कांग्रेस के लिए यह सवाल पूरी तरह से हल नहीं हो सका है कि शिवराज के सामने कांग्रेस की तरफ से किसका चेहरा होगा. ऐसे में राहुल गांधी कमलनाथ और सिंधिया दोनों को साथ में रखते हुए खुद फ्रंट पर दिखाई दे रहे हैं. मध्य प्रदेश में अपनी इसी भूमिका को निभाते हुए आजकल राहुल गांधी कुछ अलग ही अंदाज में दिखाई दे रहे हैं, जिससे लगता है कि एक नेता के तौर पर उनकी लंबी और उबाऊ ट्रेनिंग खत्म हो चुकी है, एक नेता के तौर पर अब उनका खुद पर बेहतर नियंत्रण दिखाई पड़ रहा है. साथ ही उनके हमले विरोधियों को इस कदर परेशान करने लगे हैं कि वे मानहानि का केस कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश की राजनीति में मालवा इलाके को सत्ता की कुंजी माना जाता है. कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां बखूबी जानती हैं कि अगर मालवा पर कब्जा कर लिया तो फिर एमपी की सत्ता हासिल करने में आसानी होगी. यह क्षेत्र लंबे समय से भाजपा और संघ का गढ़ बना हुआ है. वर्तमान में मालवा क्षेत्र की 50 सीटों में 45 सीटों पर भाजपा का कब्जा है.
पिछले 15 सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस को अगर सत्ता में वापस लौटना है, तो उसे भाजपा के इस मजबूत गढ़ में सेंध लगाने की जरूरत पड़ेगी, इसलिए कांग्रेस इस बार मालवा पर ज्यादा फोकस कर रही है. इस कड़ी में अक्टूबर के आखिरी दिनों में राहुल गांधी का दो दिनों का मालवा-निमाड़ दौरा काफी चर्चित रहा. उनके इस दौरे ने मध्य प्रदेश में चुनावी हलचल को तेज कर दिया है. अपने पूर्व के दौरों के मुकाबले मालवा-निमाड़ में राहुल गांधी पूरी तरह से अपने स्वाभाविक मिजाज में नजर आए.
इस दौरान वे एक सधे हुए नेता के तौर पर सहज और आक्रामक दोनों थे, जनता और मीडिया के साथ उनका कनेक्शन देखते ही बनता था. हालांकि यहां उनका कनफ्यूजन सामने आया, लेकिन उन्होंने इसे बखूबी हैंडल भी कर लिया. अपने इस दौरे से उन्होंने मालवा-निमाड़ में काफी हद तक कांग्रेस के लिए चुनाव का माहौल बना दिया है. राहुल के दौरे के दौरान उनके लिए स्वाभाविक रूप से उमड़े जनसैलाब से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं में जबरदस्त उत्साह है. अब देखना है कि क्या कांग्रेस राहुल के इस दौरे से बने माहौल को प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी भुना पाएगी?
कनफ्यूज़न और सॉल्यूशन
मध्य प्रदेश में कांग्रेस अमूमन अपने प्रादेशिक क्षत्रपों को सामने रख कर मैदान में उतरती रही है, लेकिन इस बार ऐसा लगता है कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद को फ्रंट पर रखते हुए मैदान में हैं. हालांकि इस बार मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने शिवराज के खिलाफ पार्टी की तरफ से करीब आधा दर्जन चेहरों को कमलनाथ और सिंधिया के रूप में दो चेहरों में सीमित कर दिया है.
यहां तक कि दिग्विजय सिंह जैसे नेता को भी नेपथ्य में भेज दिया गया है. लेकिन इससे कांग्रेस के लिए यह सवाल पूरी तरह से हल नहीं हो सका है कि शिवराज के सामने कांग्रेस की तरफ से किसका चेहरा होगा? ऐसे में राहुल गांधी कमलनाथ और सिंधिया दोनों को साथ में रखते हुए खुद फ्रंट पर दिखाई दे रहे हैं.
