policeमाओवादी सीआरपीएफ के जवानों को लगातार अपना निशाना बनाते आए हैं. बस्तर से लेकर झारखंड और देश के कई हिस्सों में घटित घटनाएं इसका प्रमाण हैं. चुनाव के दौरान तो नक्सली वोट बहिष्कार के नारे के साथ खूनी खेल खेलने को तैयार रहते हैं. 2014 में ऐसी ही एक घटना नक्सल प्रभावित मुंगेर के हवेली खड़गपुर में घटी थी. तारीख 10 अप्रैल 2014. तड़के सुबह 3.30 बजे भीमबांध से वाहनों पर सवार होकर सीआरपीएफ की 131वीं बटालियन के जवान निकले थे.

सवा लाख बाबा स्थान से लगभग 200 गज की दूरी पर वाहन लगा कर जवान पैदल चलने लगे. कुछ जवान वाहन में रह गए. इसी दौरान सबसे पीछे वाले वाहन के पास जोरदार धमाका हुआ. नक्सलियों ने लैंडमाइंस विस्फोट किया था. धमाके के तुरंत बाद पत्थरों की ओट लेकर नक्सलियों ने अत्याधुनिक हथियारों से फायरिंग शुरू कर दी.

जवाबी कार्रवाई करने पर नक्सली अंधेरे का लाभ उठाकर जंगल की ओर भाग निकले. दोनों ओर से लगभग 200 गोलियां चलीं. इस हादसे में सीआरपीएफ के हवलदार कर्नाटक के निवासी सोने गौरा और बिहार में हाजीपुर के निवासी रविन्द्र  कुमार राय शहीद हो गए. साथ ही अशोक बसेरा (जमुई), राघवेन्द्र सिंह (उत्तर प्रदेश), विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश),धर्मात्मा कुमार सिंह (आरा), रामपाल (उत्तर प्रदेश), विक्रम सिंह (उत्तर प्रदेश), धर्मपाल (हरियाणा), मनोज यादव (हाजीपुर) सहित 10 जवान घायल हो गए. नक्सलियों ने मुठभेड़ के दौरान

माओवादी जिंदाबाद का नारा भी लगाया. पुलिस की जवाबी कार्रवाई में ये गंगटा जंगल की ओर  फरार हो गए थे. इसी आधार पर मुंगेर के गंगटा पुलिस आउटपोस्ट में 16 जनों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की गई थी. 29 अक्टूबर 2014 को इनमें से एक नक्सली अधिक लाल पंडित हवेली खड़गपुर के पहाड़वीत गांव से और दूसरा रत्तू कोड़ा जमुई लक्ष्मीपुर के चौकियां गांव से पुलिस के हत्थे चढ़ गए. इन दोनों ने मुठभेड़ में शामिल होने की बात कबूली और तीन अन्य लोगों के भी नाम बताए. इनकी निशानदेही पर

हवेली खड़गपुर के विपिन मंडल, लक्खीसराय के कजरा बरामशिया गांव के बानो कोड़ा और मन्नू कोड़ा को पुलिस ने दबोचा था. हालांकि अन्य नामजद को पुलिस अबतक नहीं ढूंढ पाई है, जिनमें प्रवेश उर्फ़ अनुज दा, गोपाल दास, बबलू दास, सिद्धू कोड़ा, बालेश्वर कोड़ा, अर्जुन कोड़ा, बाबूलाल यादव, पूना कोड़ा, पिंटू राणा, अनिल कोड़ा, फुलचंद कोड़ा वगैरह प्रमुख हैं.

इस हादसे के तीन साल बाद मुंगेर कोर्ट का फैसला आया है, जिसमें पांच नक्सलियोें को अर्थदंड के साथ फांसी की सजा सुनाई गई है. फैसला सुनाने वाले अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम ज्योतिस्वरूप श्रीवास्तव की टिप्पणी थी कि यह विचारधारा समाज और तंत्र के विपरीत काम करती है. आरोपियों ने हमारे सिस्टम पर प्रहार किया है क्योंकि जवान उस दिन निर्वाचन कार्य कराने जा रहे थे. यह एक जघन्य अपराध है. इस

विचारधारा को मानने वाले लोगों में मैसेज जाना जरूरी है कि इस तरह अपराध करना गलत है. दूसरी ओर पुलिस के अनुसंधान पर भी न सिर्फ सवाल उठाया गया, बल्कि राज्य के पुलिस महानिदेशक को भी पत्र लिखकर नाराजगी का  इजहार किया गया. नक्सली मुठभेड़ मामले में अनुसंधानकर्ता सह निवर्तमान खड़गपुर पुलिस उपाधीक्षक रंजन कुमार थे. कोर्ट ने  पुलिस महानिदेशक को पत्र भेजकर रंजन कुमार पर कार्रवाई करने को कहा है.

