बिहार की राजनीति को अपने बयानों से उथल-पुथल कर देने वाले जीतन राम मांझी की एक अनुशंसा ने सत्ता शीर्ष पर बैठे राजनीतिज्ञों की सांस फुला दी है. वजह यह कि राजनीतिक साजिश के तहत अपने प्रतिद्वंद्वी को रास्ते से हटाने के लिए अपराध का सहारा लेने वाले उक्त राजनेताओं की गर्दन जीतन राम मांझी की इस अनुशंसा से फंसती नज़र आ रही है. सत्ता के बल पर अपने विरोधियों को सबक सिखाने वाले ऐसे राजनीतिज्ञों को जीतन राम मांझी ने भी सबक सिखाने के लिए मुख्यमंत्री पद से हटते-हटते एक ऐसी अनुशंसा कर डाली, जिससे तय है कि बिहार की राजनीति के अपराधीकरण का एक और घिनौना चेहरा सामने आएगा. ग़ौरतलब है कि आज से दस साल पूर्व राज्य के तेजतर्रार पूर्व सांसद राजेश कुमार की हत्या कर दी गई थी. उक्त हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा करके जीतन राम मांझी ने नेता-अपराधी गठजोड़ में शामिल राजनेताओं को बेनकाब करने का रास्ता साफ़ कर दिया. पूर्व सांसद राजेश कुमार की हत्या में बिहार के सत्ता शीर्ष पर बैठे एक बड़े राजनेता का नाम बतौर साजिशकर्ता सामने आया था. राजेश कुमार के परिवारीजन और लोजपा के वरिष्ठ नेता इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग बराबर करते आ रहे थे.
मुख्यमंत्री के रूप में जीतन राम मांझी ने राजेश कुमार हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा करके बिहार की राजनीति को आने वाले विधानसभा चुनाव में प्रभावित करने का प्रयास किया है. यही नहीं, ऐसा करके उन्होंने दलितों की भी सहानुभूति हासिल हासिल कर ली. राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान 22 जनवरी, 2005 को गया के डुमरिया थाना क्षेत्र के मैगरा बाज़ार में चुनाव प्रचार से लौटते समय पूर्व सांसद राजेश कुमार की हत्या कर दी गई थी. उनके साथ तीन सहयोगी भी मारे गए थे. राजेश कुमार इमामगंज विधानसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. इसे सत्ता और बड़े पुलिस अधिकारियों का दबाव ही कहा जाएगा कि दस वर्षों बाद भी इस हाई प्रोफाइल हत्याकांड की जांच पुलिस नहीं कर पाई. अब तक क़रीब आधा दर्जन जांच अधिकारी बदले जा चुके हैं. घटना के समय मगध के तत्कालीन डीआईजी सुनील कुमार और गया के तत्कालीन एसपी संजय सिंह ने नक्सली वारदात बताकर इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन, राजेश कुमार के पुत्र एवं पूर्व विधायक कुमार सर्वजीत हर मंच से इस हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने की मांग करते रहे. जब जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने, तब राजेश कुमार के परिवारीजनों को उम्मीद की एक किरण नज़र आई कि गया निवासी मांझी इस मामले में उन्हें इंसाफ ज़रूर दिलाएंगे. इससे पहले कुमार सर्वजीत ने 2006 में पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसके आलोक में हाईकोर्ट ने एक स्पेशल कोर्ट बहाल कर इस मामले के त्वरित निष्पादन का आदेश दिया था, लेकिन बिहार सरकार और संबंधित विभाग हाईकोर्ट के आदेश को भी ठेंगा दिखाते रहे.
जब दो अप्रैल, 2008 को कड़क आईपीएस के रूप में शुमार परेश सक्सेना बतौर एसपी गया पदस्थापित हुए, तो उन्होंने राजेश कुमार हत्याकांड की जांच अपने स्तर पर और नए सिरे से शुरू कर दी. परेश सक्सेना की रिपोर्ट पर मगध के तत्कालीन डीआईजी अरविंद पांडेय ने भी सहमति दे दी. इससे पहले 2006 में तत्कालीन डीआईजी अरविंद पांडेय ने जांच रिपोर्ट बिहार सरकार को भेजी थी, जिसमें साजिशकर्ता के तौर पर एक राजनेता के नाम का जिक्र था. उस रिपोर्ट को सार्वजनिक तो नहीं किया गया, लेकिन जब सरकार के पास वह रिपोर्ट पहुंची, तो हड़कंप मच गया. एसपी परेश सक्सेना ने अपनी रिपोर्ट में औरंगाबाद निवासी और पुलिस द्वारा गिरफ्तार नक्सली कालिका यादव के बयान का हवाला देते हुए लिखा कि राजेश कुमार की हत्या कोई नक्सली घटना नहीं, बल्कि यह पूर्ण रूप से राजनीतिक हत्या है. यह हत्या गया लोकसभा क्षेत्र में राजेश कुमार के बढ़ते प्रभाव के कारण कुछ नक्सली नेताओं को पैसा देकर कराई गई. परेश सक्सेना ने अपनी रिपोर्ट में अपरोक्ष रूप से इस हत्याकांड में साजिशकर्ता के रूप में राज्य के सत्ता शीर्ष पर बैठे एक राजनेता के नाम का उल्लेख किया था. अचानक 23 सितंबर, 2008 को परेश सक्सेना को गया से हटा दिया गया. कुछ समय बाद डीआईजी अरविंद पांडेय का भी तबादला कर दिया गया.
अब दस वर्षों के बाद इस मामले की सीबीआई जांच की अनुशंसा ने बिहार के सत्ता संघर्ष में जदयू की आपसी लड़ाई के बीच एक भूचाल ला खड़ा किया है. राजेश कुमार के पुत्र एवं पूर्व विधायक कुमार सर्वजीत ने कहा कि सूबे के दलित मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा करके राजनीतिक हत्या के शिकार बने परिवार के साथ इंसाफ किया. बीते दिनों बोधगया में राजेश कुमार की पुण्य तिथि पर आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री एवं लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान, केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री राम कृपाल यादव, सांसद सुशील कुमार सिंह, विधान पार्षद संजीव श्याम सिंह, विधायक एवं पूर्व मंत्री डॉ. प्रेम कुमार, पूर्व विधायक अवधेश कुमार सिंह और विधायक अनिल कुमार आदि ने हिस्सा लिया. उधर उदय नारायण चौधरी का कहना है कि वह पूर्व सांसद राजेश कुमार की हत्या के मामले में अपना नाम घसीटे जाने से दु:खी हैं. उन्होंने कहा कि उनका चरित्र हनन हो रहा है, सारे आरोप बेबुनियाद और मनगढ़ंत हैं. इस साजिश में लगे लोगों के ख़िलाफ़ वह क़ानूनी कार्रवाई करेंगे. चौधरी ने कहा कि सच शीघ्र ही सामने आ जाएगा.