toletहरियाणा सरकार की तर्ज पर बिहार सरकार ने अपने पंचायती राज अधिनियम में संशोधन करके चुनाव लड़ने के लिए घरों में शौचालय होना अनिवार्य कर दिया था. लेकिन सरकार ने अब अपने इस निर्णय को वापस ले लिया है. बिहार राज्य मंत्रिपरिषद ने इस अनिवार्यता को विलोपित किए जाने के पंचायती राज विभाग द्वारा लाए गए प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए कहा कि पंचायत निर्वाचन का अभ्यर्थी बनने के लिए शौचालय की अनिवार्यता रखे जाने से कमजोर वर्गों, विशेषत: अनुसूचित जाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग संवैधानिक अधिकारों से वंचित रह जायेंगे, जिनके पास शौचालय बनाने के लिए न तो भूमि उपलब्ध है और न ही साधन.

बिहार सरकार ने बिहार पंचायत राज अधिनियम-2006 की धारा 136 की उप धारा (1) के खंड (ट) में चुनाव लड़ने के लिए घर में शौचालय होना अनिवार्य कर दिया था. अब सरकार ने सुधार करते हुए इस प्रावधान को विलोपित कर दिया है. एक आंकड़े के मुताबिक बिहार में ऐसे परिवारों की संख्या डेढ़ करोड़ से अधिक है, जिनके पास शौचालय नहीं हैं. ऐसे में प्रदेश का एक बड़ा तबका इससे प्रभावित हो रहा था.

लेकिन भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों ने सरकार के इस फैसले को गरीब विरोधी करार दिया और इसे वापस लेने की मांग कर रहे थे. सरकार के इस निर्णय के बाद अब बिहार में जिनके घर शौचालय नहीं है, वे भी पंचायत का चुनाव लड़ सकेंगे. बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बिहार सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में उम्मीदवारी के लिए घरों में शौचालय होने की अनिवार्यता की शर्त को गलत बताते हुए कहा था कि राज्य सरकार की विफलता के कारण बिहार के 1.65 करोड़ घरों में आज तक शौचालय नहीं बने हैं.

भाजपा चुनाव में उम्मीदवारी के लिए शौचालय की अनिवार्यता की शर्त के पक्ष में है, लेकिन इस शर्त की वजह से बिहार के लाखों अनुसूचित जाति, जनजाति, अति पिछड़ा और गरीब सवर्ण समाज के लोग चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएंगे. ऐसे में सरकार इस चुनाव में इस शर्त को शिथिल कर चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों के लिए अगले एक साल में अपने घरों में शौचालय बना लेने की शर्त लगा सकती है.

मोदी ने कहा कि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद बिहार के 76.38 प्रतिशत परिवार आज भी शौचालय विहीन हैं. हरियाणा सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हरी झंड़ी दिखाए जाने के बाद चौथी दुनिया से बात करते हुए जदयू के प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा था कि देश का बहुत बड़ा हिस्सा है, जिसके पास शौचालय नहीं है, आदिवासियों में आप जाइए, दूरस्थ इलाकों में जाइए, समाज के जो पिछड़े वर्ग हैं, वहां किसी के यहां शौचालय नहीं है. सभी खुले में शौच जाते हैं.

आप विदेश की बात कर रहे हैं, आप अपने देश की बात कीजिए. यहां की जो जरूरतें हैं, यहां की जो आवश्यकताएं हैं, उसके आधार पर निर्णय लीजिए. यदि गांवों में शौचालय नहीं हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है. यह सब जो हो रहा है, यह संभ्रात लोगों का स्वांग है और जो समाज के कमजोर तबके हैं, जो लोग अभी पिछड़े हैं, जिनके पास घर नहीं हैं, यह उनके साथ एक बुरा मजाक है.

