भाजपा की सरकार में भी सपाई नेताओं का शासन और प्रशासन पर दबदबा कायम है. पुलिस की भी पुरानी आदत गई नहीं है. योगी सरकार की पुलिस सपा सरकार में मंत्री रहे मनोज पांडेय के इशारे पर अपराधियों को बचाने और भुक्तभोगियों को फंसाने के काम में लगी है और योगी सरकार की साख पर बट्टा लगा रही है. किसी न किसी वजह से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले रायबरेली के ऊंचाहार में अभी कुछ ही दिनों पहले भंगी जाति की नाबालिग लड़की के साथ सपा नेता के गुर्गों ने सामूहिक बलात्कार किया.
पुलिस ने अपहरण और बलात्कार की शिकायत करने थाने पहुंची लड़की को बंधक बना लिया और उसके भाई समेत दो लोगों को उल्टा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. पुलिस ने सामूहिक बलात्कार की भुक्तभोगी लड़की की मेडिकल जांच भी नहीं होने दी. काफी हील-हुज्जत के बाद एफआईआर लिखी, लेकिन उसकी कॉपी भुक्तभोगी परिवार को नहीं दी. पुलिस में शिकायत करने के जुर्म में लड़की को अगवा कर उसे दोबारा सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया. लेकिन आज तक कोई कारगर कानूनी कार्रवाई नहीं हुई.
बलात्कारियों की तरह पुलिस ने भी वैसा ही चरित्र दिखाया और केस में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. भुक्तभोगी लड़की को साथ लेकर उसकी मां शोभा और पिता मेवालाल दरवाजे-दरवाजे भटक रहे हैं, लेकिन न्याय कहीं हो तब तो मिले! ऊंचाहार थाने के प्रभारी परशुराम त्रिपाठी ऊंची पहुंच रखते हैं, इसीलिए कानून को ठेंगे पर रखते हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि ऊंचाहार में तो कानून नेताओं और अपराधियों के ठेंगे पर ही रहता है.
आरोप है कि रायबरेली के अकूढ़िया थानान्तर्गत (ऊंचाहार कोतवाली के तहत) सलीमपुर भैरों गांव के दलित मेवालाल की नाबालिग बेटी के साथ 24 फरवरी को ही धीरू मिश्रा (पुत्र राजेंद्र मिश्रा) और उसके साथियों ने सामूहिक बलात्कार किया था. इस सनसनीखेज वारदात का कोई असर स्थानीय पुलिस पर नहीं पड़ा और कोई कार्रवाई नहीं हुई. तब प्रदेश में सपा सरकार का आखिरी दौर था. सपा सरकार में मंत्री मनोज पांडेय बलात्कारियों की मदद में खुलेआम मैदान में थे. भुक्तभोगी लड़की और उसका परिवार थाने में बंधक बना रहा और थाने से लेकर कोतवाली और रायबरेली के पुलिस अधीक्षक के दफ्तर तक बलात्कारियों के पैरोकार जमे बैठे रहे.
पत्रकार व समाजसेवी अल्लामा जमीर नकवी द्वारा सूचना दिए जाने के बाद जब अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के सहायक निदेशक तरुण खन्ना ने राज्य पुलिस मुख्यालय से सम्पर्क साधा और कानून व्यवस्था (लॉ एंड ऑर्डर) के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून/व्यवस्था) दलजीत चौधरी ने रायबरेली के एसपी को फोन पर हड़काया तब जाकर घटना के तीन दिन बाद 27 फरवरी 2017 को बलात्कार का मुकदमा (संख्या-112/2017, रा-376/323/506 भा.दं.वि. और (2) 5 एससी/एसटी एक्ट) दर्ज हो पाया. तीन दिन तक बलात्कार पीड़ित लड़की को पुलिस ने थाने पर बंधक बनाए रखा और उसकी मेडिकल जांच नहीं होने दी, ताकि प्रमाण नहीं मिल सके. इतना सब होने के बाद भी थाना प्रभारी परशुराम त्रिपाठी ने केस हल्का करने के लिए नाबालिग लड़की को बालिग लिख दिया, जबकि लड़की के परिवार वालों ने लड़की को नाबालिग साबित करने वाले दस्तावेज और आधार कार्ड वगैरह प्रस्तुत किए, लेकिन थाना प्रभारी ने उसे नहीं माना, दस्तावेज की कॉपियां फाड़ डालीं और एफआईआर में पीड़िता को बालिग लिख दिया.
बलात्कारियों की मदद में लगी पुलिस ने भुक्तभोगी परिवार को एफआईआर की कॉपी भी नहीं दी. पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का नतीजा यह निकला कि बलात्कार के आरोपियों ने चार महीने बाद भुक्तभोगी लड़की का अपहरण कर लिया और इलाहाबाद ले जाकर तीन दिनों तक उसके साथ बलात्कार किया. सामूहिक बलात्कार की पहली घटना सपा सरकार के कार्यकाल में घटी. उसी लड़की के साथ अपहरण और सामूहिक बलात्कार की दूसरी घटना भाजपा सरकार के कार्यकाल में हुई. दोनों सरकारों की असलियत यही है. सपा की सरकार में भी गुंडों का राज था, भाजपा की सरकार बनने के बाद भी गुंडों का ही दबदबा कायम है. उन्हीं गुंडों ने नाबालिग दलित लड़की को योगी सरकार बनने के चार महीने बाद अगवा किया और तीन दिन तक उसके साथ बलात्कार किया. इस घटना की एफआईआर नहीं लिखी जा रही थी, जबकि सरकार बदल चुकी थी.