मध्य प्रदेश में अपनी इसी भूमिका को निभाते हुए आजकल राहुल गांधी कुछ अलग ही अंदाज में दिखाई दे रहे हैं, जिसे देखकर लगता है कि एक नेता के तौर पर उनकी लंबी और उबाऊ ट्रेनिंग खत्म हो चुकी है, एक नेता के तौर पर अब उनका खुद पर बेहतर नियंत्रण दिखाई पड़ रहा है. साथ ही उनके हमले विरोधियों को इस कदर परेशान करने लगे हैं कि वे मानहानि का केस कर रहे हैं.
हालांकि वे अपनी पुरानी समस्याओं से अभी तक उबर नहीं पाए हैं, लेकिन अब वे इनका हल भी पेश करने लगे हैं. मालवा में अपने अभियान के दौरान राहुल गलती से कह गए कि पनामा पेपर में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र का नाम है, जिसने भाजपा और शिवराज को उनपर हमला करने का मौका दे दिया. इसपर शिवराज सिंह का कहना था कि राहुल कन्फ्यूज आदमी हैं, जो मामा को पनामा कह गए.
उन्होंने राहुल पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देते हुए कहा कि वे राहुल गांधी के खिलाफ उनके परिवार पर कीचड़ उछालने के आरोप में मानहानि का मुकदमा करेंगे. बाद में राहुल गांधी इसपर सफाई पेश करते हुए नजर आए, हालांकि उनकी इस सफाई का अंदाज भी दिलचस्प और चिढ़ाने वाला था.
अपने बयान पर सफाई पेश करते हुए राहुल ने कहा कि भाजपा शासित राज्यों में इतने घोटाले हुए हैं कि मैं कन्फ्यूज हो गया. पनामा पेपर लीक तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के बेटे का मामला है, मप्र के सीएम ने तो ई-टेंडरिंग और व्यापम घोटाला किया है. इसके बाद शिवराज के बेटे कार्तिकेय द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ भोपाल कोर्ट में मानहानि का परिवाद पेश कर दिया गया, जिसपर खरगोन की एक रैली के दौरान पलटवार करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि वे मानहानि मुकदमों से नहीं डरते और जनता के हित में सच्चाई बयान करते रहेंगे और शिवराज चौहान भी मानहानि का मुकदमा लगाते हैं तो लगा दें.
शिवभक्त राहुल का नया अवतार
गुजरात विधानसभा चुनाव ने राहुल गांधी और उनकी पार्टी को एक नई दिशा दी है, इसे भाजपा और संघ के खिलाफ काउंटर नैरेटिव तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इससे राहुल और उनकी पार्टी को मुकाबले में वापस आने में मदद जरूर मिली है. खुद राहुल गांधी में सियासी रूप से लगातर परिपक्वता आई है और वे लोगों से कनेक्ट होने की कला को भी तेजी से सीख रहे हैं, वे मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की सबसे बुलंद आवाज बन चुके हैं. वे अपने तीखे तेवरों से नरेंद्र मोदी की मजबूत सरकार को बैकफुट पर लाने में कामयाब हो रहे हैं, राफेल का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें मोदी सरकार बुरी तरह से घिरी नजर आ रही है.
मध्य प्रदेश में भी पिछले कुछ महीनों के अपने चुनावी अभियान के दौरान वे ध्यान खींचने में कामयाब रहे हैं. जिसमें प्रदेश की जनता के अलावा प्रदेश के कई सीनियर पत्रकार भी शामिल हैं. मध्य प्रदेश के अपने पिछले दौरों में राहुल गांधी का भाषण मुख्य रूप से राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी सरकार को निशाना बनाने पर ही फोकस रहता था, स्थानीय मुद्दों के नाम पर वे स्थान के हिसाब से मेड इन भोपाल, मेड इन चित्रकूट, मेड इन मंदसौर मोबाइल जोड़ देते थे.