यह निर्णय देश की वास्तविकताओं से परे है, उनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है. हमारी पार्टी चाहती है कि चुनाव लड़ने में इस तरह की कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए. पार्टी और सरकार के अंदर ही इस निर्णय को लेकर दो धड़े थे. लेकिन नीतीश कुमार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए, अपने निर्णय को वापस ले लिया. बिहार में अप्रैल से मई के दौरान 10 चरणों के पंचायत चुनाव आयोजित होंगे. प्रत्येक चरण में 53 प्रखंडों में पंचायत चुनाव होंगे. राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव के लिए चुनाव प्रेक्षकों की नियुक्ति भी कर दी है. बिहार प्रशासनिक सेवा के 127 अधिकारियों को प्रेक्षक बनाया गया है.

पिछली बार 8,463 पंचायतों में चुनाव हुआ था इस बार यह संख्या घटकर 8,397 हो गई है. मुखिया, सरपंच, पंचायत सदस्य, पंच, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य के 2 लाख 58 हजार 772 पदों के लिए चुनाव हो रहे हैं. निर्वाचन आयोग इस चुनाव को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराने के लिए तैयारियां कर चुका है. राज्य सरकार ने पहले ही पंचायत चुनाव पार्टी आधार पर नहीं कराने की घोषणा कर चुकी है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 में ही राज्य में पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीट आरक्षित कर दी गई थी.

इस बार पंचायत चुनाव के लिए अलग से मतदाता सूची नहीं बनेगी. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में विभिन्न पदों के कोटिवार आरक्षण के आवंटन में बदलाव होगा. यह बदलाव चक्रानुक्रमण के तहत होगा. पंचायत चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने आदर्श आचार संहिता से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा है कि अभ्यर्थी या उनके समर्थकों द्वारा किसी भी सरकारी या सरकार के उपक्रमों के भवन, दीवार तथा चहार दीवारी पर पोस्टर सूचना चिपकाने पर भी रोक रहेगी.

वहां किसी तरह का नारा नहीं लिखा जाएगा. बैनर-झंडा लगाने पर भी पाबंदी होगी. मतदान केंद्र के 100 मीटर के दायरे में चुनाव प्रचार भी आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा. आचार संहिता के दौरान मंत्रियों के दौरों पर भी नजर रहेगी. मंत्रियों के सरकारी दौरों के कार्यक्रम को चुनाव प्रचार अभियान के साथ नहीं जोड़ा जाएगा और सरकारी तंत्र या कर्मियों का उपयोग चुनाव प्रचार अभियान में करने पर पाबंदी होगी. चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही मंत्री या अन्य अधिकारी किसी भी रूप में वित्तीय अनुदान की घोषणा अथवा उसके लिए आश्वासन नहीं देंगे.

किसी भी प्रकार की परियोजनाओं या योजनाओं का शिलान्यास नहीं करेंगे. सड़कों के निर्माण, पेयजल सुविधाओं आदि की व्यवस्था का कोई आश्वासन नहीं देंगे. शासन, सार्वजनिक उपक्रमों आदि में कोई ऐसी तदर्थ नियुक्ति, जो किसी उम्मीदवार के पक्ष में वोट को प्रभावित करे, नहीं करेंगे. सांसदों और विधायकों को किसी पंचायत क्षेत्र में जहां चुनाव होना है, स्वेच्छानुदान राशि, जनसंपर्क निधि से कोई अनुदान स्वीकृत नहीं किया जाएगा. किसी की सहायता या अनुदान का आश्वासन भी नहीं देना होगा.

किसी योजना का शिलान्यास या उद्घाटन भी नहीं करना होगा. राज्य सरकार पंचायत चुनावों को लेकर चुस्त-दुरुस्त नजर आ रही है. सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती शांतिपूर्वक ढंग से चुनाव संपन्न कराने की है. बिहार की बिगड़ती कानून व्यवस्था पर सारे देश की नज़रें हैं. ऐसे में पंचायत चुनाव में यदि हिंसा होती है तो विपक्षी दलों की विधानसभा चुनाव के बिहार में जंगलराज के वापसी की बात सच साबित होगी.

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