संविधान ने बेहतरीन काम किया है. हमने पाकिस्तान की तरह काम नहीं किया. उसके रास्ते पर हम इसलिए नहीं गए, क्योंकि हमारी संस्था मजबूत है और इस तरह का व्यवहार इसे कमजोर बनाएगा. प्रत्यक्ष तौर पर न सही, लेकिन इसी तरह का संबंध आर्टिकल 370 के साथ भी है. देश में इस पर चर्चा कराने से कश्मीरी लोगों के मन में फिर से असुरक्षा का भाव पनपेगा.
नया साल आ गया है. अब सरकार और विपक्ष, दोनों के लिए समय आ गया है कि वे अगर अपने लिए वर्ष 2015 का कोई निश्चित लक्ष्य नहीं रखना चाहते हैं, तो कम से कम एक व्यापक एजेंडा ही तय कर लें. जहां तक सरकार का सवाल है, तो वह वास्तव में भाग्यशाली है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल (पेट्रोल) सस्ता हो गया है और ख़राब मानसून के बावजूद खाद्यान्न का भी पर्याप्त भंडार मौजूद है. यह स्थिति वित्त मंत्री को थोड़ी आज़ादी देगी कि वह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ जोखिम उठा सकें. ब्याज दरों में कटौती पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की असहमति को समाचार-पत्रों में बहुत ज़्यादा जगह दी गई. मुझे नहीं लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मुद्रास्फीति पर आरबीआई के अलग मापदंड हैं. और, मैं समझता हूं कि उन्हें नहीं छेड़ना चाहिए.
वित्त मंत्री ने फरवरी 2015 में पेश किए जाने वाले बजट में अर्थव्यवस्था की पुनर्स्थापना के लिए उपायों की घोषणा करने का वादा किया है, लेकिन यहां समस्या यह है कि सरकार को नौकरशाही का साथ लेना पड़ेगा और आम तौर पर नए साहसिक प्रस्ताव देना नौकरशाहों के लिए संभव नहीं है. वे बहुत कम बदलाव के साथ पुराने फॉर्मूले पर चलना पसंद करते हैं. ऐसे में, अगर वित्त मंत्री साहसिक फैसले लेते हैं, जैसा कि वीपी सिंह ने वर्ष 1985 में लिया था, तो जहां जोखिम होगा, वहां राजस्व का नुक़सान हो सकता है. लेकिन, अगर उसे ठीक ढंग से लागू किया जाए, तो अंतत: कराधान आसान होगा और राजस्व का भी फ़ायदा होगा. वर्ष 1985 में वीपी सिंह ने स़िर्फ इतना किया था कि उन्होंने आयकर विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारियों और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों की राय मांगी थी कि कैसे कम से कम कागजी कार्रवाई के साथ ज़्यादा से ज़्यादा कर इकट्ठा किया जा सकता है.
हमें अगले बजट का इंतज़ार करना है. बजट के अलावा प्रधानमंत्री को एक सामाजिक एजेंडा भी अपनाना होगा, ताकि भाजपा के पैतृक संगठन जो आज कर रहे हैं, उसे रोका जा सके. ऐसे संगठन केवल माहौल खराब कर रहे हैं और प्रधानमंत्री के काम को मुश्किल बना रहे हैं, उनके रास्ते में कठिनाइयां पैदा कर रहे हैं. इस कथित धर्मांतरण से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला. सरकार समाज का निर्माण नहीं करती, समाज खुद अपना विकास करता है. इस देश में हिंदूकरण जैसी बातें करके और अल्पसंख्यकों को डराकर इस विकास को हासिल नहीं किया जा सकता है. सभी जानते हैं कि इस देश में 80 फ़ीसद हिंदू हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि धर्म सरकार के कामकाज का हिस्सा बन जाए. हम अपनी पसंद से धर्म निरपेक्ष बने थे. धर्म निरपेक्ष राष्ट्र का कोई धर्म नहीं होता है. हरेक आदमी का अपना धर्म है. वह कोई भी धर्म अपना सकता है. यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी को अपना धर्म त्याग देना चाहिए. केवल हिंदू ही इस देश को, इस समाज को चला सकता है. यह सब ग़लत है. दूसरों के विश्वास को, आस्था को नुक़सान नहीं पहुंचाया जा सकता है. ऐसा नहीं होना चाहिए. पिछले 64 सालों में जो कुछ हमने हासिल किया है, उसे हम एक बार में अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा का भाव पैदा करके खो बैठेंगे.
संविधान ने बेहतरीन काम किया है. हमने पाकिस्तान की तरह काम नहीं किया. उसके रास्ते पर हम इसलिए नहीं गए, क्योंकि हमारी संस्था मजबूत है और इस तरह का व्यवहार इसे कमजोर बनाएगा. प्रत्यक्ष तौर पर न सही, लेकिन इसी तरह का संबंध आर्टिकल 370 के साथ भी है. देश में इस पर चर्चा कराने से कश्मीरी लोगों के मन में फिर से असुरक्षा का भाव पनपेगा. मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री को सही सलाह दी जानी चाहिए कि एक अच्छा नेता बनने के लिए ज़रूरी है कि लोगों के मन से असुरक्षा की भावना ख़त्म की जाए. इस तरह असुरक्षा की भावना पैदा करके शासन करना उन संगठनों की शैली है, जो दुर्भाग्य से भाजपा से संबंधित है.
