अगर मुझे किसी जैसा बन जाने की ख्वाहिश है तो अविनाश तिवारी जैसा बन जाने की कामना है।उनके जैसी आवाज़, उनके जैसा सुंदर शरीर, उनके जैसी बुद्धिमत्ता, उनके जैसा हंसते रहना,उनके जैसा सबसे बोलना, उनके जैसा व्यवहार कुशल होना और उनके जैसा साहित्य संगीत प्रेमी होना,आदि आदि।एक आदमी में इतनी विशेषताओं वाला शख्स मैंने अपने जीवन में कोई दूसरा नहीं देखा.मैं उनसे आखिरी बार 8मई 22 को मिला था।और पहली बार व्यक्तिगत रूप से मिला था 2009 में,जब मुझे श्री एम एल कौरव तत्कालीन सीईओ ज़िला पंचायत विदिशा ने संगीत गोष्ठी का आयोजन करने की जिम्मेदारी दी थी।स्थल पर सबसे पहले जो शख्स आया वह श्री अविनाश तिवारी ही थे।बोले ..मैं अविनाश तिवारी डिप्टी कलेक्टर.
सर नमस्कार.. स्वागत है।
फिर इसके बाद उनका हारमोनियम पर गुलाम अली की ग़जल गाना,अंदर तक प्रभावित कर गया।यह पहली गोष्ठी थी जिसमें विदिशा के कवि और संगीतकार अधिकारियों की गोष्ठी में शामिल होकर परिचित होते गए थे।अविनाश तिवारी जी ने अगली गोष्ठी की रूप रेखा बुनी।फिर उन्होंने ही प्रस्ताव भी दिया कि हम लोग अपने घरों में गोष्ठियाँ शुरू करें।तत्कालीन एडीएम श्री शरदचंद्र शुक्ला भी फिल्मी गानों बहुत शौकीन थे।बल्कि सबसे ज्यादा तो शुक्ला जी को ही ऐसे कार्यक्रमों में दिलचस्पी थी।वह तिवारी जी से कहते,तिवारी जी मुझसे कहते और स्थान तय हो जाता।कभी दिनेश मिश्र के घर,कभी युनूस खान के घर,कभी मेरे घर।एक बार सुमंत भार्गव के घर भी गोष्ठी हुई।अविनाश तिवारी जी औंर स्मिता भाभी के तो सुर वास्तव में ही पक्के थे तो ये दंपति हमेशा छा जाता।लेकिन उन्हें कोई घमंड नहीं था,न एस डी एम होने का और न ही अच्छे गायक होने का।बल्कि वह हमेशा कहते कि मैं कभी अच्छा गा भी पाऊंगा या नहीं।उन दिनों मैं सर्व शिक्षा अभियान में सहायक जिला परियोजना समन्वयक था तो अक्सर एस डी एम आफिस जाना होता ऐसे में अक्सर वह मुझे पकड़ लेते।और जाने का कहते ही नहीं।आखिर वह अफसर थे, कहा जाता है कि अफसर की अगाड़ी से बचना चाहिए।तो मैं भागना चाहता।एक बार उन्होंने बताया दरअसल मेरा एक मित्र था,।आपकी बोली,आपकी शक्ल सूरत उससे बहुत मिलती है तो मैं आपके साथ ज्यादा समय गुजारना चाहता हूँ। अपनी मस्त हंसी के साथ वह बोले आप मुझसे बचा मत करो यार ।फिर वह अपनी कच्ची कविता सुनाते।मैं उन्हें थोड़ा बहुत ठीक करता।एक बार तो उन्होंने एक गीत लिखकर कहा कि इसे अपन फिल्मों के लिए किसी को भेजेंगे।मैं उनकी ऐसी भोली बातों पर रीझता रहा और फिर धीरे धीरे उनसे संवेदना का तार इस तरह जुड़ गया कि हम लोग पारिवारिक रूप से जुड़ गए।हमें उनके घर जाने पर अच्छा नाश्ता ,खाना,और उठने पर और बैठो का आग्रह मिलने लगा,उन्हें भी हमारे घर की एकाध सप्ताह में आने की तलब लगने लगती।उनकी माताजी हमें पहचानने लगीं।हमारी माताजी उन्हें।परिचितों को भी मालूम हो गया कि इनकी पारिवारिक बैठकों में घड़ी नहीं देखी जाती और उनमें गीत संगीत की मिठास भरपूर मौजूद रहती है।