कोर्ट ने बताया है कि अनुसंधानकर्ता की लापरवाही के कारण ही सभी नक्सलियों के विरुद्ध कई मुख्य धाराएं नहीं लगाई गईं. इनमें से सबसे प्रमुख धारा के अंतर्गत सभी नक्सलियों को राष्ट्रद्रोह की गतिविधि के दायरे में लाया जाना था. अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम ज्योति स्वरूप श्रीवास्तव ने आदेश जारी करते हुए जजमेंट की कॉपी उन्हें भेजी है.  नक्सलियों को कुल 16 धाराओं में सजा सुनाया जाना था.  इन 16 धाराओं में कुछ ऐसी धाराएं थीं, जिनपर अनुसंधानकर्ता ने गंभीरता से काम नहीं किया. नतीजतन नक्सलियों को इन धाराओं में सजा नहीं सुनाई जा सकी.

इन धाराओं में प्रमुख रूप से भादवि की धारा 149, 121 (ए), 122, 124, 27, 134 (बी) एवं यूएपी की धारा 16, 17, 18, 20, 23 एवं 35 शामिल हैं. धारा 121 (ए), 122, 124 के अनुसार नक्सलियों को राष्ट्रद्रोह सिद्ध किया जाना था. अदालत ने पांचों नक्सलियों रत्तू कोड़ा, अधिक लाल पंडित, विपिन मंडल, बानो कोड़ा और मन्नू कोड़ा के विरुद्ध भादवि की धारा 302, 353, 147, 148, 341, 307 और 3, 4, 5 विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के अंतर्गत दोषसिद्ध होने पर फांसी की सजा सुनाई. इसके साथ ही एक लाख पचहत्तर हजार पांच सौ रुपए का जुर्माना भी लगाया.

अपर लोक अभियोजक संदीप भट्टाचार्य का कहना है कि अदालत ने इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस मानते हुए फांसी की सजा सुनाई है. यह बिहार का पहला मामला है जिसमें ऐसी घटना में इस तरह की सजा सुनाई गई है. यदि तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक रंजन कुमार राष्ट्रद्रोह के लिए आदेश का प्रस्ताव बिहार सरकार को समर्पित करते तो सरकार के आदेश के बाद इन नक्सलियों को राष्ट्रद्रोह जैसे मामलों में भी सजा मिल सकती थी. वहीं 27 आर्म्स एक्ट की सजा से भी नक्सली बच निकले.

134(बी) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम एवं यूएपी एक्ट 16, 17, 18, 20, 23 एवं 35 के मुताबिक संज्ञान होने तक गैर कानूनी अभियोजन स्वीकृत्यादेश आना था, जो विलंब से 17 फरवरी 2017 को मिला. नियमानुसार एक सप्ताह में ही प्राप्त करना है. 15 जनवरी 2015 को अनुसंधानकर्ता ने आरोप पत्र दाखिल किया. 27 फरवरी 2015 को अदालत ने इस पर संज्ञान लिया और इसके बाद 17 गवाहों का परीक्षण किया गया.

पांच नक्सलियों को मौत की सजा सुनाने वाले मुंगेर के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम ज्योति स्वरूप श्रीवास्तव अब नक्सलियों के निशाने पर आ गए हैं. नक्सलियों ने जन अदालत लगाकर फांसी की सजा सुनाने वाले जज को ही सजा-ए-मौत का एलान किया है. नक्सली संगठन ने धमकी देते हुए कहा है कि जन अदालत में फांसी की सजा सुनाने वाले जज को सजा दी जाएगी. पुलिस अधीक्षक आशीष भारती के अनुसार न्यायाधीश की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. मामला यहीं नहीं थमा है. इसके बाद गंगटा थाना क्षेत्र केकूनोली जमघट दरियापुर में नक्सलियों ने दो दिन बंदी की घोषणा के बाद पर्चा साटकर अपनी मंशा का इजहार किया है.

पांच माओवादियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद लोग तत्कालीन पुलिस अधीक्षक केसी सुरेन्द्र बाबू के संदर्भ में कहते हैं कि 12 साल बाद भी सुरेन्द्र बाबू सहित छह जवानों की हत्या में शामिल माओवादियों को सजा नहीं मिली है. यह मामला अब भी कोर्ट में चल रहा है.

5 जनवरी 2005 को कॉबिंग ऑपरेशन कर लौट रहे मुंगेर के तत्कालीन एसपी केसी सुरेन्द्र बाबू सहित छह पुलिस जवानों को सोनरवा गांव के पास बारूदी सुरंग विस्फोट कर माओवादियों ने उड़ा दिया था. बारूदी सुरंग विस्फोट में तत्कालीन एसपी केसी सुरेन्द्र बाबू के साथ जवान ध्रुव ठाकुर, ओपी गुप्ता, मो. अंसारी, मो. इस्लाम एवं शिव कुमार राम शहीद हो गए थे. मुंगेर के पुलिस अधीक्षक  आशीष भारती कहते हैं कि इस मामले में 22 लोगों पर आरोपपत्र दाखिल हुआ है. कइयों को कोर्ट में पेश किया जा चुका है, जबकि एक नक्सली चिराग दा पुलिस मुठभेड़ में मारा गया है.  दो अन्य की स्वाभाविक मौत हुई है. इस मामले के तीन संदिग्धों को साक्ष्य के अभाव में न्यायालय ने दोष मुक्त कर दिया है. तीन संदिग्धों की रिहाई के बाद सरकार ने वर्ष 2013 में कांड का अनुसंधान फिर से शुरू कराया है.

