वैशाली समेत उत्तर बिहार के लाखों लोगों की निगाहें एक बार फिर केंद्र सरकार के बजट पर टिकी हुई हैं, उन्हें बजट का बेसब्री से इंतजार है, यह इंतजार रेल भाड़े के बढ़ने से नहीं बल्कि एक स्वर्णिम सपने के साकार होने से है जो दशकों से उनकी आंखों में पल रहा है. महात्मा बुद्ध की तपोभूमि वैशाली को महात्मा गांधी की कर्मस्थली चंपारण से जोड़ने की इस स्वर्णिम रेल परियोजना के पूरा होने को लेकर लोगों में आज से 12 साल पहले जो उम्मीद जगी, वह निराशा में तब्दील होने लगी है. आने वाला बजट बतायेगा कि यह निराशा और गहरी होगी या कि आशा के दीप जलेंगे.
हाजीपुर-सुगौली रेल लाइन पर आज तक सिर्फ राजनीति हावी है, नेताओं ने इसे अपना मुद्दा बनाकर केवल वोट हासिल किए हैं. आज भी इस रेल लाइन का हाल बिल्कुल वैसा है जैसा 12 साल पहले था. हाजीपुर-सुगौली रेल लाइन को बुद्ध रेल परिक्रमा की एक महत्वपूर्ण कड़ी और भगवान बुद्ध की धरती से जुड़ा रेल नेटवर्क बताते हुए रेल विभाग ने इसे तय समय में पूरा करने का वायदा किया था. 10 फरवरी, 2004 को तत्कालीन रेलमंत्री नीतीश कुमार ने इस रेल लाइन की आधारशिला रखी थी, लेकिन 12 साल गुजर जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है.
लोगों का इंतजार अब तक खत्म नहीं हुआ है. उस वक्त पांच साल में यानी साल 2009 तक इस लाइन का काम पूरा हो जाना था. इस बार पेश होने वाले रेल बजट में हाजीपुर-सुगौली रेल लाइन परियोजना के पूरा होने की उम्मीद है. आज इस लाइन को बिछाने की जो रफ्तार है वह यह बता रही है कि लोगों को इस लाइन के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा. सियासी खेल और बजट के अभाव में यह रेल परियोजना वर्षों से हांफ रही है. अब इस योजना के पूरा होने में 1500 रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
अब तक सरकार की ओर से इसके लिए केवल 255 करोड़ रुपये आवंटित हो सके हैं. इस रेल लाइन की शुरूआत के वक्त इसकी अनुमानित लागत 324.66 करोड़ रुपये बताई गई थी, लेकिन वक्त के साथ काम के पूरा न होने की वजह से इसकी लागत बढ़ती गई. साल 2009 में किए गए आकलन के मुताबिक यह लागत बढ़कर लगभग 528.65 करोड़ रुपये पहुंच गई. 2009 के बाद सात साल गुजर चुके हैं इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब इसकी लागत कितनी पहुंच गई होगी. इस परियोजना के लिए वित्त वर्ष 2013-14 में मजह 20 करोड़ और मौजूदा वित्त वर्ष में मजह 80 करोड़ रुपये ही जारी किए गए.
अब तक परियोजना का लगभग पचास प्रतिशत काम पूरा हो सका है. जानकारों का कहना है कि 150 किमी लंबी इस लाइन के अब तक पूरा न हो पाने की मुख्य वजह राशि की कमी है. कई जगहों पर अभी भी मिट्टी भराई का काम चल रहा है. हरौली से लेकर वैशाली तक केवल चार स्टेशनों का निर्माण हो सका है साथ ही 100 किमी तक मिट्टी भराई का काम हुआ है. पूरी रेल लाइन में 15 स्टेशनों का निर्माण होना है. साथ ही इसपर 87 रेलवे फाटक बनाए जाने की योजना है. सीमापार फाटकों की कमी लाने के लिए कहीं-कहीं फ्लाई ओवर बनाए जाने की योजना है.