उनकी शख्सियत में कुछ ऐसा जादू था कि माधव उद्यान में उनके साथ टहलने के लिए सभी इच्छुक रहते।वह अक्सर आठ बजे के बाद ठाठ से आते।अपनी मुस्कानों,ठिठोलियों और बतकहियों से सबको मुग्ध करते रहते।डा.नीरज शक्ति निगम मेरी एक बात पर बहुत हंसते और हंसाते हैं जो तिवारी जी और मेरे बीच की है।जो मेरी एक खीझ से जुड़ा प्रसंग है।बताता हूँ।मेरा दांत का इलाज चल रहा था बड़ी मुश्किल से एक दांत को रूट केनाल द्वारा डा.निगम बचा रहे थे।तिवारी जी एस डी एम थे।बाढ़ आई थी।माधव उद्यान से सीधे वह सभी संगी साथियों को बाढ़ दिखाने के लिए ले जाने लगे।मैंने मना किया तो नहीं माने।फिर बाढ़ वाले गणेश तरफ दिखाने के बाद जीप से ही चरण तीर्थ तरफ चल दिए।वहां समोसा मंगाए गये।मैंने भी न न करते करते आधा समोसा ले लिया और धोखे से उसी दांत में वह पहुंच गया, उसमें शायद कंकड़ था।मैं समझ गया कि मासूम दांत शहीद हो चुका।घोषणा शाम को निगम जी ने की।लगभग आंसू भरे भरे हमने गुस्से में दोष जैसे ही उनको दिया।निगम जी हंसें भी और हमें समझाए भी।तो यह था हमारी आपस की मोहब्बत का एक नमूना।निगम जी मेरी नादानी पर हंस रहे थे कि ग़लती तो आप ने की दोष तिवारी जी पर।
मैं उनके लिए प्रिय इसलिए भी था कि मैं अपने कवि पिता को स्मरण करता रहता,उनके पिता श्री केशव शरण तिवारी भी कवि थे।उन्हें उम्मीद थी कि मेरे साथ के प्रयासों से केशव जी की कविताओं को और लाईट में लाया जा सकता है।हालांकि केशव शरण जी अपने ज़माने में धर्मयुग आदि में छप चुके थे।दूसरी बात उनके छोटे पुत्र दुष्यंत भी कविता लिखते।दुष्यंत से मुझे मिलवाते हुए उन्होंने कहा इसे अपना शिष्य बनाइये।न न करते भी दुष्यंत ने मेरे ऐसे ही भाव से पैर छुए।मैंने दुष्यंत की कविता में समकालीन कविता की भरपूर संभावनाएं पाईं।वह वास्तव में विरला कवि है।इसी प्रक्रिया के चलते हम लोगों ने मिलकर ऐसी योजना बनाई कि केशव जी,अविनाश जी,और दुष्यंत की कविताओं का समवेत संकलन आया जिसका नाम रखा गुल्लक।गुल्लक संग्रह का भव्य लोकार्पण
हुआ।इस आयोजन में भोपाल से कथाकार मुकेश वर्मा, बलराम गुमास्ता आए थे।उनके सभी रिश्तेदार भी आए थे।शहर में और बाहर भी इस संग्रह की चर्चा हुई।आयोजन में सुधीर देशपांडे,हर गोविंद मैथिल, सुदिन श्रीवास्तव, प्रतिष्ठा ने भी सहभागिता की थी।यह आयोजन उन्होंने 11 जून 2015 को किया।जो दुष्यंत का जन्मदिन होता है।
