिल ब्लोअर्स को कोई फायदा नहीं होने जा रहा है, यह केवल नाम के लिए है. इस एक्ट से व्हिसिल ब्लोअर्स को किसी तरह की सुपर पावर नहीं मिलने जा रही है. आप सोचिये उस कानून से आम आदमी को क्या फायदा होगा, जब हम जैसे लोगों को राहत और फायदा महसूस नहीं हो पा रहा है. इतने बड़े मामले को उजागर करने के बाद भी हमें अपनी सुरक्षा के लिए कोर्ट से गुहार लगानी पड़ी, क्योंकि प्रदेश के पुलिस रेगुलेशन नियमों में व्हिसिल ब्लोअर को सुरक्षा मुहैया कराने का कोई प्रावधान नहीं है. डॉ. आनंद बताते हैं कि मैंने मार्च 2014 में हाइकोर्ट से सुरक्षा मांगी, कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने राज्य सुरक्षा परिषद के पास प्रस्ताव भेजा और तब मेरी सुरक्षा के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. इस एक्ट को लागू करने से पहले पुलिस
रेगुलेशन को सुधारने की जरूरत है. पूर्व सासंदों, पूर्व विधायकों को सुरक्षा देने का प्रावधान है, लेकिन व्हिसिल ब्लोअर को सुरक्षा देने का कोई प्रावधान नहीं है. सुरक्षा का दायित्व राज्यों का है. हमें अभी जो सुरक्षा मिली हुई है वह भी खिलवाड़ की तरह है. जो सुरक्षा गार्ड मेरे घर में तैनात किया गया है, वह सुबह 11 बजे आता है और शाम 7 बजे चला जाता है. इसके बाद हमारी सुरक्षा का भगवान ही मालिक है. सबसे पहले जब मुझे सुरक्षा दी गई तो पुलिस प्रशासन ने इसके एवज में मुझसे 60 हजार रुपये लिए. इसके बाद मैंने कोर्ट में कहा कि मेरी तनख्वाह 40 हजार रुपये है, मैं हर महीने सुरक्षा के एवज में 60 हजार रुपये नहीं दे सकता. अगर सरकार को लगता है कि मुझे सुरक्षा दी जानी चाहिए तो दीजिए, नहीं तो वापस ले लीजिए.
ग्वालियर के 25 वर्षीय छात्र आशीष चतुर्वेदी व्यापमं मामले के प्रमुख व्हिसिल ब्लोअर हैं. उनपर अब तक 14 बार जानलेवा हमले हो चुके हैं. इस संबंध में छह बार एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है. कैंसर से जूझती अपनी मां के इलाज के दौरान ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में फर्जी डॉक्टरों के संपर्क में आने के बाद आशीष मामले की तह में चले गए. उन्होंने धीर-धीरे करके फर्जीवाड़ा करने वालों के साथ संबंध बनाने शुरू किए और इस संबंध में जानकारियां जुटानी शुरू किया. उन्हें धीरे-धीरे कई अहम सुराग मिलते चले गए. इसके बाद उन्होंने सूचना के अधिकार के जरिये जानकारी जुटानी शुरू की. आज वह इस मामले के सबसे अहम गवाहों में से एक हैं. उनके कई खुलासों के कारण व्यापमं घोटाले के कई बड़े आरोपी जेल में हैं. आशीष का मानना है कि व्हिसिल ब्लोअर्स एक्ट के लागू होने से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को कानूनन सुरक्षा मिलने लगेगी. पुलिस और राज्य सरकार सुरक्षा देने के बाद कानूनन जवाबदेह भी हो जाएंगी. साथ ही व्हिसिल ब्लोअर्स को सुरक्षा देने की बाध्यता भी हो जाएगी. अभी एसआईटी के आदेश पर मुझे 24 घंटे (राउंड द क्लॉक) सुरक्षा देने की बात है, लेकिन दिन भर में केवल 8-10 घंटे ही मुझे सुरक्षा मिल पाती है. ऊपर से वीआईपी सिक्योरिटी में तैनात रहने वाले सुरक्षा गार्ड मेरी सुरक्षा में लापरवाही बरतते हैं, भेदभाव और अभद्रता करते हैं. 