लेकिन थानेदार की सपाई-भक्ति बरकरार थी. आखिरकार अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग को फिर सीधा हस्तक्षेप करना पड़ा, तब जाकर 21 जुलाई 2017 को ऊंचाहार कोतवाली में एफआईआर (मुकदमा संख्या-300/2017, धारा-364/ 376/डी /342 /452/ 507/506/323/504 भादंवि एवं 3/4 पाक्सो एक्ट और 3 (2) 5 दलित उत्पीड़न निषेध अधिनियम) दर्ज हो सकी. विडंबना यह है कि प्रथम घटना की पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट (अंतिम आख्या) भी लगा दी और केस बंद कर दिया. इस संवेदनशील प्रकरण में अपराधियों को संरक्षण देने वाले थाना प्रभारी परशुराम त्रिपाठी और क्षेत्राधिकारी पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें बचाने की ही कोशिशें हो रही हैं. भुक्तभोगी लड़की की मां शोभा का कहना है कि सामूहिक बलात्कार की घटना के दोषी अपराधियों को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया होता, तो दूसरी वीभत्स घटना नहीं होती.
लड़की की मां कहती हैं कि थाने में बंधक बनाए रखने के दरम्यान परशुराम त्रिपाठी ने कुछ सादे कागजात पर लड़की से हस्ताक्षर कराए थे. सपा सरकार में मंत्री रहे मनोज पांडेय ने ही परशुराम त्रिपाठी की तैनाती ऊंचाहार कोतवाली में कराई थी. शोभा कहती हैं कि वे अपनी बिटिया को लेकर ऊंचाहार कोतवाली पहुंचीं, तब त्रिपाठी ने उन्हें गालियां दीं और बलात्कारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय उनके बेटे रंजीत कुमार और रंजीत के एक दोस्त सोनू यादव को गिरफ्तार कर उन्हें ही जेल भेज दिया. तीन दिन तक उन्हें और उनकी बिटिया को थाने में बंधक बनाए रखा. आयोग और मुख्यालय के दबाव पर मुकदमा (112/2017) दर्ज भी हुआ तो पुलिस ने पाक्सो एक्ट और अन्य जरूरी धाराएं नहीं लगाईं.
लड़की को नाबालिग साबित करने वाले जन्मतिथि प्रमाण-पत्र और आधार कार्ड वगैरह की छाया प्रतियां फाड़ डालीं. एफआईआर दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने बलात्कार मामले में कोई कार्रवाई नहीं की. पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक मनोज पांडेय का प्रशासन पर इतना दबाव है कि उन्होंने बलात्कारियों को बचाने वाले चहेते दारोगा का काम हो जाने के बाद अन्यत्र तबादला करा दिया और जब चुनाव आया, तब वापस उसी थाने में उसकी तैनाती करा दी. उसके बाद फिर उसे लखनऊ स्थानांतरित करा दिया. नाबालिग दलित लड़की से दो-दो बार हुए सामूहिक बलात्कार की घटना का मामला अधर में लटका हुआ है. राजनीतिक प्रतिशोध लेने के लिए कराई गई गंभीर आपराधिक घटना प्रशासनिक शोहदेपन के कारण कानूनी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही है.
ऊंचाहार में आपराधिक दबाव ही राजनीतिक वर्चस्व की पहचान है
ऊंचाहार के सपा विधायक व पूर्व मंत्री मनोज पांडेय कभी सपा के लिए ब्राह्मणों को जुटाने तो कभी सपा के लिए अपराधियों को जुटाने के लिए हमेशा चर्चा में रहे. विधानसभा में विस्फोटक पदार्थ रखवाने के मामले में भी पिछले दिनों मनोज पांडेय काफी सुर्खियों में रहे. यहां तक कि नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) तक ने पांडेय से पूछताछ की. पांडेय सपा का कम अपना हित अधिक साधते रहे हैं. यही वजह है कि उनका सीधा कनेक्शन भाजपा से भी है, इसीलिए प्रशासन पर उनका दबदबा बना रहता है. दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार का जघन्य मामला हो या राजनीतिक हित साधने के लिए इलाके में होने वाली हत्याओं का मामला, कानून का हाथ मनोज पांडेय और उनके गुर्गों तक नहीं पहुंच पाता. योगी सरकार विवश है.
कुछ अर्सा पहले ऊंचाहार क्षेत्र में पांच ब्राह्मण युवकों के जन-पिटाई के दौरान मारे जाने के मामले में खूब बवाल मचा. यहां तक कि योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और पूर्व मंत्री मनोज पांडेय आमने-सामने आ गए और तीखी टिप्पणियां जारी कीं. पिछड़े समुदाय के लोगों ने मनोज पांडेय के खिलाफ लखनऊ में धरना-प्रदर्शन भी किया. स्वामी प्रसाद मौर्य ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि मारे गए पांच युवक अपराधी (शूटर) थे और वे मनोज पांडेय के इशारे पर इटौरा बुजर्ग गांव के प्रधान रामश्री यादव की हत्या करने आए थे. मौर्य ने कहा कि पूर्व मंत्री मनोज पांडेय ने पूरा खेल रचा था. ग्रामीणों ने प्रधान को मारने आए हत्यारों को सजा दी. इस घटना से क्षेत्र में काफी तनाव बढ़ गया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मरने वाले लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए का मुआवजा देकर पिछड़ों को नाराज करने का ही काम किया. हालांकि मनोज पांडेय ने 20 लाख का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग की थी. ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र के लोग ही कहते हैं कि आपराधिक वर्चस्व से राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने का ऊंचाहार बिल्कुल सटीक उदाहरण है. यहां के लोग आपराधिक दबदबे और आतंक को ही राजनीतिक प्रभाव समझने लगे हैं.