गुजरात में, अहमदाबाद में यहां तक कि पूरे देश में लोग यह मानते हैं कि 2002 में गुजरात में जो कुछ भी हुआ उसके लिए नरेंद्र मोदी ही जिम्मेदार हैं. इसलिए शरद पवार जैसे वरिष्ठ और समझदार नेता को अपनी पार्टी के लोगों से कहना चाहिए कि वे एक रुख अख्तियार करें कि हमें न्यायालय के निर्णय का सम्मान करना चाहिए. आगे जरूरत पड़ने पर नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के लिए बहाना बनाने की आवश्यकता नहीं है, आज के माहौल में सिद्धांत गौण हो गए हैं, हर कोई वही करना चाहता है जिससे कोई फायदा हो, फायदा भी दूरगामी ने होकर तात्कालिक हो.यह बेहद खेदपूर्ण है.
बीते दिनों की सबसे बड़ी खबर राहुल गांधी का अरनब गोस्वामी द्वारा लिया लंबा इंटरव्यू रहा. हालांकि मुश्किल यह है कि राहुल गांधी ने शुरुआत करने में काफी देर लगा दी. अगर उन्होंने यही पहल तीन साल पहले कर दी होती तो अब तक उनकी साक्षात्कार देने की कला में निखार आ गया होता और वह राजनीतिक सवालों के सही जवाब देने में महारत हासिल कर चुके होते. दरअसल, सही नीयत और गंभीरता का होना ही पर्याप्त नहीं है. उन्होंने अपनी ओर से सवालों का जवाब देने की पूरी कोशिश की, लेकिन 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के मामले में चूक गए. यह सिख समुदाय के लिहाज से बहुत संवेदनशील मुद्दा है. व्यक्तिगत रूप से कांग्रेस गोधरा दंगों के मसले को हमेशा उठाती रही है ऐसे में वह 1984 के दंगों को सिरे से दरकिनार नहीं कर सकती है. आपको इसे गंभीरता से लेना चाहिए था. इस मसले पर सिख समुदाय से माफी मांगने का राहुल गांधी के पास एक बेहतरीन मौका था लेकिन दुर्भाग्यवश वह इसके लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने यह मौका गंवा दिया. वह कमजोर पड़ गए और मजबूत नेता के रूप में सामने नहीं आ सके.
दूसरी तरफ उन्हें यह भी समझना होगा कि कांग्रेस एक पुरानी पार्टी है और वह भावनाओं में बहकर किसी नई पार्टी या भारतीय जनता पार्टी की तरह हवा-हवाई वादे नहीं कर सकती है. भाजपा भावनाओं से ओतप्रोत पार्टी है जो वादे पर वादे तो करती जाती है लेकिन जब सत्ता में आती है तब आर्थिक नीतियों आदि के मामलों में या तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आता है या फिर वो भी कांग्रेस की लीक पर चलने लगती है. कांग्रेस के साथ वास्तविक परेशानी यह है कि उसके पास काम के नाम पर लोगों को दिखाने के लिए केवल सूचना का अधिकार और महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ही हैं. जो कि यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल की उपलब्धियां हैं. इनकी वजह से ही यूपीए को दूसरी बार सरकार बनाने के लिए लोगों का भारी समर्थन मिला था. दुर्भाग्यवश यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान हुए घोटालों का एक-एक करके खुलासा होने लगा जो कि वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के लिए वास्तविक परेशानी है. यहां सवाल यह नहीं है आज पार्टी का क्या रुख है, उन्होंने अब तक क्या किया और क्या करेंगे? समस्या यह है वे अपने दो शासनकालों के दौरान बेशर्मी से किए गए कोयला और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों पर क्या स्पष्टीकरण दे रहे हैं. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बड़े पैमाने पर धांधली होने का उल्लेख किया है और आंकड़े बताते हैं कि यह कितने बड़े घोटाले थे. दुर्भाग्य से बहस इस बात में उलझ गई कि सरकार को इनसे कितना घाटा हुआ, जिसका कोई औचित्य नहीं है. जबकि सच्चाई यह है कि सरकार को ब़डा नुकसान हुआ है और यह व्यावसायिक नुकसान नहीं है बल्कि यहां पर गलत तौर-तरीकों का इस्तेमाल करके और नियमों का तोड़-मरोड़कर अपने करीबियों को सीधे तौर पर फायदा पहुंचाया गया.