अविनाश जी की संगत में ही मुझे अपने भीतर का शौकिया गायक फिर से मिला।वह हारमोनियम लेकर बैठ जाते कहते महेंद्र कपूर का कोई गाना गाइए मैं संगत करूँ। मुझे वह इतना अंतरंग मानते थे कि मीठू यानि दुष्यंत के लिए दिनेश मिश्र की छोटी बेटी मीठी यानि शिवानी से रिश्ते की पहली वार्ता के लिए संदेश वाहक मुझे ही बनाया। हालांकि हमारी तरह उनके अनेक साथी अपनी अपनी तरह से दीवाने रहे ही होंगे।
अपने समधी दिनेश मिश्रा के जन्मदिन पर संगी साथी ग्रुप द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुझे भी उन्होंने ही गाने का अवसर मुहैया कराया।हमने दूरदर्शन और आकाशवाणी में भी साथ में एकाधिक बार कविता पाठ किया।
साहित्य की बात समूह के सभी वार्षिक आयोजनों में तिवारी जी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते। साँची सम्मेलन में उनके ही घर पर पदमा शर्मा, मृगांक जी,प्रवेश सोनी,मीना शर्मा ठहरीं थीं।जो आज भी स्मिता भाभी और तिवारी जी के आतिथ्य को नहीं भूलीं।विगत सितंबर 21 में हुए विदिशा साकीबा सम्मेलन में उन्होंने पूर्व संध्या पर स्वयं पहुंच कर मंच आदि तैयार कराया।आयोजन में अपने पिता की स्मृति में दो सम्मान प्रायोजित किए।साकीबा ने जब उन्हें गुल्लक के लिए प्रथम श्रेणी रेलवे अधिकारी अजय श्रीवास्तव अजेय द्वारा स्थापित श्री बांके बिहारी लाल श्रीवास्तव साकीबा सम्मान से नवाजा तो वह कृतज्ञ हुए।वह साकीबा के अघोषित संरक्षक रहे।शहर की अनेक सांस्कृतिक, साहित्यिक संस्थाओं के भी वह ठोस रुप से उन्नायक रहे।
एक बार मैंने उन्हें अपने स्कूल में आमंत्रित किया।एस डी. एम. होने की व्यस्तता के बावजूद भी उन्होंने इंकार नहीं किया।बच्चों से बातचीत की।स्टाफ से बातचीत की और कुछ बच्चों को अपनी ओर से धनराशि दे गए।
मुझे उनकी कुछ बातें सीखने के योग्य लगतीं।वह प्रतिदिन अपने बेटों सिद्धार्थ और दुष्यंत से दो बार तो फोन पर सारे हाल लेते ही थे।होशंगाबाद में अक्सर रहने वाली उनकी माताजी से भी एक एक बात पूछते थे। परिवार की जिम्मेदारी निभाने के इस तरीक़े से वह चारों तरफ सजग रहते थे।लगभग दर्जन भर घनिष्ठ मित्रों और अनगिनत रिश्तेदारों के बीच वह एकमात्र ऐसे थे जिन्होंने पिछले तीन महीने पहले ही ससुराल पहुंची मेरी बेटी प्रतिष्ठा से भी अभी कुछ ही दिनों पहले फोन पर बातें कर उसे अपनेपन की बौछारें दीं।संबंध निभाने का यह ज़ज़्बा उनमें ग़ज़ब का था।एक प्रसंग और याद आता है।भोपाल में मैं दुष्यंत और तिवारी जी एक दिन एक साहित्यिक कार्यक्रम में थे।शाम गहराती जा रही थी।विदिशा के युवा गायक सुमंत भार्गव की बहन का विवाह रायसेन में था और हम सभी को न्यौता था।तिवारी जी तैयार थे जाने,मैंने अपना समझकर उनसे कहा सर बहुत थक जाएंगे मत जाइए।वह बोले नहीं.. हम जाएंगे,। कोई कितने प्यार से बुलाता है उसकी तुलना में ये थकान क्या चीज़ है।मैं भी साथ ही गया।जब रायसेन पहुंचे। मेजबान को जो खुशी हुई वह देख मैं सचमुच शर्मिंदा था।सर कह रहे थे देखिए ब्रज जी,अगर हम लोग न आते तो कैसा लगता इनको।हमने उनकी यह बात गाँठ बांध ली।