जिसकी वजह से उनके भाषण स्थानीय लोगों को कनेक्ट नहीं कर पाते थे. लेकिन अपने मालवा दौरे में राहुल लोकल मुद्दों पर ज्यादा जोर देते हुए नजर आए. इंदौर में होटलों और सावर्जनिक स्थानों पर वे बहुत ही सहजता और औपचारिकता के साथ लोगों से घुलते-मिलते नजर आए. यहां भी राहुल अपनी हिंदू पहचान के प्रदर्शन को जारी रखते हुए महाकाल मंदिर गए.
इंदौर में राहुल गांधी प्रदेश के चुनिंदा संपादकों/पत्रकारों से मिले थे, जिसमें शामिल होने के बाद वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिन्दुस्तानी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि इंदौर में राहुल गांधी से मिलकर लगा कि वे कुटिल भले ही नहीं हो, लेकिन परिपक्व तो हो ही गए हैं.
आक्रामक! बेबाक और बेलौस स्वीकारोक्तियां, जुबान से डंक मारने की कला सीखने के विद्यार्थी, लेकिन संवेदनशील. राहुल गांधी को लेकर कुछ इस तरह का इम्प्रेशन प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक एल एन स्टार के संपादक प्रकाश भटनागर का भी है, जिनका कहना है कि अतीत के तमाम प्रहसनों को पीछे छोड़कर गांधी ने अब वाकई किसी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे तेवर हासिल कर लिए हैं.
वरिष्ठ पत्रकार रिज़वान अहमद सिद्दीक़ी कहते हैं कि राहुल गांधी के बारे में जिस तरह के दुष्प्रचार होते रहे हैं, उनसे रूबरू हुए तो ज्यादातर संपादकों के अनुभव उससे बिल्कुल विपरीत रहे.
संपादकों के साथ मुलाक़ात में राहुल गांधी से सवाल पूछे गए, जिसका उन्होंने सधे हुए तरीके से जवाब दिया, जबकि सवाल फिक्स नहीं थे. इस दौरान वे खुद को और अपनी राजनीति को भी खोलते नजर आए. हिंदू, और हिंदुत्व के बीच मोटी लकीर खींचते हुए उन्होंने कहा कि ‘हिंदू, हिन्दूवादी और हिंदुत्व अलग-अलग हैं, मैं हिंदुत्व नहीं हिंदूवाद का पक्षधर हूं, हिंदूवाद एक महान परंपरा है, जो सबको लेकर चलती है.
मैं सबकी सुनता और सबका आदर करता हूं, मैं हिंदू हूं, लेकिन सभी धर्म का आदर करता हूं, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा आदि सभी जगह जाता हूं. मैं हिंदूवादी नेता नहीं, बल्कि हर धर्म और हर वर्ग का नेता हूं.’ इस दौरान जब राहुल गांधी से एक पत्रकार ने पूछा कि आपको भाजपा वाले पप्पू क्यों कहते हैं, राहुल गांधी का जवाब था कि ‘मैं शिवभक्त हूं शंकर जी का दूसरा नाम भोले नाथ है और मैं भला और भोला हूं.’
कांग्रेस की उम्मीदें
2013 के विधानसभा चुनाव के दौरान मालवा-निमाड़ की करीब 86 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस केवल 10 सीटें ही जीत सकी थी. लेकिन इस बार बदली परिस्थितियों के चलते कांग्रेस को माहौल अपने अनुरूप लग रहा है. मंदसौर में किसान आंदोलन की राखें अभी बुझी नहीं हैं, सवर्ण आंदोलन का भी विपरीत असर पड़ सकता है.
किसानों के आक्रोश और सवर्ण समुदाय की नाराजगी में कांग्रेस अपनी वापसी का रास्ता देख रही है. बसपा से गठबंधन न हो पाने को भी कांग्रेस अपने लिए प्लस प्वाइंट के रूप में देख रही है. कांग्रेस को लगता है कि इससे सवर्ण मतदाता उसकी तरफ वापसी कर सकते हैं.
