आम आदमी पार्टी एक नया प्रयोग है, जिसे हम सभी ने बेहद क़रीब से देखा. पार्टी के जो भी पांच-छह मंत्री पदस्थ होंगे, यदि वे भ्रष्ट नहीं है, तो यह नौकरशाही के लिए एक संदेश होगा. नौकरशाही निर्लज्जता के स्तर पर पहुंच चुकी है, बेशक उसमें कमी आएगी. चूंकि आज वे जानते हैं कि ऊपर बैठे लोग भ्रष्ट हैं, इसीलिए नौकरशाह केवल पैसे बनाने की फ़िराक़ में रहते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी जांच करने वाला कोई नहीं है. देश की नीतियों को बेहतर बनाने के संदर्भ में आम आदमी पार्टी जो सबसे बड़ा योगदान दे सकती है, वह है नौकरशाही में भय पैदा करना.
देश में राजनीतिक घटनाएं विविध रूपों में आकार लेती दिखाई पड़ रही हैं. दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से आप पार्टी की सरकार बनी और तीन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने अपना परचम लहराया, जबकि कांग्रेस को बड़ा झटका लगा. बावजूद इसके, एक बात अभी तक साफ़ तौर पर समझ में नहीं आ रही है कि कांग्रेस के दिमाग़ में क्या चल रहा है? कोई भी राजनीतिक दल जिसे चुनाव में हार का सामना करना पड़ा हो और जिसे विधानसभा की 70 सीटों में से केवल आठ सीटें मिली हों, वह किसी दूसरी पार्टी को बिना शर्त समर्थन कैसे दे सकता है, जबकि उनसे किसी ने समर्थन न मांगा हो. निश्‍चित तौर पर उन्होंने भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए ही आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन दिया, यह बेहद बचकाना और अपरिपक्व निर्णय है.
जो भी हो, आम आदमी पार्टी के पक्ष में गया यह चुनाव वास्तव में कांग्रेस के पिछले 15 वर्ष के शासन के विरोध में है. लोगों का मत चाहे जो भी हो, लेकिन परिणाम तो यही ज़ाहिर करते हैं कि कांग्रेस की चार राज्यों में बुरी तरह हुई पराजय की वजह वहां पर भाजपा की लोकप्रियता नहीं, बल्कि कांग्रेस की नकारात्मक छवि  रही. जहां कहीं भी लोगों के पास कोई विकल्प नहीं था, वहां उन्होंने भाजपा के पक्ष में वोट किया. जहां उनके पास विकल्प मौजूद था, वहां उन्होंने तीसरे विकल्प के पक्ष में वोट किया. अब स्थिति को सुधारने के बजाए, वे बीजेपी के ऊपर आक्रमण करने की कोशिश कर रहे हैं जैसे कि बीजेपी ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन हो. कांग्रेस पार्टी को यह समझना होगा कि उनका सबसे बड़ा दुश्मन उनके अंदर ही है. जब तक वो अपनी छवि नहीं सुधारेंगे, जब तक वे घोटाले करके पैसे बनाने वाले और झूठे वादे करने की छवि से बाहर नहीं आएंगे, तब तक वे अपना चुनावी परिप्रेक्ष्य कैसे बदल पाएंगे?

कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है. उसकी मौजूदगी देश के हर हिस्से में दर्ज है. पार्टी के पास एक सशक्त नेतृत्व है, लेकिन ज़ाहिर तौर पर जो लोग निर्णय ले रहे हैं वो परिपक्व राजनीतिज्ञ नहीं हैं, जिस पर कांग्रेस हमेशा से शेखी बघारती रही है. नरेंद्र मोदी बहुत लोकप्रिय हैं, इस बात को कोई नहीं नकारता है. निश्‍चित तौर नरेंद्र मोदी पार्टी के चुनाव प्रचार में मददगार साबित हुए हैं, लेकिन दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों का क्या, जहां भाजपा का वजूद नहीं है? यहां रातभर में भाजपा को स्थापित कर पाना संभव नहीं है.

कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है. उसकी मौजूदगी देश के हर हिस्से में दर्ज है. पार्टी के पास एक सशक्त नेतृत्व है, लेकिन ज़ाहिर तौर पर जो लोग निर्णय ले रहे हैं वो परिपक्व राजनीतिज्ञ नहीं हैं, जिस पर कांग्रेस हमेशा से शेखी बघारती रही है. नरेंद्र मोदी बहुत लोकप्रिय हैं, इस बात को कोई नहीं नकारता है. निश्‍चित तौर पर नरेंद्र मोदी पार्टी के चुनाव प्रचार में मददगार साबित हुए हैं, लेकिन दक्षिण भारत और देश के पूर्वोत्तर राज्यों का क्या, जहां भाजपा का वजूद नहीं है? यहां रातभर में भाजपा को स्थापित कर पाना संभव नहीं है. वहां तीसरी ताक़तें होंगी. दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों में क्षेत्रीय नेता होंगे और वे चुनाव में कई सीटों पर विजयी भी होंगे.
कांग्रेस को अपनी भाजपा विरोधी नीति को बदलकर स्व-हितैशी बनाना होगा. पार्टी को फिर से रूपरेखा तैयार करनी होगी कि कांग्रेस के होने का मतलब क्या है? यदि वह चुनाव जीतती है या फिर गठबंधन की सरकार का गठन करती है, तो पार्टी के पास जनहित के लिए कौन-सी योजनाएं हैं. यदि विश्‍लेषक सारी चीज़ों का विश्‍लेषण करें तो इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि कांग्रेस और भाजपा की नीतियों में बमुश्किल ही कोई अंतर है. आर्थिक नीतियों के मसले पर दोनों ही दल अमीरों और अमेरिका की पक्षधरता के हिमायती हैं. वे सुधारों की, उदारीकरण की और कॉरपोरेट क्षेत्र को फ़ायदा पहुंचाने की पैरवी करते हैं. अगर दोनों की विचारधारा यही है, तो फिर दोनों पार्टियों में अंतर क्या है? एक पार्टी घोटालों में लिप्त है तो दूसरी पिछले दस वर्षों से सत्ता हासिल करने की जुगत में है. इसलिए निश्‍चित तौर पर सरकार विरोधी लहर मौजूद है, जिसका कुछ हद तक फ़ायदा भाजपा को मिलेगा.
आम आदमी पार्टी एक नया प्रयोग है, जिसे हम सभी ने बेहद क़रीब से देखा. पार्टी के जो भी पांच-छह मंत्री पदस्थ होंगे, यदि वे भ्रष्ट नहीं है, तो यह नौकरशाही के लिए एक संदेश होगा. नौकरशाही निर्लज्जता के स्तर पर पहुंच चुकी है, बेशक उसमें कमी आएगी. चूंकि आज वे जानते हैं कि ऊपर बैठे लोग भ्रष्ट हैं, इसीलिए नौकरशाह केवल पैसे बनाने की फ़िराक़ में रहते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी जांच करने वाला कोई नहीं है. देश की नीतियों को बेहतर बनाने के संदर्भ में आम आदमी पार्टी जो सबसे बड़ा
योगदान दे सकती है, वह है नौकरशाही में भय पैदा करना. उन्हें जनता की सेवा करने के लिए तऩख्वाह मिलती है. वे तऩख्वाह के अलावा हर एक काम के लिए पैसों की मांग नहीं कर सकते. लेकिन ऐसी प्रवृत्ति हो गई है कि वह हर काम के लिए पैसा मांगते हैं. यह समाप्त होना चाहिए.
आम आदमी पार्टी ने बिजली और पानी की दरों को कम करने की बात की है, अगर वे ऐसा कर पाते हैं तो बहुत अच्छा है, लेकिन अगर वे भ्रष्टाचार कम करने में सफल हुए तो यही उनकी असली सफलता होगी. भ्रष्टाचार कम करना इतना आसान नहीं है. अगर वे  ऊंचे स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार को कम करने में सफल होते हैं, तो देश की राजनीति के यह एक नया मोड़ साबित होगा.
मैं नहीं जानता कि अन्ना हजारे इस मसले पर क्या सोच रहे हैं, लेकिन यदि लोकसभा चुनावों तक अन्ना हजारे कुछ अच्छे उम्मीदवारों को अपना समर्थन देते हैं तो यह बेहतर होगा, क्योंकि यह ज़रूरी है कि अच्छे लोग आएं और देश के निर्माण में अपनी भागीदारी निभाएं. इस पूरे माहौल में इस बात की भी बेहद ज़रूरत है कि तीसरे मोर्चे के लोग साथ हों, लेकिन तीसरे मोर्चे के नेता किसी विकल्प के तौर पर आगे आने के लिए जल्दी में नहीं दिख रहे हैं. हर कोई चुनाव परिणामों का इंतज़ार कर रहा है, क्योंकि असली सौदेबाज़ी उसी के बाद शुरू होगी. यह अच्छा चलन नहीं हैं. गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई नेताओं को साथ में मिलकर एक सक्षम तीसरे मोर्चे की स्थापना करनी चाहिए, जो कि देश की सरकार चलाए. देखिए, आने वाले दिनों में क्या कुछ देखने को मिलता है.
  

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