आजकल सत्यपाल मलिक चारों ओर छाये हुए हैं। सत्यपाल मलिक को मैंने तब देखा था जब वे मेरठ कॉलेज के अध्यक्ष हुआ करते थे और सुना तो यह जाता था कि वे अध्यक्ष बनने के लिए बार बार फेल होते थे। यह 1970 से पहले की बात है। मेरा बचपन मेरठ में ही बीता और मेरठ कॉलेज मेरे नजदीक ही था।‌ तब हम पर मलिक का गजब प्रभाव पड़ा था। सत्तर के बाद मैं दिल्ली चला आया। मलिक कई दलों से होते हुए आखिरकार बीजेपी के हो गए। आज वे 67 साल के बूढ़े, शरीर से थुलथुल और घुटनों से लाचार हैं। इंसान जवानी को कभी भूल नहीं पाता। वजह कि दिमाग उसका बूढ़ा नहीं होता। ऐसे में जुझारू रहा इंसान बुढौती में भी वही स्वप्न देखता है। जेपी का शरीर थुलथुल नहीं था और न ही उनके घुटने बेमानी हो गये थे। किडनी की गड़बड़ी न होती तो वे गजब जवान थे । सत्यपाल मलिक आज हर किसी को इंटरव्यू दे रहे हैं। उनकी कुछ बातों ने सत्ता को हिला कर रख दिया है और कुछ बातों में छेद ही छेद नजर आते हैं। लेकिन यहां सत्यपाल मलिक का जिक्र दूसरे संदर्भों में है । वे अपने हर इंटरव्यू में थकी थकी जुबान से जब 2024 के चुनावों में सत्ता परिवर्तन की बात करते हैं हमें वह मलिक की खामख्याली ज्यादा लगती है। अभी ताजा इंटरव्यू उन्होंने आरफा खानम शेरवानी को ‘वायर’ के लिए दिया। उसमें भी उन्होंने यही बात दोहराई और आरफा उसे ले उड़ीं और गदगद हैं जैसे मलिक की कही बात सत्य ही होने जा रही है। हम सब भूल जाते हैं कि मोदी सत्ता छोड़ने के लिहाज से नहीं बैठे हैं। वे यह भी नहीं सोच सकते कि आम चुनावों में ये जनता मुझे गद्दी से उतार सकती है। उन्होंने अपना जाल कहिए या ताना बाना कहिए ऐसा बुना है कि तमाम विरोधी और विपक्ष के लोग मन मसोस कर रह जा रहे हैं। आप चाहे पुलवामा कहिए, अडानी कहिए, पैगासस कहिए, राफेल कहिए, भगोड़ों की बात कहिए, चीन का अतिक्रमण कहिए, नोटबंदी कहिए, लॉकडाउन की त्रासदी कहिए, जीएसटी से त्रस्त व्यापारी कहिए अब यह तय हो चुका है कि इस सत्ता को हर मुद्दा तेल करना आता है। मोदी के लिए सिर्फ अडानी का मुद्दा भयावह था, जिसे वे सोच भी नहीं सकते थे। और अब सुप्रीम कोर्ट और विशेषकर जस्टिस चंद्रचूड़ मोदी के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। और हमारे लिए आस का कारण हैं जस्टिस चंद्रचूड़। लेकिन बात इसकी भी नहीं है। बात अब बन आई है कि 2025 में आरएसएस की स्थापना का सालाना जश्न होना है, राम मंदिर बनना है और सैंट्रल विस्टा दुनिया को दिखाना है। दूसरे अर्थों में मोदी को भारत का नया लौह पुरुष स्थापित करना है। और यह सब संभव है क्योंकि हमारी और विपक्ष की आंख उस तरफ नहीं है। और वह है मोदी का प्रतिबद्ध सड़कछाप वोटर , जिसकी संख्या कहीं से कम नहीं।
विधानसभाओं के चुनाव शुरु हो चुके हैं । कर्नाटक में सबसे पहले इसी दस को वोट डलने हैं। मोदी की राजनीति सड़कछाप है । और माफी के साथ कहूंगा कि इस देश की मानसिकता भी नब्बे फीसदी सड़कछाप ही है। और विरोधी अगर कट्टर कांग्रेसी या दूसरे दलों के न हों तो उन्हें भी मोदी के भाषण, मोदी की अदाएं और तौर तरीके कहीं न कहीं भाते हैं पर विरोध करना मजबूरी है ‌। वरना इसी देश को सांप सपेरों का देश कहा गया है। मूल में आज भी वह कहीं न कहीं वजूद में है । लोगों को तमाशबीन होना खूब पसंद है। केवल हाईक्लास लोगों के सुपर चोंचलों को छोड़ दें तो। सत्ता को बरकरार रखने के लिए मोदी के पास वह सब कुछ है जिसकी दरकार होती है।
