जे ए करन. (जूनियर) ने, आजसे पचास वर्षों पहले आर. एस. एस. के विभिन्न पदाधिकारियों तथा स्वयंसेवकों के साथ बातचीत करते हुए, और संघ के द्वारा प्रकाशित साहित्य के आधार पर लिखा है ! जिसे मैंने कल से ही राजनारायणजी ने लिखि हुई भूमिका से यह क्रम शुरू किया है ! जो कुछ लोगों को लग सकता है, कि मै आर. एस. एस. का प्रचार कर रहा हूँ ! लेकिन वास्तविकता है कि, आज आर. एस. एस. भारत की सत्ता तक पहुंच चुका है ! तो जिस संघठन को सिर्फ शाखाओं में लाठी – काठी घुमाने वाले लोगों के, गैरमामुली संघठन बोलते हुए ! अक्सर उसे अंडरएस्टिमेट करते आए हैं ! उन्हे पता चलना चाहिए कि आज आर. एस. एस. इस मुकाम तक कैसे पहुँचा ?
इसलिए जिन लोगों ने, करन के जैसे अकादमिक प्रयास करते हुए ! इस संघठन की जडों तक पहुंचने का प्रयास किया है ! उसे जानने के लिए, मै इस इतिहास को दोहराने का प्रयास कर रहा हूँ ! ताकि हमें सचमुच आर. एस. एस. हमारे देश के लिए संकट है ! ऐसा लगता है ! उन्हें उसके बारे में ढंग से जानकारी होनी चाहिए ! अन्यथा सिर्फ हवाबाजी करने से कुछ नहीं होगा !
मैं पिछले पैतिंस सालों से मुख्तः भागलपुर के दंगों के बाद से ( 1989 ) लगातार बोल – लिख रहा हूँ, कि भारतीय राजनीति का केंद्रबिंदू कम-से-कम, आनेवाले पचास सालों तक सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करते हुए ही रहेगा ! और उसके सामने गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, विस्थापन, पर्यावरण संरक्षण तथा दलित महिला और आदिवासियों के सवाल और इन सब बातों की आड में बेतहाशा बढने वाले पूंजीवाद दोयम दर्जे के हो जाएंगे !
आज भारत में संघ और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा हूबहू किए जा रहे हैं ! हालांकि भारत का संविधान इसकी इजाजत नहीं देता है ! लेकिन संघ ने भारत के संविधान की अवहेलना शुरू से ही की है ! इसलिए तकनीकी तौर पर भले ही नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के पहले शपथ ग्रहण करने के समय “मै नरेंद्र दामोदरदास मोदी आज से गुजरात का मुख्यमंत्री बनते हुए यह शपथ लेता हूँ कि ! इस राज्य में रह रहे सभी नागरिकों का बगैर किसी भेदभाव के साथ, सभी की जानमाल की सुरक्षा की जिम्मेदारी का वहन करुंगा !” और यह शपथ लेकर (10 अक्तूबर 2001) डेढसौ दिनों के भीतर ही गोधरा कांड ( 27 फरवरी 2002 ) के बाद हूए दंगों में, कौन सी शपथ का वहन किया ? और यह बात गुजरात के दंगों को देखने के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा कि “आपने राजधर्म का पालन नहीं किया ! ” इससे ज्यादा प्रमाण और क्या हो सकता है ?
लेकिन इस बात का नरेंद्र मोदी के उपर क्या परिणाम हुआ ? उल्टा उन्होंने अपनी 44 इंची छाती को 56 इंच मतलब एक फिट ! रातोंरात बढा कर, अपने आपको ‘हिंदूहृदयसम्राट’ कहलाना शुरू कर दिया ! और उसी कडी मे आगे बढते हुए वह 140 करोड की जनसंख्या के देश के तेरह साल के भीतर ( 2014) सब से प्रमुख पद तक पहुंचने में सफल होने का रहस्य क्या है ?
हिटलर ने जैसे जर्मनी में स्टॉर्म स्टुर्पस और पुंजिपतियो की मदद से जर्मनी की सत्ता पर कब्जा किया था ! और डाक्टर गोएबल्स के मदद से जर्मनी के मिडिया को लेकर जिस तरह से प्रचार- प्रसार करवा लिया था ! बिल्कुल हूबहू भारत में नरेंद्र मोदी ने संघ तथा कुछ पुंजिपतियो के मदद से दोहराया है ! भारत के मिडिया संस्थाओं ने तो, जर्मनी के डाक्टर गोएबल्स को भी पिछे छोड़ दिया है ! और आज की तारीख में मोहन भागवत सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख पदाधिकारी है ! इसलिए वह राममंदिर के शिलान्यास से लेकर मूर्ति को बैठाने के कार्यक्रम में प्रमुखता से उपस्थित रह रहे हैं ! जो आज भारत की कूल आबादी में, सिर्फ एक प्रतिशत स्वयंसेवकों के प्रतिनिधि है ! जनतंत्र के द्वारा किसी भी संविधानिक पद पर नही होने के बावजूद ! उन्हें इस तरह के कार्यक्रमों में ससम्मान के साथ बुलाया जाता है !
भारत के संविधान में भले ही धर्मनिरपेक्षता लिखा होगा ! लेकिन राममंदिर आंदोलन के संपूर्ण इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है कि ! यहाँ कदम – कदम संविधान की धज्जियाँ उडाते हुए ! “सवाल कानून का नही आस्था का है !” इसी आधार पर, हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी, मस्जिद ध्वस्त करने की अपराधीक घटना की अनदेखी करते हुए ! मंदिर बनाने का फैसला, हमारे संविधान की अनदेखी करते हुए लिया है ! और उस मुख्य न्यायाधीश को रिटायर होने के तुरंत बाद, राष्ट्रपति के द्वारा राज्यसभा में मनोनीत करना ! और उन्हें और उनके साथ के सभी सदस्य न्यायाधीशों को भी मंदिर के कार्यक्रम में बुलाने का औचित्य को देखते हुए ! देश के संविधान में भले ही धर्मनिरपेक्षता लिखा होगा ! लेकिन वास्तव में अघोषित ‘हिंदुराष्ट्र’ ही दिखाई दे रहा है ! और यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारत के बारे में सौ सालों से कोशिश रही है ! जिसमें वह आज कामयाब नजर आ रहे हैं ! और सबसे हैरानी की बात, इस बात पर कोई भी दल या संघठन भूमिका लेते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं ! ‘हे राम’ ! क्रमशः