मध्य प्रदेश में चुनाव अभियान से मोदी की दूरी?
ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश में चुनाव अभियान से भाजपा के सबसे बड़े स्टार प्रचारक सेफ दूरी बना कर चल रहे हैं. एक तरफ जहां राहुल गांधी मध्य प्रदेश को सबसे ज्यादा समय दे रहे हैं और यहां उनके निशाने पर शिवराज से ज्यादा मोदी और उनकी सरकार ही होती है, वहीं नरेंद्र मोदी प्रदेश के चुनावी परिदृश्य से अभी तक नरादाद हैं. राज्य में भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान में भी केंद्र की उपलब्धियों पर ना के बराबर ही फोकस किया जा रहा है.
खबरें आ रही है कि मध्य प्रदेश में नरेंद्र मोदी के चुनावी सभाओं में कमी की गई है और अब वे मध्य प्रदेश में केवल दस जनसभाएं ही करेंगें. इसी तरह से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी वे तुलनात्मक रूप से कम जनसभाएं करेंगें. शायद निगेटिव फीडबैक को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है, जिससे अगर इन राज्यों में भाजपा की हार होती है तो इसकी जिम्मेदारी मौजूदा मुख्यमंत्रियों पर टाली जा सके और 2019 लोकसभा चुनाव के लिए मोदी ब्रांड को बचाए रखा जा सके.
दिग्गी राजा व्यस्त हैं
राहुल गांधी के मालवा दौरे के दौरान भी दिग्विजय सिंह ने अपने आप को बैकग्राउंड में ही बनाए रखा. हालांकि इंदौर उनकी जमीन मानी जाती है, लेकिन फिर भी वे नदारद रहे. राहुल के मालवा दौरे के दौरान दिग्विजय सिंह की जगह उनके दो ट्वीट सामने आए. पहले ट्वीट में उन्होंने राहुल का इंदौर में स्वागत करते हुए लिखा कि ‘मैं इंदौर में पैदा हुआ, स्कूल व कॉलेज की शिक्षा भी इंदौर में हुई. आज राहुल गांधी जी इंदौर पहुंच रहे हैं, मैं उनका हार्दिक स्वागत करता हूं.’
जबकि अपने दूसरे ट्वीट में उन्होंने राहुल के दौरे में शामिल न हो पाने के पीछे तर्क देते हुए लिखा कि ‘मुझे अध्यक्ष जी ने कुछ आवश्यक कार्य सौंपा हुआ है, जिसके कारण राहुल जी के इंदौर उज्जैन कार्यक्रम में अनुपस्थित रहूंगा क्षमा करें. सभी मित्रों से राहुल जी का गर्मजोशी से स्वागत करने की अपील करता हूं.’
गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह लगातार राहुल गांधी के दौरों और जनसभाओं से दूरी बनाकर चल रहे हैं. हालांकि पर्दे के पीछे से वे काफी सक्रिय हैं. दरअसल, दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश में पिछले करीब दो सालों से लगातार जमीन स्तर पर अपनी सक्रियता बनाए हुए हैं और प्रदेश की राजनीति में इस मामले में उनका मुकाबला केवल शिवराज ही कर सकते हैं.
मध्य प्रदेश में उनकी जमीनी पकड़ का अंदाजा पिछले दिनों दिए गए उनके उस बयान से लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मध्य प्रदेश को थोड़ा बहुत में भी जानता हूं, मैं हर ब्लॉक के लोगों को जानता हूं, कौन कितना लोकप्रिय है, थोड़ा बहुत मुझे भी अंदाजा है, परिक्रमा करने के बाद इसे मैंने और पुख्ता कर लिया, आज 230 सीटों पर कौन उम्मीदवार हो सकता है, मैं बिना कागज देखे आपको बता सकता हूं. जाहिर है दिग्विजय सिंह जैसे मिजाज का नेता अगर पर्दे के पीछे रहकर व्यस्त है तो इसके गहरे निहितार्थ हो सकते हैं.