जबरन बाबरी मस्जिद गिराकर क्या हासिल हो गया? उलटे अल्पसंख्यक समुदाय के साथ हमारा रिश्ता और कटु हो गया, जो 1992 तक ठीक था. उन्हें यह विश्वास था कि क़ानून के बिना ऐसा कुछ नहीं किया जाएगा, लेकिन बहुसंख्यकों ने उन्हें ग़लत साबित कर दिया. पाकिस्तान की तरह हमारा भी यह रवैया कि हम पूरे देश को हिंदू बना दें, ठीक नहीं है. यह देश के लिए ठीक नहीं है. ऐसा करते ही हमारी सीमा पर, कश्मीर में समस्याएं पैदा हो जाती हैं. पाकिस्तान एक ऐसा देश नहीं है, जिसकी नकल की जाए. अगर आप किसी की नकल करना चाहते हैं, तो उनकी करें, जो हमसे बेहतर हैं. हमारे जैसे एक समग्र समाज, जिसके पास बड़ा दिल, व्यापक और गहरी दृष्टि है, उसे ऐसा काम करना चाहिए, जिससे अल्पसंख्यकों में आत्मविश्वास पैदा हो. तभी यह समाज टिक पाएगा. यही बात दलितों एवं अन्य पिछड़ी जातियों के साथ लागू होती है. उन्हें संवैधानिक प्रावधान के तहत टिकट आदि मिलते हैं. लेकिन, हम क्या करने की कोशिश कर रहे हैं?
पिछले 23 सालों में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से क्या हुआ, आप जानते हैं? सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, संगठित क्षेत्र के सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों में महज 32 लाख लोगों को रोज़गार मिला. दूसरी ओर, हमने इस क्षेत्र को सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के बैंकों से हज़ारों करोड़ रुपये निकाल कर दे दिए हैं. यह तो डॉ. मनमोहन सिंह या उन लोगों का भी, जो अमेरिकी अथवा यूरोपीय मॉडल की नकल करना चाहते हैं, उद्देश्य नहीं था. जैसा कि प्रधानमंत्री भी कहते हैं, रा़ेजगार सृजन के अलावा कोई विकल्प नहीं है. दूसरी ओर सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्रों में इस वक्त देश भर में 5.8 करोड़ उद्यमी काम कर रहे हैं. आगरा और कानपुर में जाकर देखें, वहां पारंपरिक वैश्य या ब्राह्मण वर्ग के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों के भी उद्यमी मिलेंगे. उन्होंने रोज़गार पैदा किया है. मुख्य रोज़गार अब सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्रों में है, जिसे चीनी टीवीटी टाउन और विलेज एंटरप्राइजेज (ग्रामीण उद्यम) कहते हैं.
चीन में शी जिनपिंग के आने के बाद देश पूरी तरह इसी टीवीटी टाउन पर निर्भर हो गया. उनकी सफलता की कहानियां इन्हीं टीवीटी टाउन से निकलती हैं. हमारे यहां भी जब तक भारत अपने भीतर नहीं देखेगा, हम छोटे और मध्यम उद्यमियों को प्रोत्साहित नहीं करेंगे, बात नहीं बनेगी. दुर्भाग्य से हम पैसों के लिए उधारदाताओं पर निर्भर कर रहे हैं. बैंकों से ऐसे उद्यमियों को पैसे उधार नहीं मिलते. बैंक स़िर्फ व्यापारिक घरानों को पैसे उधार देने में व्यस्त हैं और इसी के साथ एनपीए बढ़ता जा रहा है. छोटे उद्यमी उधार लिया गया एक-एक पैसा चुकाते हैं, रोज़गार पैदा करते हैं, लेकिन दु:ख की बात यह है कि उन्हें ही बैंक उधार नहीं देता. सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र के उद्यमों के लिए एक मंत्रालय है. कलराज मिश्र उसके मंत्री हैं. मुझे लगता है कि उन्हें वित्त मंत्रालय से समर्थन दिए जाने की ज़रूरत है. यही वह असल क्षेत्र है, जहां रोज़गार पैदा होगा. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हमारे पास बड़े सार्वजनिक प्लांट न हों, लेकिन रा़ेजगार सृजन के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम क्षेत्र ज़्यादा उपयुक्त हैं. चीन में भी बड़े उद्यम हैं, लेकिन रोज़गार वहां के टाउन और विलेज एंटरप्राइजेज (शहरी एवं ग्रामीण उद्यम) से ही आता है.
इस नए साल में प्रधानमंत्री का उद्देश्य छोटे और मध्यम उद्यमों के विकास के लिए अधिकतम संस्थागत ढांचा बनाना होना चाहिए, ताकि रोज़गार पैदा हो सके, स्थिरता आ सके. लोग पहले से ही महंगाई से परेशान हैं और अब अगर उन्हें रोज़गार नहीं मिलता है, तो फिर क्या होगा? ग्रामीण इलाकों में लोगों का मोहभंग बहुत तेजी से होता है. इसलिए यह ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री इसे समझें, इस सच को स्वीकार करें.