भारत की जनता बहुत समझदार है वह सब देख और समझ रही है और यह कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी का कारण है. कांग्रेस के थिंक टैंक में जो भी लोग हैं उन्हें एक साथ बैठकर यह विचार करना चाहिए कि इन आरोपों का सामना किस तरह किया जाए, उन्हें कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण ढूंढना होगा, न्यायिक आयोग का गठन या कुछ ऐसा करना होगा जिससे ऐसा प्रतीत हो कि कांग्रेस के हाथ साफ-सुथरे हैं.
भारत की जनता बहुत समझदार है वह सब देख और समझ रही है और यह कांग्रेस पार्टी के लिए परेशानी का कारण है. कांग्रेस के थिंक टैंक में जो भी लोग हैं उन्हें एक साथ बैठकर यह विचार करना चाहिए कि इन आरोपों का सामना किस तरह किया जाए, उन्हें कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण ढूंढना होगा, न्यायिक आयोग का गठन या कुछ ऐसा करना होगा जिससे ऐसा प्रतीत हो कि कांग्रेस के हाथ साफ-सुथरे हैं. आप मामलों पर पर्दा डालने और उसकी लीपा-पोती में जुटे हुए हैं. यह बात आदर्श सोसायटी के मामलें में भी लागू होती है. सही या गलत किसी भी तरह यदि किसी पूर्व मुख्यमंत्री को इस मामले में दोषी पाया गया है बावजूद इसके उनका साथ दिया जा रहा है क्योंकि वह युवा हैं और मुख्यमंत्री बनते समय वे राहुल गांधी की पसंद थे. यह सही रास्ता नहीं है. पार्टी के भले के लिए आप हमेशा अपने तरीके से नहीं चल सकते. आपके लिए भी कुछ नियम कायदे हैं. आपको भी उनका पालना करना चाहिए. ऐसा करने के बावजूद आपको नुक्सान हो तो फिर यह आपकी बदकिस्मती है.
दूसरा, कार्यवाही को लेकर, उच्चतम न्यायालय ने टू जी स्पेक्ट्रम का आवंटन रद्द कर दिया था लेकिन कोयला खदानों के मामले में ऐसा अभी तक नहीं हुआ है. इसी तरह आदर्श सोसायटी के मामले में भी हुआ. आदर्श सोसायटी के मामले में सरकार को इमारत अपने कब्जे में ले लेनी चाहिए थी. लोगों ने सोसायटी में जो भी पैसे जमा किए थे उन्हें वो पैसे वापस कर देने चाहिए थे क्योंकि वह ज़मीन बेहद कीमती है और ज़मीन की कीमत हमेशा बढ़ती रहती है. यदि वे इमारत को धराशाई कर देते फिर भी सरकार को कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ता. सरकार को जो शर्मिंदगी उठानी पड़ी, निर्णय लेने के मामले में पशोपेश की स्थिति क्यों बनी हुई है या तो वो निर्णय लेने से घबरा रहे हैं या स्थितियों को समझ नहीं पा रहे हैं. लेकिन इस सबके बाद कुल मिलाकर कांग्रेस की छवि पर बट्टा लगा है.
एक दूसरा वक्तव्य प्रफुल्ल पटेल का है. उन्होंने कहा कि वह नरेंद्र मोदी से जुड़े मामलों में न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हैं. इसका क्या मतलब है? इसका केवल एक मतलब है कि उन्होंने यह मान लिया है कि भाजपा कांग्रेस से आगे है और आम चुनाव के बाद यूपीए की बजाए एनडीए के साथ गठबंधन के विकल्प खुले हुए हैं. न्यायिक आदेश ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, न्यायिक निर्णयों के आधार पर कांग्रेस की स्थिति बेहतर है, 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों में सैकड़ों लोगों को सजा सुनाई गई, लेकिन गोधरा के मामले मे न के बराबर लोगों को सजा सुनाई गई. आप यह नहीं मान सकते हैं कि न्यायिक निर्णय जनता की धारणा है. गुजरात में, अहमदाबाद में यहां तक कि पूरे देश में लोग यह मानते हैं कि 2002 में गुजरात में जो कुछ भी हुआ उसके लिए नरेंद्र मोदी ही जिम्मेदार हैं. इसलिए शरद पवार जैसे वरिष्ठ और समझदार नेता को अपनी पार्टी के लोगों से कहना चाहिए कि वे एक रुख अख्तियार करें कि हमें न्यायालय के निर्णय का सम्मान करना चाहिए. आगे जरूरत पड़ने पर नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के लिए बहाना बनाने की आवश्यकता नहीं है, आज के माहौल में सिद्धांत गौण हो गए हैं, हर कोई वही करना चाहता है जिससे कोई फायदा हो, फायदा भी दूरगामी ने होकर तात्कालिक हो.यह बेहद खेदपूर्ण है.