मजे की बात यह है कि राज्य के 11 जिलों के 44 मोस्टवांटेड नक्सलियों के पीछे सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के करीब 10 हजार जवान लगे हैं. सीआरपीएफ की साढ़े आठ बटालियन फोर्स इस ऑपरेशन में लगाई गई है. इन नक्सलियों पर राज्य सरकार ने 25 हजार से 5 लाख रुपए तक के इनाम घोषित कर रखे हैं. इनमें से कोई 12 तो कोई 20 मामलों में फरार चल रहा है, लेकिन इतने बड़े तंत्र को झोंकने के बाद भी पुलिस और सुरक्षा बलों को इन नक्सलियों का सुराग नहीं मिल पा रहा है.

आईजी ऑपरेशन कुंदन कृष्णन ने कहा कि कुख्यात नक्सलियों की संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी. खास बात यह है कि राज्य के 40 जिलों (दो पुलिस जिला सहित) में से सिर्फ 11 जिलों में ये नक्सली सक्रिय हैं, जिन्होंने पूरे तंत्र की नाक में दम कर रखा है. सबसे अधिक 12 मोस्ट वांटेड मुंगेर के पड़ोसी जिले जमुई जिले के रहने वाले हैं. दूसरे नंबर पर गया जिला है, जहां के 9 नक्सली स्पेशल टास्क फोर्स की लिस्ट में हैं. इसके अलावा औरंगाबाद के 5, जहानाबाद के 2, रोहतास के 3, पूर्वी चंपारण के 2, बगहा के 3, मुंगेर के 3, बांका के 2, लखीसराय के 2 व समस्तीपुर के 1 नक्सली पर राज्य सरकार ने इनाम घोषित कर रखा है.

इनमें चार ऐसे नक्सली हैं, जिनकी तलाश केंद्र व राज्य की एजेंसियों को है. अरविंद जी उर्फ अरविंद कुमार सिंह उर्फ देव सेंट्रल कमेटी का सदस्य है. प्रवेश दा पूर्वी बिहार-पूर्वी झारखंड एरिया का सचिव है. विजय यादव उर्फ संदीप जी भाकपा (माओवादी) की मध्य एरिया कमेटी का सचिव है. राजन जी उत्तर बिहार एरिया कमेटी का सचिव है. कहा जाता है कि नक्सली वारदातों और सुरक्षा बलों पर हमले की रणनीति बनाने में इनको महारत हासिल है. वांटेड नक्सलियों में गुरिल्ला कमांडर लालमोहन यादव और स्पेशल प्लाटून कमांडर मनोज हांसदा भी है.

को-ऑर्डिनेशन कमेटी में भी इन नामों की चर्चा कई बार हुई है. हर छह महीने पर होने वाली अलग-अलग क्षेत्रों की को-ऑर्डिनेशन कमेटी की बैठकों में रणनीति बनती रही है, लेकिन इन वांटेड नक्सलियों को दबोचा नहीं जा सका है.

वैसे राज्य पुलिस व सेंट्रल एजेंसियां अब फरार  टॉप नक्सलियों की अवैध कमाई से खड़ी की गई संपत्ति को जब्त करने की कार्रवाई करने जा रही है. ऑपरेशन से जुड़े अधिकारियों के अनुसार 25 यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट) के तहत राज्य सरकार को संपत्ति जब्त करने की शक्ति है. वहीं प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत संपत्ति जब्त करने का अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को है. दोनों ही कानून के तहत नक्सलियों की संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू की गई है.

जल्द ही चार-पांच नक्सलियों की संपत्ति जब्ती की कार्रवाई शुरू होगी. सूत्रों के अनुसार जहानाबाद के हार्डकोर नक्सली प्रदुमन शर्मा की अवैध संपत्ति जब्त करने का प्रस्ताव ईडी के पास है. 5 लाख के इनामियों में विजय यादव उर्फ संदीप जी, भाकपा (माओवादी) की मध्य एरिया कमेटी का सचिव, निवासी-गया जिले के इमामगंज थाने के लुटुआ टोला, बाबूराम डीह के अरविंद जी उर्फ अरविंद कुमार सिंह उर्फ देव, भाकपा

(माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का सदस्य, निवासी-जहानाबाद के करौना थाना क्षेत्र का सुकुल चक, रामबाबू राम उर्फ राजन जी, भाकपा (माओवादी) की उत्तर बिहार एरिया कमेटी का सचिव, निवासी-मोतिहारी के मधुबन थाना के कौरिया के और प्रवेश दा उर्फ अनुज दा उर्फ अमलेश दा, भाकपा (माओवादी) के पीबीपीजे (पूर्वी बिहार-पूर्वी झारखंड) का सचिव, निवासी-हजारीबाग के विशनुगढ़ थाने के भंडोरी शामिल हैं

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here