कल इन्हीं सब बातों पर लाउड इंडिया टीवी के अभय दुबे शो में मंथन किया गया। संतोष भारतीय के सवालों में चिंता थी इसी आम आदमी को लेकर थी। अभय दुबे का विश्लेषण बहुत व्यावहारिक था। सबसे मजेदार बातें महिलाओं को लेकर थीं। उनका कहना था कि आधी दुनिया को हमसे आपसे हमारी और डिजिटल चैनलों पर होने वाली चर्चाओं से कुछ लेना देना नहीं है। फिर भी वे कमिटेड वोटर हैं। उन्हें किसको वोट देना है, वे जानती हैं। उनका वोट प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। संतोष भारतीय परेशान थे कि देश की आम जनता को सवाल टच क्यों नहीं करते । इस पर अभय जी का सही कहना था कि आम जनता की जरूरतें अलग किस्म की हैं। देश भर में ऐसे तमाम लोग हैं जिनके हित मोदी जी से सधते हैं इसलिए वे चाहते हैं कि मोदी बरकरार रहें। आप कहेंगे कि मोदी को केवल 36- 37 फीसदी ही तो वोट मिलते हैं। अभय जी का कहना है कि दो में से एक व्यक्ति का वोट मोदी को पक्का है लेकिन दूसरे व्यक्ति का वोट किसको जाएगा यह पता नहीं। डिजिटल चैनल की पहुंच आम जनता तक नहीं है लेकिन मुख्य धारा के मीडिया के चार पांच चैनल जरूर ऐसे हैं जिनकी पहुंच बहुत है और इनकी दर्शक संख्या सम्मान जनक है। उन्होंने कर्नाटक चुनाव का भी सही लगता विश्लेषण किया। सही कहा कि कर्नाटक में बीजेपी बनाम जनता की लड़ाई है। हालांकि बीजेपी त्रिशंकु विधानसभा के लिए लड़ रही है पर लगता यह है कि जनता स्पष्ट बहुमत के लिए आगे बढ़ रही है।
हमारे दूसरे चैनलों का तो कोई महत्व आज की तारीख में दिखता नहीं। वे अपने ही लोगों के साथ चर्चा में मजा ले रहे हैं। इनका कोई आकलन नहीं होता। वे वहीं बातें करते हैं जो सैंकड़ों बार कही जा चुकी हैं और जनता जानती है। मोदी के नेटवर्क को न ये भेद सकते हैं न इनका कोई प्रयत्न होता है। हालांकि जानते ये सब हैं।
मैंने पहले भी लिखा था कि बेशक आप विधानसभा चुनावों में अपना परचम लहरा लें लेकिन असली सवाल आम चुनावों का है । यानी मोदी का है। दुनिया देख रही है । मोदी और इस सत्ता के दोनों रूपों को देख रही है लेकिन मोदी को सिर्फ अपने रूप की चिंता है। वे जानते हैं कि एक मजबूत नेता के रूप में मैंने स्वयं को दुनिया के पटल पर सिद्ध कर दिया है और यों भी दुनिया के हर देश को अपने अपने स्वार्थों के लिए भारत की अथाह जरूरत है। अमरीका भारत में मानवाधिकारों पर चिंता जता सकता है पर संबंध नहीं बिगाड़ सकता।
इसलिए सत्यपाल मलिक की बातें 2024 के संदर्भ में मुझे खामख्याली से ज्यादा कुछ नहीं लगतीं । उन्हें यह गुमान हो सकता है कि उनका प्रभाव क्षेत्र बहुत लंबा चौड़ा है पर उन्हें यह ख्याल नहीं कि मुस्लिम विरोध हमारी नसों तक आ चुका है और वोट के समय हर कोई हिन्दू होना चाहता है। फिर मलिक का शरीर भी साथ कहां दे रहा है।‌ उनकी बातों से जो उम्मीद लगाए बैठे हैं वे सावधान रहें। सब कुछ चौबीस की नजर से गढ़ा जा रहा है। मोदी को बाहुबली बताया जाएगा। तैयारियां ‘मन की बात’ से शुरु की जा चुकी हैं।

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