Centre_asks_CBI20046योग गुरु बाबा रामदेव एवं बालकृष्ण के गुरु स्वामी शंकर देव के अपहरण के मामले में सीबीआई द्वारा दाखिल फाइनल रिपोर्ट अदालत ने मंजूर कर ली. राज्य के इस बहुचर्चित मामले में रामदेव को राहत दिए जाने को लेकर संत समाज के साथ-साथ जनसामान्य में तरह-तरह की चर्चाओं का बाज़ार गर्म है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की वह टिप्पणी अनायास याद आती है, जिसमें कहा गया था कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोते के समान है. संत समाज के प्रवक्ता एवं अखाड़ा परिषद के सचिव हठयोगी ने कहा कि सैंया भए कोतवाल, अब डर काहे का. उनका इशारा साफ़ है कि यह सब कुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मर्जी से हो रहा है. हठयोगी कहते हैं कि सीबीआई आज भी केंद्र सरकार के हाथों की कठपुतली है. सीबीआई को लेकर जो आरोप पहले भाजपा कांग्रेस पर लगाती थी, वही आरोप आज स्वयं भाजपा पर लग रहे हैं.

दरअसल, यह घटना बताती है कि राजनीतिक संरक्षण प्राप्त अपराधी आज भी अदालत और क़ानून से ऊपर हैं. यही नहीं, हठयोगी राज्य सरकार के मुखिया हरीश रावत द्वारा बाबा रामदेव पर की जा रही मेहरबानियों पर भी हैरान हैं. वह कहते हैं कि जिन रामदेव के विरुद्ध पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने लगभग आठ दर्जन मामले दर्ज कराए थे, उन्हीं रामदेव पर मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत की मेहरबानियां कांग्रेस के दोहरे चरित्र का प्रमाण हैं. भारतीय संत समाज के अध्यक्ष प्रमोद कृष्णन ने कहा कि रामदेव के गुरु शंकर देव एवं शिष्य बालकृष्ण प्रकरण आज भी ज्वलंत है. इसके लिए संत समाज गंभीर है और आम जनता भी इसका हल चाहती है. प्रमोद कृष्णन ने कहा कि शंकर देव वर्ष 2007 से लापता हैं, लेकिन उत्तराखंड पुलिस ने उनकी खोजबीन किए बगैर फाइनल रिपोर्ट लगा दी. पुलिस के इस रवैये से संत समाज स्तब्ध और आहत है. उन्होंने कहा कि इस मामले का पर्दाफाश अवश्य होना चाहिए. शंकर देव के एक अन्य शिष्य कर्मवीर ने कहा कि लापता होने से दो-तीन दिन पहले गुरु शंकर देव ने अपनी जान को ख़तरे का संकेत दिया था.
ग़ौरतलब है कि रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण ने 16 जून, 2007 को थाना कनखल में शंकर देव की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि स्वामी शंकर देव कृपालु बाग आश्रम से कहीं चले गए हैं. लंबी जांच के बावजूद पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा. बाद में गुमशुदगी का मामला अपहरण में बदल दिया गया और जांच सीबीआई को सौंप दी गई. बताते हैं कि 80 वर्षीय शंकर देव 14 जुलाई, 2007 को कृपालु बाग आश्रम से नित्य की भांति सैर के लिए निकले थे. उसके बाद से उनका कोई पता नहीं चला. जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन बाबा रामदेव विदेश दौरे पर थे, जबकि उनके सहयोगी बालकृष्ण भी आश्रम में नहीं थे. सीबीआई ने भी शंकर देव मामले में गहनता से पूछताछ और कई बिंदुओं पर जांच की, लेकिन कुछ पता नहीं चल सका. 10 दिसंबर, 2014 को सीबीआई की फाइनल रिपोर्ट दाखिल होने के बाद अदालत ने आचार्य बालकृष्ण से आपत्ति दर्ज कराने के लिए कहा था, जिस पर उन्होंने ने बीती 12 जनवरी को अनापत्ति दर्ज करा दी. अदालत ने बालकृष्ण की अनापत्ति स्वीकार करते हुए यह मामला बंद करने का आदेश दे दिया.

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