प्रेम और आदर दो महत्त्व के भाव हैं. समाज को रचने गढ़ने में इनकी भूमिका अहम् है. लेकिन प्रेम का महत्व आदर से अधिक है. प्रेम के अभाव में आदर को गढ़ा जाता है. आदर प्रेम की अनुपस्थिति है. यह औपचारिक है, जबकि प्रेम का औपचारिकता से कोई सम्बन्ध नहीं. यह मन का मन से संवाद है. आदर बनावटी भाव अधिक है. आदर में भय भी निहित है. इसमें स्वार्थ के भी तत्व है. माँ से प्रेम करते हैं, इसलिए माँ एक सनातन सत्य है. पिता को अक्सर आदर दे दिया जाता है. इसलिए पिता माँ के महत्त्व के आगे कमतर घोषित हो जाता है.
जब हम प्रेम नहीं कर पाते तो आदर करते हैं. प्रेम भाव की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है. भारतीय परम्परा में इसलिए इश्वर से प्रेम की परम्परा रही है. हम इश्वर को ‘तुम’ कहकर पुकारते हैं. हम उन्हें ‘आप’ कहकर नहीं बुलाते. यह संबोधन सत्य का संबोधन है. भक्ति की कई धारा तो प्रेम की ही धारा रही है. राधा-कृष्ण उसी प्रेम की परम्परा का एक रूप है. हम उनसे शिकायत करते हैं. हम उनपर गुस्सा करते हैं. हम उनसे सवाल करते हैं. और यह सब इसलिए कर पाते हैं क्योंकि हम उनसे प्रेम करते हैं. एक हिंदी सिनेमा में अमिताभ बच्चन का बोला गया संवाद प्रसिद्ध है. वह इश्वर से गुस्से में उलझता है. उन्हें कोसता है, और कहता है- “..और आज तो बहुत खुश होगे तुम…”. प्रेम उतना अधिकार देता है जितना आपका अपने आप पर होता है. तभी तो नायक इश्वर से शिकायत कर पाता है. प्रेम में भय नहीं रह जाता. ‘आदर’ में भय के अंश से इंकार नहीं किया जा सकता. आदर मध्यकालीन जीवन दर्शन है. मंदिर और मस्जिद आदर के केंद्र बनते गए हैं. जहाँ इश्वर को आदर देने के लिए कहा जाता है. जिस कारण इश्वर से वहां संवाद नहीं हो पाता- साक्षात्कार नहीं हो पाता. यहाँ से प्रेम गायब होते जा रहें. भक्ति ख़तम होती जा रही. बस कर्मकांड रह गए हैं. औपचारिकतायें रह गई हैं. प्रेम में कोई बिचौलिया नहीं होता, लेकिन मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों में अब बिचौलिए ही बिचौलिए हैं.
भारतीय दार्शनिक और आध्यात्मिक परम्परा में तमाम दर्शन प्रेम की सार्वभौमिकता की ही खोज है. चाहे सावित्री और सत्यवान की कथा हो, या सीता और राम की गाथा, या चाहे शिव और उमा की कहानी. तमाम पौराणिकतायें प्रेम के इर्द गिर्द ही घूम रही. ऐसी प्रेरणाएं हैं हैं व्यक्तिगत प्रेम से सार्वभौमिक प्रेम की यात्रा की. कबीर जब हिन्दू और मुस्लिम समाज की कुरीतियों और आडम्बरों पर चोट करते हैं तो यह उनका प्रेम है मानवजाति के प्रति. वे आदर के कर्मकांड से मानवता को मुक्त करना चाहते हैं. वे आदर से उपजे भय से मानवता को मुक्त करना चाहते हैं. प्रेम निर्भयता देता है और कबीर का प्रयास समाज को निर्भय बनाना ही है. रैदास जब दावा करते हैं –“मन चंगा तो कठौती में गंगा’ तो यह उनका अराध्य के प्रति प्रेम के कारण है. अगर यह आदर मात्र होता तो गंगा के दर्शन कठौती में तो नहीं ही होते. प्रेम दुर्लभ को सुलभ कर सकता है. अप्राप्य को प्राप्य बना सकता है. प्रेम के न होने पर कर्मकांड ही रह जाता है. शोषण और अन्याय ही रह जाता है.
प्रेम लोकतान्त्रिक भाव है. यह उसकी आत्मा भी है. समानता की दुनिया इन्हीं मूल्यों से चलती हैं. जहाँ प्रेम नहीं हैं वहां समानता का बोध भी नहीं होगा. प्रेम में कोई भेद नहीं रहता. बराबरी का भाव ही रह जाता है. इसका और उसका, मेरा और तुम्हारा का भाव नहीं रहता. मान- अपमान की लालसा नहीं रह जाती. सबकुछ अपना अपना सा हो जाता है. फ़्रांसिसी क्रांति का नारा प्रेम का नारा ही तो था. मानव जाति का एक दूसरे के लिए प्रेम का नारा था. जनता का जनता के लिए भाईचारे का नारा था. ‘समानता, आजादी, भाईचारा’. प्रेम का यह पश्चिमी मुखर रूप था. यह क्रांति प्रेम की ही तो सार्वभौम क्रांति थी. दुनिया को प्रेम का आधुनिक स्वरूप मिला. दुनिया प्रेम के इन्हीं मूल्यों से प्रभावित हुई. लेकिन फिर अचानक से इस प्रेम से सत्ताएं चिंतित हो गई. जैसे मीरा के प्रेम से हुई थी. मीरा को जहर दे दिया गया. आज जनता में जहर घोला जा रहा. प्रेम जनता की शक्ति है. यह सत्ता को नियंत्रित करती है. प्रेम क्रांति है, प्रेम बगावत है- सत्ता इससे डरती है.
प्रेम अब खतरे में है. यह नियंत्रित किया जा रहा. तमाम कानून बन रहें. प्रेम पर पहरे हैं. रोमियो को ठिकाने लगाने सरकारी स्क्वाड लगे हैं. सत्ताएं आज आदर की संस्कृति विकसित कर रही. प्रेम की परम्परा ध्वस्त की जा रही. अब इश्वर को भी मनुष्य ही रच-गढ़ रहा. इसलिए अब इश्वर भी आदर और भय पैदा कर रहें. मंदिर और मस्जिद आक्रांत करते हैं. इसलिए निदा फाजली कहते थे- “मस्जिदों से उठ-उठकर नमाजी जाने लगे, आतंकियों के हाथ में इस्लाम रह गया”. इनसे प्रेम की घंटियाँ नहीं बज रही. इनसे मानव कल्याण के आवाज की अजाने नहीं आ रही. मानवता का कल्याण प्रेम में ही है. यह स्वीकारना होगा. यही जनता की शक्ति है सत्ता की कमजोरी. एक अच्छे तंत्र में जनता का मजबूत और सत्ता का कमजोर होना अनिवार्य है. जरुरत है कि हम प्रेम करें. फिर से प्रेम करें.

 

Author: रंधीर कुमार गौतम

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