उनके पास बहुत अच्छे मशविरे होते थे।उनके काम करने का व्यवस्थित तरीका होता।बिटिया के विवाह की तैयारी के लिए वह फोन कर के तैयारियों का जायजा लेते रहे।मगर ठीक एक दिन पहले उनकी माताजी का स्वास्थ्य खराब होने की वजह से वह विवाह में उपस्थित नहीं रह सके।जिसकी कमी हमें लगती ही रही।खुद के स्वास्थ्य के लिए भी वह सजग ही थे।लगभग सात आठ साल पहले उन्होंने बताया था कि मैंने दोबारा बाल उगने का एक तेल बनाया है।हम हंसते लेकिन वह गंभीर थे।उन्हें अपने झड़ते बालों की चिंता थी।
उनका बहुत मन था कि वह सपाक्स से विधानसभा चुनाव लड़ें।मगर हम सभी ने उन्हें इस झमेले से बचने की सलाह दी।वह मान भी गए।मगर लगातार यात्रा में रहने से बचने का हमारा सुझाव न माने।इतने सक्रिय रहते हम कहते सर थोड़ा आराम किया कीजिए तो वह हंसकर कहते -राम काज कीन्हे बिना मोह कहाँ आराम-।सच में वह आलस्य के शत्रु थे।
2021 के माह मई की 23 तारीख जब दिनेश मिश्र कोरोना कवलित हुए थे तो मैं उनके बिछोह को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था|कभी मैं उनकी कोई तस्वीर डालता,कभी कोई प्रसंग, कभी किसी से भी फोन पर उनकी बात करना।तभी आधी रात को अविनाश तिवारी जी का फ़ोन आया।बोले अपने आप को संभालो ब्रज भाई,अभी आपको बहुत काम करने हैं।बस यही ख़ासियत थी उनको कि वह आपके इस क़दर शुभचिंतक थे कि सुख दुख के समय ही नहीं हर समय आपसे कनेक्ट रहते थे।बस आज कनेक्ट नहीं हैं।आज ही (20 मई 22)को वह सशरीर इस दुनिया को नमस्ते कह कर अग्निकुंड में समा गये।इधर मैं स्तब्ध हो गया।शवयात्रा के समय मैं आंसुओं की धार को रोक ही न सका ।
विकास पचौरी ने मैसेज में कहा भी कि दादा आप भावुक हो गए थे आज संभाल नहीं पाए।मैं क्या कहूंँ,हमारे लिए उनकी इतनी आत्मीय संगति रही है कि मैं कभी भी आंसू ला सकता हूँ, लेकिन ज्ञान जो आ गया है।समझदारी जो आ गई है और हम बस यही सोचते हैं कि जीना तो है उसी का जिसने ये राज जाना है काम आदमी का औरों के काम आना।तिवारी जी जीवन भर औरों के काम आए और जीवन के बाद भी अंगदान देने के कारण औरों के काम आए।उनकी यादें,उनके लेख,कविताएं, उनकी मातृभक्ति की भावना, यारबाशी,और उनके तराने,हम मिलकर जीवित रखना चाहेंगे। सच में मैं उन पर हमेशा रीझा रहा और वह मेरे मन में हमेशा रमे रहे।अविनाश जी अविनाशी हैं और रहेंगे।
विदा अग्रज
ब्रज श्रीवास्तव