40 वर्ष से ज्यादा उम्र के सुरक्षा गार्ड तैनात करने का प्रावधान है, लेकिन मेरी सुरक्षा में पचास वर्ष से ज्यादा के लोगों को ही अब तक तैनात किया गया है. सरकार और पुलिस महकमा मुझे जानबूझ कर परेशान कर रहा है. वर्तमान में हरिनारायणचारी मिश्रा ग्वालियर के एसपी हैं. मेरी सुरक्षा में लापरवाही में वे व्यक्तिगत तौर पर रुचि ले रहे हैं. कोर्ट में अगली सुनवाई के दौरान मैं कोर्ट से आग्रह करूंगा कि मुझे सही तरीके से सुरक्षा दी जाये या फिर इसे पूरी तरह हटा लिया जाए. इंदौर के प्रशांत पांडेय डिजिटल फॉरेंसिक एक्सपर्ट हैं. उन्होंने इस मामले से संबंधित कई अहम दस्तावेज जुटाने में एसटीएफ की मदद की थी. इंदौर वे कई मामलों को सुलझाने में इंदौर पुलिस, आईबी और रॉ की मदद कर चुके हैं. एसटीएफ के लिए भी उन्होंने करीब एक साल तक काम किया था. अब वे एसटीएफ से अलग हो गए हैं, लेकिन मध्य प्रदेश पुलिस उन्हें धमकी दे रही है कि मामले से जुड़ी संवेदनशील जानकारी वह किसी के साथ साझा न करें. उन्होंने कुछ महीने पहले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को घोटाले से जुड़े कथित असली नामों वाली एक्सेल शीट उपलब्ध करवाई थी, जिसे लेकर कांग्रेस के नेताओं ने भोपाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और शिवराज सिंह पर इस शीट में स्वयं के नाम को बदलने का आरोप लगाया था. प्रशांत का कहना है कि इस घोटाले की अब तक पांच फीसद गड़बड़ियों का ही खुलासा हुआ है. उन्हें कोर्ट के आदेश पर सुरक्षा मिली हुई है, लेकिन वह भी केवल नाम के लिए है. शाम 6 बजे के बाद से सुबह तक आपके साथ कुछ भी हो सकता है. सरकार का रवैया लापरवाही भरा है. सरकार सुरक्षा में लापरवाही करके व्हिसिल ब्लोअर्स को दबाव में लाना चाहती है, ताकि इस मामले की तह तक जांच एजेंसियां न जा सकें. व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट आने से सरकार सुरक्षा देने के लिए बाध्य हो जाएगी. पहले की तरह उनपर दबाव नहीं डाला जा सकेगा और मनमाने तरीके से उनकी सुरक्षा वापस नहीं ली जा सकेगी. कुछ हद तक इस एक्ट के आने से फायदा मिलेगा. जो लोग नहीं चाहते हैं कि व्हिसिल ब्लोअर्स अपना काम नहीं कर सकें . मानसिक तौर पर उनपर इस कानून के आने से प्रभाव पड़ेगा. उन्हें इस बात का कहीं न कहीं डर रहेगा कि हमें कानूनन सुरक्षा मिली हुई है. अभी तक व्हिसिल ब्लोअर्स को सिस्टम के द्वारा ही झूठे मुकदमे लगाकर या अन्य तरीकों से खत्म कर दिया जाता था. जनता के सामने और कुछ कहानी रख दी जाती थी, लेकिन अब भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाला इस कानून के अंतर्गत सुरक्षा की मांग कर सकता है.
कुल मिलाकर गेंद राज्य सरकारों के पाले में ही रहेगी. जब तक वे व्हिसिल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन के लिए प्रावधान नहीं करेंगे, तब तक इस कानून का कोई लाभ नहीं होने वाला है. राज्य व्हिसिल ब्लोअर्स को प्रोटेक्शन देने के लिए सुरक्षा बल की कमी का रोना रोते हैं, जबकि नेताओं को सुरक्षा देने के लिए उनके पास पर्याप्त सुरक्षा कर्मी हैं, लेकिन जब बात आम आदमी और भ्रष्टाचार का खुलासा करने वालों की आती है, तो सरकारें कन्नी काटने लगती हैं.