संकुचित राष्ट्रवाद की प्रतिगामी प्रवृत्तियों के प्रतिरोध की प्रभावी अभिव्यक्ति ।
वर्तमान के संकटों और भविष्य की आशंकाओं की प्रभावी अभिव्यक्ति ,प्रतिरोध तथा इस हेतु जन शिक्षण से ही किसी रचनाकार के महत्व का मूल्यांकन होता है ।
समकालीन हिन्दी कविता के एक शीर्ष कवि भगवत रावत जी का निधन 25 मई 2012 में हुआ था ।आज भारत जिन संकटों से ग्रस्त है ,उसकी आशंकाओं को लेकर भगवत रावत जी चिंतित रहते थे ।धर्मांधता ,कट्टरता ,हिंसा ,आतंक , संकुचित राष्ट्रवाद की प्रतिगामी प्रवृत्तियों और फासीवादी ताकतों के सत्ता में आने की आशंकाओं को उन्होंने अपने वर्ष 2009 में प्रकाशित कविता संग्रह देश एक राग है में गंभीरता से व्यक्त किया था ।इन खतरों को लेकर सचेत भी किया था ।
भगवत रावत जी के निधन के दो वर्ष बाद 2014 से भारत की स्थितियों में चिंताजनक परिवर्तन हुआ है ।भारत के अमन पसंद ,धर्म निरपेक्ष ,सामाजिक न्याय के पक्षधर लोगों को जिन खतरों से जूझना पड़ रहा है ,उन खतरों को लेकर भगवत रावत जी अपनी कविताओं में सचेत करते थे । इस संदर्भ में भगवत रावत जी की बरसी पर उनकी एक लंबी कविता देश एक राग है के दो अंशों का उल्लेख कर रहा हूं ।
इतने वर्षों की दासता से कुछ सबक सीखा नहीं आपने
धर्म के नाम पर बांटा गया
खुशी खुशी बंट गए
भाषाओं के नाम पर अलग अलग किया गया
अलग अलग हो लिए
अब अपनी अपनी जातियों के नाम पर भी
बना लीजिए अपने अपने ,अलग अलग राष्ट्र
और अब इस बार डूबे तो कोई किसी को
नहीं बचा पाएगा ।
यह मानसिकता देश की बहुरंगी संस्कृति को
पहले राष्ट्र की संस्कृति कहकर इकहरा बनाती है
फिर देश को एक तरफ फेंक
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा लगाती है ।
भगवत रावत जी की इस महत्व पूर्ण कविता में फासीवादी ताकतों के प्रतिगामी ,जन विरोधी चरित्र को सवालों के कठघरे में खड़ा किया गया है ।यह जरूरी सवाल भगवत रावत जी के प्रेरक अवदान की प्रासंगिकता को सिद्ध करते हैं ।